सती प्रथा और संबंधित कानून | 14 Oct 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:सती प्रथा (रोकथाम) अधिनियम, 1987, सती, भानुगुप्त, एरण स्तंभ लेख, अकबर, गुरु अमरदास, विलियम बेंटिक, शिशु हत्या, पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर, सम्मति आयु अधिनियम, 1891, बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 (शारदा अधिनियम, 1929), भूमि राजस्व बंदोबस्त, महालवाड़ी व्यवस्था, राजा राममोहन राय। मुख्य परीक्षा के लिये:सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों का उदय और विकास, सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों में विभिन्न अभिकर्त्ताओं की भूमिका। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
सती प्रथा को महिमामंडित करने के आरोप में गिरफ्तार किये गए 8 लोगों को हाल ही में रिहा किया गया है।
- सती प्रथा के संदर्भ में 4 सितम्बर 1987 को राजस्थान में रूप कंवर मामले में केंद्र सरकार द्वारा सती प्रथा (रोकथाम) अधिनियम, 1987 को अधिनियमित किया गया।
सती प्रथा (रोकथाम) अधिनियम, 1987 के तहत अपराधों के लिये दंड के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- सती होने का प्रयास: इस अधिनियम की धारा 3 में कहा गया है कि सती होने का प्रयास करने पर एक वर्ष तक का कारावास, जुर्माना या दोनों हो सकता है।
- सती प्रथा के लिये प्रेरित करना: इस अधिनियम की धारा 4 में कहा गया है कि जो कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सती प्रथा के लिये किसी को प्रेरित करता है, उसे आजीवन कारावास और जुर्माना भुगतना पड़ सकता है। उदाहरण के लिये, किसी विधवा महिला को यह समझाना कि सती होने से उसके या उसके मृत पति को आध्यात्मिक शांति मिलेगी या परिवार की खुशहाली बढ़ेगी।
- सती प्रथा का महिमामंडन: इस अधिनियम की धारा 5 में कहा गया है कि सती प्रथा का महिमामंडन करने पर एक से सात वर्ष की कैद और पाँच से तीस हजार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
सती प्रथा:
- परिचय: इसका आशय किसी विधवा द्वारा अपने पति की चिता पर आत्मदाह करने से है।
- आत्मदाह के बाद उनके लिये एक स्मारक या कभी-कभी मंदिर बनाया जाता था और उनकी देवी के रूप में पूजा की जाती थी
- सती का पहला अभिलेखीय साक्ष्य 510 ई. के मध्य प्रदेश के भानुगुप्त के एरण स्तंभ लेख से मिलता है।
- सती प्रथा को समाप्त करने के लिये उठाए गए कदम:
- मुगल साम्राज्य: वर्ष 1582 में सम्राट अकबर ने अपने संपूर्ण साम्राज्य में अधिकारियों को आदेश दिया कि यदि वे देखें कि किसी महिला के साथ बलि चढाने के लिये जबरदस्ती की जा रही है तो उसे बलि चढ़ाने से रोका जाए।
- उन्होंने विधवा को यह प्रथा बंद करने के लिये पेंशन, उपहार और पुनर्वास की भी पेशकश की
- सिख साम्राज्य: सिख गुरु अमर दास ने 15वीं-16वीं शताब्दी में इस प्रथा की निंदा की।
- मराठा साम्राज्य: मराठों ने अपने क्षेत्र में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- औपनिवेशिक शक्तियाँ: डच, पुर्तगाली और फ्राँसीसियों ने भी भारत में अपने उपनिवेशों में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया।
- ब्रिटिश गवर्नर-जनरल विलियम बेंटिक ने बंगाल सती विनियमन, 1829 के तहत सती प्रथा को अवैध और आपराधिक न्यायालयों द्वारा दंडनीय घोषित किया।
- मुगल साम्राज्य: वर्ष 1582 में सम्राट अकबर ने अपने संपूर्ण साम्राज्य में अधिकारियों को आदेश दिया कि यदि वे देखें कि किसी महिला के साथ बलि चढाने के लिये जबरदस्ती की जा रही है तो उसे बलि चढ़ाने से रोका जाए।
- महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिये अन्य कानूनी पहल:
- कन्या शिशु हत्या: वर्ष 1795 और वर्ष 1804 के बंगाल विनियमों ने शिशु हत्या को अवैध घोषित कर दिया तथा इसे हत्या के समान माना।
- वर्ष 1870 के एक अधिनियम के तहत माता-पिता को सभी जन्मे शिशुओं का पंजीकरण कराना अनिवार्य कर दिया गया तथा उन क्षेत्रों में कई वर्षों तक कन्या शिशुओं का सत्यापन अनिवार्य कर दिया गया जहाँ गुप्त रूप से शिशु-हत्या की जाती थी।
- विधवा पुनर्विवाह: पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर के प्रयासों से हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 पारित किया गया।
- इसने विधवाओं के विवाह को वैधानिक बना दिया तथा ऐसे विवाहों से उत्पन्न बच्चों को भी वैधानिक मान्यता दी।
- बाल विवाह: सहमति आयु अधिनियम, 1891 के तहत 12 वर्ष से कम आयु की लड़कियों के विवाह पर रोक लगा दी गई।
- बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 (सारदा अधिनियम, 1929) ने लड़के और लड़कियों के लिये विवाह की आयु क्रमशः 18 और 14 वर्ष कर दी।
- बाल विवाह निरोधक (संशोधन) अधिनियम, 1978 के तहत लड़कियों की विवाह की आयु 15 से बढ़ाकर 18 वर्ष तथा लड़कों की विवाह की आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष कर दी गई।
- महिला शिक्षा: कलकत्ता महिला किशोर सोसायटी (Calcutta Female Juvenile Society) 1819 में महिला शिक्षा की दिशा में एक व्यापक आंदोलन की शुरुआत हुई।
- बेथ्यून स्कूल (Bethune School) 1849 महिला शिक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण संस्थान बन गया।
- कन्या शिशु हत्या: वर्ष 1795 और वर्ष 1804 के बंगाल विनियमों ने शिशु हत्या को अवैध घोषित कर दिया तथा इसे हत्या के समान माना।
सती प्रथा उन्मूलन में राजा राममोहन राय की क्या भूमिका थी?
- सती प्रथा के विरुद्ध संघर्षरत: राजा राममोहन राय 19 वीं सदी के भारत के सामाजिक सुधार आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति हैं, जो सती प्रथा को समाप्त करने के अपने सशक्त प्रयासों के लिये जाने जाते हैं।
- सक्रियता की शुरुआत: राजा राममोहन राय ने वर्ष 1818 में सती प्रथा विरोधी अभियान आरंभ किया, जो इस विश्वास से प्रेरित था कि यह प्रथा नैतिक रूप से गलत थी।
- पवित्र ग्रंथों का उपयोग: उन्होंने अपने इस तर्क को साबित करने के लिये पवित्र ग्रंथों का हवाला दिया कि कोई भी धर्म विधवाओं को जिंदा जलाने की अनुमति नहीं देता।
- तर्कसंगतता और मानवता: उन्होंने सती प्रथा के विरुद्ध अपने संघर्ष में धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दोनों समुदायों को शामिल करने के लिये मानवता, कारण और करुणा की व्यापक अवधारणाओं की भी अपील की।
- ज़मीनी स्तर पर सक्रियता: उन्होंने सती प्रथा के विरुद्ध संघर्ष के दौरान श्मशान घाटों का दौरा किया, सतर्कता समूहों का आयोजन किया और सरकार के समक्ष जवाबी याचिकाएँ भी दायर कीं।
- बंगाल सती विनियमन, 1829: राममोहन राय के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप बंगाल सती विनियमन, 1829 पारित हुआ, जिसमें सती प्रथा को अपराध घोषित किया गया।
विलियम बेंटिक (1828-1835) द्वारा किये गए अन्य सुधार क्या हैं?
- प्रशासनिक सुधार:
- प्रशासन का भारतीयकरण: बेंटिक ने भारतीयों को प्रशासनिक भूमिकाओं से बाहर रखने की कॉर्नवॉलिस की नीति को उलट दिया और शिक्षित भारतीयों को डिप्टी मजिस्ट्रेट एवं डिप्टी कलेक्टर के रूप में नियुक्त किया, जो सरकारी सेवा के भारतीयकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
- भूमि राजस्व निपटान: लॉर्ड विलियम बेंटिक ने वर्ष 1833 में भूमि राजस्व की महालवारी प्रथा की समीक्षा की और उसे अद्यतन किया। इसमें बड़े भूस्वामियों और ग्राम समुदायों के साथ विस्तृत सर्वेक्षण और संवाद शामिल था, जिससे राज्य के राजस्व में वृद्धि हुई।
- प्रशासनिक प्रभाग: बेंटिक ने बंगाल प्रेसीडेंसी को बीस प्रभागों में पुनर्गठित किया, जिसमें से प्रत्येक का पर्यवेक्षण एक आयुक्त करता था, जिससे प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि हुई।
- न्यायिक सुधार:
- प्रांतीय न्यायालयों का उन्मूलन: बेंटिक ने प्रांतीय न्यायालयों को समाप्त कर दिया और न्यायिक प्रक्रियाओं में तेजी लाने के लिये न्यायालयों का एक नया पदानुक्रम स्थापित किया, जिसमें दीवानी और आपराधिक अपीलों के लिये आगरा में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना भी शामिल है।
- न्यायिक सशक्तीकरण: उन्होंने इलाहाबाद में अलग सदर दीवानी न्यायालय और सदर निजामत न्यायालय का निर्माण किया, जिससे जनता के लिये न्यायिक पहुँच में सुधार हुआ।
- दंड में कमी: बेंटिक ने दंड की कठोरता को कम कर दिया और कोड़े मारने जैसी अमानवीय प्रथाओं को समाप्त कर दिया।
- न्यायालयों की भाषा: बेंटिक ने स्थानीय न्यायालयों में स्थानीय भाषा के प्रयोग का आदेश दिया।
- उच्च न्यायालयों में फारसी के स्थान पर अंग्रेज़ी भाषा को अपनाया गया तथा योग्य भारतीयों को मुंसिफ और सदर अमीन के रूप में नियुक्त किया।
- वित्तीय सुधार:
- लागत में कटौती के उपाय: बेंटिक ने बढ़ते खर्चों की जाँच के लिये दो समितियाँ बनाईं, सैन्य और नागरिक। उनकी सिफारिशों के बाद, उन्होंने अधिकारियों के वेतन और भत्ते में काफी कटौती की साथ ही यात्रा व्यय में कटौती की, जिससे वार्षिक बचत में अधिक वृद्धि हुई।
- राजस्व वसूली: उन्होंने बंगाल में भूमि अनुदान की जाँच की, जहाँ कई लगान-मुक्त भूमिधारकों के पास जाली स्वामित्व संबंधी दस्तावेज़ पाए गए, इससे कंपनी के राजस्व में वृद्धि हुई।
- शैक्षिक सुधार: मैकाले से प्रभावित होकर बेंटिक ने शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेज़ी का समर्थन किया।
- वर्ष 1835 में अंग्रेज़ी शिक्षा अधिनियम द्वारा फारसी भाषा के स्थान पर अंग्रेज़ी को भारत सरकार की आधिकारिक भाषा बना दिया गया।
- समाज सुधार:
- ठगी का दमन: उन्होंने ठगी प्रथा के विरुद्ध निर्णायक कार्रवाई की, जो एक आपराधिक संगठन था, यह डकैती और हत्या जैसे मामलों में संलिप्त था।
- वर्ष 1834 के अंत तक बेंटिक ने इस प्रथा को सफलतापूर्वक दबा दिया, जिससे आमजन के बीच भय कम हो गया।
- सुधारकों से समर्थन: उनके सुधारों को राजा राममोहन राय जैसे उल्लेखनीय व्यक्तियों का समर्थन प्राप्त था, जिन्होंने सती प्रथा के उन्मूलन के लिये सक्रिय रूप से अभियान चलाया और भारत में सामाजिक सुधार की वकालत की।
- ठगी का दमन: उन्होंने ठगी प्रथा के विरुद्ध निर्णायक कार्रवाई की, जो एक आपराधिक संगठन था, यह डकैती और हत्या जैसे मामलों में संलिप्त था।
निष्कर्ष
भारत में सामाजिक सुधार को और आगे बढ़ाने के लिये महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा से संबंधित जागरूकता बढ़ाना, सती जैसी प्रथाओं के विरुद्ध मौज़ूदा कानूनों को लागू करना और सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है। ज़मीनी स्तर के संगठनों के साथ सहयोग करने से इन प्रयासों को और बढ़ाया जा सकता है, जिससे समाज में हाशिये पर पड़े समुदायों के लिये स्थायी परिवर्तन और सशक्तीकरण सुनिश्चित हो सकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: सती प्रथा के उन्मूलन में राजा राममोहन राय की भूमिका पर चर्चा कीजिये। विभिन्न शासकों और औपनिवेशिक शक्तियों ने इस प्रथा पर क्या प्रतिक्रिया दी? |
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