राज्यपाल का पद और संबंधित चिंताएँ | 28 Dec 2024

प्रिलिम्स के लिये:

राज्यपाल के पद से संबंधित प्रावधान और शक्तियाँ, सरकारिया आयोग (1988), वेंकटचलैया आयोग (2002), पुंछी आयोग (2010), बीपी सिंघल बनाम भारत संघ

मेन्स के लिये:

राज्यपालों के पद से संबंधित चिंताएँ, विभिन्न समितियों की सिफारिशें एवं आगे की राह

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रपति ने पूर्व केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला को मणिपुर का राज्यपाल, जनरल वी.के. सिंह (सेवानिवृत्त) को मिज़ोरम का राज्यपाल तथा केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को पुनः बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया।

राज्यपाल के पद से संबंधित क्या प्रावधान हैं?

  • संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 में प्रत्येक राज्य के लिये एक राज्यपाल की नियुक्ति का प्रावधान है, जिसमें एक ही व्यक्ति को कई राज्यों के राज्यपाल के रूप में कार्य करने की अनुमति दी गई है।
    • यह राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है तथा मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है। 
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 154 के तहत राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल को प्रदान की गई है।
    • राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होती है और संविधान के प्रावधानों के अनुसार, वह इसका प्रयोग प्रत्यक्ष रूप से या अपने अधीनस्थ प्राधिकारियों के माध्यम से कर सकता है।
  • राज्यपाल की नियुक्ति: अनुच्छेद 155 के अनुसार किसी राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। 
  • यद्यपि राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एवं पुनर्नियुक्त किया जाता है फिर भी उसे भारत सरकार का प्राधिकारी नहीं माना जाता है।
    • राज्यपाल को अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी लाभ के पद पर नहीं रहना चाहिये।
  • राज्यपाल के पद हेतु अर्हताएँ: व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिये, कम से कम 35 वर्ष का होना चाहिये तथा संसद या किसी राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं होना चाहिये।  
  • शपथ:
    • अनुच्छेद 159 के तहत, राज्यपाल को पद ग्रहण करने से पहले उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उनकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम उपलब्ध न्यायाधीश के समक्ष शपथ लेनी होती है।
  • विधानमंडल की शक्तियाँ:
    • अनुच्छेद 174 के तहत राज्यपाल विधानसभा को भंग करने की सिफारिश (यदि कोई भी पार्टी सरकार नहीं बना सकती है या मुख्यमंत्री की सलाह पर) कर सकते हैं लेकिन यह शक्ति विशिष्ट शर्तों के अधीन होने के साथ पूरी तरह से विवेकाधीन नहीं है।
    • अनुच्छेद 175(2) के तहत राज्यपाल सरकार के बहुमत को सत्यापित करने के लिये फ्लोर टेस्ट करवा सकते हैं एवं विधेयकों या अन्य मामलों पर विचार करने हेतु विधायिका को संदेश भेज सकते हैं।
    • अनुच्छेद 176 के तहत, राज्यपाल आम चुनावों के बाद पहले सत्र में तथा प्रतिवर्ष विधानमंडल को संबोधित करते हुए विधानसभा या दोनों सदनों को बुलाने के कारण बताते हैं।
    • राष्ट्रपति की तरह राज्यपाल भी धन विधेयक पर मंजूरी में विलंब कर सकते हैं और सिफारिशें कर सकते हैं, लेकिन विधायिका उन्हें स्वीकार करने के लिये बाध्य नहीं है।
  • संवैधानिक विवेकाधीन शक्तियाँ:
    • मुख्यमंत्री की नियुक्ति तब की जाती है जब राज्य विधानसभा में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न हो या जब पदस्थ मुख्यमंत्री की अचानक मृत्यु हो जाए और उसका कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी न हो।
    • मंत्रिपरिषद को बर्खास्त करना जब वह राज्य विधानमंडल का विश्वास सिद्ध न कर सके।
    • यदि मंत्रिपरिषद अपना बहुमत खो दे तो राज्य विधान सभा को भंग किया जा सकता है।
  • राज्यपाल का कार्यकाल:
    • अनुच्छेद 156 में प्रावधान है कि राज्यपाल राष्ट्रपति की इच्छा पर ही पद धारण करता है, जिसका सामान्य कार्यकाल पद ग्रहण करने की तिथि से पाँच वर्ष का होता है।
    • राज्यपाल को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा बर्खास्त किया जा सकता है।
    • राज्यपाल तब तक अपने पद पर बने रहते हैं जब तक कि उनका उत्तराधिकारी कार्यभार ग्रहण नहीं कर लेता, यहाँ तक ​​कि उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी।

राज्यपाल के पद से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • राजनीतिक तटस्थता और निष्पक्षता: केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त राज्यपालों को प्रायः सत्तारूढ़ पार्टी के साथ राजनीतिक संबंधों के लिये आलोचना का सामना करना पड़ता है, जिससे निष्पक्षता और केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करने को लेकर चिंताएँ पैदा होती हैं।
  • अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग: अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने की राज्यपाल की शक्ति प्रायः संवैधानिक लोकाचार और संघवाद के संबंध में बहस का विषय बनती है।
  • विधेयकों पर विलंबित स्वीकृति: राज्यपाल कभी-कभी राज्य विधेयकों पर मंजूरी देने में देरी करते हैं या रोक लेते हैं, जिससे कानून पारित होने में बाधा उत्पन्न होती है। इससे उनकी जवाबदेही और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के पालन को लेकर चिंताएँ पैदा होती हैं, जिससे शासन में अनिश्चितता पैदा होती है।
    • वर्ष 2023 में, तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि को राज्य विधेयकों पर मंजूरी में देरी करके कथित रूप से "पॉकेट वीटो" का उपयोग करने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा।
  • राज्य प्रशासन में हस्तक्षेप: राज्य प्रशासन में राज्यपालों का हस्तक्षेप, जैसे कि स्वयं को सक्रिय राजनीति में शामिल करना, प्रायः निर्वाचित अधिकारियों और लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली के साथ टकराव पैदा करता है।

राज्यपाल से संबंधित समितियाँ

  • सरकारिया आयोग, 1998
  • पुंछी आयोग, 2010
  • वेंकटचलैया आयोग (2002): राज्यपालों की नियुक्ति एक समिति द्वारा की जानी चाहिये जिसमें प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री शामिल हों।
    • राज्यपालों को अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करना चाहिये, जब तक कि वे सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता के कारण इस्तीफा नहीं देते या राष्ट्रपति द्वारा हटा नहीं दिये जाते।

Governor

आगे की राह:

  • संघीय व्यवस्था को मज़बूत करना: राज्यपाल के कार्यालय के दुरुपयोग को रोकने के लिये भारत में संघीय व्यवस्था को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
    • इस संबंध में, अंतर्राज्यीय परिषद और संघवाद के सदन के रूप में राज्य सभा की भूमिका को मज़बूत किया जाना चाहिये।
  • राज्यपाल की नियुक्ति की पद्धति में सुधार: राज्यपाल की नियुक्ति राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित पैनल के द्वारा की जानी चाहिये तथा वास्तविक रूप से नियुक्ति प्राधिकारी अंतर-राज्य परिषद से होना चाहिये, न कि केंद्र सरकार का।
  • राज्यपाल की आचार संहिता: इस "आचार संहिता" में कुछ "मानदंड और सिद्धांत" स्थापित किये जाने चाहिये, जो राज्यपाल के "विवेक" और उसकी शक्तियों के उपयोग को निर्देशित करें, जिसका उपयोग वह अपने निर्णय के आधार पर कर सकता है।
  • विवेकाधीन शक्तियों के प्रयोग को प्रतिबंधित करना: राज्यपालों द्वारा 'विवेकाधीन शक्तियों' का प्रयोग 'स्वस्थ एवं लोकतांत्रिक परंपराओं द्वारा निर्देशित' होना चाहिये।
    • उन्हें किसी भी राजनीतिक विचारधारा से जुड़ने से बचना चाहिये तथा संवैधानिक लोकतंत्र को सुनिश्चित करने के लिये निष्पक्षता के गुण को बनाए रखना चाहिये। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: राज्यपाल से संबंधित चिंताओं पर चर्चा कीजिये और आवश्यकता सुधारों पर भी चर्चा कीजिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. किसी राज्य के राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में कोई आपराधिक कार्यवाही संस्थापित नहीं की जाएगी। 
  2. किसी राज्य के राज्यपाल की परिलब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किये जाएँगे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (C)


प्रश्न. प्निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)

  1. भारत के राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन अधिरोपित करने के लिये रिपोर्ट भेजना।  
  2. मंत्रियों की नियुक्ति करना। 
  3. राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कतिपय विधेयकों को भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करना।  
  4. राज्य सरकार के कार्य संचालन के लिये नियम बनाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही है? (2013)

(a) भारत में एक ही व्यक्ति को एक ही समय में दो या अधिक राज्यों में राज्यपाल नियुक्त नहीं किया जा सकता।
(b) भारत में राज्यों के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राज्य के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किये जाते हैं, ठीक वैसे ही जैसे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जाते हैं।
(c) भारत के संविधान में राज्यपाल को उसके पद से हटाने हेतु कोई भी प्रक्रिया अधिकथित नहीं है।
(d) विधायी व्यवस्था वाले संघ राज्यक्षेत्र में मुख्यमंत्री की नियुक्ति उपराज्यपाल द्वारा, बहुमत समर्थन के आधार पर, की जाती है।

उत्तर: (c)