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भारतीय राजव्यवस्था

विशेष और स्थानीय कानूनों में सुधार

  • 23 Oct 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत के आपराधिक कानूनों में सुधार की आवश्यकता, भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), भारतीय साक्ष्य अधिनियम, आपराधिक न्याय प्रणाली, संज्ञेय अपराध 

मेन्स  के लिये:

भारत के आपराधिक कानूनों में सुधार की आवश्यकता, सरकारी नीतियों तथा विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप एवं उनके डिज़ाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) में निहित वास्तविक आपराधिक कानून में सुधार के लिये कई विधेयक पेश किये गए हैं, किंतु विशेष और स्थानीय कानूनों (SLLs) पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया गया है। 

विशेष और स्थानीय कानून (SLL):

  • परिचय:
    • SLL विशेष रूप से किसी विशेष राज्य अथवा स्थानीय क्षेत्र के भीतर क्षेत्र-विशेष, सांस्कृतिक अथवा कानूनी मामलों के समाधान के लिये बनाए गए हैं। 
    • वे भारतीय दंड संहिता (IPC) में उल्लिखित सामान्य कानूनों तथा विनियमों से भिन्न हैं।
    • यह उन आपराधिक गतिविधियों को सूचीबद्ध करता है जिन्हें राज्य सरकार विशेष मुद्दों के संबंध में तैयार करती है।
  • महत्त्व:
    • SLL भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली का एक अभिन्न हिस्सा है, इनमें सबसे मुख्य अपराधों तथा कार्यवाहियों को शामिल किया जाता है। वे भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में सार्थक भूमिका निभाते हैं।
    • वर्ष 2021 में पंजीकृत सभी संज्ञेय अपराधों में से लगभग 39.9% SLL के अंतर्गत थे।
      • संज्ञेय अपराधों में एक अधिकारी न्यायालय के वारंट की मांग किये बिना किसी संदिग्ध के मामले का संज्ञान ले सकता है तथा उसे गिरफ्तार कर सकता है, यदि उसके पास "विश्वास करने का कारण" है कि उस व्यक्ति ने अपराध किया है और संतुष्ट है कि कुछ निश्चित आधारों पर गिरफ्तारी आवश्यक है। 
      • गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर अधिकारी को न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा हिरासत की पुष्टि करनी होगी। 

भारत में विशेष और स्थानीय कानूनों में सुधार की आवश्यकता:

  • अस्पष्ट परिभाषाएँ:
    • कुछ SLL, जैसे कि गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967, अपराधों की अपर्याप्त और अस्पष्ट परिभाषाओं तथा 'आतंकवादी कृत्य,' 'गैर-कानूनी गतिविधि' एवं 'संगठित अपराध' जैसे शब्दों से ग्रस्त हैं।
    • ये अस्पष्टताएँ कानून की उचित प्रक्रिया को प्रभावित करते हुए दुरुपयोग और गलत व्याख्या का कारण बन सकती हैं।
  • कानूनी प्रक्रिया में परिवर्तनशीलता:
    • SLL के परिणामस्वरूप व्यक्तियों या समूहों के लिये उनकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर अलग-अलग व्यवहार हो सकता है, जिससे न्याय और कानूनी सुरक्षा तक पहुँच में असमानताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • कानूनी स्थिरता की कमी व्यक्तियों और व्यवसायों के लिये अनिश्चितता उत्पन्न कर सकती है, जिससे कानूनी अधिकारों तथा दायित्वों को वहन करना कठिन हो जाता है।
  • चिंतनशीलता की कमी:
    • चिंतनशील विचारों की अनुपस्थिति अक्षमताओं और अनिश्चितताओं को जन्म दे सकती है।
      • उदाहरण के लिये यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की नाबालिगों के बीच सहमति से यौन गतिविधियों पर लागू होने के कारण आलोचना की गई है, जिससे इस तरह के आचरण को अपराध घोषित करने के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
      • सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने पी. मोहनराज बनाम मेसर्स शाह ब्रदर्स इस्पात लिमिटेड, 2021 के मामले में नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act), 1881 की धारा 138 को 'आपराधिक भेड़िये' के भेष में 'सिविल भेड़' के रूप में संदर्भित किया। 
        •  NI अधिनियम की धारा 138, धन की कमी के कारण चेक बाउंस होने के संबंध में आपराधिक प्रावधान प्रदान करती है।
  • नियत प्रक्रिया को कमज़ोर करना:
    • SLL ने उचित प्रक्रिया मूल्यों में गड़बड़ी की है, जिसका उदाहरण तलाशी और ज़ब्ती के दौरान बढ़ी हुई शक्तियाँ तथा पुलिस अधिकारियों द्वारा दर्ज किये गए बयानों की स्वीकार्यता है।
    • यह अभियुक्तों के अधिकारों की पर्याप्त सुरक्षा नहीं करता है तथा निष्पक्षता एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करता है।
    • मज़बूत सुरक्षा उपायों की कमी कानूनी प्रक्रिया के संभावित दुरुपयोग का द्वार खोल सकती है, जिससे अभियुक्तों के अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
    • SLL में प्रतिबंधात्मक ज़मानती प्रावधान आरोपी के अधिकारों का उल्लंघन करते हुए जमानत प्राप्त करना लगभग असंभव बना देते हैं।
      • उदाहरण के लिये: UAPA की धारा 43(D)(5) के तहत ज़मानत प्रावधान असाधारण रूप से कड़े हैं, जिससे UAPA के तहत आरोपियों के लिये ज़मानत प्राप्त करना लगभग असंभव हो जाता है।

निष्कर्ष:

  • SLL जिन व्यवहारों को अवैध बनाते हैं उन्हें दंड संहिता में अलग अध्याय के रूप में एकीकृत किया जाना चाहिये। रिपोर्टिंग, गिरफ्तारी, जाँच, अभियोजन, परीक्षण, साक्ष्य और ज़मानत के लिये अलग-अलग प्रक्रियाओं वाले SLL को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) में शामिल किया जाना चाहिये या अपवाद के रूप में माना जाना चाहिये।
  • वर्तमान सुधार प्रक्रिया का एक प्रमुख प्रतिबंध SLL घटकों का बहिष्कार है, जो इन कमियों को दूर करने के लिये सुधारों के दूसरे चरण की मांग करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारत सरकार ने हाल ही में गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, (UAPA), 1967 और NIA अधिनियम में संशोधन करके आतंकवाद विरोधी कानूनों को सुदृढ़ किया है। मानवाधिकार संगठनों द्वारा UAPA के विरोध के दायरे और कारणों पर चर्चा करते हुए मौजूदा सुरक्षा माहौल के संदर्भ में परिवर्तनों का विश्लेषण कीजिये। (2019)

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