रीजनल इकॉनमिक आउटलुक फॉर एशिया एंड पैसिफिक रिपोर्ट: IMF | 17 May 2024
प्रिलिम्स के लिये:IMF, विशेष आहरण अधिकार, विश्व इकॉनमिक आउटलुक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, मुद्रास्फीति, विश्व बैंक। मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ, रिपोर्टें, एजेंसियाँ एवं आगे की संरचना, शासनादेश आदि। |
स्रोत: आई.एम.एफ.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिये अपनी रिपोर्ट ‘रीजनल इकॉनमिक आउटलुक फॉर एशिया एंड पैसिफिक, अप्रैल 2024’ जारी की है, जिसमें कहा गया है कि भारत, अप्रत्याशित रूप से मज़बूत वृद्धि का स्रोत था। इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक निवेश भारत की अर्थव्यवस्था को संचालित करने में एक महत्त्वपूर्ण कारक रहा है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विकास: वर्ष 2023 के अंत में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में की वृद्धि 5.0% से अपेक्षाकृत अधिक रही, जिसमें सभी अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति की दर भिन्न-भिन्न थी।
- वर्ष 2024 के अनुमानों से निकट अवधि के जोखिमों को संतुलित करते हुए वृद्धि में 4.5% की गिरावट होने की आशा व्यक्त की गई है।
- उभरते बाज़ारों में वृद्धि मुख्य रूप से निजी मांग द्वारा समर्थित थी।
- भारत में वृद्धि का पूर्वानुमान: IMF ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिये भारत के वृद्धि पूर्वानुमान को 6.5% से बढ़ाकर 6.8% कर दिया है और साथ ही वर्ष 2025-26 के लिये वृद्धि पूर्वानुमान 6.5% रहने का अनुमान व्यक्त किया है।
- इस रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया कि भारत तथा फिलीपींस लचीली घरेलू मांग द्वारा समर्थित सकारात्मक वृद्धि का स्रोत रहे हैं।
- चीन तथा विशेष रूप से भारत में सार्वजनिक निवेश का महत्त्वपूर्ण प्रभाव है।
- चीन के लिये पूर्वानुमान: चीन की अर्थव्यवस्था वर्ष 2024 में 4.6% की दर से बढ़ने का अनुमान व्यक्त किया गया है, जो वर्ष 2023 के 5.2% की वृद्धि दर की तुलना में कम है, साथ ही वर्ष 2025 में इसके 4.1% पर रहने का अनुमान है।
- IMF, चीन को वृद्धि और कमी दोनों जोखिमों के स्रोत के रूप में देखता है।
- संभावित आवास कीमतों में वृद्धि एवं ऋण के अत्यधिक स्तर के बारे में चिंताओं के कारण परिसंपत्ति क्षेत्र तनाव की स्थिति में है। इन तनावों को कम करने वाली नीतियों तथा घरेलू मांग में वृद्धि के परिणामस्वरूप चीन तथा यह क्षेत्र (एशिया-प्रशांत) लाभान्वित होंगे।
- हालाँकि, स्टील और एल्युमीनियम जैसे कुछ उद्योगों में अतिरिक्त क्षमता को बढ़ावा देने वाली क्षेत्रीय नीतियों से चीन तथा इस क्षेत्र को हानि होगी।
- IMF, चीन को वृद्धि और कमी दोनों जोखिमों के स्रोत के रूप में देखता है।
- मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान: IMF ने स्पष्ट किया कि उभरते बाज़ारों में मुद्रास्फीति वर्तमान में वांछित स्तर पर है, लेकिन कई ऐसे कारक हैं जो भविष्य में मुद्रास्फीति में योगदान देंगे।
- कोर मुद्रास्फीति कम रहने का अनुमान है, लेकिन कुछ अर्थव्यवस्थाओं में ऊर्जा की कम कीमतों के कारण हेडलाइन मुद्रास्फीति में कमी देखी जा सकती है।
- तथापि, भारत जैसे देशों में खाद्य कीमतें, विशेष रूप से चावल की कीमतें, हेडलाइन मुद्रास्फीति में वृद्धि कर सकती हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा परिभाषित मुद्रास्फीति, एक निश्चित अवधि के अंतर्गत कीमतों में वृद्धि की दर है, जिसमें समग्र मूल्य वृद्धि या विशिष्ट वस्तुओं और सेवाओं के व्यापक उपाय शामिल हैं।
- हेडलाइन मुद्रास्फीति: इसमें सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य परिवर्तन शामिल होते हैं। इसके अंतर्गत खाद्य पदार्थों और ऊर्जा से लेकर कपड़े, किराया तथा मनोरंजन तक सब कुछ शामिल है।
- मूल मुद्रास्फीति: यह खाद्य एवं ऊर्जा क्षेत्रों को छोड़कर वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमत में होने वाला परिवर्तन है (क्योंकि ये अस्थिर हैं)।
- मूल मुद्रास्फीति= हेडलाइन मुद्रास्फीति- खाद्य एवं ईंधन वस्तुएँ
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा परिभाषित मुद्रास्फीति, एक निश्चित अवधि के अंतर्गत कीमतों में वृद्धि की दर है, जिसमें समग्र मूल्य वृद्धि या विशिष्ट वस्तुओं और सेवाओं के व्यापक उपाय शामिल हैं।
- भू-आर्थिक विखंडन: IMF ने भू-आर्थिक विखंडन को एक महत्त्वपूर्ण जोखिम के रूप में दर्शाया किया है।
- भू-आर्थिक विखंडन का तात्पर्य देशों के मध्य बढ़ते आर्थिक और व्यापारिक तनाव रूपी संकट से है, जो वैश्विक आर्थिक विकास एवं स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
- वैश्विक विवादों ने व्यापार से जुड़े जोखिमों को बढ़ा दिया है, जैसे कि लाल सागर क्षेत्र में उत्पन्न विवाद से बचने के लिये जहाज़ो को अफ्रीका के आस-पास के क्षेत्रों में पथांतर से ज्ञात होता है, इसके परिणामस्वरूप शिपिंग लागत में वृद्धि हुई है।
- IMF ने यह सुझाव दिया है कि नीति निर्माताओं को सतर्क रहना चाहिये कि वे स्वयं व्यापार संबंधी चुनौतियों को न बढ़ाएँ।
भारत के विकास हेतु सार्वजनिक निवेश किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है?
- परिचय: सार्वजनिक निवेश का तात्पर्य बुनियादी ढाँचे, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और प्रौद्योगिकी जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिये सरकारी धन के आवंटन से है।
- यह किसी देश के आर्थिक विकास पथ को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- भारत के विकास की कुंजी के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र:
- बुनियादी ढाँचे का विकास: सड़कों, राजमार्गों, रेलवे, बंदरगाहों, हवाई अड्डों तथा ऊर्जा संयंत्रों जैसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के निर्माण एवं प्रबंधन हेतु सार्वजनिक निवेश महत्त्वपूर्ण है, जो आर्थिक विकास और उत्पादकता के लिये भी आवश्यक हैं।
- इस क्षेत्र को वर्ष 2030 तक 4.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुमानित निवेश की आवश्यकता होगी, जो इस क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- रोज़गार सृजन और निर्धनता उन्मूलन: बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं, सामाजिक कल्याण योजनाओं और ग्रामीण विकास पहलों में सार्वजनिक निवेश, रोज़गार के अवसर सृजित कर सकता है तथा निर्धनता उन्मूलन में योगदान दे सकता है।
- उदाहरण के लिये, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act- MGNREGA) की स्थापना के पश्चात अरबों व्यक्ति-दिवस रोज़गार (Person-Days Employment ) सृजित किये हैं।
- मानव पूंजी विकास: कुशल व उत्पादक कार्यबल के निर्माण के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल एवं कौशल विकास में सार्वजनिक निवेश महत्त्वपूर्ण है, जो निरंतर आर्थिक विकास हेतु आवश्यक है।
- साथ ही, सार्वजनिक निवेश सभी क्षेत्रों में संतुलित विकास सुनिश्चित करता है, यह असमानताओं को कम करता है तथा समावेशी विकास को बढ़ावा देता है।
- निजी निवेश में वृद्धि: बुनियादी ढाँचे और अन्य उत्पादक क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश व्यवसाय लागत में कमी और समग्र उत्पादकता में वृद्धि करके निजी निवेश के लिये अनुकूल वातावरण तैयार कर सकता है।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: सड़कों, राजमार्गों, रेलवे, बंदरगाहों, हवाई अड्डों तथा ऊर्जा संयंत्रों जैसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के निर्माण एवं प्रबंधन हेतु सार्वजनिक निवेश महत्त्वपूर्ण है, जो आर्थिक विकास और उत्पादकता के लिये भी आवश्यक हैं।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) क्या है?
- परिचय: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो सदस्य देशों को वित्तीय सहायता और सलाह प्रदान करता है।
- इसकी परिकल्पना जुलाई, वर्ष 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के दौरान की गई थी।
- उद्देश्य:
- वैश्विक मौद्रिक सहयोग एवं स्थिरता को बढ़ावा देना।
- वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना तथा संकट की स्थिति में सहायता उपलब्ध कराना।
- स्थिर मुद्राओं के साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुगम बनाना।
- प्रभावी नीतियों के माध्यम से सतत् विकास एवं रोज़गार को बढ़ावा देना।
- बोर्ड ऑफ गवर्नर्स: IMF के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में प्रत्येक सदस्य देश से एक गवर्नर और एक कार्यकारी गवर्नर शामिल होते हैं।
- भारत के मामले में भारत के वित्तमंत्री, बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में पदेन गवर्नर के रूप में कार्य करता है तथा भारतीय रिज़र्व बैंक का गवर्नर भारत के अल्टरनेट गवर्नर के रूप में कार्य करता है।
- विशेष आहरण अधिकार: IMF एक अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित परिसंपत्ति जारी करता है जिसे विशेष आहरण अधिकार के रूप में जाना जाता है, यह सदस्य देशों के आधिकारिक रिज़र्व में पूरक के रूप में कार्य कर सकता है।
- वर्तमान में कुल वैश्विक आवंटन लगभग 293 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। IMF सदस्य स्वेच्छा से आपस में मुद्राओं के लिये SDR का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
- IMF द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट:
- वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (WEO)
- ग्लोबल फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट (GFSR)
- फाइनेंशियल मॉनिटर (FM)
- रीजनल इकोनॉमिक आउटलुक
भारत के लिये IMF का क्या महत्त्व है?
- परिचय: भारत स्वतंत्रता प्राप्त करने से पूर्व दिसंबर 1945 में ही एक संस्थापक सदस्य के रूप में IMF में शामिल हो गया था।
- वर्तमान में भारत के पास IMF में 2.75% विशेष आहरण अधिकार आरक्षण तथा 2.63% वोट हैं।
- SDR भारत के विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Currency Reserve) के घटकों में से एक है।
- IMF ने भारत को 12.57 बिलियन (लगभग 17.86 बिलियन अमेरिकी डॉलर) विशेष आहरण अधिकार का आवंटन किया है।
- SDR भारत के विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Currency Reserve) के घटकों में से एक है।
- वर्तमान में भारत के पास IMF में 2.75% विशेष आहरण अधिकार आरक्षण तथा 2.63% वोट हैं।
- महत्त्व:
- भारतीय रुपए की स्वतंत्रता: IMF की स्थापना से पहले, भारतीय रुपया ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग से संबद्ध था।
- परंतु IMF की स्थापना के उपरांत भारतीय रुपया स्वतंत्र हो गया है। अब इसका मूल्य स्वर्ण के रूप में व्यक्त किया जाता है।
- इसका अर्थ यह है कि भारतीय रुपए को किसी भी अन्य देश की मुद्रा में सुगमता से परिवर्तित किया जा सकता है।
- विदेशी मुद्राओं की उपलब्धता: भारत सरकार विकास गतिविधियों से जुड़ी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये समय-समय पर IMF फंड से विदेशी मुद्रा क्रय करती रही है।
- IMF की स्थापना से लेकर 31 मार्च, 1971 तक भारत ने IMF से 817.5 करोड़ रुपए के मूल्य की विदेशी मुद्राएँ खरीदीं, हालाँकि वर्तमान समय में उसका पूर्ण भुगतान कर दिया गया है।
- वर्ष 1970 के बाद से अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अन्य सदस्य देशों के रूप में भारत को जो सहायता मिल सकती है, उसमें विशेष आहरण अधिकार (1969 में बनाए गए SDR) की स्थापना के माध्यम से वृद्धि की गई है।
- आपातकाल के दौरान सहायता: भारत को बाढ़, भूकंप, अकाल आदि प्राकृतिक आपदाओं के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट को हल करने के लिये इस कोष से बड़ी मात्रा में वित्तीय सहायता प्राप्त हुई है।
- वर्ष 1981 में भारत ने भुगतान संतुलन की समस्या को दूर करने के लिये IMF से 5000 करोड़ रुपए का ऋण प्राप्त किया था।
- भारतीय रुपए की स्वतंत्रता: IMF की स्थापना से पहले, भारतीय रुपया ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग से संबद्ध था।
भारत में कौन-से सनराइज़ सेक्टर (उभरते हुए क्षेत्र) पर्याप्त सार्वजनिक निवेश की मांग कर रहे हैं?
- कार्बन कैप्चर, यूटिलाइज़ेशन एंड स्टोरेज (CCUS): CCUS प्रौद्योगिकियाँ विशेष रूप से स्टील, सीमेंट और विद्युत उत्पादन जैसे उद्योगों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
- हालाँकि, भारत में CCUS परियोजनाओं के अनुसंधान, विकास एवं परिनियोजन में सार्वजनिक निवेश वर्तमान में सीमित है।
- साइबर सुरक्षा और डेटा सुरक्षा: अर्थव्यवस्था के बढ़ते डिजिटलीकरण और साइबर खतरों में वृद्धि के साथ, भारत के साइबर सुरक्षा बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने, मज़बूत डेटा सुरक्षा ढाँचे को विकसित करने तथा इस क्षेत्र में एक कुशल कार्यबल तैयार करने के लिये सार्वजनिक निवेश आवश्यक है।
- जैव प्रौद्योगिकी और परिशुद्ध चिकित्सा (Precision Medicine): जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान में सार्वजनिक निवेश, विशेष रूप से जीनोमिक्स, सिंथेटिक बायोलॉजी तथा परिशुद्ध चिकित्सा (Precision Medicine) जैसे क्षेत्रों में भारत को अत्याधुनिक स्वास्थ्य देखभाल समाधान विकसित करने और इस क्षेत्र में अग्रणी के रूप में स्वयं को स्थापित करने में सहायता मिल सकती है।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था और अपशिष्ट प्रबंधन: हालाँकि कुछ पहलें की गई हैं, लेकिन एक व्यापक चक्रीय अर्थव्यवस्था ढाँचे को विकसित करने हेतु अधिक सार्वजनिक निवेश की आवश्यकता है, जिसमें अपशिष्ट संग्रह, पुनर्चक्रण और संसाधन पुनर्प्राप्ति के लिये बुनियादी ढाँचा शामिल है।
- नीली अर्थव्यवस्था और समुद्री अनुसंधान: विशाल तटरेखा वाले भारत में समुद्री अनुसंधान में सार्वजनिक निवेश, सतत् महासागरीय अन्वेषण और अपतटीय पवन ऊर्जा, समुद्री जैवप्रौद्योगिकी एवं तटीय पर्यटन जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित नीली अर्थव्यवस्था के विकास द्वारा महत्त्वपूर्ण आर्थिक अवसरों का सृजन किया जा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: वैश्विक रूप से आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की भूमिका और विकासशील देशों पर इसके प्रभाव की विवेचना कीजिये। IMF की नीतियों के विरुद्ध आलोचनाओं का मूल्यांकन कीजिये और इन चिंताओं को दूर करने के लिये संभावित सुधारों का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. "त्वरित वित्तीयन प्रपत्र (Rapid Financing Instrument)" और "त्वरित ऋण सुविधा (Rapid Credit Facility)", निम्नलिखित में किस एक के द्वारा उधार दिये जाने के उपबंधों से संबंधित हैं ? (2022) (a) एशियाई विकास बैंक उत्तर: (b) प्रश्न."स्वर्ण-ट्रान्श" (रिज़र्व ट्रान्श) निर्दिष्ट करता है (2020) (a) विश्व बैंक की ऋण व्यवस्था उत्तर: (d) प्रश्न. 'वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Global Financial Stability Report)' किसके द्वारा तैयार की जाती है? (2016) (a) यूरोपीय केंद्रीय बैंक उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. विश्व बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, संयुक्त रूप से ब्रेटन वुड्स नाम से जानी जाने वाली संस्थाएँ, विश्व की आर्थिक व वित्तीय व्यवस्था की संरचना का संभरण करने वाले दो अन्तःसरकारी स्तंभ हैं। पृष्ठीय रूप में विश्व बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष दोनों की अनेक समान विशिष्टताएँ हैं, तथापि उनकी भूमिका, कार्य तथा अधिदेश स्पष्ट रूप से भिन्न हैं। व्याख्या कीजिये। (2013) |