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भारतीय राजनीति

चुनाव आयोग के संदर्भ में निजी सदस्य विधेयक

  • 12 Dec 2022
  • 12 min read

्रिलिम्स के लिये:

भारत निर्वाचन आयोग (ECI), अनुच्छेद 324, भारत की संचित निधि, इनर पार्टी डेमोक्रेसी

मेन्स के लिये:

चुनाव आयोग की शक्तियाँ और ज़िम्मेदारियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश में राजनीतिक दलों के आंतरिक संचालन को विनियमित करने और निगरानी के लिये भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission- ECI) को ज़िम्मेदार बनाने के लिये लोकसभा में एक निजी सदस्य विधेयक पेश किया गया।

  • यह विधेयक ऐसे समय में प्रस्तुत किया गयाा है जब सर्वोच्च न्यायालय, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में सुधार की आवश्यकता पर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।
  • यह तर्क दिया गया था कि बड़ी संख्या में राजनीतिक दलों की आंतरिक कार्यप्रणाली और संरचनाएँ बहुत "अपारदर्शी एवं जटिल" हो गई हैं तथा और उनके कामकाज़ को पारदर्शी, जवाबदेह और नियम आधारित बनाने की आवश्यकता है।

िजी सदस्य विधेयक

  • संसद के ऐसे सदस्य जो केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री नहीं हैं, को एक निजी सदस्य के रूप में जाना जाता है।
  • निजी सदस्य विधेयक का उद्देश्य सरकार का ध्यान उस ओर आकर्षित करना है, जो कि सांसदों (मंत्रियों के अतिरिक्त) के मुताबिक, एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है और जिसे विधायी हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
    • इस प्रकार यह सार्वजनिक मामलों पर विपक्षी पार्टी के रुख को दर्शाता है।
  • सदन में इसे पेश करने के लिये एक महीने के नोटिस की आवश्यकता होती है और इसे प्रस्तुत करने तथा इस पर चर्चा करने का कार्य केवल शुक्रवार को ही किया जा सकता है।
    • सदन द्वारा इसे अस्वीकृत किये जाने से सरकार में संसदीय विश्वास या उसके त्याग-पत्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • पिछली बार दोनों सदनों द्वारा एक निजी सदस्य विधेयक 1970 में पारित किया गया था।
    • यह ‘सर्वोच्च न्यायालय (आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार का विस्तार) विधेयक, 1968’ था।

विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:

  • CEC की नियुक्ति:
    • यह प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री, विपक्ष के नेता या लोकसभा में सदन के नेता, विपक्ष के नेता या राज्यसभा में सदन के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, से मिलकर बने एक पैनल द्वारा नियुक्त किये जाने वाले मुख्य चुनाव आयुक्त सहित चुनाव आयोग के सदस्यों की भी मांग करता है।
  • CEC के लिये कार्यकाल:
    • विधेयक में CEC और EC के लिये छह साल के निश्चित कार्यकाल और क्षेत्रीय आयुक्तों के लिये नियुक्ति की तिथि से तीन वर्ष के कार्यकाल की परिकल्पना की गई है।
  • CEC को हटाने की प्रक्रिया:
    • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिये निर्धारित प्रक्रिया के अलावा उन्हें पद से हटाया नहीं जा सकता।
    • साथ ही, सेवानिवृत्ति के बाद, वे भारत सरकार, राज्य सरकारों और संविधान के तहत किसी भी कार्यालय में किसी भी पुनर्नियुक्ति के लिये पात्र नहीं होने चाहिये।
  • गैर-अनुपालन की स्थिति में प्रक्रिया:
    • यदि कोई पंजीकृत राजनीतिक दल अपने आंतरिक कार्यों के संबंध में ECI द्वारा जारी सलाह, व निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है, तो चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश 1968 की धारा 16A के तहत ऐसे राजनीतिक दल की राज्य या राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता चुनाव आयोग द्वारा वापस ली जा सकती है

ECI की संरचना:

  • मूल रूप से आयोग में केवल एक चुनाव आयुक्त था लेकिन चुनाव आयुक्त संशोधन अधिनियम, 1989 के बाद इसे एक बहु-सदस्यीय निकाय बना दिया गया है।
  • आयोग में एक CEC और दो EC होते हैं।
    • भारत के राष्ट्रपति CEC और EC की नियुक्ति करते हैं। इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, होता है।
    • वे भी सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान वेतन और भत्ते प्राप्त करते हैं।

ECI की शक्तियाँ और कार्य:

  • संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर देश भर में चुनाव निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण करना।
  • मतदाता सूची तैयार करना और समय-समय पर संशोधित करना तथा सभी पात्र मतदाताओं को पंजीकृत करना।
  • राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना और उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करना।
  • आयोग के पास संसद और राज्य विधानसभाओं के मौजूदा सदस्यों को चुनाव के बाद अयोग्य ठहराने के मामले में सलाहकारी क्षेत्राधिकार भी है।
  • यह चुनावों के संचालन हेतु चुनाव कार्यक्रम तय करता है, चाहे आम चुनाव हों या उपचुनाव।
  • चुनाव आयोग राजनीतिक दलों की आम सहमति से विकसित आदर्श आचार संहिता के सख्त पालन के माध्यम से राजनीतिक दलों के लिये चुनाव में समान अवसर सुनिश्चित करता है।

चुनाव आयोग से जुड़े मुद्दे:

  • CEC का संक्षिप्त कार्यकाल: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में टिप्पणी की कि ‘‘वर्ष 2004 से किसी भी मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है’’ और इस संक्षिप्त कार्यकाल के कारण CEC कोई विशेष भूमिका निभाने में असमर्थ रहा है।
    • संविधान का अनुच्छेद 324 निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति का प्रावधान तो करता है, लेकिन इस संबंध में वह केवल इस आशय के एक कानून के अधिनियमन की परिकल्पना करता है और इन नियुक्तियों के लिये कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं करता है।
  • नियुक्ति पर कार्यपालिका का प्रभाव: निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति वर्तमान सरकार द्वारा की जाती है और इसलिये वे संभावित रूप से सरकार के प्रति कृतज्ञ होते हैं या उन्हें ऐसा लग सकता कि उन्हें सरकार के प्रति एक विशिष्ट स्तर की निष्ठा का प्रदर्शन करना है।
  • वित्त के लिये केंद्र पर निर्भरता: ECI को एक स्वतंत्र निकाय बनाने के लिये अभिकल्पित विभिन्न प्रावधानों के बावजूद अभी भी इसके वित्त का नियंत्रण केंद्र सरकार के पास है। निर्वाचन आयोग का व्यय भारत की संचित निधि पर भारित नहीं रखा गया है।
  • स्वतंत्र कर्मचारियों की कमी: चूँकि ECI के पास स्वयं के कर्मचारी नहीं होते, इसलिये जब भी चुनाव आयोजित होते हैं तो उन्हें केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारियों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • आदर्श आचार संहिता के प्रवर्तन के लिये सांविधिक समर्थन का अभाव: आदर्श आचार संहिता के प्रवर्तन के लिये और निर्वाचन संबंधी अन्य निर्णयों के संबंध में भारत निर्वाचन आयोग के पास उपलब्ध शक्तियों के दायरे एवं प्रकृति के बारे में स्पष्टता नहीं है।
  • आंतरिक-पार्टी लोकतंत्र को विनियमित करने की सीमित शक्ति: राजनीतिक दलों के आंतरिक चुनावों के संबंध में ECI की शक्ति एवं भूमिका सलाह देने तक सीमित है और उसके पास राजनीतिक दल के अंदर लोकतंत्र को लागू करने या उनके वित्त को विनियमित करने का कोई अधिकार नहीं है।

आगे की राह

  • जस्टिस तारकुंडे समिति (1975), दिनेश गोस्वामी समिति (1990), विधि आयोग (2015) जैसी विभिन्न समितियों ने सिफारिश की है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और CJI की सदस्यता वाली समिति की सलाह पर की जाए।
  • कार्यालय से हटाने के मामलों में ECI के सभी सदस्यों को समान संवैधानिक संरक्षण दिया जाना चाहिये। एक समर्पित चुनाव प्रबंधन संवर्ग और कार्मिक प्रणाली लाना समय की मांग है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. भारत का चुनाव आयोग पांँच सदस्यीय निकाय है।
  2. केंद्रीय गृह मंत्रालय आम चुनाव और उपचुनाव दोनों के संचालन के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
  3. चुनाव आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों का समाधान करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, भारत का चुनाव आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं के प्रशासन के लिये ज़िम्मेदार है। यह निकाय भारत में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधान सभाओं और देश में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के चुनावों का संचालन करता है।
  • मूल रूप से आयोग में केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त था। वर्तमान में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त शामिल हैं। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • आयोग के पास मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों को निपटाने की अर्द्ध-न्यायिक शक्ति निहित है। अतः कथन 3 सही है।
  • यह चुनावों के संचालन के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है, चाहे आम चुनाव हों या उपचुनाव। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • अतः विकल्प (d) सही है।

प्रश्न. आदर्श आचार संहिता के विकास के आलोक में भारत के चुनाव आयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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