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निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में वीवीपीएटी मशीनों का महत्त्व

  • 04 Oct 2017
  • 7 min read

संदर्भ

  • हाल ही में चुनाव आयोग ने आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में वीवीपीएटी मशीनों का उपयोग करने के लिये औपचारिक निर्देश जारी किये हैं।
  • विदित हो कि अब  ईवीएम मशीनों की मदद से भविष्य में होने वाले  चुनावों में अब वीवीपीएटी (Voter-Verifiable Paper Audit Trail)  मशीन का उपयोग किया जाएगा।
  • इस लेख में वीवीपीएटी मशीन क्या है, क्यों इसकी आवश्यकता महसूस की गई और इससे चुनावों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इन बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे।

पृष्ठभूमि

  • गौरतलब है कि वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में चुनावों के दौरान वीवीपीएटी मशीन का प्रयोग किया जा रहा था।
  • लेकिन, इस वर्ष मई में चुनाव आयोग ने यह घोषणा की कि भविष्य में होने वाले सभी चुनावों में वीवीपीएटी का प्रयोग किया जाएगा।
  • हाल ही में कई राजनीतिक दल ईवीएम में छेड़छाड़ की संभावनाओं को दूर करने के लिये इन मशीनों में वीवीपीएटी लगाने की वकालत कर रहे हैं।
  • इस वर्ष की शुरुआत में यूपी विधानसभा चुनावों के बाद अधिक से अधिक पारदर्शिता बहाल करने की मांग करते हुए 16 पार्टियों ने ईवीएम के बजाय बैलेट पत्र की मदद से मतदान के लिये चुनाव समिति से आग्रह किया था।
  • विदित हो कि गोवा के बाद गुजरात दूसरा और देश का पहला बड़ा राज्य होगा, जहाँ सम्पूर्ण चुनाव वीवीपीएटी की मदद से किया जाएगा।

वीवीपीएटी मशीन क्या है और यह कैसे काम करती है ?

  • वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीवीपीएटी एक प्रकार की मशीन होती है, जिसे ईवीएम के साथ जोड़ा जाता है।
  • यह मशीन वोट डाले जाने की पुष्टि करती है और इससे मतदान की पुष्टि की जा सकती है। इस मशीन को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा डिज़ाइन किया गया था।
  • वीवीपीएट के साथ प्रिंटर की तरह का एक उपकरण इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से जुड़ा होता है। इसके तहत इसमें मतदाता द्वारा उम्मीदवार के नाम का बटन दबाते ही, उस उम्मीदवार के नाम और राजनीतिक दल के चिन्ह की पर्ची अगले दस सेकेंड में मशीन से बाहर निकल जाती है।
  • इसके बाद यह एक सुरक्षित बक्से में गिर जाती है।  पर्ची एक बार दिखने के बाद ईवीएम से जुड़े कंटेनर में चली जाती है। ईवीएम में लगे शीशे के एक स्क्रीन पर यह पर्ची सात सेकेंड तक दिखती है।
  • वीवीपीएट का सबसे पहले प्रयोग  2013 में नागालैंड के निर्वाचन में किया गया था।
  • वीवीपीएटी की मदद से प्रत्येक मत से संबंधित जानकारियों को प्रिंट करके मशीन में स्टोर कर लिया जाता है और विवाद की स्थिति में इस जानकारी की मदद से इन विवादों का निपटारा किया जा सकता है।

इस संबंध में चुनाव आयोग का पक्ष क्या है?

  • चुनाव आयोग बार-बार यह कहता आया है कि ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। आयोग ने मध्यप्रदेश के भिंड और राजस्थान के ढोलपुर में ईवीएम के साथ कथित छेड़छाड़ के आरोपों के बीच जाँच के लिये गठित समिति की रिपोर्ट सार्वजानिक कर दी है।
  • इस रिपोर्ट में ईवीएम के साथ छेड़छाड़ से इनकार करते हुए इन मशीनों को फूलप्रूफ बताया गया है। फिर भी राजनैतिक दलों द्वारा इस संबंध में असंतोष व्यक्त किया गया। अब चुनाव आयोग ने औपचारिक तौर पर यह घोषणा कर दी है कि भविष्य में सभी चुनावों में वीवीपीएटी का प्रयोग किया जाएगा।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

  • इस वर्ष के आरंभ में  भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने गुजरात उच्च न्यायालय के एक आदेश के विरुद्ध सुनवाई पर निर्वाचन आयोग से वीवीपीएटी युक्त ईवीएम मशीनों के ज़रिये चुनाव करने को कहा था।
  • विदित हो कि वर्ष 2013 में सुब्रह्मण्यम स्वामी बनाम भारत निर्वाचन आयोग मामले में दिये अपने निर्णय में न्यायालय ने कहा था कि वीवीपीएटी पारदर्शी और निष्पक्ष चुनावों की अनिवार्य आवश्यकता है।
  • न्यायालय ने यह भी कहा था कि ईवीएम में मतदाताओं का विश्वास वीवीपीएटी के प्रयोग के ज़रिये हासिल किया जा सकता है। ईवीएम के साथ वीवीपीएटी मशीनें मतदान प्रणाली की सटीकता सुनिश्चित करेंगी।

निष्कर्ष

  • मतदान के दौरान वीवीपीएटी मशीनों के प्रयोग से मतदाता पारदर्शिता का अनुभव करेंगे। लेकिन अभी भी हमें कुछ मोर्चों पर सुधार की ज़रूरत है।
  • हैकिंग की रुसी तकनीक जिसमें कि चुनाव कराने वाले अधिकारियों को ‘फ्रॉड मेल्स’ एवं अन्य दुर्भावनापूर्ण माध्यमों के ज़रिये गलत आदेश दिये जाते हैं, से बचाव के प्रयास होते रहने चाहिये।
  • विदित हो कि वीवीपीएटी मशीनों के प्रयोग से समूची मतदान प्रक्रिया में 3 से 4 घंटे का विलंब संभव है। अतः वीवीपीएटी-आधारित चुनावों की रूपरेखा पर चर्चा करने के लिये एक आंतरिक समिति की स्थापना की जानी चाहिये, जो इस विलंब को ध्यान में रखते हुए व्यवधान मुक्त चुनाव के रास्ते सुझा सके।
  • दरअसल, वर्ष 2019 के आम चुनावों के पहले सभी संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में वीवीपीएटी मशीनें लगाना एक दुष्कर कार्य है, क्योंकि इस पर सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च होंगे। अतः इसके लिये समुचित वित्तीय व्यवस्था भी करनी होगी।
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