बैंकों का निजीकरण | 31 May 2022
प्रिलिम्स के लिये:भारत में बैंकिंग और संबंधित कानून, RBI के कार्य, परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (बैड बैंक)। मेंन्स के लिये:बैंकों का निजीकरण, इसके महत्त्व और संबंधित मुद्दे, उदारीकरण से पहले के वर्षो में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के लिये 'अग्रिम कार्रवाई (Advanced Action)' करने की प्रक्रिया में है।
- सरकार मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के साथ-साथ आर्थिक स्थिरता और विकास को बनाए रखने के लिये निरंतर प्रयासरत है।
निजीकरण:
- सरकार से निजी क्षेत्र में स्वामित्व, संपत्ति या व्यवसाय के हस्तांतरण को निजीकरण कहा जाता है। इसमें सरकार इकाई या व्यवसाय की स्वामी नहीं रह जाती है।
- निजीकरण कंपनी में अधिक दक्षता और निष्पक्षता लाने के लिये किया जाता है, ऐसा सुधार जिसके बारे में एक सरकारी कंपनी चिंतित नहीं होती है।
- भारत 1991 के ऐतिहासिक सुधार बजट में निजीकरण को बढ़ावा दिया गया जिसे 'नई आर्थिक नीति या LPG नीति' के रूप में भी जाना जाता है।
पृष्ठभूमि :
- सरकार ने 1969 में 14 सबसे बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का निर्णय लिया। इसका उद्देश्य बैंकिंग क्षेत्र को तत्कालीन सरकार के समाजवादी दृष्टिकोण के साथ समायोजित करना था।
- भारतीय स्टेट बैंक (SBI) का 1955 में ही राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था और 1956 में बीमा क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण किया गया था।
- पिछले 20 वर्षों में विभिन्न सरकारें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) बैंकों के निजीकरण के पक्ष में और विरोध में रही हैं। 2015 में सरकार ने निजीकरण का सुझाव दिया था लेकिन तत्कालीन भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर ने इस विचार का समर्थन नहीं किया।
- निजीकरण के मौजूदा कदम पूरी तरह से बैंकों के स्वामित्व वाली परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (बैड बैंक) की स्थापना के साथ वित्तीय क्षेत्र की चुनौतियों के लिये बाज़ार के नेतृत्व वाले समाधान खोजने के दृष्टिकोण को रेखांकित करते हैं।
- केंद्र ने 2021-22 के बजट में दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की घोषणा की, लेकिन अभी तक संबंधित बैंकिंग कानूनों में संशोधन नहीं किया है ताकि उनमें अपनी बहुमत हिस्सेदारी की बिक्री की अनुमति मिल सके।
निजीकरण का कारण:
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय स्थिति में गिरावट:
- वर्षों से पूंजीगत निवेश और शासन सुधार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय स्थिति में उल्लेखनीय सुधार नहीं कर पाए हैं।
- उनमें से कई के पास निजी बैंकों की तुलना में तनावग्रस्त परिसंपत्तियों का उच्च स्तर है और लाभप्रदता, बाज़ार पूंजीकरण तथा लाभांश भुगतान रिकॉर्ड के मामले में भी पीछे है।
- एक दीर्घकालिक परियोजना का हिस्सा:
- दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण से एक दीर्घकालिक परियोजना की शुरुआत होगी, जिसके तहत भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में कुछ चुनिंदा सार्वजनिक बैंकों की परिकल्पना की गई है। यह कार्य या तो मज़बूत बैंकों को समेकित करके या फिर बैंकों का निजीकरण कर किया जाएगा।
- सरकार की प्रारंभिक योजना चार बैंकों के निजीकरण की थी। पहले दो बैंकों के सफल निजीकरण के बाद सरकार आने वाले वित्तीय वर्षों में अन्य दो या तीन बैंकों के विनिवेश पर ज़ोर दे सकती है।
- यह निर्णय सरकार, जो कि बैंकों में सबसे बड़ी हिस्सेदार है, को बैंकों को वर्ष-प्रतिवर्ष वित्तीय सहायता प्रदान करने के दायित्व से मुक्त करेगा।
- बीते कुछ वर्षों में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के परिणामस्वरूप अब सरकार के पास केवल 12 सार्वजनिक बैंक मौजूद हैं, जिनकी संख्या पूर्व में कुल 28 थी।
- दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण से एक दीर्घकालिक परियोजना की शुरुआत होगी, जिसके तहत भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में कुछ चुनिंदा सार्वजनिक बैंकों की परिकल्पना की गई है। यह कार्य या तो मज़बूत बैंकों को समेकित करके या फिर बैंकों का निजीकरण कर किया जाएगा।
- बैंकों को मज़बूती प्रदान करना:
- सरकार बड़े बैंकों को और अधिक मज़बूत बनाने का प्रयास कर रही है तथा साथ ही निजीकरण के माध्यम से बैंकों की संख्या में भी कमी की जा रही है।
- अलग-अलग समितियों की सिफारिशें:
- कई समितियों ने सार्वजनिक बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी को 51 प्रतिशत तक सीमित करने का प्रस्ताव रखा है:
- नरसिम्हन समिति ने हिस्सेदारी को 33 प्रतिशत तक सीमित करने की बात की थी।
- पी.जे. नायक समिति ने हिस्सेदारी को 50 प्रतिशत से कम करने का सुझाव दिया था।
- RBI के एक कार्यकारी समूह ने हाल ही में बैंकिंग क्षेत्र में बड़े व्यावसायिक घरानों के प्रवेश का सुझाव दिया है।
- कई समितियों ने सार्वजनिक बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी को 51 प्रतिशत तक सीमित करने का प्रस्ताव रखा है:
- बड़े बैंकों का निर्माण:
- निजीकरण का एक उद्देश्य बड़े बैंक बनाना भी है। जब तक निजीकृत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का मौजूदा बड़े निजी बैंकों में विलय नहीं किया जाता है, तब तक वे उच्च जोखिम लेने की क्षमता और उधार देने की क्षमता विकसित नहीं कर सकते हैं।
- ऐसे में निजीकरण एक बहुआयामी कार्य है, जिसमें कई चुनौतियों से निपटने और नए विचारों की खोज करने के लिये सभी दृष्टिकोण पर विचार किया जाता है, लेकिन यह सभी हितधारकों को लाभान्वित करने के लिये एक अधिक सतत् और मज़बूत बैंकिंग प्रणाली विकसित करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
संबंधित मुद्दे:
- क्रोनी कैपिटलिज़्म को बढ़ावा:
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण बैंकों को निजी कंपनियों को बेचने के समान है, जिनमें से कई ने PSBs के ऋण को वापस नहीं किया है जिससे क्रोनी पूँजीवाद को बढावा मिला है।
- नौकरी के नुकसान:
- निजीकरण से बेरोज़गारी, शाखा बंद होना और वित्तीय बहिष्करण जैसी गतिविधियाँ उत्पन्न होंगी।
- निजीकरण से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिये रोज़गार के अवसर कम होंगे क्योंकि निजी क्षेत्र कमज़ोर वर्गों के लिये आरक्षण नीतियों का पालन नहीं करता है।
- कमज़ोर वर्गों का वित्तीय बहिष्करण:
- निजी क्षेत्र के बैंक अधिक संपन्न वर्गों और महानगरीय/शहरी क्षेत्रों की आबादी पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे समाज के कमज़ोर वर्गों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय बहिष्कार होता है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बैंकिंग की ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँच और वित्तीय समावेशन को सुनिश्चित करते है।
- निजी क्षेत्र के बैंक अधिक संपन्न वर्गों और महानगरीय/शहरी क्षेत्रों की आबादी पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे समाज के कमज़ोर वर्गों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय बहिष्कार होता है।
- बेलआउट ऑपरेशन:
- बैंक यूनियनों ने निजीकरण प्रक्रिया को कॉरपोरेट डिफॉल्टरों के लिये "बेलआउट ऑपरेशन" का नाम दिया है।
- बड़े पैमाने पर फँसे ऋण के लिये निजी क्षेत्र ज़िम्मेदार हैं और उन्हें इस अपराध की सज़ा मिलनी चाहिये लेकिन सरकार बैंकों को निजी क्षेत्र के हवाले कर उन्हें पुरस्कृत कर रही है।
आगे की राह
- PSBs के शासन और प्रबंधन में सुधार करना होगा। ऐसा करने का एक उपाय पी.जे. नायक समिति द्वारा सुझाया गया था, जहाँ सरकार और शीर्ष सार्वजनिक क्षेत्र नियुक्तियों (जिसके संबंध में सारे कार्य बैंक बोर्ड ब्यूरो को करने थे लेकिन वह अक्षम रहा) के बीच दूरी रखने की अनुशंसा की गई थी।
- अंधाधुंध निजीकरण के बजाय PSBs को जीवन बीमा निगम (LIC) जैसे निगम में रूपांतरित किया जा सकता है। सरकारी स्वामित्व बनाए रखते हुए इनका निगमीकरण PSBs को अधिक स्वायत्तता प्रदान करेगा।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. शासन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)
भारत में राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के उपायों के रूप में उपरोक्त में से किसका उपयोग किया जा सकता है? (A) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (D)
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