तपेदिक की रोकथाम में पोषण की भूमिका | 21 Aug 2023
प्रिलिम्स के लिये:तपेदिक, ICMR, निक्षय पोषण योजना मेन्स के लिये:तपेदिक उन्मूलन की चुनौतियाँ, तपेदिक उन्मूलन में भारत की प्रगति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा किये गए और द लांसेट और द लांसेट ग्लोबल हेल्थ जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित दो अध्ययनों में पोषण तथा तपेदिक की रोकथाम के बीच एक महत्त्वपूर्ण संबंध का खुलासा किया गया है।
- पोषण संबंधी स्थिति में सुधार द्वारा तपेदिक की सक्रियता को कम करना (Reducing Activation of Tuberculosis by Improvement of Nutritional Status- RATIONS), परीक्षण पोषण संबंधी सहायता तथा तपेदिक की घटनाओं में कमी के बीच संबंध को दर्शाता है।
- तपेदिक मृत्यु दर पर वज़न बढ़ने के प्रभाव संबंधी अध्ययन से यह समझने में मदद करता है कि कुपोषित तपेदिक रोगियों में बढ़ा हुआ वज़न मृत्यु दर में कमी के साथ किस प्रकार संबंधित है।
नोट:
- WHO के अनुसार, वैश्विक तपेदिक मामलों में भारत का योगदान 27% है और यह तपेदिक से संबंधित कुल मौतों का 35% है।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2025 तक तपेदिक को पूरी तरह से खत्म करना है।
अध्ययन के प्रमुख बिंदु:
- इस अध्ययन के अनुसार कुल 5,621 लोगों को एक वर्ष के लिये पोषक तत्त्वों से भरपूर भोजन दिया गया, जबकि 4,724 लोगों को बिना किसी अतिरिक्त पोषण वाले खाद्य पदार्थ दिये गए।
- परीक्षण में पाया गया कि जिस समूह को पोषक तत्त्वों से भरपूर भोजन दिया गया, उनमें टीबी की घटनाओं में 39% की कमी आई।
- वज़न बढ़ने से झारखंड में गंभीर रूप से कुपोषित टीबी रोगियों में तपेदिक मृत्यु दर के जोखिम में कमी आई है।
- 1% वज़न बढ़ने पर मृत्यु का तात्कालिक जोखिम 13% कम हो गया तथा 5% वज़न बढ़ने पर 61% कम हो गया।
- इस अध्ययन में झारखंड में गंभीर रूप से कुपोषित 2,800 टीबी रोगियों को शामिल किया गया, जिनमें से 5 में से 4 रोगियों में अल्पपोषण की व्यापकता थी।
- टीबी की दवाओं का असर वाले व्यक्तियों को छह महीने के लिये पोषण संबंधी सहायता प्रदान की गई, जबकि बहुऔषध-प्रतिरोधक तपेदिक (Multidrug-resistant TB or MDR-TB) से ग्रसित लोगों के लिये यह अवधि 12 महीने थी।
- पहले दो महीनों में जल्दी वज़न बढ़ने से टीबी से होने वाली मृत्यु का जोखिम 60% कम हो जाता है।
- मरीज़ों में फॉलो-अप के दौरान उच्च उपचार सफलता, वज़न बढ़ना तथा वज़न घटने की कम दर देखी गई।
तपेदिक (Tuberculosis):
- परिचय:
- तपेदिक एक संक्रमण है जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह व्यावहारिक रूप से शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है। सबसे आम हैं- फेफड़े, फुस्फुस (फेफड़ों के चारों ओर की परत), लिम्फ नोड्स, आँत, रीढ़ और मस्तिष्क।
- रोग का संचार:
- यह संक्रमण हवा से फैलता है जो संक्रमित के निकट संपर्क से फैलता है, खासकर खराब वेंटिलेशन वाले घनी आबादी वाले स्थानों में।
- लक्षण:
- सक्रिय फेफड़े के टीबी के सामान्य लक्षण हैं बलगम वाली खाँसी और कभी-कभी खून आना, सीने में दर्द, कमज़ोरी, वज़न कम होना, बुखार और रात में पसीना आना।
- उपचार:
- टीबी एक उपचार योग्य बीमारी है।
- टीबी रोधी दवाओं का उपयोग दशकों से किया जा रहा है तथा सर्वेक्षण किये गए प्रत्येक देश में एक या अधिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी उपभेदों का दस्तावेज़ीकरण किया गया है।
- ‘बहुऔषध-प्रतिरोधक तपेदिक’ (Multidrug-resistant TB or MDR-TB): जब किसी मरीज़ पर तपेदिक के इलाज के लिये उपयोग की जाने वाली दो सबसे शक्तिशाली एंटीबायोटिक्स काम नहीं करती हैं तो तपेदिक के ऐसे मामलों को MDR-TB के रूप में जाना जाता है।
- MDR-टीबी का उपचार बेडाक्विलिन जैसी दूसरी पंक्ति की दवाओं के उपयोग से संभव है।
- ‘व्यापक रूप से ड्रग प्रतिरोधी तपेदिक’ (Extensively Drug-Resistant TB or XDR-TB) MDR-टीबी का एक अधिक गंभीर रूप है जो बैक्टीरिया के कारण होता है यह सबसे प्रभावी दूसरी पंक्ति की एंटी-टीबी दवाओं पर प्रतिक्रिया नहीं देता है, जिससे अक्सर रोगियों को बिना किसी अन्य उपचार के विकल्प के छोड़ दिया जाता है।
- ‘बहुऔषध-प्रतिरोधक तपेदिक’ (Multidrug-resistant TB or MDR-TB): जब किसी मरीज़ पर तपेदिक के इलाज के लिये उपयोग की जाने वाली दो सबसे शक्तिशाली एंटीबायोटिक्स काम नहीं करती हैं तो तपेदिक के ऐसे मामलों को MDR-TB के रूप में जाना जाता है।
टीबी से निपटने के लिये भारत की पहल:
- प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान।
- क्षय रोग उन्मूलन (2017-2025) के लिये राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (NSP)
- टीबी हारेगा देश जीतेगा अभियान।
- निक्षय पोषण योजना।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR):
- भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) जैव चिकित्सा अनुसंधान के निर्माण, समन्वय एवं संवर्द्धन के लिये भारत का शीर्ष निकाय है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1911 में इंडियन रिसर्च फंड एसोसिएशन (Indian Research Fund Association- IRFA) के नाम से हुई थी और वर्ष 1949 में इसका नाम बदलकर ICMR कर दिया गया।
- यह भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से वित्तपोषित है।