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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

परमाणु प्रसार रोकने का संकल्प: UNSC के पाँच स्थायी सदस्य

  • 04 Jan 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अप्रसार संधि, शीत युद्ध, IAEA, JCPOA, न्यू स्टार्ट, परमाणु हथियार।

मेन्स के लिये:

अप्रसार संधि इसका महत्त्व और इसे बेहतर बनाने के लिये किन परिवर्तनों की आवश्यकता है, एनपीटी पर भारत का स्टैंड, शीत युद्ध, आईएईए, जेसीपीओए, न्यू स्टार्ट 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों (चीन, फ्राँस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका) ने परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने एवं परमाणु संघर्ष से बचने का संकल्प लिया है।

  • यह बयान ऐसे समय में आया है जब रूस और अमेरिका के बीच तनाव उस ऊँचाई पर पहुँच गया है जो शीत युद्ध के बाद से शायद ही कभी देखा गया हो।
  • यह बयान तब आया है जब विश्व शक्तियाँ ईरान के साथ अपने विवादास्पद परमाणु अभियान पर संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) 2015 को पुनर्जीवित करने के लिये समझौते पर पहुँचने की कोशिश कर रही हैं, जिसे अमेरिका द्वारा वर्ष 2018 में समझौते से बाहर होने के कारण समाप्त कर दिया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • संकल्प:
    • ऐसे हथियारों के प्रसार को रोका जाना चाहिये, परमाणु युद्ध कभी जीता नहीं जा सकता है और ऐसा युद्ध कभी लड़ा भी नहीं जाना चाहिये।
    • रमाणु हथियार संपन्न देशों के बीच युद्ध को टालना और सामरिक ज़ोखिमों को कम करना हमारी प्रमुख ज़िम्मेदारियों के रूप में है।
    • जब तक परमाणु हथियार मौजूद हैं, इनसे रक्षात्मक उद्देश्यों की पूर्ति करनी चाहिये, आक्रमण रोकना तथा युद्ध को रोकना चाहिये।
    • ये परमाणु हथियारों के अनधिकृत या अनपेक्षित उपयोग को रोकने के लिये अपने राष्ट्रीय उपायों को बनाए रखने तथा मज़बूत करने का इरादा रखते हैं।
  • चीन का स्टैंड:
    • इसने चिंता जताई कि अमेरिका के साथ तनाव से ताइवान द्वीप पर संघर्ष हो सकता है।
      • चीन ताइवान को अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है और इस पर बलपूर्वक कब्ज़ा कर सकता है।
  • रूस का स्टैंड:
    • रूस ने परमाणु शक्तियों की घोषणा का स्वागत किया और उम्मीद जताई कि इससे वैश्विक तनाव कम होगा।

अप्रसार संधि:

  • परिचय:
    • NPT एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य परमाणु हथियारों और हथियार प्रौद्योगिकी के प्रसार को रोकना, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना तथा निरस्त्रीकरण के लक्ष्य को आगे बढ़ाना है।
    • इस संधि पर वर्ष 1968 में हस्ताक्षर किये गए और यह 1970 में लागू हुई। वर्तमान में इसके 190 सदस्य देशों में लागू है।
      • भारत इसका सदस्य नहीं है।
    • इसके लिये देशों को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग तक पहुँच के बदले में परमाणु हथियार बनाने की किसी भी वर्तमान या भविष्य की योजना को त्यागने की आवश्यकता होती है।
    • यह परमाणु-हथियार वाले राज्यों द्वारा निरस्त्रीकरण के लक्ष्य हेतु एक बहुपक्षीय संधि में एकमात्र बाध्यकारी प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करती है।
    • NPT के तहत ‘परमाणु-हथियार वाले पक्षों’ को 01 जनवरी, 1967 से पहले परमाणु हथियार या अन्य परमाणु विस्फोटक उपकरणों का निर्माण एवं विस्फोट करने वाले देशों के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • भारत का पक्ष
    • भारत उन पाँच देशों में से एक है जिन्होंने या तो एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किये या हस्ताक्षर किये किंतु बाद में अपनी सहमति वापस ले ली, इस सूची में पाकिस्तान, इज़रायल, उत्तर कोरिया और दक्षिण सूडान शामिल हैं।
    • भारत ने हमेशा NPT को भेदभावपूर्ण माना और इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था।
    • भारत ने अप्रसार के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय संधियों का विरोध किया है, क्योंकि वे चुनिंदा रूप से गैर-परमाणु शक्तियों पर लागू होती हैं और पाँच परमाणु हथियार सम्पन्न शक्तियों के एकाधिकार को वैध बनाती हैं।
  • NPT से संबंधित मुद्दे:
    • निरस्त्रीकरण प्रक्रिया की विफलता:
      • NPT को मोटे तौर पर शीत युद्ध के दौर के एक उपकरण के रूप में देखा जाता है, जो एक विश्वसनीय निरस्त्रीकरण प्रक्रिया की दिशा में मार्ग बनाने के उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहा है।
      • संधि में कोई ठोस निरस्त्रीकरण रोडमैप का प्रस्ताव नहीं दिया गया है, परीक्षण प्रतिबंध या विखंडनीय सामग्री या परमाणु हथियारों के उत्पादन को रोकने हेतु कोई संदर्भ नहीं है, और कटौती एवं उन्मूलन के प्रावधान भी मौजूद नहीं हैं।
      • इसके बजाय इसने NWS को निर्धारित करने हेतु जनवरी 1967 को कट-ऑफ तिथि के रूप में निर्धारित करके शस्त्रागार के निर्वाह और विस्तार की अनुमति दी।
    • परमाणु 'हैव्स' और 'हैव-नॉट्स':
      • गैर-परमाणु हथियार राज्य (NNWS) इस संधि की भेदभावपूर्ण होने की आलोचना करते हैं, क्योंकि यह केवल क्षैतिज प्रसार को रोकने पर केंद्रित है जबकि इसमें ऊर्ध्वाधर प्रसार की कोई सीमा नहीं है।
        • ऊर्ध्वाधर प्रसार को एक राष्ट्र के परमाणु शस्त्रागार की उन्नति या आधुनिकीकरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जबकि क्षैतिज प्रसार एक राष्ट्र से दूसरे में प्रौद्योगिकियों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तांतरण है, जो अंततः परमाणु हथियारों के अधिक उन्नत विकास और प्रसार को बढ़ावा देता है। .
        • चूँकि अपने शस्त्रागार को कम करने हेतु NWS पर कोई स्पष्ट दायित्व नहीं है, NWS ने बिना किसी बाधा के अपने संबंधित शस्त्रागार का विस्तार करना जारी रखा है।
      • इस संदर्भ में NNWS समूह मांग करते हैं कि परमाणु-हथियार राज्यों (NWS) को NNWS की प्रतिबद्धता के बदले में अपने शस्त्रागार और अतिरिक्त उत्पादन को त्याग देना चाहिये।
      • इस संघर्ष के कारण अधिकांश चतुष्कोणीय समीक्षा सम्मेलन (रेवकॉन), जो मंच इस संधि के कामकाज की समीक्षा करता है, वर्ष 1995 के बाद से काफी हद तक अनिर्णायक रहा है।
    • शीत युद्ध के बाद की चुनौतियाँ:
      • शीत युद्ध के बाद की व्यवस्था में संधि के अस्तित्व से संबंधित चुनौतियाँ तब शुरू हुईं, जब कुछ देशों द्वारा परमाणु विलंबता को तोड़ने या हासिल करने के प्रयासों के कारण गैर-अनुपालन, उल्लंघन और अवज्ञा के कई उदाहरण सामने आए।
        • उदाहरण के लिये अमेरिका, ईरान पर सामूहिक विनाश के परमाणु हथियार बनाने का आरोप लगाता है।
      • वर्ष 1995 में एनपीटी के अनिश्चितकालीन विस्तार ने इसकी अपरिवर्तनीयता का आह्वान करते हुए, निरस्त्रीकरण के उद्देश्य के लिये राज्यों की अक्षमता को भी रेखांकित किया, जैसा कि एनपीटी में निहित है।
      • सामूहिक विनाश के हथियारों तक पहुँचने और एक वैश्विक परमाणु काला बाज़ार का पता लगाने के घोषित इरादे के साथ गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं के उद्भव ने नए रणनीतिक वातावरण द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिये संधि की सीमाओं को लेकर चिंता जताई है।

आगे की राह

  • बढ़ती ऊर्जा मांगों ने परमाणु ऊर्जा का अनुसरण करने वाले देशों की संख्या में वृद्धि की है, और कई देश एक स्थायी और भरोसेमंद घरेलू ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये ऊर्जा-स्वतंत्र होना चाहते हैं। स्वच्छ ऊर्जा, विकास और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व हर देश के लिये आवश्यक है।
  • इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये चुनौती यह होगी कि वे अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के सुरक्षा उपायों की घुसपैठ को कम करने और प्रसार की संभावना को कम करने के साथ राज्यों की ऊर्जा स्वतंत्रता की इच्छा को कम करें।
  • साथ ही NNWS, ‘NEW START’ और अन्य पहलों का स्वागत करते हैं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांतों में परमाणु हथियारों की भूमिका को कम करने, अलर्ट के स्तर को कम करने, पारदर्शिता बढ़ाने तथा और अधिक ठोस कार्रवाइयों को देखने के लिये उत्सुक हैं।
  • विश्व में अधिक क्षेत्रों (अधिमानतः एनडब्ल्यूएस शामिल) को परमाणु-हथियार मुक्त क्षेत्र स्थापित करने पर बल देना चाहिये।
  • इसके अलावा परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि परमाणु निरस्त्रीकरण के लिये सही दिशा में एक कदम है।

स्रोत-द हिंदू

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