RELOS और भारत-रूस संबंध | 25 Jun 2024

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-सोवियत मैत्री संधि,1971, क्वाड, भारतीय मानसून, भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी पर GSOMIA घोषणा, विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी, कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (KKNPP), सैन्य-तकनीकी सहयोग के लिये कार्यक्रम पर समझौता, मिग-21, Su-30, यूक्रेन संकट

मेन्स के लिये:

भारत-रूस संबंधों का रणनीतिक महत्त्व, प्रमुख मुद्दे और आगे की राह

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और रूस के बीच पारस्परिक रसद समझौता जिसे रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक्स एग्रीमेंट (RELOS) नाम दिया गया है, अब अंतिम रूप के लिये तैयार है। यह भारत और रूस के बीच संयुक्त अभ्यास, प्रशिक्षण तथा आपदा राहत प्रयासों सहित सैन्य सहयोग को सुगम बनाएगा।

रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक्स एग्रीमेंट (RELOS) क्या है?

  • परिचय: 
    • भारत और रूस के बीच रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक्स एग्रीमेंट (RELOS) एक महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था है जो दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग को बढ़ाएगी।
  • प्रायोजन: 
    • यह समझौता सैन्य रसद सहायता को सुव्यवस्थित करने, भारत और रूस दोनों के लिये संयुक्त अभियानों तथा लंबी दूरी के मिशनों को अधिक कुशल एवं लागत प्रभावी बनाने के लिये अभिकल्पित किया गया है।
  • महत्त्व: 
    • अनवरत संचालन:
      • यह आवश्यक आपूर्ति (ईंधन, राशन, स्पेयर पार्ट्स) की पुनः पूर्ति की सुविधा प्रदान करेगा, जिससे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निरंतर, निर्बाध सैन्य उपस्थिति संभव होगी।
      • यह सैन्यदल, युद्धपोतों और विमानों के लिये बर्थिंग (घाट पर लगाना) सुविधाएँ प्रदान करेगा।
      • यह युद्धकालीन और शांतिकालीन दोनों मिशनों के दौरान क्रियान्वित रहेगा।
    • रणनीतिक लाभ:
      • इससे मेज़बान देश के मौजूदा रसद नेटवर्क का बेहतर उपयोग संभव होगा और साथ ही संकटमय स्थितियों पर त्वरित प्रतिक्रिया करने की क्षमता बढ़ेगी।
      • इससे दोनों देशों के सैन्य अभियानों को रणनीतिक लाभ मिलने से कुल मिशन व्यय कम हो जाएगा।
    • सैन्य पहुँच में विस्तार:
      • यह सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में भारत की समुद्री पहुँच और इसके प्रभुत्त्व को बढ़ाता है।
      • समुद्री डोमेन जागरूकता (MDA) को बढ़ावा देने और साझा रसद सुविधाओं से समुद्री गतिविधियों के संबंध में सूचना का बेहतर आदान-प्रदान हो सकेगा, जिससे दोनों देशों की स्थितिजन्य जागरूकता (किसी स्थिति या वातावरण को पहचानने एवं समझने तथा संभावित खतरों की पहचान करने की क्षमता) में वृद्धि होगी।
    • क्वाड समझौतों के साथ संतुलन:
      • RELOS क्वाड देशों के साथ भारत के रसद समझौतों और रूस के गैर-क्वाड रुख को संतुलित करता है।
      • यह क्वाड की भागीदारी के बिना हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रूसी प्रभाव को बढ़ाता है।
      • यह अमेरिका के प्रभाव तथा रूस और भारत दोनों पर चीन के क्षेत्रीय प्रभाव को संतुलित करता है।
    • वैज्ञानिक अंतर्संबंध:
      • आर्कटिक क्षेत्र में भारत की प्राथमिक भागीदारी आर्कटिक समुद्र में हिम के विगलन और भारतीय मानसून प्रणालियों में परिवर्तन के बीच वैज्ञानिक अंतर्संबंधों को समझने पर केंद्रित हैं।

भारत के विभिन्न देशों के साथ लॉजिस्टिक समझौते क्या हैं?

  • भारत तथा अमेरिका:
    • सामान्य सैन्य सूचना सुरक्षा समझौता (GSOMIA): भारत और अमेरिका के बीच सैन्य खुफिया जानकारी साझा करने के लिये वर्ष 2002 में इस पर हस्ताक्षर किये गए थे।
    • लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA), 2016: सैन्य लॉजिस्टिक्स सुविधाओं के पारस्परिक उपयोग की अनुमति देता है।
    • बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA), 2020: भारत को अमेरिकी भू-स्थानिक खुफिया डेटा तक पहुँच प्रदान करता है।
    • संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA), 2018: एन्क्रिप्टेड संचार उपकरणों के हस्तांतरण को सक्षम बनाता है।
  • भारत तथा फ्राँस:
    • संयुक्त अभ्यास, बंदरगाह यात्राओं और मानवीय प्रयासों के दौरान रसद सहायता की सुविधा प्रदान करता है:
      • प्रशांत एवं हिंद महासागर क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा देता है।
      • समुद्री खुफिया जानकारी साझा करने में सक्षम बनाता है।
  • भारत तथा ऑस्ट्रेलिया:
    • व्यापक पारस्परिक रसद समर्थन समझौता (MLSA), 2020
      • भारत-प्रशांत समुद्री सहयोग के लिये साझा दृष्टिकोण पर ज़ोर दिया गया।
  • भारत तथा जापान:
    • सेवाओं के निकट समन्वय (ACSA), 2020 और सशस्त्र बलों के बीच आपूर्ति की अनुमति देता है।

भारत तथा रूस के बीच संबंध कैसे विकसित हुए हैं?

  • ऐतिहासिक उत्पत्ति:
  • द्विपक्षीय व्यापार:
    • द्विपक्षीय व्यापार पर्याप्त रहा है, भारत का कुल व्यापार वर्ष 2021-22 में लगभग 13 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँच गया है।
    • रूस भारत का सातवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जो पिछले वर्षों की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि है।
  • राजनीतिक भागीदारी:
    • राजनीतिक रूप से, दोनों देश दो अंतर-सरकारी आयोगों की वार्षिक बैठकों के माध्यम से आपस में जुड़ते हैं: एक व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग (IRIGC-TEC) पर केंद्रित है तथा दूसरा सैन्य-तकनीकी सहयोग (IRIGC-MTC) पर केंद्रित है।
  • रक्षा और सुरक्षा संबंध: दोनों देश नियमित रूप से त्रि-सेवा अभ्यास ‘इंद्र’ का आयोजन करते हैं।
    • भारत और रूस के बीच संयुक्त सैन्य कार्यक्रमों में शामिल हैं:
    • भारत द्वारा रूस से खरीदे/पट्टे पर लिये गए सैन्य हार्डवेयर में शामिल हैं:
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी:
    • यह साझेदारी भारत की स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती दिनों से चली आ रही है, जब भिलाई इस्पात संयंत्र जैसी संस्थाओं की स्थापना और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को समर्थन देने में सोवियत सहायता महत्त्वपूर्ण थी।
    • आज, सहयोग नैनो प्रौद्योगिकी, क्वांटम कंप्यूटिंग और भारत के मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम (गगनयान) जैसे उन्नत क्षेत्रों तक फैल गया है।

भारत-रूस संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • रणनीतिक बदलाव:
    • चीन के साथ घनिष्ठ संबंध: रूस दो मोर्चों (पश्चिम और चीन) पर संघर्ष से बचना चाहता है।
      • चीन-रूस के बीच बढ़ता सैन्य और आर्थिक सहयोग भारत की रणनीतिक गणना को प्रभावित करता है।
    • पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंध: यह अमेरिका-भारत संबंधों के मज़बूत होने के कारण हो सकता है और यह भारत की क्षेत्रीय रणनीति को जटिल बनाता है।
  • भारत का कूटनीतिक संतुलन:
    • भारत की महाशक्ति बनने की गणना के कारण एक ओर अमेरिका के साथ "व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी" और दूसरी ओर रूस के साथ "विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्त साझेदारी" के बीच चयन करने की दुविधा उत्पन्न हो गई है।
  • रूस-यूक्रेन संकट पर प्रतिक्रिया:
    • यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की निंदा करने से परहेज करने तथा मास्को के साथ ऊर्जा और आर्थिक सहयोग को निरंतर बढ़ाने के कारण भारत को पश्चिम में काफी आलोचना का सामना करना पड़ा।
  • रक्षा आयात में गिरावट:
    • रूस से भारत की रक्षा खरीद में धीरे-धीरे गिरावट आई है, क्योंकि भारत अपने रक्षा आयात में विविधता लाने का प्रयास करता है, जिससे रूस के लिये प्रतिस्पर्द्धा बढ़ गई है।
      • इससे उसे पाकिस्तान जैसे अन्य संभावित खरीदारों की तलाश करने पर भी मज़बूर होना पड़ेगा।

आगे की राह

  • स्थायी रक्षा साझेदारी: भारत के रक्षा बलों में रूस की पर्याप्त उपस्थिति के कारण, निकट भविष्य में, संभवतः कई दशकों तक, रूस के भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण रक्षा साझेदार बने रहने की उम्मीद है।
  • सहयोगात्मक निर्यात रणनीति: भारत और रूस, रूसी मूल के रक्षा उपकरणों और सेवाओं के लिये भारत को विनिर्माण केंद्र के रूप में विकसित करने के तरीकों की खोज कर रहे हैं।
    • इसका लक्ष्य इन उत्पादों को तीसरे देशों में निर्यात करना तथा उनकी बाज़ार पहुँच का विस्तार करना है।
    • तीसरे देशों को निर्यात के लिये भारत में रूसी Ka-226T हेलीकॉप्टरों के उत्पादन के बारे में चर्चा जैसे उदाहरण।
  • आर्थिक संबंधों में विविधता लाना: रक्षा के अलावा सहयोग का विस्तार करना, ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना, जैसे सखालिन-1 परियोजना में चल रही साझेदारी।
  • रणनीतिक संतुलन: अन्य शक्तियों के साथ संबंधों को संतुलित करते हुए 'विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त साझेदारी' को बनाए रखें। क्वाड देशों के साथ बातचीत करते हुए BRICS और शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) जैसे मंचों में भाग लेना जारी रखें।
  • अंतरिक्ष सहयोग: अंतरिक्ष अन्वेषण और उपग्रह प्रौद्योगिकी में सहयोग बढ़ाना। गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण या उपग्रह आधारित नेविगेशन प्रणालियों के लिये संयुक्त मिशन।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: RELOS का महत्त्व क्या है और बदलते वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य भारत-रूस संबंधों की गतिशीलता को कैसे प्रभावित करते हैं? इन द्विपक्षीय संबंधों के निरंतर सकारात्मक प्रक्षेपवक्र को सुनिश्चित करने के लिये उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हाल ही में भारत ने निम्नलिखित में से किस देश के साथ 'नाभिकीय क्षेत्र में सहयोग क्षेत्रों के प्राथमिकीकरण और कार्यान्वयन हेतु कार्य योजना' नामक सौदे पर हस्ताक्षर किया है? (2019)

(a) जापान
(b) रूस
(c) यूनाइटेड किंगडम
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका

उत्तर: B


मेन्स:

प्रश्न. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों का क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्त्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2020)