अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अफगानिस्तान पर क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता: दिल्ली
- 09 Nov 2021
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प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद,अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता मेन्स के लिये:अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता की ज़रूरत तथा उद्देश्य, अफगानिस्तान में भारत के हित |
चर्चा में क्यों?
आने वाले दिनों में भारत 'अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता' की मेजबानी करेगा।
- बैठक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSAs) के स्तर पर होगी और इसकी अध्यक्षता भारत के एनएसए अजीत डोभाल करेंगे।
प्रमुख बिंदु:
- बैठक के बारे में:
- आमंत्रित प्रतिभागी: भारत के शीर्ष सुरक्षा प्रतिष्ठान, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय ने व्यक्तिगत बैठक आयोजित करने का बीड़ा उठाया है।
- इसके लिये अफगानिस्तान के पड़ोसियों जैसे- पाकिस्तान, ईरान, ताजिकिस्तान,उज़्बेकिस्तान, रूस और चीन सहित अन्य प्रमुख देशों को निमंत्रण भेजे गए थे।
- बैठक की ज़रूरत: अमेरिकी सेना की वापसी और तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने के बाद भारत इस क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर चिंतित है।
- उद्देश्य: इस संदर्भ में भारत ने देश की वर्तमान स्थिति और भविष्य के दृष्टिकोण पर क्षेत्रीय हितधारकों एवं महत्त्वपूर्ण शक्तियों का एक सम्मेलन आयोजित करने के लिये यह पहल की है।
- भारत का हित: यह बैठक अफगानिस्तान पर भविष्य की कार्रवाई तय करने के लिये भारत की कोशिश हो सकती है।
- यह बैठक भारत के सुरक्षा हितों की रक्षा के लिये दुनिया के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने की आवश्यकता को भी दर्शाती है।
- प्रतिभागियों की प्रतिक्रिया: मध्य एशियाई देशों के साथ-साथ रूस और ईरान ने भी भागीदारी की पुष्टि की है।
- इस संबंध में उत्साहजनक प्रतिक्रिया अफगानिस्तान में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये क्षेत्रीय प्रयासों में भारत की भूमिका से जुड़े महत्त्व की अभिव्यक्ति है।
- पाकिस्तान और चीन का इनकार: पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने माना है कि वह बैठक में शामिल नहीं होंगे।
- चीन ने भी समय की कमी के कारण क्षेत्रीय सुरक्षा बैठक में भाग नही लेने का फैसला किया है, लेकिन द्विपक्षीय चैनलों के माध्यम से भारत के साथ चर्चा जारी रखने के लिये तैयार है।
- भारत का मानना है कि पाकिस्तान द्वारा इस बैठक में भाग लेने से इनकार करना अफगानिस्तान को अपने संरक्षित देश के रूप में देखने की पाकिस्तान की मानसिकता को दिखाता है।
- आमंत्रित प्रतिभागी: भारत के शीर्ष सुरक्षा प्रतिष्ठान, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय ने व्यक्तिगत बैठक आयोजित करने का बीड़ा उठाया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय:
- भारत ने 1999 में एक राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) का गठन किया, जहाँ राष्ट्रीय सुरक्षा के सभी पहलुओं पर इसके द्वारा विचार-विमर्श किया जाता है।
- एनएससी(NSC) प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करता है।
- NSC में त्रि-स्तरीय संरचना शामिल है- रणनीतिक नीति समूह (SPG), राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय।
- गृह, रक्षा, विदेश और वित्त मंत्री इसके सदस्य हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इसके सचिव के रूप में कार्य करते हैं।
- अफगानिस्तान में भारत के हित:
- सामरिक लाभ: अफगानिस्तान में भारत की रणनीति एक ऐसी सरकार को बनने से रोकने की है जो पाकिस्तान को रणनीतिक लाभ और आतंकी समूहों के लिये एक सुरक्षित स्थान प्रदान करे।
- सॉफ्ट पावर रणनीति: भारत ने अफगानिस्तान में 'सॉफ्ट पावर' रणनीति को आगे बढ़ाने का विकल्प चुना है तथा रक्षा और सुरक्षा के बजाय नागरिक क्षेत्र में पर्याप्त योगदान देने को प्राथमिकता दी है।
- विकासात्मक परियोजनाएँ: भारत निर्माण, बुनियादी ढाँचे, मानव पूंजी निर्माण और खनन क्षेत्रों में विशेष रूप से सक्रिय है।
- इसके अलावा सहयोग के लिये दूरसंचार, स्वास्थ्य, फार्मास्यूटिकल्स और सूचना प्रौद्योगिकी तथा शिक्षा आदि क्षेत्रों में भी संलग्न है।
- आर्थिक सहायता: दो द्विपक्षीय समझौतों के ढाँचे के भीतर भारत ने अफगानिस्तान को 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की सहायता देने का वादा किया है। वर्ष 2017 के अंत तक निवेश पहले ही 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर चुका है।
- इस प्रकार भारत अफगानिस्तान की स्थिरता और आर्थिक तथा सामाजिक विकास में सबसे बड़े निवेशकों में से एक है।
- संपर्क परियोजनाएँ: भारत 600 किलोमीटर लंबे बामियान-हेरात रेल लिंक के निर्माण पर भी सहमत हो गया है जो हाजीगक खानों को हेरात से जोड़ेगा।
- इसके अलावा भारत चाबहार के ईरानी बंदरगाह का विकास कर रहा है जो डेलाराम-ज़ारंज राजमार्ग के माध्यम से अफगानिस्तान से जुड़ेगा।
- यदि अफगानिस्तान में शांति स्थापित हो जाती है, तो यह एशिया के मध्य में संपर्क गलियारे के रूप में एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र बन सकता है।
- अफगानिस्तान पर भारत का दृष्टिकोण:
- भारत अफगानिस्तान में तालिबान की नई सरकार से सीधे तौर पर निपटने के लिये तैयार नहीं है।
- भारत ने दोहराया कि अफगानिस्तान को निम्नलिखित का ध्यान रखना चाहिये:
- अपनी धरती को आतंक के लिये सुरक्षित पनाहगाह न बनने दें।
- प्रशासन समावेशी होना चाहिये।
- अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिये।
- अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया का नेतृत्व, स्वामित्व और नियंत्रण अफगान लोगों द्वारा किया जाना चाहिये।
आगे की राह
- रूसी समर्थन: हाल के वर्षों में रूस ने तालिबान के साथ संबंध विकसित किये हैं। तालिबान के साथ किसी भी तरह के सीधे जुड़ाव में भारत को रूस के समर्थन की आवश्यकता होगी।
- चीन के साथ संबंध: भारत को अफगानिस्तान में राजनीतिक समाधान और स्थायी स्थिरता प्राप्त करने के उद्देश्य से चीन के साथ बातचीत करनी चाहिये।
- तालिबान से जुड़ना: तालिबान से बात करने से भारत निरंतर विकास सहायता या अन्य प्रतिज्ञाओं के बदले में विद्रोहियों से सुरक्षा गारंटी लेने के साथ-साथ पाकिस्तान से तालिबान की स्वायत्तता का पता लगाएगा।