सामाजिक न्याय
ऑनर किलिंग की रोकथाम हेतु सुधार
- 17 Jan 2025
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प्रिलिम्स के लिये:लिंगानुपात, भारतीय न्याय संहिता (BNS), विधि आयोग, सर्वोच्च न्यायालय, मूल अधिकार। मेन्स के लिये:ऑनर किलिंग से निपटने के लिये आवश्यक सुधार, न्यायिक दृष्टिकोण और विधिक प्रावधान। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश में झूठी शान के चलते एक लड़की को उसके परिवार वालों ने इसलिये गोली मार दी क्योंकि वह उनकी इच्छा के विरुद्ध अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करना चाहती थी।
ऑनर किलिंग क्या है?
- परिचय: ऑनर किलिंग का आशय परिवार के किसी सदस्य (आमतौर पर महिला) की हत्या करना है, जिससे रिश्तेदारों या समुदाय के सदस्यों द्वारा की जाती है।
- ये कृत्य अक्सर पारिवारिक सम्मान, नैतिकता एवं सामाजिक व्यवहार के संबंध में सख्त सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक मानदंडों में निहित होते हैं।
- प्रमुख आँकड़े: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, भारत में वर्ष 2019 और 2020 में ऑनर किलिंग की संख्या प्रत्येक वर्ष 25 और वर्ष 2021 में 33 रही। लेकिन इससे संबंधित आँकड़े बताए गए आँकड़ों से कहीं अधिक हो सकते हैं।
- कारण:
- जाति व्यवस्था: जाति का दर्ज़ा खोने के भय से (विशेष रूप से अंतर्जातीय या समान गोत्र विवाह के विरुद्ध) हिंसा को बढ़ावा मिलता है।
- पितृसत्तात्मक मानदंड: महिलाओं को जीवनसाथी चुनने के अधिकार से अक्सर वंचित रखा जाता है तथा विवाह को पारिवारिक सम्मान का पर्याय माना जाता है।
- खाप पंचायतें: ये अनौपचारिक निकाय (जो प्रमुख जाति के पुरुषों द्वारा नियंत्रित होती हैं) जातिगत मानदंडों का उल्लंघन करने पर हत्या सहित दंड लगाते हैं।
- लैंगिक असंतुलन: विषम लैंगिक अनुपात से महिलाओं के विरुद्ध हिंसा (विशेषकर तब जब विवाह का विकल्प पारंपरिक मानदंडों के विपरीत होता है) को बढ़ावा मिलता है।
- सामाजिक स्थिति: निर्धारित सामाजिक स्थिति को व्यक्तिगत उपलब्धियों पर प्राथमिकता दी जाती है, जिसके कारण पारिवारिक सम्मान व्यक्तिगत पसंद पर हावी हो जाता है।
- परिणाम:
- मानवाधिकारों का उल्लंघन: यह जीवन के मूल मानवाधिकार का उल्लंघन है। इससे लैंगिक असमानता के साथ पितृसत्तात्मक मानदंडों को मज़बूती मिलती है।
- सामाजिक प्रभाव: जीवित बचे परिवार और समुदाय गंभीर मनोविज्ञान संबंधी अभिघात और दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हो जाते हैं।
- शासन संबंधी चुनौतियाँ: अप्रभावी विधिक ढाँचे या सामाजिक स्वीकृति के कारण अपराधकर्त्ता दंड से बच जाते हैं, जिससे विधिसम्मत शासन प्रभावित होता है।
- सांस्कृतिक पिछड़ापन: प्रतिगामी परंपराओं को प्रतिबलित करते हुए और प्रगति को बाधित करते हुए यह महिलाओं की शिक्षा और रोज़गार में बाधा डालता है।
- अंतर्राष्ट्रीय परिणाम: मानहनन आधारित हिंसा से वैश्विक मानवाधिकार जाँच की संभावना बढ़ जाती है तथा राजनयिक संबंध प्रभावित होते हैं।
नोट: ऑनर किलिंग को "हत्या" माना जाता है क्योंकि विधि में उन्हें विशेष रूप से संबोधित नहीं किया गया है। इस प्रकार, वे भारतीय दंड संहिता, 1860 के प्रावधानों के अधीन हैं।
- "विधिविरुद्ध जमाव का प्रतिषेध (वैवाहिक संबंधों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप) विधेयक, 2011" शीर्षक से प्रस्तुत यह विधेयक मुख्य रूप से स्व-निर्णयन को रोकने के उद्देश्य से जाति पंचायतों द्वारा बुलाई गई "विधिविरुद्ध सभा" से संबंधित है।
- प्रारंभिक समर्थन के बावजूद, यह विधेयक संसद में पारित नहीं हो सका और अधिनियम में प्रवर्तित नहीं हुआ।
- भारतीय विधि आयोग की 242वीं रिपोर्ट (2012) में ऐसे ऑनर किलिंग-रोधी कानूनों की आवश्यकता पर बल दिया गया, जिनमें मामलों की जाँच, अभियोजन और दंड के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश हों।
ऑनर किलिंग की रोकथाम हेतु कौन-से विधिक प्रावधान हैं?
- भारतीय दंड संहिता की धारा 299-304 (अब BNS): इस धारा के तहत हत्या और हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध के दोषी किसी भी व्यक्ति के दंड का प्रावधान किया गया है।
- हत्या और मानव वध के लिये आजीवन कारावास या मृत्युदंड हो सकता है।
- सदोष मानव वध वह है जब किसी की मृत्यु लापरवाही या आपराधिक आशय के कारण होती है।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 307: इसके तहत हत्या के प्रयास के लिये 10 वर्ष तक के कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के तहत गैर इरादतन हत्या के प्रयास के लिये तीन वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 34 और 35: इसके अंतर्गत सामान्य आशय से व्यक्तियों द्वारा किये गए आपराधिक कृत्यों के लिये दंड का प्रावधान किया गया है।
ऑनर किलिंग से संबंधित न्यायिक निर्णय क्या हैं?
- लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 2006: सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने ऑनर किलिंग को क्रूर कृत्य बताते हुए और अपराधकर्त्ताओं के लिये कठोर दंड पर बल देते हुए अंतरजातीय विवाह में युवा युगलों के साथ होने वाले उत्पीड़न और हिंसा की निंदा।
- उत्तर प्रदेश राज्य बनाम कृष्णा मास्टर केस, 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने ऑनर किलिंग के अपराधियों को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास का दंड दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने जघन्य अपराधों के लिये जवाबदेही सुनिश्चित किये जाने के महत्त्व पर बल दिया।
- अरुमुगम सेरवाई बनाम तमिलनाडु राज्य मामला, 2011: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि माता-पिता संबंध तोड़ सकते हैं, लेकिन बच्चों को अंतरजातीय विवाह के लिये डरा-धमका या परेशान नहीं कर सकते।
- सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को अंतरजातीय दम्पतियों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करने तथा उत्पीड़न या हिंसा को रोकने के लिये कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
- शक्ति वाहिनी केस, 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ऑनर किलिंग मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है तथा ऐसे अपराधों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकारों को विशेष प्रकोष्ठ स्थापित करके तथा पारिवारिक खतरों का सामना कर रहे दम्पतियों को सुरक्षा प्रदान करके ऑनर किलिंग को रोकने का निर्देश दिया।
आगे की राह:
- नया कानून: लक्षित सुरक्षा प्रदान करने, जवाबदेही सुनिश्चित करने, कानूनी प्रक्रियाओं को मानकीकृत करने, अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप बनाने तथा सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिये एक समर्पित ऑनर किलिंग विरोधी कानून की आवश्यकता है।
- चुनावी अयोग्यता: ऑनर किलिंग की सामाजिक वैधता को कम किया जाना चाहिये, इसके लिये दोषी ठहराए गए लोगों को कम-से-कम पाँच वर्ष तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये। इससे यह स्पष्ट संदेश जाएगा कि ऐसे लोगों को अधिकार वाले पदों पर नहीं होना चाहिये।
- इससे ऐसे ऑनर किलिंग आदेशों और गतिविधियों को उचित ठहराने से रोका जा सकेगा तथा जाति और समुदाय के आधार पर पंचायतों पर अंकुश लगेगा।
- फास्ट ट्रैक कोर्ट: त्वरित न्याय सुनिश्चित करने तथा पीड़ितों के अधिकारों को कमज़ोर करने वाली देरी को रोकने के लिये ऑनर किलिंग के लिये विशेष फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित किये जाने चाहिये।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में संशोधन: विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में संशोधन करके पंजीकरण अवधि को एक महीने से घटाकर एक सप्ताह कर दिया गया, ताकि विवाहों को संभावित खतरों या हिंसा से बचाया जा सके।
- भारतीय दंड संहिता में एक प्रावधान शामिल किया जाए जिसमें ऑनर किलिंग को परिभाषित कर दंड का निर्धारण किया जाए, ताकि कानूनी प्रणाली को ऐसे अपराधों से निपटने तथा उन्हें रोकने में मदद मिल सके।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में ऑनर किलिंग पर कानूनी प्रावधान और न्यायिक स्थिति क्या है? इनसे निपटने के लिये किन सुधारों की आवश्यकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)मेन्स:प्रश्न. “जाति व्यवस्था नई-नई पहचानों और सहचारी रूपों को धारण कर रही है। अतः भारत में जाति व्यवस्था का उन्मूलन नहीं किया जा सकता है। टिप्पणी कीजिये। (2018) प्रश्न. खाप पंचायतें संविधानेतर प्राधिकरणों के तौर पर प्रकार्य करने, अक्सर मानवाधिकार उल्लंघनों की कोटि में आने वाले निर्णयों को देने के कारण खबरों में बनी रही हैं। इस संबंध में स्थिति को ठीक करने के लिये विधानमंडल, कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा की गई कार्रवाइयों पर समालोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2015) |