प्रशामक देखभाल | 19 Oct 2023
प्रिलिम्स के लिये:प्रशामक देखभाल, विश्व स्वास्थ्य संगठन, गैर-संचारी रोग, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, टेलीमेडिसिन मेन्स के लिये:भारत में स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित मुद्दे, प्रशामक देखभाल का महत्त्व |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल के एक अध्ययन में गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीज़ों पर पड़ने वाले भारी वित्तीय बोझ पर प्रकाश डाला गया है।
- चूँकि जानलेवा बीमारियों के इलाज की लागत व्यक्तियों को गरीबी में धकेल देती है, इस गंभीर मुद्दे को नियंत्रित करने और समग्र रोगी-केंद्रित देखभाल की वकालत करने के लिये प्रशामक देखभाल आवश्यक हो जाती है।
प्रशामक देखभाल:
- परिचय:
- प्रशामक देखभाल स्वास्थ्य देखभाल के लिये एक विशेष दृष्टिकोण है जो जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने और गंभीर बीमारियों या जानलेवा स्थितियों का सामना करने वाले व्यक्तियों को व्यापक सहायता प्रदान करने पर केंद्रित है।
- यह बीमारी को ठीक करने के बारे में नहीं है, बल्कि रोगी की शारीरिक, भावनात्मक, सामाजिक ज़रूरतों को पूरा करती है।
- यह अन्य चिकित्सा विशिष्टताओं से भिन्न है क्योंकि यह न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि सामाजिक और आर्थिक वास्तविकताओं को भी संबोधित करती है।
- प्रशामक देखभाल स्वास्थ्य देखभाल के लिये एक विशेष दृष्टिकोण है जो जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने और गंभीर बीमारियों या जानलेवा स्थितियों का सामना करने वाले व्यक्तियों को व्यापक सहायता प्रदान करने पर केंद्रित है।
- महत्त्व:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मानव के स्वास्थ्य अधिकार के तहत प्रशामक देखभाल को स्पष्ट रूप से मान्यता दी गई है।
- इसने स्वीकार किया है कि प्रशामक देखभाल NCD की रोकथाम और नियंत्रण हेतु वैश्विक कार्य योजना 2013-2020 के माध्यम से गैर-संचारी रोगों (NCD) के लिये आवश्यक व्यापक सेवाओं का हिस्सा है।
- रोग के उन्नत चरणों में प्रशामक देखभाल की शीघ्र शुरुआत से स्वास्थ्य देखभाल व्यय को 25% तक कम किया जा सकता है
- इसके अलावा प्रशामक देखभाल व्यावसायिक पुनर्वास और सामाजिक पुनःएकीकरण पर ज़ोर देती है, जिससे रोगियों एवं परिवारों को जीविकोपार्जन करने व अपनी गरिमा बनाए रखने में सक्षम बनाया जाता है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मानव के स्वास्थ्य अधिकार के तहत प्रशामक देखभाल को स्पष्ट रूप से मान्यता दी गई है।
नोट:
WHO का अनुमान है कि प्रत्येक वर्ष 56.8 मिलियन लोगों को प्रशामक देखभाल की आवश्यकता होती है, जिसमें जीवन के अंतिम वर्ष वाले 25.7 मिलियन लोग भी शामिल हैं। अनुमान है कि भारत में प्रत्येक वर्ष 5.4 मिलियन लोगों को प्रशामक देखभाल की आवश्यकता होती है।
- प्रशामक देखभाल की आवश्यकता वाले लगभग 14 प्रतिशत लोगों को ही यह सुविधा प्राप्त होती है।
- भारत में संबंधित मुद्दे:
- स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में अपर्याप्त निवेश: भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में अपर्याप्त निवेश के परिणामस्वरूप प्रशामक देखभाल सेवाओं का एक बैकलॉग विकसित हुआ है, जिसमें अवसंरचना आवश्यकताओं की अपर्याप्त पूर्ति भी शामिल है, जिससे जानलेवा बीमारियों वाले रोगियों के लिये उनकी उपलब्धता और पहुँच सीमित हो गई है।
- इसके अलावा सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं (2019-20) के लिये सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.35 प्रतिशत आवंटित होने के कारण अधिकांश मरीज़ों को स्वास्थ्य देखभाल लागत वहन करनी पड़ती है, जिससे उनके दिवालिया होने, उपचार से असंतुष्टि, चिकित्सा देखभाल में देरी, जीवन की खराब गुणवत्ता और जीवित रहने की दर के कम होने का खतरा उत्पन्न होता है।
- जागरूकता और समझ की कमी:
- मरीज़ों और परिवारों के बीच: कई व्यक्ति एवं उनके परिवार प्रशामक देखभाल के संबंध में अनभिज्ञ होते हैं और वे इसे केवल जीवन के अंतिम समय की देखभाल से जोड़ते हैं, जिससे देरी या अपर्याप्त उपयोग हो सकता है।
- इसके अलावा भारत में अधिकांश बीमा योजनाएँ प्रशामक देखभाल को कवर नहीं करती हैं, जिससे इसकी पहुँच और भी सीमित हो जाती है।
- स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच: यहाँ तक कि कई स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों में प्रशामक देखभाल की स्पष्ट समझ का अभाव है, जिसके परिणामस्वरूप उपचार योजनाओं में अपर्याप्त रेफरल या एकीकरण देखा जाता है।
- मरीज़ों और परिवारों के बीच: कई व्यक्ति एवं उनके परिवार प्रशामक देखभाल के संबंध में अनभिज्ञ होते हैं और वे इसे केवल जीवन के अंतिम समय की देखभाल से जोड़ते हैं, जिससे देरी या अपर्याप्त उपयोग हो सकता है।
- विषम स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना: भारत में स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना व्यापक रूप से भिन्न है, उन्नत स्वास्थ्य सुविधाएँ शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं और ग्रामीण तथा दूरदराज़ के क्षेत्रों में प्रशामक देखभाल सेवाओं तक सीमित पहुँच है।
- हालाँकि शहरी क्षेत्रों में भी चूँकि प्रशामक देखभाल राजस्व उत्पन्न नहीं करती है, लेकिन लागत बचाती है, तेज़ी से निजीकरण हो रही भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में इसकी प्रायः उपेक्षा की जाती है।
- स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में अपर्याप्त निवेश: भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में अपर्याप्त निवेश के परिणामस्वरूप प्रशामक देखभाल सेवाओं का एक बैकलॉग विकसित हुआ है, जिसमें अवसंरचना आवश्यकताओं की अपर्याप्त पूर्ति भी शामिल है, जिससे जानलेवा बीमारियों वाले रोगियों के लिये उनकी उपलब्धता और पहुँच सीमित हो गई है।
- भारत में प्रशामक देखभाल कार्यक्रम:
- भारत में राष्ट्रीय प्रशामक देखभाल कार्यक्रम के लिये कोई समर्पित बजट नहीं है, इसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत 'मिशन फ्लेक्सीपूल' में शामिल किया गया है।
- इसके अतिरिक्त वर्ष 2010 में शुरू किया गया गैर-संचरणीय रोगों की रोकथाम और नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम (NP-NCD) स्वास्थ्य देखभाल के सभी स्तरों पर प्रोत्साहन, निवारक और उपचारात्मक देखभाल प्रदान करने वाली व्यापक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान कर गैर-संचारी रोगों के बढ़ते बोझ को संबोधित करने पर केंद्रित है।
आगे की राह
- नीति और विनियामक ढाँचा: स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में प्रशामक देखभाल सेवाओं के एकीकरण का मार्गदर्शन करने के लिये राष्ट्रीय एवं राज्य दोनों स्तरों पर स्पष्ट, समान प्रशामक देखभाल नीतियों एवं विनियमों को विकसित करने तथा इन्हें लागू करने की आवश्यकता है।
- सार्वजनिक जागरूकता: रोगियों व स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं दोनों को प्रशामक देखभाल के लाभों और दायरे के बारे में शिक्षित करने, इससे जुड़े मिथकों एवं इन पर लगे प्रश्नचिह्न को दूर करने के लिये व्यापक जन जागरूकता अभियान शुरू करना चाहिये।
- इसके अलावा स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के पाठ्यक्रम में प्रशामक देखभाल प्रशिक्षण को एकीकृत कर यह सुनिश्चित करना चाहिये कि मेडिकल स्कूल, नर्सिंग कार्यक्रम और अन्य प्रशिक्षण संस्थान प्रशामक देखभाल में पाठ्यक्रम एवं व्यावहारिक अनुभव प्रदान करते हैं।
- निधीयन और संसाधन आवंटन: प्रशामक देखभाल हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम के लिये विशिष्ट एवं पर्याप्त संसाधन आवंटित करना, साथ ही यह सुनिश्चित करना कि बीमा योजनाएँ प्रशामक देखभाल सेवाओं को कवर करें।
- प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: दूरस्थ प्रशामक देखभाल परामर्श प्रदान करने और निगरानी के लिये टेलीमेडिसिन, मोबाइल स्वास्थ्य एप एवं वियरेबल डिवाइसेज़ (पहनने योग्य उपकरणों) जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना।