महासागरीय एनोक्सिक घटना 1a | 24 Dec 2024

प्रिलिम्स के लिये:

एनोक्सिक समुद्री बेसिन, कार्बन पृथक्करण, होलोसीन विलुप्ति, महासागरीय अम्लीकरण, प्रवाल भित्ति, पेरिस समझौता 

मेन्स के लिये:

पृथ्वी पर व्यापक विलोपन, ज्वालामुखी विस्फोटों का जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव

स्रोत: फिज़िक्स 

चर्चा में क्यों? 

साइंस एडवांसेज़ में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में महासागरों में एनोक्सिक घटना 1a (OAE 1a) के काल और अवधि के संबंध में नई जानकारी प्रदान की गई है। 

  • जापान के माउंट आशिबेत्सू के प्रागैतिहासिक शैलों और जीवाश्मों का अध्ययन कर शोधकर्त्ताओं ने OAE 1a के कारणों और समयरेखा का स्पष्ट रूप से निर्धारण किया है। OAE के कारण पृथ्वी के महासागरों में व्यापक रूप से ऑक्सीजन की कमी (एनोक्सिक) हुई थी।

महासागरीय एनोक्सिक घटना 1a क्या है?

  • परिभाषा: OAE 1a, क्रिटेशस कल्प (145 मिलियन वर्ष पूर्व का काल और 66 मिलियन वर्ष पूर्व समाप्त) के दौरान एक विशिष्ट अवधि को संदर्भित करता है जब पृथ्वी के महासागरों में ऑक्सीजन की कमी हो गई थी, जिससे समुद्री जीवन में गंभीर व्यवधान उत्पन्न हुआ था।
  • कारण: विशेषज्ञों के अनुसार यह घटना बृहद स्तर पर ज्वालामुखीय विस्फोटों के कारण हुई थी, जिससे व्यापक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) का उत्सर्जन हुआ, जिससे ग्लोबल वार्मिंग हुई और महासागरों में ऑक्सीजन की कमी हुई, जिसके परिणामस्वरूप एनोक्सिक समुद्री द्रोणियों का निर्माण हुआ।
  • प्रभाव: समुद्री जल में CO2 की उपस्थिति से कार्बोनिक एसिड बनता है, जिससे समुद्री जीवों के शैल घुल जाते हैं और ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है। 
    • ऑक्सीजन की कमी के कारण समुद्री प्रजातियों, विशेष रूप से प्लवक, विलुप्त हो गईं, तथा कार्बनिक कार्बन युक्त परतों, जिन्हें ब्लैक शेल्स कहते हैं, का निर्माण हुआ।

एनोक्सिक समुद्री बेसिन

  • एनोक्सिक बेसिन का तात्पर्य ऐसे जल क्षेत्र से है, जो प्रायः गहरे महासागरीय क्षेत्रों में पाया जाता है, जहाँ ऑक्सीजन का स्तर अत्यंत कम या नितांत अभाव होता है। 
    • ऑक्सीजन की इस कमी से अधिकांश वायुजीवी जीवों की उत्तरजीविता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है लेकिन विशिष्ट सूक्ष्मजीवों और विशेष कवकों की संवृद्धि के लिये एक अनुकूल परिवेश का निर्माण होता है। 
    • ये स्थितियाँ प्रायः ऐसे गहरे समुद्री क्षेत्रों या झीलों में उत्पन्न होती हैं जो ऑक्सीजन युक्त सतही जल से अलग होते हैं।
  • कार्बन पृथक्करण: एनोक्सिक बेसिन कार्बन को संरक्षित करते हुए कार्बनिक पदार्थों के क्षय को धीमा करते हैं (कम ऑक्सीजन के कारण)। इसके कारण ऐसे क्षेत्रों में  दीर्घकालिक कार्बन पृथक्करण होता है, जिससे वायुमंडल में CO₂ के स्तर को कम करने में मदद मिलती है।
  • उदाहरण: काला सागर, कैरियाको बेसिन (कैरेबियन सागर) और ओर्का बेसिन (मेक्सिको की उत्तर-पश्चिमी खाड़ी)।  

  • मृत क्षेत्र: ये महासागरों और बड़ी झीलों में हाइपोक्सिक क्षेत्र (कम ऑक्सीजन) हैं, जहाँ ऑक्सीजन का स्तर अधिकांश समुद्री जीवन के लिये पर्याप्त नहीं है।

महासागरीय एनोक्सिक घटना 1a पर अध्ययन की मुख्य बातें क्या हैं?

  • OAE 1a का समय: अध्ययन में जापान के होक्काइडो द्वीप से ज्वालामुखीय टफ्स (ज्वालामुखी राख के संघनन और सीमेंटीकरण से निर्मित आग्नेय चट्टानें) के उन्नत समस्थानिक विश्लेषण का उपयोग करके OAE 1a के सटीक समय को लगभग 119.5 मिलियन वर्ष पूर्व बताया गया।
    • OAE 1a 1.1 मिलियन वर्षों तक चला, जिससे पता चला कि CO2-संचालित वार्मिंग और एनोक्सिया से उबरने में महासागरों को कितना समय लगा।
  • ज्वालामुखी विस्फोट: अध्ययन ने पुष्टि की कि ज्वालामुखी विस्फोट से CO2 उत्सर्जित होती है, जिससे महासागरीय ऑक्सीजन में कमी आती है।
  • आधुनिक जलवायु परिवर्तन की प्रासंगिकता: अध्ययन में अतीत में ज्वालामुखीय CO2 उत्सर्जन को वर्तमान मानव-प्रेरित तापमान वृद्धि से जोड़ा गया है, तथा चेतावनी दी गई है कि आधुनिक तापमान वृद्धि की तीव्र गति से इसी प्रकार के व्यवधान उत्पन्न हो सकते हैं, तथा संभावित रूप से होलोसीन विलुप्ति (संभवतः छठी व्यापक विलुप्ति घटना) हो सकती है। 
    • यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और वैश्विक कार्बन चक्र पर बढ़े हुए CO2 के दीर्घकालिक प्रभाव पर भी प्रकाश डालता है।

पृथ्वी पर प्रमुख सामूहिक विलुप्ति की घटनाएँ क्या हैं?

  • ऑर्डोविशियन-सिलुरियन सामूहिक विलुप्ति (443 मिलियन वर्ष पूर्व):
    • प्रभाव: लगभग 85% प्रजातियाँ नष्ट हो गईं।
    • कारण: तापमान में नाटकीय गिरावट और हिमस्खलन, जिससे समुद्र के स्तर में गिरावट आती है, जिसके बाद तेज़ी से गर्मी बढ़ती है।
  • डेवोनियन सामूहिक विलुप्ति: 374 मिलियन वर्ष पहले घटित हुई:
    • प्रभाव: पृथ्वी की लगभग तीन-चौथाई प्रजातियाँ नष्ट हो गईं, जिनमें अधिकतर समुद्री अकशेरुकी थे।
    • कारण: पर्यावरण में परिवर्तन जैसे कि ग्लोबल वार्मिंग और कूलिंग, समुद्र के स्तर में उतार-चढ़ाव और वायुमंडलीय ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड में कमी। विलुप्ति के सटीक कारण अभी भी अस्पष्ट हैं।
  • पर्मियन सामूहिक विलुप्ति (250 मिलियन वर्ष पूर्व):
    • प्रभाव: इसे "द ग्रेट डाइंग" के नाम से जाना जाता है, इसने अधिकांश कशेरुक सहित 95% से अधिक प्रजातियों को नष्ट कर दिया।
    • कारण: इसका संबंध रूस के साइबेरियन ट्रैप्स में बड़े पैमाने पर ज्वालामुखी विस्फोट से है, जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग और महासागरीय एनोक्सिया की स्थिति पैदा हो रही है। ज्वालामुखी विस्फोट, जलवायु परिवर्तन और संभावित क्षुद्रग्रह प्रभाव ने संभवतः विलुप्ति को और बढ़ा दिया है।
  • ट्राइसिक सामूहिक विलुप्ति (200 मिलियन वर्ष पूर्व):
    • प्रभाव: कई डायनासोर सहित लगभग 80% प्रजातियाँ समाप्त हो गईं।
    • कारण: व्यापक भूगर्भीय गतिविधि जिसके कारण कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर, ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा और महासागरों का अम्लीकरण हुआ।
  • क्रिटेशियस सामूहिक विलुप्ति (66 मिलियन वर्ष पूर्व):
    • प्रभाव: नॉन-एवियन डायनासोर समेत 78% प्रजातियाँ नष्ट हो गईं।
    • कारण: संभवतः मेक्सिको में एक क्षुद्रग्रह के टकराने के कारण विशाल गर्त बन गया, ग्लोबल कूलिंग हुआ और पारिस्थितिकी तंत्र विलुप्त हो गया। 
      • इसके अतिरिक्त, भारत के दक्कन पठार में ज्वालामुखी विस्फोटों ने ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देकर इस घटना को और गंभीर बना दिया है।

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होलोसीन विलुप्ति क्या है?

  • परिचय: होलोसीन विलुप्ति, जिसे छठी सामूहिक विलुप्ति के रूप में भी जाना जाता है, लगभग 12,000 वर्ष पहले शुरू हुई क्रमिक विलुप्ति की घटना को संदर्भित करती है तथा इसके लिये मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है, जबकि पिछली सामूहिक विलुप्ति प्राकृतिक घटनाओं के कारण हुई थी।
  • प्रमुख घटक: 
    • अतिदोहन: अत्यधिक मत्स्य संग्रहण और अवैध शिकार जैसी गतिविधियों से प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं।
    • आवास की हानि: कृषि और शहरीकरण के लिये भूमि के रूपांतरण से आवास नष्ट और आबादी विखंडित हो जाती है।
    • जलवायु परिवर्तन: मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन पारिस्थितिक तंत्र, प्रजातियों के वितरण और संबंधों को बाधित करते हैं।
    • प्रदूषण: औद्योगिक, कृषि और अपशिष्ट प्रदूषण रसायनों और प्लास्टिक के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाते हैं।
    • आक्रामक प्रजातियाँ: गैर-देशी प्रजातियाँ देशी पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करती हैं, स्थानीय प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा करती हैं या उनका शिकार करती हैं।
  • होलोसीन एक्सटिंक्ट/विलोप घटनाओं के प्रमुख उदाहरण:
    • मेगाफौना विलुप्ति (12,000 वर्ष पूर्व) ने मैमथ और कृपाण-दांतेदार बिल्लियों जैसे बड़े स्तनधारियों को नष्ट कर दिया , जो संभवतः मानव शिकार और जलवायु परिवर्तन  के कारण हुआ ।
    • कोरल रीफ ब्लीचिंग समुद्र के बढ़ते तापमान और महासागरीय अम्लीकरण के कारण हो रही है, जिससे रीफ जैव विविधता खतरे में पड़ रही है। 
    • उभयचरों, विशेषकर मेंढकों की संख्या में गिरावट, निवास स्थान की क्षति, प्रदूषण और चिट्रिडिओमाइकोसिस जैसी बीमारियों के कारण हो रही है।
  • प्रभाव: वर्तमान विलुप्ति दर प्राकृतिक दर से 1,000-10,000 गुना अधिक है।
    • खाद्य उत्पादन, स्वच्छ जल और वायु जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं खतरे में हैं, जिससे जैव विविधता और मानव जीवन दोनों को खतरा है।
  • होलोसीन एक्सटिंक्ट/विलोप को कम करने के प्रयास: कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की प्रतिबद्धता को मज़बूत करना, जैसा कि पेरिस समझौते में रेखांकित किया गया है।
    • 30X30 पहल के तहत, कम-से-कम 30% भूमि, अंतर्देशीय जल और महासागरों के संरक्षण के लिये वैश्विक स्तर पर सहयोग करना।
    • समुदायों, कंपनियों और व्यक्तियों को सतत् प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना तथा निगमों एवं सरकारों को जवाबदेह बनाना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: "छठा व्यापक विलोप/छठा विलोप" के कारणों और परिणामों पर चर्चा कीजिये। मानवीय गतिविधियाँ इस संकट में किस प्रकार योगदान देती हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. "छठा व्यापक विलोप /छठा विलोप" यह शब्द किसकी विवेचना के संदर्भ में समाचारों में प्रायः उल्लिखित होता है? (2018)

(a) विश्व के बहुत से भागों में कृषि में व्यापक रूप मेंएकधान्य कृषि प्रथा और बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक कृषि के साथ रसायनों के अविवे की प्रयोग के परिणामस्वरूप अच्छे देशी पारितंत्र की हानि।
(b) आसन्न भविष्य में पृथ्वी के साथ उल्कापिण्ड की संभावित टक्कर का भय, जैसा कि 65 मिलियन वर्ष पहले हुआ था और जिसके कारण डायनोसोर की जातियों समेत अनेक जातियों का व्यापक रूप से विलोप हो गया।
(c) विश्व के अनेक भागों में आनुवंशिकतः रूपांतरित फ़सलों की व्यापक रूप में खेती और विश्व के दूसरे भागों में  उनकी खेती को बढ़ावा देना, जिसके कारण अच्छे देशी फ़सली पादपों का विलोप हो सकता है और खाद्य जैव-विविधता की हानि हो सकती है।
(d) मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों क  अतिशोषण/दुरुपयोग, प्राकृतिक आवासों का संविभाजन/नाश, पारितंत्र का विनाश, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन।

उत्तर: (d)