अंतर्राष्ट्रीय संबंध
परमाणु पनडुब्बी गठबंधन: AUKUS
- 29 Dec 2021
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प्रिलिम्स के लिये:AUKUS, क्वाड, नाटो, साउथ चाइना सी, परमाणु पनडुब्बी। मेन्स के लिये:इंडो-पैसिफिक और क्वाड पर AUKUS का प्रभाव, भारत के लिये इसके निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन ने संवेदनशील ‘नौसेना परमाणु प्रणोदन सूचना’ के आदान-प्रदान की अनुमति देने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
- बीते दिनों प्रशांत क्षेत्र, जहाँ चीन-अमेरिका प्रतिद्वंद्विता बढ़ रही है, में सामरिक तनाव का सामना करने हेतु तीनों देशों ने रक्षा गठबंधन, ‘ऑकस’ का गठन किया था, जिसके बाद सार्वजनिक रूप से हस्ताक्षरित होने वाली प्रौद्योगिकी पर यह पहला समझौता है।
- ‘ऑकस’ सौदे के तहत ऑस्ट्रेलिया आठ अत्याधुनिक, परमाणु-संचालित लेकिन पारंपरिक रूप से सशस्त्र पनडुब्बियों को प्राप्त करेगा।
प्रमुख बिंदु
- ऑकस:
- सितंबर 2021 में अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका (AUKUS) के बीच इंडो-पैसिफिक के लिये एक नई त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी की घोषणा की थी।
- इस व्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया हेतु अमेरिकी परमाणु पनडुब्बी प्रौद्योगिकी का साझाकरण सुनिश्चित करना है।
- इसका इंडो-पैसिफिक उन्मुखीकरण इसे दक्षिण चीन सागर में चीन की मुखर कार्रवाइयों के खिलाफ एक प्रमुख गठबंधन बनाता है।
- इसमें तीन देशों के बीच बैठकों और वार्ताओं के साथ-साथ उभरती प्रौद्योगिकियों (जैसे- कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम प्रौद्योगिकियों और अंडरसी क्षमताओं) में सहयोग का एक नया फ्रेमवर्क शामिल होगा।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र/क्वाड पर प्रभाव:
- इस बात की चिंता है कि ‘ऑकस’ (AUKUS) अमेरिका-यूरोपीय संघ संबंधों और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) पर गहरा प्रभाव डाल सकता है और इंडो-पैसिफिक में अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन को कमज़ोर कर सकता है।
- नाटो की स्थापना 4 अप्रैल, 1949 की उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा सोवियत संघ के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये की गई थी।
- नाटो के प्राथमिक लक्ष्य अपने सदस्यों की सामूहिक रक्षा और उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में लोकतांत्रिक शांति बनाए रखना है।
- फ्राॅंस ने संयुक्त राष्ट्र में ऑस्ट्रेलिया, फ्राॅंस और भारत के विदेश मंत्रियों की एक निर्धारित बैठक रद्द कर दी थी।
- पिछले कुछ वर्षों में उभरते हिंद-प्रशांत परिदृश्य में त्रिपक्षीय एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व बन गया है लेकिन बैठक का रद्द होना त्रिपक्षीय जुड़ाव के लिये एक झटका है।
- यह स्पष्ट नहीं है कि क्वाड और AUKUS एक-दूसरे को सुदृढ़ करेंगे या परस्पर अनन्य रहेंगे।
- कुछ मान्यताएँ हैं कि "एंग्लोस्फीयर नेशन" - जो यूनाइटेड किंगडम के साथ साझा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध साझा करते हैं - एक दूसरे में अधिक विश्वास को प्रेरित करते हैं।
- क्वाड भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का एक समूह है जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में लोकतांत्रिक राष्ट्रों के हितों की रक्षा करना और वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना है।
- इस बात की चिंता है कि ‘ऑकस’ (AUKUS) अमेरिका-यूरोपीय संघ संबंधों और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) पर गहरा प्रभाव डाल सकता है और इंडो-पैसिफिक में अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन को कमज़ोर कर सकता है।
- भारत के लिये निहितार्थ:
- भारत ने कहा है कि नई साझेदारी न तो क्वाड के लिये प्रासंगिक है और न ही इसका उसके कामकाज पर कोई प्रभाव पड़ेगा।
- AUKUS के प्रति उदासीनता के बावजूद भारत AUKUS व्यवस्था से द्वितीयक लाभ प्राप्त कर सकता है, जिसमें तीन उन्नत राष्ट्र हैं, जो दुनिया में सबसे परिष्कृत सैन्य शक्ति के साथ चीन के तेज़ी से मुखर रवैये के आलोक में एक स्वतंत्र हिंद-प्रशांत का समर्थन करने के लिये एक साथ आ रहे हैं। यह कुछ हद तक चीन का प्रतिरोध कर सकता है।
- साथ ही चीन द्वारा 'घेरने' के संबंध में भारत की चिंताओं को AUKUS द्वारा आंशिक रूप से कम किया जा सकता है।
- बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाओं और उपस्थिति के मामले में चीन ने भारत के पड़ोस में बड़े पैमाने पर पैठ बनाई है।
- आशंका है कि इस सौदे से अंततः पूर्वी हिंद महासागर में परमाणु हमला करने वाली पनडुब्बियों (SSN/सबमर्सिबल शिप न्यूक्लियर) की भीड़ लग सकती है, जिससे भारत की क्षेत्रीय श्रेष्ठता खत्म हो जाएगी।
आगे की राह
- भारत को द्विपक्षीय वार्ताओ में अतिशयोक्तिपूर्ण, अस्पष्ट, वास्तविकता के प्रति सावधान रहना चाहिये। जबकि भारत-अमेरिका संबंधों का मज़बूत होना भारतीयों के लिये लाभदायक होगा।
- "भारत को एक महान शक्ति बनाने के लिये" अमेरिका ने मदद का प्रस्ताव और घोषणाएँ की कि "दुनिया के दो महान लोकतंत्रों में दुनिया की दो सबसे बड़ी सेनाएँ भी होनी चाहिये"
- हमें स्टील्थ फाइटर्स, जेट इंजन एडवांस्ड रडार और पनडुब्बियों के साथ-साथ एयरक्राफ्ट-कैरियर्स के लिये न्यूक्लियर प्रोपल्शन सहित कई अन्य चीज़ो की "जानकारी" के अलावा ऑस्ट्रेलिया को दी जाने वाली सभी तकनीकों की आवश्यकता है।
- एक छोटे देश लक्ज़मबर्ग से लेकर उभरते पोलैंड तक हर यूरोपीय देश के पास यूरोप को देने के लिये कुछ-न-कुछ है जो भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का एक संपन्न केंद्र बन गया है।
- पिछले कुछ वर्षों में फ्राँस के साथ भारत की सामरिक भागीदारी में तेज़ी आई है।
- भारत-प्रशांत की सुरक्षा में साझा हितों और मौजूदा झगड़े तथा इस बड़े लक्ष्य को कमज़ोर करने के खतरों के बारे में फ्राँस, ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस को जानकारी प्रदान करना है।