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रेलवे को मिला 5 मेगाहर्ट्ज़ स्पेक्ट्रम

  • 11 Jun 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ऑप्टिकल फाइबर

मेन्स के लिये:

रेलवे के आधुनिकीकरण हेतु किये गए सुधार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय रेलवे के संचार और सिग्नलिंग सिस्टम में सुधार के लिये 700 मेगाहर्ट्ज़ फ्रीक्वेंसी बैंड में 5 मेगाहर्ट्ज़ स्पेक्ट्रम के आवंटन को मंज़ूरी दी है।

  • रेलवे ने स्वदेशी रूप से विकसित ट्रेन कोलिज़न अवॉइडेंस सिस्टम (Collision Avoidance System- TCAS) को भी मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु:

 संदर्भ:

  • इस परियोजना को पाँच साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसकी अनुमानित लागत लगभग 25,000 करोड़ रुपए है।
  • भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) द्वारा अनुशंसित रॉयल्टी शुल्क और कैप्टिव उपयोग हेतु लाइसेंस शुल्क के लिये दूरसंचार विभाग द्वारा निर्धारित फॉर्मूले के आधार पर स्पेक्ट्रम शुल्क लगाया जाएगा।
  • इस स्पेक्ट्रम के साथ रेलवे अपने मार्गों पर लॉन्ग-टर्म इवोल्यूशन (Long-Term Evolution- LTE) आधारित मोबाइल ट्रेन रेडियो कम्युनिकेशन (MTRC) शुरू करेगा।
    • रेलवे वर्तमान में अपने संचार नेटवर्क के लिये ऑप्टिकल फाइबर पर निर्भर है परंतु नए स्पेक्ट्रम के आवंटन के साथ यह वास्तविक समय के आधार पर उच्च गति वाले रेडियो का उपयोग करने में सक्षम होगा।
    • LTE चौथी पीढ़ी का (4G) वायरलेस मानक है जो तीसरी पीढ़ी (3G) तकनीक की तुलना में सेलफोन और अन्य सेलुलर उपकरणों के लिये बढ़ी हुई नेटवर्क क्षमता तथा गति प्रदान करता है।

लाभ:

  • निर्बाध संचार:
    • इसका उपयोग आधुनिक सिग्नलिंग और ट्रेन सुरक्षा प्रणालियों के लिये किया जाएगा तथा लोको पायलटों एवं गार्डों के बीच निर्बाध संचार सुनिश्चित किया जाएगा।
    • भारतीय रेलवे के लिये LTE का उद्देश्य परिचालन, कुशल अनुप्रयोगों के लिये सुरक्षित तथा विश्वसनीय वोईस, वीडियो एवं डेटा संचार सेवाएँ प्रदान करना है।
  • दुर्घटनाओं और देरी में कमी:
    • यह लोको पायलट, स्टेशन मास्टर और नियंत्रण केंद्र के बीच रियल-टाइम बातचीत को सक्षम करके ट्रेन दुर्घटनाओं को रोकने तथा देरी को कम करने में मदद करेगा।
  • इंटरनेट ऑफ थिंग्स:
    • यह रेलवे को इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) आधारित रिमोट एसेट मॉनीटरिंग, विशेष रूप से कोचों, वैगनों और लोको की निगरानी करने में सक्षम बनाएगा तथा कुशल, सुरक्षित एवं तेज़ गति से ट्रेन संचालन सुनिश्चित करने के लिये कोचों में सीसीटीवी कैमरों की लाइव वीडियो फीड की निगरानी करेगा।
      • IoT दूसरों के साथ संचार करने के बाद बंद निजी इंटरनेट कनेक्शन पर उपकरणों की अनुमति देता है और इंटरनेट ऑफ थिंग्स उन नेटवर्क को एक साथ लाता है। यह उपकरणों के लिये न केवल एक समान नेटवर्क में बल्कि विभिन्न नेटवर्किंग प्रकारों में संचार करने का अवसर देता है जिससे एक मज़बूत नेटवर्क बनता है।

ट्रेन कोलिज़न अवॉइडेंस सिस्टम (TCAS).

  • यह एक माइक्रोप्रोसेसर आधारित नियंत्रण प्रणाली है जो लगातार गति, यात्रा की दिशा, तय की गई दूरी, पारित सिग्नल के पहलू और मोटरमैन की सतर्कता की निगरानी करता है तथा इस प्रकार रेलवे प्रणाली की सुरक्षा को बढ़ाता है।
  • यह मौज़ूदा बुनियादी ढाँचे का उपयोग करके अधिक ट्रेनों को समायोजित करने के लिये सुरक्षा में सुधार और लाइन क्षमता बढ़ाने में मदद करेगा। इसके अलावा आधुनिक रेल नेटवर्क के परिणामस्वरूप परिवहन लागत कम होगी तथा दक्षता में सुधार होगा।

रेडियो स्पेक्ट्रम (Radio Spectrum):

  • रेडियो स्पेक्ट्रम (इसे रेडियो फ्रीक्वेंसी या RF के रूप में भी जाना जाता है) विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम का एक हिस्सा है, इस आवृत्ति रेंज में विद्युत चुंबकीय तरंगों को रेडियो फ्रीक्वेंसी बैंड या केवल  'रेडियो तरंग' कहा जाता है।
    • विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम में रेडियो तरंगों की तरंगदैर्ध्य सबसे लंबी होती है। इनकी खोज 1880 के दशक के अंत में हेनरिक हर्ट्ज़ ने की थी।
  • RF बैंड 30 किलोहर्ट्ज़ और 300 गीगाहर्ट्ज़ के बीच की सीमा में फैले हुए हैं।

RF-Band

  • विभिन्न उपयोगकर्त्ताओं के बीच हस्तक्षेप को रोकने के लिये रेडियो फ़्रीक्वेंसी बैंड के निर्माण और प्रसारण को राष्ट्रीय कानूनों द्वारा कड़ाई से विनियमित किया जाता है, जिसे एक अंतर्राष्ट्रीय निकाय, अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) द्वारा समन्वित किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू

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