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भारतीय समाज

SCs व STs के विरुद्ध अत्याचार पर रिपोर्ट

  • 24 Sep 2024
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अग्रिम जमानत, विशेष अदालतें

मेन्स के लिये:

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, नीतियों के डिजाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत एक रिपोर्ट जारी की है , जिसमें वर्ष 2022 में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अत्याचार की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अत्याचार पर रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • केस संबंधी आँकड़े: वर्ष 2022 में अनुसूचित जातियों (SCs) के खिलाफ अत्याचार के 51,656 मामले और अनुसूचित जनजातियों (STs) के खिलाफ 9,735 मामले दर्ज किये गए। उल्लेखनीय है कि अनुसूचित जातियों (SCs) के 97.7% मामले और अनुसूचित जनजातियों (STs) के 98.91% मामले सिर्फ़ 13 राज्यों में केंद्रित थे।
  • सर्वाधिक घटनाओं वाले राज्य:
    •  अनुसूचित जातियों के लिये: निम्नलिखित 6 राज्यों में कुल मामलों का लगभग 81% हिस्सा दर्ज किया गया।
      •  उत्तर प्रदेश: 12,287 मामले (23.78%)
      • राजस्थान: 8,651 मामले (16.75%)
      • मध्य प्रदेश: 7,732 मामले (14.97%)
      • अन्य राज्य: बिहार 6,799 (13.16%), ओडिशा 3,576 (6.93%), और महाराष्ट्र 2,706 (5.24%)।
    • अनुसूचित जनजातियों के लिये:
      • मध्य प्रदेश: 2,979 मामले (30.61%)
      • राजस्थान: 2,498 मामले (25.66%)
      •  ओडिशा: 773 मामले (7.94%). 
      • अन्य राज्य: 691 मामले के साथ महाराष्ट्र (7.10%) और 499 मामले के साथ आंध्र प्रदेश (5.13%)।
  •  चार्ज शीट और जाँच :
    • अनुसूचित जाति से संबंधित मामले: अनुसूचित जाति से संबंधित 60.38% मामलों में चार्ज शीट दायर की गई , जबकि झूठे दावों या सबूतों की कमी जैसे कारणों से 14.78% मामलों में ही  अंतिम रिपोर्ट दी जा सकी।
    • अनुसूचित जनजाति से संबंधित मामले: अनुसूचित जनजाति से संबंधित 63.32%  मामलों में चार्ज शीट दायर की गई, जबकि 14.71% मामलों में अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
    • वर्ष 2022 के अंत तक, अनुसूचित जातियों से जुड़े 17,166 मामले और अनुसूचित जनजातियों से जुड़े 2,702 मामले अभी भी जाँच के अधीन थे।
  • दोषसिद्धि दर (Conviction Rates):
    • अधिनियम के तहत दोषसिद्धि दर 2020 में 39.2% से घटकर 2022 में 32.4% हो गई है , जो न्यायिक परिणामों में चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाता है। 
  • बुनियादी ढाँचे  की कमियाँ:
    • 14 राज्यों के 498 ज़िलों में से केवल 194 ज़िलों ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अत्याचारों के मुकदमों के त्वरित निपटान के लिये विशेष अदालतें स्थापित की हैं।
    • अत्याचारों से ग्रस्त विशिष्ट ज़िलों की पर्याप्त रूप से पहचान नहीं की गई है, उत्तर प्रदेश में अत्याचारों से ग्रस्त किसी भी क्षेत्र की पहचान नहीं की गई है, जबकि वहाँ सबसे अधिक मामले हैं।
  • संरक्षण प्रकोष्ठ: 
    • आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, तमिलनाडु आदि सहित विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ-साथ दिल्ली, जम्मू और कश्मीर तथा पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में एससी/एसटी संरक्षण प्रकोष्ठ स्थापित किये गए हैं।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराध के क्या कारण हैं?

  • जातिगत पूर्वाग्रह और अस्पृश्यता: गहरी जड़ें जमाए हुए जातिगत पदानुक्रम भेदभावपूर्ण प्रथाओं को कायम रखते हैं , जहाँ एससी/एसटी समुदायों को प्राय: "निम्न" माना जाता है और उनकी जन्म-आधारित जातिगत पहचान के कारण सामाजिक बहिष्कार और हिंसा का शिकार होना पड़ता है।
  • भूमि विवाद और अलगाव: ऐतिहासिक रूप से भूमि स्वामित्व से वंचित, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों को भूमि तक पहुँच को लेकर निरंतर संघर्ष का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण प्रमुख जातियों के साथ विवाद होता है।
  • आर्थिक रूप से वंचित होना: शिक्षा, रोज़गार और आर्थिक संसाधनों तक सीमित पहुँच के कारण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समूहों की सुभेद्यता बढ़ जाती है, जिससे वे प्रभुत्वशाली समुदायों द्वारा शोषण और हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
  • सामाजिक और राजनीतिक शक्ति का असंतुलन: प्रभावशाली उच्च जातियाँ प्राय: असंगत राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव रखती हैं , जिससे वे कानूनी परिणामों के भय के बिना भेदभावपूर्ण प्रथाओं को बनाए रखने में सक्षम हो जाती हैं।
  • कानून का अपर्याप्त क्रियान्वयन: यद्यपि इन समुदायों की सुरक्षा के लिये एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम जैसे कानून मौजूद हैं, लेकिन कमजोर प्रवर्तन, पुलिस और नौकरशाही पूर्वाग्रह के साथ मिलकर प्राय: जाति-आधारित हिंसा के पीड़ितों के लिये न्याय में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • राजनीतिक अवसरवादिता: कभी-कभी राजनीतिक नेतृत्त्वकर्त्ता चुनावी लाभ के लिये जातिगत तनाव को बढ़ा देते हैं, जिससे समुदायों के बीच ध्रुवीकरण और संघर्ष में वृद्धि होती है।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 क्या है?

  • परिचय: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, जिसे SC/ST अधिनियम 1989 के रूप में भी जाना जाता है, एससी और एसटी के सदस्यों को जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा से बचाने के लिये अधिनियमित किया गया था।
  • उद्देश्य
  • ऐतिहासिक संदर्भ: यह अधिनियम अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 और नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 पर आधारित है, जो जाति के आधार पर अस्पृश्यता तथा भेदभाव को समाप्त करने के लिये स्थापित किये गए थे।
  • नियम और कार्यान्वयन: 
    • यह केंद्र सरकार को अधिनियम के कार्यान्वयन के लिये नियम बनाने हेतु अधिकृत करता है, जबकि राज्य सरकारें और केंद्रशासित प्रदेश केंद्रीय सहायता से इसे लागू करते हैं।
  • प्रमुख प्रावधान: 
    • अपराध: SC/ST अधिनियम सदस्यों के खिलाफ शारीरिक हिंसा, उत्पीड़न और सामाजिक भेदभाव सहित विशिष्ट अपराधों को परिभाषित करता है। यह इन कृत्यों को "अत्याचार" के रूप में मान्यता देता है और अपराधियों के लिये भारतीय दंड संहिता 1860 (जिसे अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है) के तहत कठोर दंड निर्धारित करता है। 
    • अग्रिम जमानत: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1989 की धारा 18 दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (जिसे अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है) की धारा 438- जो अग्रिम जमानत का प्रावधान करती है,  के कार्यान्वयन पर रोक लगाती है
    • विशेष न्यायालय: अधिनियम में त्वरित सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना और अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के नेतृत्व में राज्य स्तर पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति संरक्षण प्रकोष्ठों की स्थापना का आदेश दिया गया है।
    • जाँच: अधिनियम के तहत अपराधों की जाँच पुलिस उपाधीक्षक (DSP) के पद से नीचे के अधिकारी द्वारा नहीं की जानी चाहिये और निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरी की जानी चाहिये।
    • राहत और मुआवज़ा: इस अधिनियम में पीड़ितों को राहत और पुनर्वास प्रदान करने का प्रावधान है, जिसमें वित्तीय मुआवज़ा, कानूनी सहायता और सहायक सेवाएँ शामिल हैं।
  • बहिष्करण:  यह अधिनियम अनुचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बीच हुए अपराधों को कवर नहीं करता है; इनमें से कोई भी एक-दूसरे के खिलाफ अधिनियम को लागू नहीं कर सकता है।
  • हालिया संशोधन:
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015: 
      • इस संशोधन ने अपराध की परिभाषा का विस्तार किया, जिसमें हाथ से मैला ढोने के लिये मजबूर करना, सामाजिक बहिष्कार, यौन शोषण और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को देवदासी बनाना जैसे कृत्य शामिल हैं। 
      • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहने वाले लोक सेवकों को भी कारावास का सामना करना पड़ सकता है।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2018: 
      • इसने किसी आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से अनुमोदन की आवश्यकता को हटा दिया, जिसके परिणामस्वरूप बिना पूर्व मंज़ूरी के तत्काल गिरफ्तारी की अनुमति मिल गई।

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 से संबंधित निर्णय

  • कनुभाई एम. परमार बनाम गुजरात राज्य, 2000: गुजरात उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि यह अधिनियम अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के बीच एक-दूसरे के विरुद्ध किये गए अपराधों पर लागू नहीं होता है क्योंकि इसका उद्देश्य अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों को उनके समुदाय से बाहर के व्यक्तियों द्वारा किये गए अत्याचारों से बचाना है।
  • राजमल बनाम रतन सिंह, 1988: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि SC एवं ST अधिनियम के तहत स्थापित विशेष न्यायालय, विशेष रूप से अधिनियम से संबंधित अपराधों की सुनवाई के लिये नामित हैं, जो उन्हें नियमित मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायालयों से अलग करता है।
  • अरुमुगम सेरवाई बनाम तमिलनाडु राज्य, 2011: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि SC/ST समुदाय के किसी सदस्य का अपमान करना भी SC और ST अधिनियम के तहत अपराध है।
  • सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत प्रावधानों का बहिष्कार पूर्ण प्रतिबंध नहीं है अर्थात् न्यायालय ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत दे सकता है, जहाँ अत्याचार या उल्लंघन के आरोप झूठे/निराधार प्रतीत होते हों।
  • शजन स्कारिया बनाम केरल राज्य मामला, 2024:   इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि   अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित किसी व्यक्ति पर निर्देशित प्रत्येक अपमानजनक या डराने/धमकाने वाली टिप्पणी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध नहीं है।

आगे की राह

  • विधिक ढाँचे  को सुदृढ़ करना: समय पर सुनवाई और दोषसिद्धि सुनिश्चित करने के लिये विशेष अदालतों के लिये आधारिक संरचना में वृद्धि किये जाने की आवश्यकता है। 
    • इसके अलावा, SC/ST मामलों के संवेदनशील तथा प्रभावी निपटान हेतु कानून प्रवर्तन में प्रशिक्षित कर्मियों की संख्या बढ़ाने की भी आवश्यकता है।
  • रिपोर्टिंग तंत्र में सुधार: अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अत्याचारों पर नज़र रखने के लिये बेहतर रिपोर्टिंग और निगरानी प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पीड़ित प्रतिशोध के भय के बिना घटनाओं की रिपोर्ट कर सकें।
  • जागरूकता और शिक्षा: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के अधिकारों और अधिनियम के तहत उपलब्ध कानूनी सुरक्षा के बारे में समुदायों को शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिये।
  • लक्षित हस्तक्षेप: अत्याचार-प्रवण ज़िलों की पहचान कर इनकी घोषणा करने तथा इन क्षेत्रों में जाति-आधारित हिंसा के मूल कारणों को दूर करने के लिये लक्षित हस्तक्षेपों को लागू करने की आवश्यकता है।
  • निगरानी और मूल्यांकन: कार्यान्वित उपायों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अत्याचारों से निपटने में जवाबदेही तथा निरंतर सुधार सुनिश्चित करने के लिये एक सशक्त निगरानी तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
  • गैर सरकारी संगठनों के साथ सहयोग: पीड़ितों को समर्थन प्रदान करने और उनके अधिकारों की वकालत करने के लिये गैर-सरकारी संगठनों तथा नागरिक समाज समूहों के साथ साझेदारी कर यह सुनिश्चित करना चाहिये कि नीति-निर्माण प्रक्रियाओं में उनकी मांगों पर विचार किया जाए।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

Q. भारत में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के विरुद्ध निरंतर हो रहे अत्याचारों के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारकों का विश्लेषण कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 कितना प्रभावी है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये, राज्य द्वारा की गई दो मुख्य विधिक पहलें क्या हैं ? (2017)

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