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शासन व्यवस्था

ओ-स्मार्ट योजना

  • 26 Nov 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ओ-स्मार्ट योजना, नीली अर्थव्यवस्था, समुद्री जल प्रदूषक, अनन्य आर्थिक क्षेत्र

मेन्स के लिये:

ओ-स्मार्ट योजना के उद्देश्य एवं महत्त्व

चर्चा में क्यों?

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 2021-26 की अवधि के लिये 'महासागरीय सेवाएँ, मॉडलिंग, अनुप्रयोग, संसाधन और प्रौद्योगिकी (O-SMART)' योजना को जारी रखने को मंज़ूरी दे दी है।

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प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • यह एक सरकारी योजना है जिसका उद्देश्य समुद्री अनुसंधान को बढ़ावा देना और पूर्व चेतावनी मौसम प्रणाली स्थापित करना है। 
      • इसे अगस्त 2018 में लॉन्च किया गया था।
    • इसका उद्देश्य महासागर विकास गतिविधियों जैसे कि प्रौद्योगिकी, सेवाओं, संसाधनों, निगरानी और अवलोकन के साथ-साथ नीली अर्थव्यवस्था के पहलुओं को लागू करने के लिये आवश्यक तकनीकी सहायता प्रदान करना है।
    • इसमें सात उप-योजनाएँ शामिल हैं जिन्हें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के स्वायत्त संस्थानों द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
      • उप-योजनाएँ इस प्रकार हैं: महासागरीय प्रौद्योगिकी, महासागरीय  मॉडलिंग और परामर्श सेवाएँ (OSMAS), समुद्री अवलोकन नेटवर्क (OON), समुद्री निर्जीव (नॉन-लिविंग) संसाधन, समुद्री सजीव संसाधन एवं इको-सिस्टम (MLRE), तटीय अनुसंधान एवं परिचालन, पोतों का अनुसंधान एवं रख-रखाव।
  • उद्देश्य:
    • भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) में ‘मरीन लिविंग रिसोर्सेज़’ (Marine Living Resources) एवं भौतिक पर्यावरण के साथ उनके संबंधों के बारे में सूचना एकत्र करना और उसे नियमित रूप से अपडेट करना।
    • समय-समय पर भारत के तटीय जल का स्वच्छता मूल्यांकन करने के लिये समुद्री जल प्रदूषकों के स्तर की निगरानी करना। प्राकृतिक एवं मानवजनित गतिविधियों के कारण होने वाले तटीय कटाव के मूल्यांकन के लिये तटरेखा परिवर्तन मानचित्र विकसित करना।
    • भारत के आसपास के समुद्रों से रियल टाइम डेटा के लिये और महासागर प्रौद्योगिकी के परीक्षण एवं समुद्री प्रायोगिक गतिविधियों को पूरा करने हेतु अत्याधुनिक महासागर अवलोकन प्रणालियों की एक विस्तृत शृंखला विकसित करना। 
    • सामाजिक लाभ के लिये उपयोगकर्त्ता-उन्मुख महासागरीय सूचना, सलाह, चेतावनी, डेटा एवं डेटा उत्पादों का एक पैकेज तैयार करना एवं उसका प्रसारण करना।
    • महासागर पूर्वानुमान एवं पुनर्विश्लेषण प्रणाली के लिये ‘हाई रिज़ोल्यूशन मॉडल’ विकसित करना।
    • तटीय अनुसंधान हेतु उपग्रह डेटा के सत्यापन के लिये एल्गोरिदम विकसित करना।
    •  तटीय प्रदूषण की निगरानी, विभिन्न अंडरवाटर घटकों के परीक्षण और प्रौद्योगिकी प्रदर्शन तथा उनके संचालन एवं रखरखाव का समर्थन करने के लिये तटीय अनुसंधान पोत (CRV) का अधिग्रहण करना।
    • समुद्री जैव संसाधनों के निरीक्षण एवं निगरानी करने के लिये प्रौद्योगिकियों, समुद्र से मीठे जल व महासागरीय ऊर्जा उत्पन्न करने वाली प्रौद्योगिकियों तथा अंडरवाटर वाहनों एवं प्रौद्योगिकियों को विकसित करना।
    • गिट्टी जल उपचार (Ballast Water Treatment) सुविधा सुनिश्चित करना।
      • जहाज़ों द्वारा गिट्टी जल का निर्वहन महासागरों में गैर-स्वदेशी प्रजातियों के प्रवेश के लिये ज़िम्मेदार है। यह एक बंदरगाह से जल ग्रहण करते हैं और दूसरे बंदरगाह में उसका निर्वहन करते हैं।
    • गैस हाइड्रेट्स की जाँच करने के लिये मध्य हिंद महासागर बेसिन में संयुक्त राष्ट्र द्वारा भारत को आवंटित किये गए 75000 वर्ग किमी. के स्थान पर 5500 मीटर तक की गहराई से पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स (Poly Metallic Nodules) की खोज को पूरा करना।
      • पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स जिसे मैंगनीज़ नोड्यूल (Manganese Nodules) भी कहा जाता है, एक कोर के चारों ओर लोहे और मैंगनीज़ हाइड्रॉक्साइड (Manganese Hydroxides) की संकेंद्रित परतों से निर्मित चट्टानें हैं।
      • पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स में तांबा, निकल, कोबाल्ट, मैंगनीज़, लोहा, सीसा, जस्ता, एल्युमीनियम, चांदी, सोना और प्लेटिनम आदि कई धातुएंँ होती हैं। परिवर्तनशील संरचनाओं में और महासागरीय क्रस्ट के गहरे आंतरिक भाग से ऊपर उठने वाले गर्म मैग्मा से गर्म तरल पदार्थ का अवक्षेपण होता है।
      • भारत के लिये पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स (Polymetallic Nodules) का खनन सामरिक महत्त्व का है क्योंकि भारत में इन धातुओं के कोई स्थलीय स्रोत विद्यमान नहीं हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण द्वारा रॉड्रिक्स ट्रिपल जंक्शन (कन्वर्जेन्स ऑफ सेंट्रल इंडियन रिज, दक्षिण-पूर्व भारतीय रिज और दक्षिण-पश्चिम भारतीय रिज) के पास पॉलीमेटैलिक सल्फाइड की खोज हेतु अंतर्राष्ट्रीय समुद्र में भारत को 10000 वर्ग किमी. क्षेत्र आवंटित है।
    • EEZ से आगे फैले महाद्वीपीय शेल्फ (Continental Shelf) पर भारत के दावे को वैज्ञानिक डेटा और भारत के EEZ के स्थलाकृतिक सर्वेक्षण द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
  • महत्त्व:
    • यह व्यापक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास गतिविधियों के साथ समुद्र विज्ञान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की क्षमता निर्माण में वृद्धि करेगा।
    • यह सतत् तरीके से समुद्री संसाधनों के कुशल और प्रभावी उपयोग के लिये नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) पर एक राष्ट्रीय नीति की दिशा में भारत के योगदान को मज़बूत करने में सहायता करेगा।
    • यह योजना समुद्री क्षेत्र के लिये अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग कर विभिन्न तटीय हितधारकों को पूर्वानुमान और चेतावनी सेवाएंँ प्रदान करने, समुद्री जीवन की संरक्षण रणनीति में जैव विविधता तथा तटीय प्रक्रिया को समझने की दिशा में संचालित गतिविधियों को मजबूत कर व्यापक कवरेज प्रदान करेगी।
    • यह महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण एवं सतत् उपयोग के लिये  संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य-14 को प्राप्त करने में मदद करेगी।
  • प्रमुख उपलब्धियाँ:
    • इसने हिंद महासागर के आवंटित क्षेत्र में पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स और हाइड्रोथर्मल सल्फाइड के गहरे समुद्र में खनन पर व्यापक शोध हेतु भारत को अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (International Seabed Authority- ISA) के साथ अग्रणी निवेशक के रूप में मान्यता प्राप्त करने में मदद की है।
    • इस योजना ने यूनेस्को के अंतर-सरकारी समुद्र विज्ञान आयोग (IOC) में वैश्विक महासागर अवलोकन प्रणाली के हिंद महासागर घटक को लागू करने में भारत को नेतृत्व की भूमिका निभाने में सक्षम बनाया है।
    • भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS), हैदराबाद में तूफान, सुनामी जैसी समुद्री आपदाओं के लिये एक अत्याधुनिक पूर्व चेतावनी प्रणाली भी स्थापित की गई है।

स्रोत: पीआईबी

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