ट्यूनीशिया में पावर ग्रैब | 06 Aug 2022
प्रिलिम्स के लिये:ट्यूनीशिया का भूगोल, इसके पड़ोसी देश और जलमार्ग मेन्स के लिये:संविधान में परिवर्तन का देश पर प्रभाव, सरकारी प्रणाली के प्रकार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ट्यूनीशिया में एक नए संविधान को मंज़ूरी देने के लिये जनमत संग्रह किये जाने के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जिससे देश में फिर से राष्ट्रपति शासन लागू हो जाएगा।
विरोध प्रदर्शन:
- ट्यूनीशियाई मतदाताओं ने एक नए संविधान को मंज़ूरी दी है जो देश को एक राष्ट्रपति शासन में बदल देगा, राष्ट्रपति कैस सैयद के एक-व्यक्ति शासन (जिन्होंने निर्वाचित संसद को निलंबित कर दिया और वर्ष 2021 में खुद को और अधिक शक्तियाँ प्रदान कीं) को यह संस्थागत रूप देगा, जिन्होंने निर्वाचित संसद को निलंबित कर दिया तथा पिछले साल खुद को और अधिक शक्तियाँ प्रदान कीं।
- प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि नया संविधान ट्यूनीशिया में स्थापित उस लोकतंत्र को समाप्त कर देगा जिसकी प्राप्ति वर्ष 2011 की अरब स्प्रिंग (जैस्मीन) क्रांति के बाद हुई थी और देश को वापस एक सत्तावादी स्थिति में पहुँचा देगा।
अरब स्प्रिंग:
- परिचय:
- अरब स्प्रिंग, लोकतंत्र समर्थक विरोध और विद्रोह की लहर जो वर्ष 2010 और 2011 में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में शुरू हुई ने इस क्षेत्र के कुछ सत्तावादी शासनों को चुनौती दी।
- यह लहर तब शुरू हुई जब ट्यूनीशिया और मिस्र में विरोध प्रदर्शनों ने अन्य अरब देशों को इसी तरह के प्रयासों के लिये प्रेरित करते हुए त्वरित शासन को उखाड़ फेंका।
- विरोध आंदोलन हर देश में सफल नहीं रहे हैं, हालाँकि अपनी राजनीतिक और आर्थिक मांगों के लिये आंदोलन करने वाले प्रदर्शनकारियों को अक्सर उनके देशों के सुरक्षा बलों की हिंसक कार्रवाई का सामना करना पड़ा है।
- ट्यूनीशिया:
- वर्ष 2011 में तानाशाही को लेकर हुए लोकप्रिय जन विरोध की घटना वाले देशों में ट्यूनीशिया एकमात्र ऐसा देश था जहाँ लोकतंत्र को एक सफल परिवर्तन के रूप में देखा गया।
- दिसंबर 2010 में ट्यूनीशिया में अरब स्प्रिंग का विरोध शुरू हुआ, जिससे ज़ीन एल अबिदीन बेन अली (वर्ष 1987 से सत्तारूढ़) के शासन का पतन हो गया।
- इसे ट्यूनीशिया में जैस्मीन क्रांति के रूप में भी जाना जाता था।
- जन विद्रोह के कारण बेन अली को देश छोड़कर भागना पड़ा।
- शीघ्र ही विरोध अन्य अरब देशों जैसे- मिस्र, लीबिया, बहरीन, यमन और सीरिया में फैल गया।
- मिस्र:
- जबकि प्रदर्शनकारियों ने मिस्र में होस्नी मुबारक की 30 साल की तानाशाही को समाप्त कर दिया जिससे उस देश में क्रांति लंबे समय तक नहीं चली।
- वर्ष 2013 में सेना ने मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी की निर्वाचित सरकार को गिराने के लिये सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया।
- लीबिया:
- लीबिया में मोहम्मद गद्दाफी के खिलाफ विरोध गृहयुद्ध में बदल गया, जिसमें उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) द्वारा सैन्य हस्तक्षेप देखा गया।
- नाटो के हस्तक्षेप ने गद्दाफी शासन को गिरा दिया (लीबिया के नेता की बाद में हत्या कर दी गई), लेकिन देश अराजकता और तानाशाही में बदल गया, जो आज भी इस समस्या से परेशान है।
- लीबिया में मोहम्मद गद्दाफी के खिलाफ विरोध गृहयुद्ध में बदल गया, जिसमें उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) द्वारा सैन्य हस्तक्षेप देखा गया।
- अन्य देश:
- सुन्नी राजशाही द्वारा शासित शिया बहुल देश बहरीन में पड़ोसी सऊदी अरब ने मनामा के पर्ल स्क्वायर में विरोध प्रदर्शनों को कुचलने के लिये सेना भेजी।
- यमन में राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह को सत्ता छोड़नी पड़ी, लेकिन देश गृहयुद्ध में बदल गया, जिससे शिया हौथी विद्रोहियों का उदय हुआ और राजधानी सना पर अब उसका नियंत्रण है।
- सीरिया में विरोध छद्म गृहयुद्ध में बदल गया, जिसमें राष्ट्रपति बशर अल-असद के प्रतिद्वंद्वियों ने अपने दुश्मनों का समर्थन किया और हिज़्बुल्लाह, ईरान एवं रूस के सहयोगियों ने शासन का समर्थन किया।
ट्यूनीशिया में राजनीतिक संकट का कारण:
- मौजूदा तंत्र:
- वर्ष 2014 के संविधान ने मिश्रित संसदीय और राष्ट्रपति प्रणाली की स्थापना की।
- राष्ट्रपति और संसद दोनों का चुनाव सीधे मतदाताओं द्वारा किया जाता था।
- राष्ट्रपति को सैन्य और विदेशी मामलों की देख-रेख करनी थी, जबकि अधिकांश सांसदों के समर्थन से चुने गए प्रधानमंत्री को शासन के दिन-प्रतिदिन के मामलों का प्रभार सौंपा गया था।
- वर्ष 2014 के संविधान ने मिश्रित संसदीय और राष्ट्रपति प्रणाली की स्थापना की।
- ट्यूनीशिया में समस्याएँ:
- वर्ष 2011 से वर्ष 2021 के बीच देश में नौ सरकारें बनीं।
- लोकतांत्रिक चुनावों में इस्लामवादी एन्नाहदा पार्टी, जिसका अखिल-इस्लामी मुस्लिम ब्रदरहुड आंदोलन से वैचारिक संबंध है, देश में एक मुख्य राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी, इसने धर्मनिरपेक्ष वर्गों को परेशान किया जिस कारण राजनीति अस्थिरता की स्थिति देखी गई।
- इसकी अर्थव्यवस्था पहले से ही खराब स्थिति में थी और COVID-19 संकट ने इसे और खराब कर दिया।
- ट्यूनीशिया में COVID मृत्यु दर दुनिया में सबसे अधिक है।
- बढ़ते आर्थिक और स्वास्थ्य संकट के बीच पिछले वर्ष जुलाई में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे।
- प्रदर्शनकारियों ने सत्ताधारी दल एन्नाहदा के कार्यालयों पर धावा बोल दिया।
- वर्ष 2011 से वर्ष 2021 के बीच देश में नौ सरकारें बनीं।
- संविधान में बदलाव:
- अशांति को रोकने के लिये सईद ने एन्नाहदा समर्थित प्रधानमंत्री हिकेम मेचिच को बर्खास्त कर दिया और संसद को निलंबित कर दिया जिससे देश में एक संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई।
- वर्ष 2014 के संविधान के तहत ऐसे संकटों का निपटारा एक संवैधानिक न्यायालय द्वारा किया जाना चाहिये, लेकिन अभी तक न्यायालय का गठन नहीं हुआ।
- इसने राष्ट्रपति को फरमानों द्वारा देश पर शासन करने की खुली छूट दी।
- उन्होंने आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी।
- सरकार चलाने के लिये एक प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
- इस वर्ष की शुरुआत में संसद को भंग कर दिया और साथ ही खुद को और अधिक शक्तियाँ प्रदान करते हुए संविधान को नया रूप दिया।
- इसने राष्ट्रपति को फरमानों द्वारा देश पर शासन करने की खुली छूट दी।
संविधान में नए बदलाव:
- हालाँकि इसने वर्ष 2014 के संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकांश व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बरकरार रखा है, नया चार्टर संसद की शक्तियों को कम करते हुए देश को राष्ट्रपति प्रणाली में वापस ले जाने का प्रयास है।
- राष्ट्रपति के पास अंतिम अधिकार होगा:
- सरकार बनाने का
- मंत्रियों को नामित करने का (संसद की मंज़ूरी के बिना)
- न्यायाधीशों की नियुक्ति करने
- विधानसभा को सीधे विधायिका के रूप में प्रस्तुत करने का
- राष्ट्रपति के पास अंतिम अधिकार होगा:
- उपर्युक्त सभी परिवर्तन सांसदों के लिये राष्ट्रपति को पद से हटाना व्यावहारिक रूप से असंभव बना देंगे।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. हाल ही में, लोगों के विद्रोह की एक शृंखला जिसे 'अरब स्प्रिंग' कहा जाता है, मूल रूप में इसकी शुरुआत कहाँ से हुई? (2014) (a) मिस्र उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। |