सामाजिक न्याय
ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम: टीम क्लॉ
- 31 Jul 2021
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम, सियाचिन ग्लेशियर, टीम क्लॉ, ऑपरेशन मेघदूत मेन्स के लियेटीम क्लॉ और ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम का महत्त्व, दिव्यांगों संबंधी समस्याएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने सियाचिन ग्लेशियर की चढ़ाई के लिये दिव्यांग लोगों की एक टीम का नेतृत्त्व करने और दिव्यांगों की सबसे बड़ी टीम के लिये एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाने हेतु टीम ‘क्लॉ’ (CLAW) को मंज़ूरी दी है।
- यह 'ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम ट्रिपल वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' अभियान का हिस्सा है।
- ट्रिपल एलीमेंटल वर्ल्ड रिकॉर्ड्स, वर्ष 2021 में दिव्यांग लोगों के समूहों द्वारा भूमि, हवा और जल के भीतर सामूहिक प्रयास के माध्यम से विभिन्न उपलब्धियाँ हासिल कर विश्व रिकॉर्ड स्थापित करने की एक शृंखला है।
सियाचिन ग्लेशियर
- सियाचिन ग्लेशियर हिमालय में पूर्वी काराकोरम रेंज में स्थित है, जो प्वाइंट NJ9842 के उत्तर-पूर्व में है, यहाँ भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा समाप्त होती है।
- यह दुनिया के गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों का दूसरा सबसे लंबा ग्लेशियर है।
- ताज़िकिस्तान के ‘यज़्गुलेम रेंज’ में स्थित ‘फेडचेंको ग्लेशियर’ दुनिया के गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों का सबसे लंबा ग्लेशियर है।
- सियाचिन ग्लेशियर उस जल निकासी विभाजन क्षेत्र के दक्षिण में स्थित है, जो काराकोरम के व्यापक हिमाच्छादित हिस्से में यूरेशियन प्लेट को भारतीय उपमहाद्वीप से अलग करता है, जिसे कभी-कभी ‘तीसरा ध्रुव’ भी कहा जाता है।
- सियाचिन ग्लेशियर लद्दाख का हिस्सा है, जिसे अब केंद्रशासित प्रदेश में बदल दिया गया है।
- सियाचिन ग्लेशियर दुनिया का सबसे ऊँचा युद्ध क्षेत्र है।
- पूरा सियाचिन ग्लेशियर वर्ष 1984 (ऑपरेशन मेघदूत) में भारत के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया था।
प्रमुख बिंदु
अभियान के बारे में:
- प्रारंभ में 20 दिव्यांग लोगों की एक टीम को प्रशिक्षण के लिये चुना जाएगा, जिसके उपरांत अंतिम अभियान दल का चयन किया जाएगा।
- अंतिम अभियान दल (कम-से-कम 6 दिव्यांग लोग), सियाचिन बेस कैंप से कुमार पोस्ट तक ट्रेकिंग करेगा।
- कुमार पोस्ट करीब 15,632 फीट की ऊँचाई पर स्थित है।
टीम क्लॉ और ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम:
- टीम क्लॉ (Team CLAW) : टीम क्लॉ (Conquer Land Air Water) पूर्व भारतीय विशेष बल कमांडो की एक टीम है।
- सामान्यतः ये सभी या तो भारतीय सेना के पैरा कमांडो या नेवल मरीन कमांडो होते हैं, जिन्हें मार्कोस (MARCOS) के नाम से भी जाना जाता है।
- इन कमांडो के पास कई विशेषज्ञताएँ हैं - ये न केवल युद्ध में बल्कि अन्य विशिष्ट कौशल जैसे- स्काइ डाइविंग, स्कूबा डाइविंग, पर्वतारोहण, आपातकालीन चिकित्सा प्रतिक्रिया और किसी भी अन्य परिस्थितियों में सभी क्षेत्रों में रहने के लिये तैयार रहते हैं।
- इस पहल की शुरुआत एक पैरा (विशेष बल) अधिकारी मेजर विवेक जैकब ने की थी।
- ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम: ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम एक सामाजिक प्रभाव वाला उपक्रम है जिसका उद्देश्य अनुकूली साहसिक खेलों के माध्यम से दिव्यांग लोगों का पुनर्वास करना है।
- इसका उद्देश्य दिव्यांग लोगों से जुड़ी दया, दान और अक्षमता की आम धारणा को तोड़ना और उनकी गरिमा, स्वतंत्रता एवं क्षमता को पुनर्जीवित करना है।
- इसके अतिरिक्त उनका ध्यान दिव्यांग लोगों के लिये 'बड़े पैमाने पर स्थायी रोज़गार संबंधी समाधानों को डिज़ाइन और कार्यान्वित करना' है, विशेष रूप से 'पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता' के क्षेत्र में।
- इसे वर्ष 2019 में Team CLAW द्वारा लॉन्च किया गया था।
- CLAW ग्लोबल: टीम CLAW विश्व भर में केंद्र स्थापित करने की प्रक्रिया में है, जहाँ विशेष बल के कमांडो और दिव्यांग लोग न केवल दिव्यांग व्यक्तियों हेतु बल्कि गैर- दिव्यांग लोगों के लिये भी बेहतर जीवन अनुभव जैसे कार्यों में योगदान दे रहे हैं।
दिव्यांगता की समस्या:
- दिव्यांगता एक व्यापक पद है, जिसमें असमर्थता, बाधित शारीरिक गतिविधियाँ और सामाजिक भागीदारी में असमर्थता शामिल हैं।
- असमर्थता का आशय शारीरिक कार्य करने या संरचना में किसी समस्या से है।
- बाधित शारीरिक गतिविधियों का आशय किसी कार्य या क्रिया को निष्पादित करने में किसी व्यक्ति के समक्ष आने वाली कठिनाइयों से है।
- असमर्थता का अर्थ एक व्यक्ति द्वारा जीवन की विभिन्न सामाजिक भागीदारी में शामिल होने में अनुभव की जाने वाली समस्या से है।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल 121 करोड़ की आबादी में से लगभग 2.68 करोड़ लोग (कुल जनसंख्या का 2.21%) दिव्यांग हैं।
- 2.68 करोड़ दिव्यांगों में 1.5 करोड़ पुरुष और 1.18 करोड़ महिलाएँ शामिल हैं।
- अधिकांश विकलांग जनसंख्या (69%) ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है।
- विश्व स्तर पर दिव्यांग लोगों की संख्या 1 बिलियन है जो कि वैश्विक जनसंख्या का 15% है।
- इन्हें समग्र पुनर्वास की कमी, अपर्याप्त कौशल, निर्बाध आवागमन की कमी और उपयुक्त रोज़गार की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- इन कारकों ने एक साथ बड़े पैमाने पर दिव्यांग व्यक्तियों को उनके घरों तक सीमित कर दिया है, जिसने इनसे संबंधित मुद्दों पर नकारात्मकता और उनकी क्षमताओं के बारे में गलत धारणाओं को जन्म दिया।
- इस प्रकार उनकी उत्पादक क्षमता काफी हद तक अप्रयुक्त है, जिसके चलते मुख्यधारा के जीवन से उनका वैश्विक बहिष्कार हो रहा है।