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भारत में अश्लीलता संबंधी कानून

  • 14 Feb 2025
  • 9 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

एक यूट्यूब इन्फ्लुएंसर पर कथित तौर पर एक व्यापक रूप से देखे जाने वाले शो के दौरान अश्लील टिप्पणी करने के लिये जाँच की जा रही है। भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 296 के तहत "अश्लील कृत्यों" के लिये शिकायत दर्ज की गई है।

  • इससे विशेष रूप से डिजिटल युग में अश्लीलता की विधिक परिभाषा पर सवाल उठते हैं।

अश्लीलता के विनियमन से संबंधित कानून कौन-से हैं?

  • BNS 2023 की धारा 294: यह पूर्व की भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 292 है जिसके तहत डिजिटल मीडिया सहित अश्लील सामग्री की बिक्री, विज्ञापन अथवा सार्वजनिक प्रदर्शन प्रतिबंधित है।
    • इसके अंतर्गत अश्लीलता से अभिप्राय ऐसी सामग्री से है जो लैंगिक रूप से विचारोत्तेजक हो, जिसका उद्देश्य लैंगिक विचारों का प्रकोपन करना हो, अथवा व्यक्तियों की नैतिकता या व्यवहार को नुकसान पहुँचाने की संभावना हो।
    • पहली बार अपराध करने वालों को 2 वर्ष तक का कारावास और 5,000 रुपए का जुर्माना हो सकता है। दोबारा अपराध करने वालों को 5 वर्ष तक का कारावास और 10,000 रुपए का जुर्माना हो सकता है।
  • BNS की धारा 296: इसमें सार्वजनिक रूप से अश्लील कृत्य करने, साथ ही सार्वजनिक रूप से अश्लील गीत, गाथागीत या शब्द कहने, सुनाने या बोलने या दूसरों को परेशान करने के उद्देश्य से ऐसा करने पर दंड का प्रावधान किया गया है। 
    • लोक नैतिकता अथवा शिष्टता को ठेस पहुँचाने वाले सार्वजनिक आचार का विनियमन कर, इस अनुभाग का उद्देश्य सामाजिक मानदंडों को बनाए रखना है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67: इसमें इलेक्ट्रॉनिक रूप से अश्लील सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करने पर दंड का प्रावधान किया गया है।
    • अश्लील सामग्री की परिभाषा BNS की धारा 294 के अंतर्गत दी गई परिभाषा के समान है।
    • इसमें BNS की तुलना में अधिक कठोर दंड का प्रावधान है, जिसमें पहली बार अपराध करने पर 3 वर्ष तक का कारावास और 5 लाख रुपए का जुर्माना शामिल है।
  • स्त्री अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986: इसके तहत महिलाओं के ऐसे अभद्र चित्रण पर रोक लगाने का प्रावधान है जो अपमानजनक होने के साथ लोक नैतिकता के विपरीत हो।
  • POCSO अधिनियम, 2012 (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम): इस अधिनियम के तहत ऑनलाइन बाल यौन सामग्री निर्मित करने, संग्रहीत करने, साझा करने या उस तक पहुँचने पर प्रतिबंध लगाया गया है तथा इस संबंध में अपराधियों के लिये कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।

न्यायालय 'अश्लीलता' को किस प्रकार निर्धारित करते हैं?

  • हिक्लिन परीक्षण: रंजीत डी. उदेशी बनाम महाराष्ट्र राज्य, 1964 मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हिक्लिन परीक्षण का प्रयोग किया, जिसे ब्रिटिशों ने क्वीन बनाम हिक्लिन, 1868 के मामले में अपनाया था। 
    • इसमें सबसे कम सामान्य विभाजक मानक लागू किया गया, जिसका अर्थ है कि संबंधित सामग्री का मूल्यांकन बच्चों या कमज़ोर वयस्कों पर इसके प्रभाव के आधार पर किया गया, न कि औसत व्यक्ति पर।
    • इस परीक्षण से यह निर्धारित किया गया कि यदि किसी सामग्री में ऐसे लोगों को भ्रष्ट करने की संभावना है, जिनका मन ऐसे अनैतिक प्रभावों के प्रति उन्मुख है, तो वह सामग्री अश्लील है।
  • आलोचना: इसे परंपरागत और अत्यधिक प्रतिबंधात्मक माना गया। इस परीक्षण में संपूर्ण कार्य के बजाय विषय-वस्तु के पृथक भागों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • सामुदायिक मानक परीक्षण: अवीक सरकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, 2014 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने अश्लीलता निर्धारित करने के क्रम में हिक्लिन परीक्षण को “सामुदायिक मानक” परीक्षण (CST) से स्थापित किया।
    • न्यायालय अब समकालीन सामाजिक मानदंडों के आधार पर अश्लीलता का फैसला करते हैं। ये मूल्यांकन करते हैं कि क्या समग्र रूप से संबंधित सामग्री का समग्र विषय कामुक रुचियों (अर्थात कलात्मक, साहित्यिक या सामाजिक मूल्य के बजाए यौन रूप से उत्तेजक सामग्री) पर आधारित है।
    • न्यायालय मूल अधिकारों (अनुच्छेद 19(1)(a) भाषण की स्वतंत्रता) को उचित प्रतिबंधों (अनुच्छेद 19(2)) के साथ संतुलित करने का प्रयास करते हैं।
  • न्यायिक मिसाल:  बोरिस बेकर न्यूड फोटो मामला, 2014 सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि नग्नता अकेले अश्लील नहीं है अगर उसमें कलात्मक या सामाजिक योग्यता हो।
    • न्यायालय किसी कार्य की अश्लीलता निर्धारित करने से पहले इस बात पर विचार करते हैं कि क्या वह कार्य साहित्यिक, कलात्मक, राजनीतिक या वैज्ञानिक उद्देश्य से कार्य करता है।
    • वर्ष 2024 कॉलेज रोमांस वेब सीरीज मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अश्लील भाषा तब तक अश्लील नहीं है जब तक कि वह यौन विचार उत्पन्न न करे।
  • कमियाँ: CST व्यक्तिपरक है और क्षेत्र के अनुसार भिन्न होता है (भौगोलिक, संस्कृति और सामाजिक मानदंडों के आधार पर), जिसके कारण असंगत निर्णय सामने आते हैं। यह उभरते सामाजिक मानदंडों के साथ तालमेल बिठाने में संघर्ष करता है तथा इसमें स्पष्ट परिभाषाओं का अभाव है, जिसके कारण कानूनी व्याख्याओं में अस्पष्टता उत्पन्न होती है।

सार्वजनिक नैतिकता, शालीनता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

  • नैतिकता: यह सिद्धांतों का समूह है जो नैतिकता और न्याय के बारे में सामाजिक, सांस्कृतिक या व्यक्तिगत मान्यताओं के आधार पर सही और गलत व्यवहार को परिभाषित करता है।
    • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ, 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि संवैधानिक नैतिकता सार्वजनिक नैतिकता से ऊपर है, तथा सामाजिक मानदंडों पर न्याय पर ज़ोर दिया गया।
  • शालीनता: अश्लील भाषा और हाव-भाव से बचना (बी. मनमोहन एवं अन्य बनाम मैसूर राज्य एवं अन्य, 1965)
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अश्लीलता: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों के अधीन है, जिसमें अश्लीलता को रोकना और सामाजिक नैतिकता को बनाए रखना शामिल है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में अश्लीलता कानून के विकास और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये?

और पढ़ें: भारत में अश्लीलता कानून

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्रश्न. निजता के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में, मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिये। (2017)

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