प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना | 17 Dec 2021
प्रिलिम्स के लिये:कृषि से संबंधित योजनाएँ, केंद्रीय क्षेत्र की योजना, परिशुद्ध सिंचाई प्रणाली, त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम, हर खेत को पानी, परिशुद्ध सिंचाई प्रणाली मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री किसान सिंचाई योजना, इसके उद्देश्य और महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने 93,068 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ वर्ष 2026 तक प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojna- PMKSY) के विस्तार को मंज़ूरी दी।
सरकार ने त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP), हर खेत को पानी (HKKP) और PMKSY के वाटरशेड विकास घटकों को चार वर्ष (2021-22 से 2025-26) तक के लिये मंज़ूरी दे दी है।
प्रमुख बिंदु
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के बारे में:
- यह वर्ष 2015 में शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना (कोर योजना) है। केंद्र-राज्य की हिस्सेदारी 75:25 प्रतिशत में होगी। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और पहाड़ी राज्यों के मामले में यह अनुपात 90:10 रहेगा।
- इससे ढाई लाख अनुसूचित जाति और दो लाख अनुसूचित जनजाति के किसानों सहित लगभग 22 लाख किसानों को लाभ होगा।
- जल शक्ति मंत्रालय ने वर्ष 2020 में PMKSY के तहत परियोजनाओं के घटकों की जियो-टैगिंग हेतु एक मोबाइल एप्लिकेशन लॉन्च किया।
- इसके तीन मुख्य घटक हैं- त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP), हर खेत को पानी (HKKP) और वाटरशेड डेवलपमेंट।
- वर्ष 1996 में AIBP को राज्यों की संसाधन क्षमताओं से अधिक सिंचाई परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेज़ी लाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- HKKP का उद्देश्य लघु सिंचाई के माध्यम से नए जल स्रोत निर्मित करना है। जल निकायों की मरम्मत, बहाली और नवीनीकरण, पारंपरिक जल स्रोतों की वहन क्षमता को मज़बूत करना, वर्षा जल संचयन संरचनाओं का निर्माण।
- इसके उप घटकों में शामिल हैं: कमान क्षेत्र विकास (CAD), भूतल लघु सिंचाई (SMI), जल निकायों की मरम्मत, नवीनीकरण और बहाली (RRR), भूजल विकास।
- वाटरशेड डेवलपमेंट में अपवाह जल का प्रभावी प्रबंधन और मिट्टी और नमी संरक्षण गतिविधियों में सुधार जैसे कि रिज क्षेत्र उपचार, ड्रेनेज़ लाइन 5 ट्रीटमेंट, वर्षा जल संचयन, इन-सीटू नमी संरक्षण और वाटरशेड के आधार पर अन्य संबद्ध गतिविधियाँ शामिल हैं।
- यह वर्ष 2015 में शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना (कोर योजना) है। केंद्र-राज्य की हिस्सेदारी 75:25 प्रतिशत में होगी। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और पहाड़ी राज्यों के मामले में यह अनुपात 90:10 रहेगा।
- उद्देश्य:
- क्षेत्रीय स्तर पर सिंचाई में निवेश का अभिसरण,
- सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना (हर खेत को पानी),
- पानी की बर्बादी को कम करने के लिये ऑन-फार्म जल उपयोग दक्षता में सुधार,
- ‘जलभृत’ (Aquifers) के पुनर्भरण को बढ़ाने के लिये और पेरी-अर्बन कृषि के लिये उपचारित नगरपालिका आधारित पानी के पुन: उपयोग की व्यवहार्यता की खोज करके स्थायी जल संरक्षण प्रथाओं को शुरू करना और एक परिशुद्ध सिंचाई प्रणाली में अधिक-से-अधिक निजी निवेश को आकर्षित करना।
- ‘जलभृत’ भू-जल से संतृप्त चट्टान या तलछट का एक निकाय है। वर्षा का जल मिट्टी के रिसाव के कारण भूजल एक जलभृत में प्रवेश करता है। यह जलभृत के माध्यम से आगे बढ़ता है और झरनों तथा कुओं के माध्यम से फिर से सतह पर आ जाता है।
- ‘पेरी-अर्बन कृषि’ शहर के नज़दीक कृषि इकाईयों को संदर्भित करती है, जो सब्जियों और अन्य बागवानी को विकसित करने, मुर्गियों तथा अन्य पशुओं को पालने और दूध तथा अंडे का उत्पादन करने के लिये गहन अर्द्ध या पूरी तरह से वाणिज्यिक खेतों का संचालन करती हैं।
- परिशुद्ध सिंचाई एक नवीन तकनीक है, जो जल के बेहतर उपयोग से संबंधित है और किसानों को कम-से-कम पानी में उच्च स्तर की फसल उपज प्राप्त करने में मदद करती है।
- निरूपण: इसे निम्नलिखित योजनाओं को मिलाकर तैयार किया गया था:
- त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP)- जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय (अब जल शक्ति मंत्रालय)।
- एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (IWMP)- भूमि संसाधन विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय।
- ऑन-फार्म जल प्रबंधन (OFWM)- कृषि और सहकारिता विभाग (DAC)।
- कार्यान्वयन: राज्य सिंचाई योजना और ज़िला सिंचाई योजना के माध्यम से विकेंद्रीकृत कार्यान्वयन।