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भारतीय अर्थव्यवस्था

RBI द्वारा I-CRR को वापस लेने का निर्णय

  • 15 Sep 2023
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

RBI द्वारा I-CRR को वापस लेने का निर्णय, वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (I-CRR), वैधानिक तरलता अनुपात, मौद्रिक नीति, भारतीय रिज़र्व बैंक

मेन्स के लिये:

RBI द्वारा I-CRR को वापस लेने का निर्णय, इसकी आवश्यकता और निहितार्थ

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (I-CRR) को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की घोषणा की।

  • केंद्रीय बैंक कई चरणों में  I-CRR के तहत बैंकों द्वारा रखी गई राशि जारी करेगा।

RBI द्वारा I-CRR को वापस लेने की प्रक्रिया:

  • सुचारु परिवर्तन सुनिश्चित करने और सिस्टम की तरलता में अचानक झटके को रोकने के लिये I-CRR को बंद करने का कार्य चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा।
    • I-CRR रिवर्सल के पहले और दूसरे चरण में प्रत्येक बैंक की जब्त धनराशि का 25% जारी किया जाएगा। शेष 50% राशि तीसरे चरण में जारी की जाएगी।
  •  इस दृष्टिकोण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बैंकों के पास आगामी त्योहारी सीज़न के दौरान बढ़ी हुई ऋण मांग को पूरा करने के लिये पर्याप्त तरलता हो।

I-CRR:

  • पृष्ठभूमि:
  • I-CRR शुरू करने का उद्देश्य:
    • RBI ने बैंकिंग प्रणाली में अतिरिक्त तरलता को प्रबंधित करने के लिये एक अस्थायी उपाय के रूप में I-CRR की शुरुआत की।
    • अधिशेष तरलता में कई कारकों ने योगदान दिया, जिसमें 2,000 रुपए के नोटों का विमुद्रीकरण भी शामिल है।
    • RBI द्वारा अधिशेष सरकार को हस्तांतरित करना, सरकारी खर्च और पूंजी प्रवाह में वृद्धि करता है। 
    • इस तरलता वृद्धि में मूल्य स्थिरता और वित्तीय स्थिरता को बाधित करने की क्षमता थी, जिसके लिये कुशल तरलता प्रबंधन की आवश्यकता थी।
  • तरलता स्थितियों पर I-CRR का प्रभाव:
    •  I-CRR उपाय बैंकिंग प्रणाली से 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक की अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करेगा।
    • I-CRR जनादेश के परिणामस्वरूप 21 अगस्त, 2023 को बैंकिंग प्रणाली की तरलता अस्थायी रूप से घाटे में बदल गई, जो कि वस्तु एवं सेवा कर (GST) से संबंधित बहिर्वाह और रुपए को स्थिर करने के लिये केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप से बढ़ गई।

नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio- CRR):

  • परिचय:
    •  बैंक की कुल जमा राशि के मुकाबले रिज़र्व में रखी जाने वाली नकदी का प्रतिशत CRR कहलाता है।
    • भारत में सभी बैंक (सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (SCB) (RRB सहित), लघु वित्त बैंक (SFB), भुगतान बैंक, प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक (UCB), राज्य सहकारी बैंक (STCB) और ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंकों (DCCB) को RBI के साथ CRR बनाए रखना होगा।
    • प्रत्येक सहकारी बैंक (अनुसूचित सहकारी बैंक नहीं) और स्थानीय क्षेत्र बैंक अपने पास या RBI के पास CRR बनाए रखेंगे।
    • बैंक CRR की राशि को कॉरपोरेट्स या व्यक्तिगत उधारकर्ताओं को उधार नहीं दे सकते हैं, बैंक उस राशि का उपयोग निवेश उद्देश्यों के लिये नहीं कर सकते और बैंक उस पर कोई ब्याज नहीं प्राप्त करते हैं।

नोट: प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ वर्ष 1949 के बैंकिंग विनियमन अधिनियम के अंतर्गत नहीं आती हैं और RBI द्वारा विनियमित नहीं हैं

  • RBI के पास आरक्षित नकदी की आवश्यकता:
    • चूँकि बैंक की जमा राशि का एक हिस्सा RBI के पास होता है, इसलिये यह किसी भी आपात स्थिति में राशि की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
    • जब ग्राहक अपनी जमा राशि वापस चाहते हैं तो नकदी तुरंत उपलब्ध होती है।
    • CRR मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने में मदद करता है। यदि अर्थव्यवस्था में उच्च मुद्रास्फीति का खतरा है, तो RBI द्वारा CRR बढ़ाया जाता है, ताकि बैंकों को रिज़र्व में अधिक धन रखने की आवश्यकता हो, जिससे बैंकों के पास उपलब्ध धन की मात्रा प्रभावी रूप से कम हो जाती है।
      • इससे अर्थव्यवस्था में धन के अतिरिक्त प्रवाह पर अंकुश लगता है।
    • जब बाज़ार में धनराशि बढ़ाने की आवश्यकता होती है, तो RBI, CRR दर कम कर देता है, जिससे बैंकों को निवेश उद्देश्यों के लिये बड़ी संख्या में व्यवसायों और उद्योगों को ऋण प्रदान करने में मदद मिलती है। कम CRR से अर्थव्यवस्था की विकास दर को भी बढ़ावा मिलता है।
    • CRR और अन्य मौद्रिक साधनों को बनाए रखने की आवश्यकता हर वाणिज्यिक बैंक को होती है, लेकिन NFBC को नहीं। 

विमुद्रीकरण के मामले में RBI द्वारा I-CRR का उपयोग: 

    • RBI ने अचानक तरलता में वृद्धि की स्थिति के लिये I-CRR को लागू करने का विकल्प चुना है, जैसे कि विमुद्रीकरण के दौरान।
      • RBI ने 500 रुपए और 1,000 रुपए के बैंक नोटों के विमुद्रीकरण के बाद नवंबर 2016 में I-CRR का उपयोग किया था।
    • यह RBI को मौद्रिक नीति के अन्य पहलुओं को प्रभावित किये बिना मुद्दे का समाधान करने की अनुमति देता है। यह सटीकता महत्त्वपूर्ण हो सकती है, खासकर विमुद्रीकरण जैसी अनोखी स्थितियों के दौरान।
    • I-CRR को अपेक्षाकृत तेज़ी से लागू किया जा सकता है। जब विमुद्रीकृत नोटों की वापसी जैसी बड़े पैमाने की घटना के कारण तरलता में अचानक वृद्धि होती है, तो केंद्रीय बैंक को एक उपकरण की आवश्यकता हो सकती है जिसे तुरंत प्रभाव में लाया जा सके।
    • I-CRR आमतौर पर एक अस्थायी उपाय माना जाता है। इसे तब शुरू किया जा सकता है जब अतिरिक्त तरलता को अस्थायी रूप से अवशोषित करने की आवश्यकता होती है और तरलता की स्थिति स्थिर होने पर इसे चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा सकता है।
    • लेकिन दूसरी ओर अन्य उपकरण जैसे रेपो रेट, वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) आदि का तरलता पर दीर्घकालिक तथा धीमा प्रभाव हो सकता है।

    RBI के मौद्रिक नीति उपकरण: 

    • गुणात्मक:
      • नैतिक दबाव: यह एक गैर-बाध्यकारी तकनीक है जहाँ RBI बैंकों के ऋण और निवेश व्यवहार को प्रभावित करने के लिये अनुनय एवं संचार का उपयोग करता है।
      • प्रत्यक्ष ऋण नियंत्रण: ये ऐसे उपाय हैं जिनमें विशिष्ट क्षेत्रों या उद्योगों के लिये ऋण के प्रवाह को विनियमित करना शामिल है। RBI नीतिगत उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये कुछ क्षेत्रों को ऋण देने का निर्देश जारी कर सकता है या ऋण सीमा निर्धारित कर सकता है।
      • चयनात्मक क्रेडिट नियंत्रण: ये प्रत्यक्ष क्रेडिट नियंत्रण से अधिक विशिष्ट हैं और अर्थव्यवस्था के विशिष्ट क्षेत्रों में मांग को नियंत्रित करने के लिये उपभोक्ता ऋण जैसे विशेष प्रकार के ऋणों को लक्षित करते हैं।
    • मात्रात्मक:
      • नकद आरक्षित अनुपात (CRR): CRR किसी बैंक की जमा राशि का वह अनुपात है जिसे उसे नकदी के रूप में RBI के पास आरक्षित रखना होता है। CRR को समायोजित करके RBI बैंकों द्वारा ऋण देने के लिये उपलब्ध धन की मात्रा को नियंत्रित कर सकता है।
      • रेपो दर: रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को अल्पावधि के लिये पैसा उधार देता है। रेपो दर में बदलाव किये जाने से इन बैंकों की उधार लेने की लागत और उसके बाद उनकी उधार दरों पर असर पड़ सकता है।
      • रिवर्स रेपो दर: यह वह ब्याज दर है जिस पर बैंक अपना अतिरिक्त धन भारतीय रिज़र्व बैंक के पास जमा रख सकते हैं। यह अल्पकालिक ब्याज दरों के लिये एक आधार प्रदान करने के साथ ही तरलता प्रबंधन में मदद करता है।
      • बैंक दर: वह दर है जिस पर RBI बैंकों और वित्तीय संस्थानों को दीर्घकालिक धन प्रदान करता है। यह दीर्घकालिक मुद्रा बाज़ार में ब्याज दरों को प्रभावित करता है।
      • ओपन मार्केट ऑपरेशंस: इसके अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक खुले बाज़ार में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद अथवा बिक्री करता है। यह बैंकिंग प्रणाली में धन आपूर्ति और तरलता को प्रभावित करती है।
      • तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility- LAF): इसमें रेपो दर और रिवर्स रेपो दर शामिल है जिसका उपयोग बैंकों द्वारा उनकी अल्पकालिक तरलता आवश्यकताओं के लिये किया जाता है। यह RBI को प्रतिदिन तरलता स्थितियों का प्रबंधन करने में मदद करता है।
      • मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी (MSF): वह दर जिस पर बैंक सरकारी प्रतिभूतियों के संपार्श्विक के लिये RBI से तुरंत ही ऋण ले सकते हैं। यह बैंकों के लिये वित्तपोषण के द्वितीयक स्रोत के रूप में कार्य करता है।
      • वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio- SLR): यह किसी बैंक की शुद्ध मांग और सावधि देनदारियों का प्रतिशत है जिसे अनुमोदित प्रतिभूतियों के रूप में बनाए रखना होता है।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नकद आरक्षी अनुपात में वृद्धि की घोषणा का क्या अर्थ है? (2010) 

    (a) वाणिज्यिक बैंकों के पास उधार देने के लिये पैसे कम होंगे।
    (b) भारतीय रिज़र्व बैंक के पास उधार देने के लिये पैसे कम होंगे।
    (c) केंद्र सरकार के पास उधार देने के लिये पैसे कम होंगे।
    (d) वाणिज्यिक बैंकों के पास उधार देने के लिये पैसे अधिक होंगे।

    उत्तर: (a)


    प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा शब्द सरकार को ऋण प्रदान करने के लिये वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उपयोग किये जाने वाले तंत्र को दर्शाता है? (2010)

    (a) नकद ऋण अनुपात
    (b) ऋण सेवा दायित्व
    (c) तरलता समायोजन सुविधा
    (d) वैधानिक तरलता अनुपात

    Ans: (D)


    प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2015)

    1. बैंक दर
    2.  खुला बाज़ार परिचालन
    3.  सार्वजनिक ऋण
    4.  सार्वजनिक राजस्व

     उपर्युक्त में से कौन-सा/से मौद्रिक नीति का/के घटक है/हैं?

    (a) केवल 1 
    (b) केवल  2, 3 और 4 
    (c) केवल 1 और 2 
    (d) केवल 1, 3 और 4 

    उत्तर: C


    प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में 'खुला बाज़ार प्रचालन' किसे निर्दिष्ट करता है?   (2013)

    (a) अनुसूचित बैंकों द्वारा RBI से ऋण लेना।
    (b) वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उद्योग और व्यापार क्षेत्रों को ऋण देना।
    (c) RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय और विक्रय। 
    (d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

    उत्तर: C 


    प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा/से सांविधिक आरक्षित आवश्यकताओं का/के उद्देश्य है/हैं? (2014)

    1. केंद्रीय बैंक को बैंकों द्वारा निर्मित की जा सकने वाली अग्रिम राशियों पर नियंत्रण रखने की सक्षमता प्रदान करना।
    2. बैंकों में जनता की जमा राशियों को सुरक्षित व तरल रखना।
    3. व्यावसायिक बैंकों को अत्यधिक लाभ कमाने से रोकना।
    4. बैंकों को दिन-प्रतिदिन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त कोष्ठ नकदी (वॉल्ट कैश) रखने को बाध्य करना। 

    नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

    (a) केवल 1 
    (b) केवल 1 और 2 
    (c) केवल 2 और 3 
    (d) 1, 2, 3 और 4 

    उत्तर: (a)


    मेन्स:

    प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी) की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019)

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