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भारतीय राजनीति

एक राष्ट्र, एक चुनाव

  • 27 Nov 2020
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संविधान दिवस, अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन 

मेन्स के लिये:

एक राष्ट्र-एक चुनाव, एकल मतदाता सूची

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारत के प्रधानमंत्री ने संविधान दिवस (26 नवंबर) के अवसर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से केवड़िया (गुजरात) में 80वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन (All India Presiding Officers Conference) के समापन सत्र को संबोधित किया है।

प्रमुख बिंदु:

एक राष्ट्र-एक चुनाव: 

  • ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’- यह विचार भारतीय चुनावी चक्र को एक तरीके से संरचित करने को संदर्भित करता है ताकि लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ एक ही समय पर कराया जाए जिससे दोनों का चुनाव एक निश्चित समय के भीतर हो सके।

लाभ:  

  • इससे मतदान में होने वाले खर्च, राजनीतिक पार्टियों के खर्च आदि पर नज़र रखने में मदद मिलेगी और जनता के पैसे को भी बचाया जा सकता है।
  • प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर बढ़ते बोझ को भी कम किया जा सकता है।
  • सरकारी नीतियों को समय पर लागू करने में मदद मिलेगी और यह भी सुनिश्चित किया जा सकता है कि प्रशासनिक मशीनरी चुनावी मोड के बजाय विकास संबंधी गतिविधियों में लगी हुई है।
  • शासनकर्त्ताओं की ओर से शासन संबंधी समस्याओं का समाधान समय पर किया जाएगा। आम तौर पर यह देखा जाता है कि किसी विशेष विधानसभा चुनाव में अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिये, सत्तारूढ़ राजनेता कठोर दीर्घकालिक निर्णय लेने से बचते हैं जो अंततः देश को दीर्घकालिक लाभ पहुँचा सकता है।
  • पाँच वर्ष में एक बार चुनावी तैयारी के लिये सभी हितधारकों यानी राजनीतिक दलों, भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI), अर्द्धसैनिक बलों, नागरिकों को अधिक समय मिल सकेगा।

चुनौतियाँ:

  • भारत की संसदीय प्रणाली की प्रथाओं एवं परंपराओं पर विचार करते हुए एक साथ चुनाव कराना एक बड़ी समस्या है। उल्लेखनीय है कि सरकार निचले सदन के प्रति जवाबदेह है और यह संभव है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले गिर जाए और जिस क्षण सरकार गिरती है वहाँ चुनाव होना आवश्यक है।
  • सभी राजनीतिक दलों को इस विचार (एक राष्ट्र-एक चुनाव) पर विश्वास दिलाना और उनको एक साथ लाना मुश्किल है।
  • एक साथ चुनाव कराने के लिये, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPATs) की आवश्यकताएँ दोगुनी हो जाएगी क्योंकि ECI को दो सेट (एक विधान सभा के लिये और दूसरा लोकसभा के लिये) प्रदान करने होंगे।
  • मतदान के लिये और बेहतर सुरक्षा व्यवस्था के लिये अतिरिक्त कर्मचारियों की आवश्यकता भी होगी।

सुझाव:

  • भारत में वर्ष 1951-52 से वर्ष 1967 तक विधानसभा के साथ-साथ लोकसभा के लिये भी चुनाव हुए थे। इसलिये इस विचार (एक राष्ट्र-एक चुनाव) की पर्याप्तता एवं प्रभावकारिता पर कोई असहमति नहीं होनी चाहिये। यहाँ तक कि भारत एक साथ स्थानीय निकायों के लिये भी चुनाव कराने के बारे में सोच सकता है।
  • राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के कार्यकाल के साथ जोड़ने के लिये, राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को घटाया जा सकता है और उसके अनुसार उनमें वृद्धि भी की जा सकती है। हालाँकि ऐसा करने के लिये, अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता हो सकती है।  
  • अमेरिका जैसे देश में जहाँ की कार्यपालिका सदन के प्रति जवाबदेह नहीं होती जबकि भारत में कार्यपालिका निम्न सदन के प्रति जवाबदेह होती है। यदि भारत के संविधान में संशोधन कर सरकार के संसदीय स्वरूप को बदलकर ‘प्रेसीडेंशियल फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट’ किया जाता है तो इस समस्या का समाधान मुमकिन हो सकता है। 
  • ऐसी परिस्थितियों में भारत में केवल लोकसभा और राज्यसभा चुनाव ही एक साथ हो सकते हैं।

एकल मतदाता सूची (One Voter List):

  • लोकसभा, विधानसभा और अन्य चुनावों के लिए केवल एक मतदाता सूची का उपयोग किया जाना चाहिये।

लाभ: 

  • अलग-अलग संस्थाओं द्वारा तैयार की जाने वाली अलग-अलग मतदाता सूचियों के निर्माण में काफी अधिक दोहराव होता है, जिससे मानवीय प्रयास और व्यय भी दोगुने हो जाते हैं, जबकि एक मतदाता सूची के माध्यम से इसे कम किया जा सकता है।

चुनौती:

  • राज्य सरकारों को अपने कानूनों को संशोधित करने और नगरपालिका व पंचायत चुनावों के लिये ECI मतदाता सूची को अपनाने के लिये राजी कर पाना कठिन है।
  • बड़े पैमाने पर आम सहमति की आवश्यकता होगी।

सुझाव: 

  • राज्यों को चुनाव आयोग की एकल मतदाता सूची अपनाने का विकल्प दिया जाए।
  • चुनाव आयोग की मतदाता सूची में राज्य निर्वाचन आयोग के वार्डों की सूची स्थापित करना एक कठिन कार्य है लेकिन प्रौद्योगिकी के उपयोग से इसे आसानी से किया जा सकता है।

अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन

(All India Presiding Officers Conference):

  • इस सम्मेलन की शुरुआत वर्ष 1921 में हुई थी और इस वर्ष इसका शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है।
  • वर्ष 2020 के लिये थीम: ‘विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सामंजस्यपूर्ण समन्वय: एक जीवंत लोकतंत्र की कुंजी है'। (Harmonious Coordination between Legislature, Executive and Judiciary: Key to a Vibrant Democracy’)
  • यह राज्य के सभी तीन स्तंभों (विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका) के बीच समन्वय की आवश्यकता पर ज़ोर देता है अर्थात् उन्हें संविधान द्वारा निर्देशित होने का सुझाव देते हैं जो सदाचार के लिये अपनी भूमिका का उल्लेख करता है।

आगे की राह:

  •  भारत में चुनाव प्रत्येक समय में अलग-अलग स्थानों पर होते रहते हैं और यह विकास कार्यों को बाधित करता है। इसलिये प्रत्येक कुछ महीनों में विकास कार्यों पर आदर्श आचार संहिता के प्रभाव को रोकने के लिये ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ के विचार पर गहन अध्ययन एवं विचार-विमर्श होना आवश्यक है।
  • इस बात पर सर्वसम्मति बनाने की ज़रूरत है कि क्या देश को एक राष्ट्र, एक चुनाव की आवश्यकता है या नहीं। सभी राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर बहस करने के लिये कम-से-कम एक साथ आना चाहिये, एक बार बहस शुरू होने के बाद जनता की राय को ध्यान में रखा जा सकता है। भारत एक परिपक्व लोकतंत्र होने के नाते, बहस के परिणाम का पालन कर सकता है।

स्रोत: द हिंदू

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