शासन व्यवस्था
भारत में सूचना आयुक्तों का प्रदर्शन 2022-23
- 13 Feb 2024
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005, केंद्रीय सूचना आयोग (CIC), राज्य सूचना आयोग (SIC), सतर्क नागरिक संगठन, मुख्य चुनाव आयुक्त मेन्स के लिये:पारदर्शिता और जवाबदेही, सूचना का अधिकार, कार्यबल में महिलाओं से संबंधित मुद्दे |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सतर्क नागरिक संगठन (SNS) द्वारा "भारत में सूचना आयोगों (IC) के प्रदर्शन पर रिपोर्ट कार्ड, 2022-23" शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में विश्लेषण के आधार पर भारत भर के 29 सूचना आयोगों से सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के तहत प्राप्त जानकारी के विश्लेषण के आधार पर इन आयोगों के लिंग प्रतिनिधित्व और अन्य परिचालन पहलुओं के बारे में चौंकाने वाले आँकड़े उजागर किये हैं।
- SNS भारत में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिये समर्पित एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) है जो नागरिकों को लोकतंत्र में सक्रिय और सूचित भागीदार बनने के लिये सशक्त बनाने का कार्य करता है।
रिपोर्ट की प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- सूचना आयोगों में लैंगिक असमानता:
- महिलाओं का प्रतिनिधित्व:
- देश भर के सभी सूचना आयुक्तों में से केवल 9% महिलाएँ हैं, जो एक महत्त्वपूर्ण लैंगिक असमानता को उजागर करता है।
- नेतृत्व भूमिकाएँ:
- केवल 5% IC का नेतृत्व महिलाओं द्वारा किया गया है और वर्तमान में उनमें से किसी का भी नेतृत्व महिला आयुक्त द्वारा नहीं किया गया है।
- महिला आयुक्तों के बिना राज्य:
- 12 IC, जो लगभग 41% हैं, की स्थापना के बाद से कभी भी महिला आयुक्त नहीं रही हैं।
- इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, सिक्किम, तेलंगाना, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल शामिल हैं।
- महिलाओं का प्रतिनिधित्व:
- सूचना आयुक्तों की पृष्ठभूमि:
- सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी:
- सर्वेक्षण में शामिल लगभग 58% आईसी की पृष्ठभूमि सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारियों के रूप में है।
- कानूनी पेशेवर:
- लगभग 14% आयुक्त वकील या पूर्व न्यायाधीश हैं, जो सूचना आयोगों की विविध पृष्ठभूमि में योगदान करते हैं।
- सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी:
- सूचना आयोगों का कामकाज:
- मामलों की निपटान दरें:
- कई IC बिना कोई आदेश पारित किये बड़ी संख्या में मामले वापस कर देते हैं, केंद्रीय सूचना आयोग और कुछ राज्य सूचना आयोग प्राप्त अपीलों या शिकायतों में से 41% वापस कर दिये हैं।
- कम निस्तांतरण दर (Low Disposal Rates):
- बड़ी संख्या में लंबित मामलों के बावजूद, कुछ आयोगों में प्रति आयुक्त निस्तांतरण दर कम है, जो मामले के प्रबंधन में संभावित अक्षमताओं का संकेत देता है।
- रिक्तियाँ एवं नियुक्तियाँ:
- एक बड़ी समस्या पारदर्शी और समय पर नियुक्तियों का अभाव है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ आयोग कम क्षमता पर या बिना प्रमुख के काम कर रहे हैं।
- निष्क्रिय आयोग (Defunct Commissions):
- नई नियुक्तियों के अभाव के कारण झारखंड, तेलंगाना और त्रिपुरा के राज्य सूचना आयोग निष्क्रिय हैं, जिससे उनकी प्रभावी ढंग से कार्य करने की क्षमता प्रभावित हो रही है।
- पारदर्शिता संबंधी मुद्दे:
- सूचना आयोगों का कामकाज काफी हद तक अपारदर्शी पाया गया, 29 सूचना आयोगों में से केवल 8 ने कहा कि उनकी सुनवाई सार्वजनिक उपस्थिति के लिये खुली है, जो पारदर्शिता संबंधी चिंताओं को उजागर करती है।
- मामलों की निपटान दरें:
केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोग क्या है?
- केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोग की स्थापना सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के तहत वर्ष 2005 में केंद्र सरकार द्वारा की गई थी। यह कोई संवैधानिक निकाय नहीं है।
- केंद्रीय सूचना आयोग:
- संविधानिक स्थिति:
- राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा गठित।
- इसमें 1 मुख्य सूचना आयुक्त (Chief Information Commissioner - CIC) और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त 10 सूचना आयुक्त (Information Commissioners- IC) शामिल हैं।
- प्रथम अनुसूची के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा शपथ दिलाई जाती है।
- CIC/IC के लिये पात्रता एवं नियुक्ति प्रक्रिया:
- इनके सदस्यों को नियुक्त होने के विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता के साथ सार्वजनिक जीवन में प्रतिष्ठित होना चाहिये।
- वे राजनीतिक पद या किसी अन्य लाभ के पद पर नहीं रह सकते।
- इनकी नियुक्ति समिति में प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
- CIC और IC की कार्यकाल तथा सेवा शर्तें:
- CIC और IC 5 साल के कार्यकाल के लिये या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहते हैं (पुनर्नियुक्ति के लिये पात्र नहीं)।
- CIC का वेतन मुख्य चुनाव आयुक्त के बराबर।
- IC का वेतन चुनाव आयुक्त के समान।
- IC CIC के रूप में नियुक्ति के लिये पात्र है, लेकिन IC के रूप में कार्यकाल सहित कुल पाँच वर्षों तक सीमित है।
- संविधानिक स्थिति:
- राज्य सूचना आयोग:
- गठन:
- राज्य सरकार द्वारा राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से गठित।
- इसमें 1 राज्य मुख्य सूचना आयुक्त (State Chief Information Commissioner (SCIC) और राज्यपाल द्वारा नियुक्त 10 राज्य सूचना आयुक्त (State Information Commissioners -SIC) शामिल हैं।
- SCIC/SIC की पात्रता और नियुक्ति प्रक्रिया:
- SCIC/SIC के नियुक्ति के लिये अर्हताएँ केंद्रीय आयुक्तों के समान ही होंगी।
- नियुक्ति समिति की अध्यक्षता मुख्यमंत्री द्वारा की जाती है। समिति के अन्य सदस्यों में विधानसभा में विपक्ष के नेता तथा मुख्यमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
- SCIC का वेतन चुनाव आयुक्त के समान होता है। SIC का वेतन राज्य सरकार के मुख्य सचिव के समान होता है।
- गठन:
- सूचना आयोग की शक्तियाँ और कार्य:
- सूचना अनुरोधों और अननुपालन (अनुपालन न करना) के संबंध में शिकायतें प्राप्त करने का कर्त्तव्य।
- उचित आधार पर जाँच का आदेश देने की शक्ति।
- संबद्ध व्यक्तियों को बुलाने, साक्ष्य की आवश्यकता आदि के संबंध में सिविल न्यायालय के समान शक्तियाँ।
- अननुपालन की स्थिति में दंड के साथ-साथ किये गए निर्णयों का अनुपालन सुनिश्चित करना।
- केंद्रीय सूचना आयोग किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा दिये गए निर्देशों की स्वतंत्रता के साथ स्वायत्त रूप से शक्तियों का प्रयोग और संचालन कर सकता है।
- मुख्यालय:
- केंद्रीय सूचना आयोग का मुख्यालय दिल्ली में स्थित है तथा इसे केंद्र सरकार की पूर्वानुमति से भारत में अन्य स्थानों पर कार्यालय स्थापित करने का अधिकार है।
आगे की राह
- आयुक्तों के लिये निष्पक्ष, पारदर्शी और समावेशी चयन प्रक्रिया सुनिश्चित करना जिसमें महिलाओं तथा हाशिए पर जीवन यापन करने वाले समूहों को उचित प्रतिनिधित्व शामिल हो।
- RTI अधिनियम और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित मानदंडों का अनुपालन करते हुए मामले के निपटान दरों तथा दक्षता में सुधार के लिये पर्याप्त संसाधन एवं बुनियादी ढाँचा प्रदान करना।
- समय पर और पारदर्शी नियुक्तियाँ, व्यापक रूप से विज्ञापित रिक्तियाँ तथा रिक्तियों की पूर्ति में तीव्रता लाने के लिये निष्क्रिय आयोगों का पुनरुद्धार करना एवं साथ ही यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक IC का नेतृत्व एक मुख्य आयुक्त द्वारा किया जाए।
- वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशन, बजट और व्यय प्रकटीकरण तथा सुनवाई में सार्वजनिक उपस्थिति को सुगम बनाकर पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व बढ़ाना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. “सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में ही नहीं है, अपितु यह आवश्यक रूप से जवाबदेही की संकल्पना को पुनः परिभाषित करता है।” विवेचना कीजिये। (2018) |