राष्ट्रपति ने भारतीय सेना के एक मेजर की सेवाएँ समाप्त कीं | 02 Nov 2023
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रपति, सामरिक बल कमान, अनुच्छेद 310, सेना अधिनियम- 1950, सैन्य खुफिया (MI) निदेशालय, सैन्य खुफिया महानिदेशालय (DGMI), पाकिस्तान इंटेलिजेंस ऑपरेटिव (PIO) मेन्स के लिये:राष्ट्रों की आंतरिक सुरक्षा और संप्रभुता पर सुरक्षा बलों के विश्वासघाती रवैये का प्रभाव। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत के राष्ट्रपति ने सामरिक बल कमान (Strategic Forces Command- SFC) इकाई में तैनात भारतीय सेना के एक मेजर को सैन्य जाँच के बाद गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा उल्लंघनों में शामिल होने के कारण बर्खास्त कर दिया है।
- राष्ट्रपति ने उनकी सेवाओं को तुरंत समाप्त करने के लिये संविधान के अनुच्छेद 310 और अन्य प्रासंगिक शक्तियों के साथ-साथ सेना अधिनियम, 1950 के तहत अपने अधिकार का उपयोग किया।
सेना के मेजर के कार्यों और उसके बाद बर्खास्तगी में शामिल नैतिक चिंताएँ:
- नैतिक उल्लंघन और राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएँ:
- मार्च 2022 में शुरू की गई एक सैन्य जाँच में मेजर द्वारा की गई गलतियों और नैतिक उल्लंघनों का खुलासा हुआ, जिसमें वर्गीकृत जानकारी साझा करना, संदिग्ध वित्तीय लेनदेन और सोशल मीडिया के माध्यम से एक पाकिस्तानी खुफिया ऑपरेटर के साथ संबंध होना शामिल थे।
-
मेजर के पास इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों एवं उनके दुर्लभ उपयोग पर गुप्त दस्तावेज़ मिलना भी सैन्य नियमों के खिलाफ था। इन कार्रवाइयों ने महत्त्वपूर्ण नैतिक चिंताएँ उत्पन्न कीं जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरे की स्थिति बन गई है।
-
- मार्च 2022 में शुरू की गई एक सैन्य जाँच में मेजर द्वारा की गई गलतियों और नैतिक उल्लंघनों का खुलासा हुआ, जिसमें वर्गीकृत जानकारी साझा करना, संदिग्ध वित्तीय लेनदेन और सोशल मीडिया के माध्यम से एक पाकिस्तानी खुफिया ऑपरेटर के साथ संबंध होना शामिल थे।
-
राष्ट्रपति का अधिकार और कानूनी आधार:
-
राष्ट्रपति ने सैन्य अधिनियम, 1950 की धारा 18 द्वारा प्रदत्त शक्तियों और अन्य प्रासंगिक सक्षम शक्तियों के अनुसार, मेजर की सेवाओं को तुरंत समाप्त करने के आदेश जारी किये।
-
यह कार्रवाई स्थापित कानूनी प्रावधानों के ढाँचे के भीतर कार्यकारी प्राधिकार के प्रयोग को प्रदर्शित करती है। यह नैतिक मानकों को बनाए रखने और सैन्य अखंडता को बनाए रखने की प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है।
-
-
व्यापक निहितार्थ और जारी जाँच:
- सेवा समाप्ति के आदेश सशस्त्र बलों में नैतिक आचरण, अखंडता और राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डालते हैं।
- उल्लेखनीय है कि सेना ने आचार संहिता के महत्त्व को बढ़ाने वाले इस समूह में उनकी सदस्यता से संबंधित सोशल मीडिया नीति के उल्लंघन के लिये एक ब्रिगेडियर और एक लेफ्टिनेंट कर्नल के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की है।
- यह मामला सुरक्षा के संभावित उल्लंघनों और कर्तव्यनिष्ठा की कमी को दूर करने में सेना की सतर्कता एवं सक्रियता पर ज़ोर देता है।
- वर्गीकृत सैन्य जानकारी और खुफिया-विरोधी चिंताओं की सुरक्षा के लिये चल रहे प्रयास सेना के लिये एक महत्त्वपूर्ण फोकस बने हुए हैं, जिनमें से कम से कम उच्च नैतिक मानक स्थापित करना तथा संविधान के अनुसार मौलिक कर्तव्यों का पालन करना शामिल है।
सिविल सेवाओं से संबंधित भारतीय संविधान के अनुच्छेद 309, 310 और 311:
- भारत के संविधान का भाग XIV संघ और राज्य के अधीन सेवाओं से संबंधित है।
- अनुच्छेद 309 संसद और राज्य विधायिका को क्रमशः संघ या किसी राज्य के मामलों के संबंध में सार्वजनिक सेवाओं तथा पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती एवं सेवा की शर्तों को विनियमित करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 310 के अनुसार, संविधान द्वारा प्रदान किये गए प्रावधानों को छोड़कर संघ में एक सिविल सेवक राष्ट्रपति की इच्छा से कार्य करता है और राज्य के अधीन एक सिविल सेवक उस राज्य के राज्यपाल की इच्छा से कार्य करता है।
- लेकिन सरकार की यह शक्ति निरपेक्ष नहीं है।
- लेकिन सरकार की यह शक्ति निरपेक्ष नहीं है।
- अनुच्छेद 311:
- अनुच्छेद 311 (1) कहता है कि अखिल भारतीय सेवा या राज्य सरकार के किसी भी सरकारी कर्मचारी को अपने अधीनस्थ प्राधिकारी द्वारा बर्खास्त किया या हटाया नहीं जाएगा, जिसने उसे नियुक्त किया था।
-
अनुच्छेद 311 (2) के अनुसार, किसी भी सिविल सेवक को ऐसी जाँच के बाद ही पदच्युत किया जाएगा या पद से हटाया जाएगा अथवा रैंक में अवनत किया जाएगा जिसमें अधिकारी को उसके विरुद्ध आरोपों की सूचना दी गई है तथा उन आरोपों के संबंध में सुनवाई का युक्तिसंगत अवसर प्रदान किया गया है।
-
अनुच्छेद 311(2) के अपवाद:
- 2 (a) - इसमें एक व्यक्ति को उसके आचरण के आधार पर बर्खास्त, पद से हटाया अथवा उसकी रैंक में कमी की जाती है जिसके कारण उसे आपराधिक आरोप में दोषी ठहराया गया है; अथवा
- 2 (b) - जब किसी व्यक्ति को बर्खास्त करने अथवा पद से हटाने अथवा उसकी रैंक को कम करने का अधिकार क्षेत्र रखने वाला प्राधिकारी यह निर्धारित करता है कि किसी कारण से जाँच करना उचित रूप से व्यावहारिक नहीं है, जिसे उस प्राधिकारी द्वारा लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिये;अथवा
- 2 (c) - जहाँ राष्ट्रपति या राज्यपाल, जिस स्तर का भी मामला हो, संतुष्ट हो जाता है कि राज्य की सुरक्षा के हित में ऐसी जाँच करना उचित नहीं है।
सेना अधिनियम, 1950 के प्रमुख प्रावधान:
- भर्ती और सेवा की शर्तें:
- यह भर्ती की प्रक्रियाओं और सेना कर्मियों के लिये सेवा की शर्तों को निर्दिष्ट करता है, जिसमें भर्ती, प्रशिक्षण और सेवानिवृत्ति की शर्तें शामिल हैं।
- अनुशासन और आचरण: सेना अधिनियम, सेना के भीतर अनुशासन बनाए रखने के लिये एक विस्तृत रूपरेखा प्रदान करता है। इसमें कदाचार के लिये विभिन्न अपराधों और दंडों की रूपरेखा दी गई है, जिसमें अनधीनता, परित्याग, अवज्ञा तथा एक सैनिक के लिये अशोभनीय आचरण शामिल हैं।
- यह भर्ती की प्रक्रियाओं और सेना कर्मियों के लिये सेवा की शर्तों को निर्दिष्ट करता है, जिसमें भर्ती, प्रशिक्षण और सेवानिवृत्ति की शर्तें शामिल हैं।
- कोर्ट-मार्शल:
- यह अधिनियम अपराधों के अभियुक्त सैन्य कर्मियों पर मुकदमा चलाने के लिये संयोजक कोर्ट-मार्शल के लिये वैधानिक ढाँचा स्थापित करता है। इसमें विभिन्न प्रकार के कोर्ट-मार्शल को शामिल किया जाता है, जैसे जनरल कोर्ट-मार्शल (GCM), डिस्ट्रिक्ट कोर्ट-मार्शल (DCM), और समरी जनरल कोर्ट-मार्शल (SGCM)।
- अभियुक्तों के वैधानिक अधिकार: यह अधिनियम कोर्ट-मार्शल का सामना करने वाले अभियुक्तों के लिये वैधानिक अधिकारों और सुरक्षा उपायों की रूपरेखा तैयार करता है, जिसमें वैधानिक प्रतिनिधित्व का अधिकार, मौन रहने का अधिकार और अपील करने का अधिकार शामिल है।
- यह अधिनियम अपराधों के अभियुक्त सैन्य कर्मियों पर मुकदमा चलाने के लिये संयोजक कोर्ट-मार्शल के लिये वैधानिक ढाँचा स्थापित करता है। इसमें विभिन्न प्रकार के कोर्ट-मार्शल को शामिल किया जाता है, जैसे जनरल कोर्ट-मार्शल (GCM), डिस्ट्रिक्ट कोर्ट-मार्शल (DCM), और समरी जनरल कोर्ट-मार्शल (SGCM)।
- निरोध (Detention):
- यह अधिनियम कुछ परिस्थितियों में सैन्य कर्मियों को सेना की सुरक्षा अथवा अनुशासन के लिये खतरा माने जाने की परिस्थिति में हिरासत में लेने का प्रावधान करता है।
- सेवा अधिकरण: सशस्त्र बल अधिकरण अधिनियम, 2007 द्वारा सशस्त्र बल अधिकरण की स्थापना की गई, जो सैन्य मामलों से संबंधित अपील और याचिकाओं की सुनवाई के लिये एक विशेष न्यायिक निकाय है।
- यह अधिनियम कुछ परिस्थितियों में सैन्य कर्मियों को सेना की सुरक्षा अथवा अनुशासन के लिये खतरा माने जाने की परिस्थिति में हिरासत में लेने का प्रावधान करता है।
- विविध प्रावधान: इस अधिनियम में विभिन्न विविध प्रावधान शामिल हैं, जिनमें किसी साक्षी की सुरक्षा, न्यायाधीश अधिवक्ताओं की नियुक्ति और शपथ दिलाने के नियम शामिल हैं।
सामरिक बल कमान:
- वर्तमान में दो त्रि-सेवा कमांड हैं, स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड (SFC) और अंडमान एवं निकोबार कमांड (ANC), जिसका नेतृत्व 3 सेवाओं के अधिकारियों द्वारा रोटेशन के आधार पर किया जाता है।
- SFC (रणनीतिक बल कमान), देश की परमाणु संपत्तियों की डिलीवरी और परिचालन नियंत्रण की देखभाल करता है। इसे वर्ष 2003 में बनाया गया था, क्योंकि इसकी कोई विशिष्ट भौगोलिक ज़िम्मेदारी और निर्दिष्ट भूमिका नहीं है, इसलिये यह एक एकीकृत थिएटर कमांड के रूप में नहीं बल्कि एक एकीकृत कार्यात्मक कमांड के रूप में कार्य करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. भारत के राष्ट्रपति के चुनाव के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |