कोयला आधारित विद्युत क्षेत्र के उत्सर्जन में कमी करना | 16 Dec 2020
चर्चा में क्यों?
हाल ही में थिंक-टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (Centre for Science and Environment- CSE) द्वारा आयोजित एक वेबिनार में विशेषज्ञों ने भारत के कोयला आधारित विद्युत् क्षेत्र के कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) फुट प्रिंट्स को कम करने के उपायों पर चर्चा की।
प्रमुख बिंदु:
भारत में विद्युत् उत्पादन:
- भारत मुख्य रूप से तीन प्रकार के थर्मल पावर प्लांटों का उपयोग करता है- कोयला, गैस और तरल-ईंधन आधारित।
- इन संयंत्रों द्वारा उत्पादित बिजली देश के कुल विद्युत् उत्पादन में 62.2% तक का योगदान देती है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट
(Centre for Science and Environment- CSE)
- सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (CSE) नई दिल्ली स्थित एक गैर-लाभकारी संस्थान है जो भारत में पर्यावरण, विकास के मुद्दों पर थिंक टैंक के रूप में कार्य कर रहा है। इसकी स्थापना वर्ष 1980 में की गई थी
- इस संस्थान ने वायु और जल प्रदूषण, अपशिष्ट जल प्रबंधन, औद्योगिक प्रदूषण, खाद्य सुरक्षा तथा ऊर्जा संबंधी पर्यावरणीय मुद्दों पर जागरूकता एवं शिक्षा का प्रसार करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।
- पर्यावरण शिक्षा और संरक्षण की दिशा में इसके योगदान के कारण वर्ष 2018 में इसे शांति, निशस्त्रीकरण और विकास के लिये इंदिरा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
कोयला आधारित विद्युत क्षेत्र में उत्सर्जन:
- भारत का कोयला आधारित थर्मल पावर क्षेत्र देश में CO2 के सबसे बड़े उत्सर्जकों में से एक है।
- यह प्रत्येक वर्ष 1.1 गीगा-टन CO2 का उत्सर्जन करता है; यह वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन का 2.5% है, जो कि भारत के GHG उत्सर्जन का एक-तिहाई है और भारत में ईंधन से संबंधित CO2 उत्सर्जन का लगभग 50% है।
उत्सर्जन को कम करने के लिये आवश्यक नीतियाँ:
- फ्लीट (Fleet) प्रौद्योगिकी और दक्षता में सुधार, नवीकरण और आधुनिकीकरण:
- भारत में विश्व की 64% क्षमता (132 GW) का सबसे नवीन कोयला आधारित थर्मल प्लांट है।
- सरकार के नवीकरण और आधुनिकीकरण की नीतियों को इस फ्लीट की दक्षता बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
- पूर्व में स्थिति:
- वर्ष 2015 तक, भारत में 34 GW से अधिक क्षमता 25 साल से अधिक पुरानी थी, और इसका लगभग 60% भाग अत्यधिक अक्षम था।
- भारत के नवीकरणीय विद्युत् उत्पादन में वृद्धि के चलते भविष्य में पुराने और अक्षम प्लांटों को बंद करने में मदद मिल सकती है।
- बायोमास को-फायरिंग (Co-firing) को बढ़ाना:
- बायोमास को-फायरिंग उच्च दक्षता वाले कोयला बॉयलरों में ईंधन के एक आंशिक विकल्प के रूप में बायोमास को जोड़ने को संदर्भित करता है।
- कोयले को जलाने के लिये तैयार किये गए बॉयलरों में कोयले और बायोमास का एक साथ दहन किया जाता है। इस प्रयोजन के लिये मौजूदा कोयला विद्युत् संयंत्र को आंशिक रूप से पुनर्निर्मित किया जाता है।
- सह-फायरिंग बायोमास को एक कुशल और स्वच्छ तरीके से, और बिजली संयंत्र के GHG उत्सर्जन को कम करने के लिये विद्युत में बदलने का एक विकल्प है।
- बायोमास को-फायरिंग विश्व स्तर पर स्वीकृत कोल फ्लीट को विघटित (Decarbonise) करने के लिये एक लागत प्रभावी तरीका है।
- विघटन (Decarbonising ) का अर्थ कार्बन की तीव्रता को कम करना है, अर्थात् प्रति यूनिट उत्सर्जन को कम करना।
- भारत एक ऐसा देश है, जहाँ आमतौर पर बायोमास को जलाया जाता है, जो आसानी से उपलब्ध एक बहुत ही सरल समाधान का उपयोग करके स्वच्छ कोयले की समस्या को हल करने के प्रति उदासीनता को दर्शाता है।
- बायोमास को-फायरिंग उच्च दक्षता वाले कोयला बॉयलरों में ईंधन के एक आंशिक विकल्प के रूप में बायोमास को जोड़ने को संदर्भित करता है।
- कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) में निवेश करना :
- वैश्विक स्तर पर कार्बन कैप्चर और स्टोरेज के लिये संघर्ष करना पड़ता है तथा भारत की संभावनाएँ कम-से-कम वर्ष 2030 तक धीमी होती दिखाई दे रही हैं।
- कारोबारियों को CCS की लागत को कम करने के लिये स्वदेशी अनुसंधान और विकास में निवेश करना चाहिये।
- कोयला परिष्करण/कोल बेनिफिकेशन:
- कोल बेनिफिकेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कच्चे कोयले की गुणवत्ता में सुधार किया जाता है, यह या तो अप्रासंगिक पदार्थ को कम करके जो कि खनन किये गए कोयले के साथ निकाला जाता है या संबंधित राख या दोनों को कम करके प्राप्त किया जाता है।
उत्सर्जन कम करने हेतु अन्य पहलें:
- भारत ने 1 अप्रैल, 2020 को भारत स्टेज- IV (BS-IV) उत्सर्जन मानदंडों के स्थान पर भारत स्टेज-VI (BS-VI) को अपना लिया है, जिसे पहले वर्ष 2024 तक अपनाया जाना था।
- उजाला (UJALA) योजना के तहत 360 मिलियन से अधिक LED बल्ब वितरित किये गए हैं, जिसके कारण प्रतिवर्ष लगभग 47 बिलियन यूनिट विद्युत की बचत हुई है और प्रतिवर्ष 38 मिलियन टन CO2 की कमी हुई है।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन: यह एक भारतीय पहल है जिसकी कल्पना अपनी विशेष ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिये सौर-संसाधन-संपन्न देशों के गठबंधन के रूप में की गई है (कर्क और मकर रेखा के मध्य आंशिक या पूर्ण रूप से अवस्थित सौर ऊर्जा की संभावना वाले देशों)।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) वर्ष 2008 में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के मध्य जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न खतरे और उनसे निपटने के उपायों के संबंध में जागरूकता पैदा करना है।
आगे की राह:
- जलवायु परिवर्तन से सार्थक रूप से निपटने के लिये केवल अक्षय ऊर्जा में वृद्धि करना पर्याप्त नहीं है, कोयला क्षेत्र में GHG उत्सर्जन को कम करने के लिये महत्त्वाकांक्षी योजनाओं को अपनाना भी आवश्यक है।
- हमें ऊर्जा रूपांतरण की आवश्यकता है जिसके माध्यम से हम स्थानीय और वैश्विक उत्सर्जन में कमी के सह-लाभों को वास्तविक रूप में बदल सकेंगे। चूँकि ऊर्जा की कमी और सामाजिक असमानता स्वीकार्य नहीं इसलिये हमें सभी के लिये ऊर्जा के अधिकार की भी आवश्यकता है।
- भारत को विविध ऊर्जा विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, इसमें कोई संदेह नहीं है कि सौर और पवन ऊर्जा में बहुत अधिक क्षमता होती है, हाइड्रोजन भी भारतीय ऊर्जा संक्रमण काल में एक गेम चेंजर होगा।