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भारतीय अर्थव्यवस्था

परिसंपत्ति गुणवत्ता और क्रेडिट चैनल पर भारतीय रिज़र्व बैंक का वर्किंग पेपर

  • 17 Dec 2020
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने 'भारत में मौद्रिक नीति हस्तांतरण के एसेट क्वालिटी और क्रेडिट चैनल' (Asset quality and credit channel) पर वर्किंग पेपर जारी किया है।

  • RBI ने मार्च 2011 में RBI वर्किंग पेपर्स शृंखला की शुरुआत की।

प्रमुख बिंदु:

क्रेडिट चैनल:

  • भारत में मौद्रिक संचरण का एक मज़बूत क्रेडिट चैनल मौजूद है जो बैंकों के एसेट की निम्नस्तरीय गुणवत्ता से प्रभावित होता है। 
    • क्रेडिट चैनल दो तरीके से कार्य कर सकते हैं: समग्र बैंक ऋण (बैंक ऋण चैनल) को प्रभावित करके और ऋण के आवंटन (बैलेंस शीट चैनल) को प्रभावित करके।

क्रेडिट मंदी:

  • भारत में 2013 से क्रेडिट ग्रोथ में मंदी की स्थिति को बैंकिंग प्रणाली में संपत्ति की गुणवत्ता पर तनाव, आर्थिक गतिविधियों में मंदी और बैंक जमा में विमंदन (Moderation) द्वारा समझाया गया है।
  • क्रेडिट ग्रोथ में उतार-चढ़ाव की दर वर्ष 2013 के 14.2% की तुलना में नवंबर 2020 में घटकर 5.8% रह गई।
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ में भी व्यापक गिरावट देखी गई है।

क्रेडिट ग्रोथ के संभावित निर्धारक:

  • परिसंपत्ति गुणवत्ता तनाव:
    • भारत में बैंकों की संपत्ति की गुणवत्ता वर्ष 2010 की शुरुआत से ही धीरे-धीरे खराब होने लगी, जिससे उनकी लाभप्रदता प्रभावित हुई।
    • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (Scheduled Commercial Banks) की परिसंपत्ति की गुणवत्ता को सकल अग्रिमों के लिये गैर- निष्पादित परिसंपत्तियों (Gross Non-Performing Assets) के अनुपात के रूप में मापा जाता है।
  • सांकेतिक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि:
    • सांकेतिक सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) में अधिक वृद्धि से क्रेडिट की मांग बढ़ जाती है।
    • क्रेडिट वृद्धि के बाद 2013 में GDP में गिरावट का कारण मुख्य रूप से खराब ऋणों में वृद्धि थी और यह वृद्धि मंदी के कारण हुई थी।
    • सांकेतिक GDP का आशय एक अर्थव्यवस्था में आर्थिक उत्पादन के  आकलन से है, इसकी गणना में वर्तमान मूल्य को शामिल किया जाता है।
      • सांकेतिक GDP की जगह वास्तविक GDP में मुद्रास्फीति के कारण कीमतों में परिवर्तन होना शामिल है जो अर्थव्यवस्था में मूल्य वृद्धि की दर को दर्शाती है।
  • जमा वृद्धि:
    • जमा वृद्धि 2015 की दूसरी छमाही से अत्यधिक अस्थिर रही है।
    • यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि धन की अधिक उपलब्धता वाला एक वित्तीय संस्थान उधारकर्ताओं को अधिक क्रेडिट उपलब्ध करा सकता है।
  • निवेश की वृद्धि:
    • निवेश वृद्धि में तेज़ी ने क्रेडिट ग्रोथ में मंदी को बढ़ाया है।
    • बैंक प्रतिभूतियों में निवेश करने के लिये क्रेडिट के रूप में कम संसाधन उपलब्ध होंगे।
    • भारत में बैंकों द्वारा किये जाने वाले निवेश में सरकारी प्रतिभूतियों में वैधानिक दायित्वों (वैधानिक तरलता अनुपात या SLR) के तहत निर्धारित निवेश व सरकारी प्रतिभूतियों तथा बॉण्ड/डिबेंचर/कॉरपोरेट निकायों के शेयरों में स्वैच्छिक निवेश शामिल हैं।
  • ब्याज दर:
    • अधिक ब्याज दर से ऋण लेने की लागत बढ़ जाएगी, जिससे क्रेडिट की मांग कम हो जाएगी।
  • बैंक का आकार और पूंजीकरण (किसी व्यवसाय के मूल्य का अनुमान) अन्य बैंक-विशिष्ट विशेषताएँ हैं।

किये गए उपाय:

  • उदार मौद्रिक नीति और नीति रेपो दर (Policy Repo Rate- 2019 से शुरू) में कमी ने क्रेडिट मंदी को दूर करने में मदद की है।
    • उदार रुख के अंतर्गत केंद्रीय बैंक वित्तीय प्रणाली में पैसा डालने के लिये अपनी दरों में कटौती करता है।
    • रेपो दर ब्याज की प्रमुख मौद्रिक नीति दर है, जिस पर RBI बैंकों को अल्पकालिक धन उधार देता है।
    • रेपो दर में कटौती कर RBI बैंकों को यह संदेश देता है कि उन्हें आम लोगों और कंपनियों के लिये ऋण की दरों को आसान करना चाहिये।
    • केंद्रीय बैंक ने अब नीति रेपो रेट को 350 बेसिस पॉइंट घटाकर 4% कर दिया है जो मार्च 2013 में  7.50% था ।

परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा (Asset Quality Review) 2015 के बाद कई खराब ऋण सामने आए थे जिससे सरकार को खराब ऋणों के समाधान के लिये दिवाला और दिवालियापन संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code) को लागू करना पड़ा।

RBI द्वारा कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र बैंकों को खराब ऋणों की गणना में छूट की अनुमति और ऋण पुनर्गठन योजना की घोषणा से कई इकाइयों में लॉकडाउन, छंटनी तथा बंद होने के बावजूद 31 बैंकों के सकल NPA में 5.25% की गिरावट देखी गई।

आगे की राह

  • भारत जैसे बैंक-प्रभुत्व वाली वित्तीय प्रणाली में क्रेडिट चैनल मौद्रिक नीति के आवेगों (Impulse) को क्रेडिट बाज़ार और उसके बाद वास्तविक अर्थव्यवस्था तक पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • अल्पावधि में संपत्ति की गुणवत्ता को नियंत्रित करने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मौद्रिक हस्तांतरण का क्रेडिट चैनल, निजी क्षेत्र के बैंकों के सापेक्ष अधिक मज़बूत होता है।
  • क्रेडिट चैनल पर अपना पूरा प्रभाव डालने के लिये मौद्रिक नीति की कार्रवाइयों हेतु यह ज़रूरी है कि बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता चिंताओं को दूर करने के साथ ही उनकी पूंजी की स्थिति को मज़बूत किया जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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