सी-वीड मूल्य शृंखला विकास पर नीति आयोग की रिपोर्ट | 12 Aug 2024
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स्रोत: NITI आयोग
चर्चा में क्यों?
हाल ही में NITI आयोग ने ‘स्ट्रेटेजी फॉर द डेवलपमेंट ऑफ सी-वीड वैल्यू चेन’ शीर्षक से प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में भारत में सी-वीड के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये एक व्यापक रोडमैप तैयार किया है।
- इसमें सी-वीड उत्पादन बढ़ाने के लिये अनुसंधान, निवेश, प्रशिक्षण, अवसंरचना विकास और बाज़ार संवर्द्धन के लिये उपाय शामिल हैं, जिससे पर्यावरण, अर्थव्यवस्था एवं स्थानीय समुदायों को लाभ हो सकता है।
सी-वीड क्या हैं?
- सी-वीड के संदर्भ में:
- ये जड़, तने और पत्तियों से रहित आदिकालीन, गैर-पुष्पीय समुद्री शैवाल हैं जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
- बड़े सी-वीड गहन जल में अंतर्जलीय वन का निर्माण करते हैं जिन्हें केल्प वन के रूप में जाना जाता है, जो मत्स्य, घोंघे और सी-अर्चिन/जलसाही (एक छोटा समुद्री जीव जिसके शरीर पर गोल, काँटेदार कवच होता है) के लिये नर्सरी के रूप में कार्य करते हैं।
- सी-वीड की कुछ प्रजातियाँ हैं: गेलिडिएला एसेरोसा (Gelidiella acerosa), ग्रेसिलेरिया एडुलिस (Gracilaria edulis), ग्रेसिलेरिया क्रैसा (Gracilaria crassa), ग्रेसिलेरिया वेरुकोसा (Gracilaria verrucosa), सार्गासम एसपीपी (Sargassum spp.) और टर्बिनेरिया एसपीपी (Turbinaria spp.)
- इसे हरे (क्लोरोफाइटा), भूरे (फियोफाइटा) और लाल (रोडोफाइटा) समूहों में वर्गीकृत किया गया है।
- उत्पादन परिदृश्य:
- वैश्विक:
- वर्ष 2019 में वैश्विक सी-वीड उत्पादन (कृषि+संग्रह) लगभग 35.8 मिलियन टन था, जिसमें से वन्य प्रजाति संग्रह 1.1 मिलियन टन रहा।
- पूर्वी और दक्षिणपूर्वी एशिया क्षेत्र वैश्विक उत्पादन के 97.4% के साथ उत्पादन के परिदृश्य पर हावी हैं, जबकि अमेरिका तथा यूरोप मुख्य रूप से वन्य प्रजाति संग्रह पर निर्भर हैं। इंडोनेशिया सी-वीड का एक प्रमुख उत्पादक है।
- विश्व स्तर पर, कप्पाफाइकस अल्वारेज़ी (Kappaphycus alvarezii) और यूचेमा डेंटिकुलटम (Eucheuma denticulatum) प्रजातियाँ उत्पादन के माध्यम से कुल सी-वीड उत्पादन का 27.8% हिस्सा हैं।
- वर्ष 2022 से 2030 तक सी-वीड उद्योग के 2.3% की CAGR से बढ़ने का अनुमान है।
- भारत:
- भारत में मुख्य रूप से तमिलनाडु में 5,000 परिवार प्राकृतिक सागरीय संस्तरों से सालाना लगभग 33,345 टन (गीला भार) सी-वीड की पैदावार प्राप्त करते हैं।
- भारत का वार्षिक सी-वीड राजस्व (लगभग 200 करोड़ रुपए) वैश्विक उत्पादन में 1% से भी कम योगदान देता है।
- सरकार का लक्ष्य कृषि में सकल मूल्य वर्द्धन में संबद्ध क्षेत्र की हिस्सेदारी को वर्ष 2018-19 के 7.28% से बढ़ाकर वर्ष 2024-25 में 9% करना है।
- वैश्विक:
- आयात और निर्यात:
- वर्ष 2021 में, वैश्विक सी-वीड बाज़ार 9.9 बिलियन अमेरीकी डॉलर का था।
- प्रमुख व्यापारिक देशों में चीन, इंडोनेशिया, फिलीपींस, कोरिया गणराज्य और मलेशिया शामिल थे।
- कोरिया 30% से अधिक बाज़ार हिस्सेदारी के साथ सी-वीड निर्यात में अग्रणी है, जबकि चीन में सी-वीड-आधारित हाइड्रोकोलॉइड्स (विभिन्न प्रकार के सी-वीड से प्राप्त प्रगाढ़क और जेलिंग एजेंट) की समान हिस्सेदारी है।
- भारत में प्रमुख सी-वीड बेड:
- तमिलनाडु एवं गुजरात के तटों के साथ-साथ लक्षद्वीप तथा अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के आस-पास प्रचुर मात्रा में सी-वीड संसाधन पाए जाते हैं।
- मुंबई, रत्नागिरी, गोवा, तमिलनाडु में कारवार, वर्कला, विझिंजम और पुलिकट, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में चिल्का के आस-पास उल्लेखनीय सी-वीड बेड मौजूद हैं।
- संबंधित सरकारी पहल:
- सी-वीड मिशन: वर्ष 2021 में शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य मूल्य संवर्द्धन के लिये सी-वीड की कृषि और प्रसंस्करण का व्यवसायीकरण करना है। इसका उद्देश्य भारत के 7,500 किलोमीटर के समुद्र तट पर कृषि को बढ़ाना भी है।
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY): सरकार इस पहल के माध्यम से देश में सी-वीड की कृषि को भी बढ़ावा दे रही है।
- सी-वीड उत्पादों का व्यवसायीकरण: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)- केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI) ने दो सी-वीड-आधारित न्यूट्रास्युटिकल उत्पादों, कैडलमिन TM इम्यूनलगिन एक्सट्रैक्ट (कैडलमिन TM IMe) और कैडलमिन TM एंटीहाइपरकोलेस्ट्रोलेमिक एक्सट्रैक्ट (कैडलमिन TM ACe) का सफलतापूर्वक व्यवसायीकरण किया है।
- पर्यावरण के अनुकूल 'हरित' तकनीक से विकसित इन उत्पादों का उद्देश्य एंटी-वायरल प्रतिरक्षा को बढ़ावा देना और उच्च कोलेस्ट्रॉल या डिस्लिपिडेमिया (कोलेस्ट्रॉल का असंतुलन) से निपटना है।
- तमिलनाडु में बहुउद्देश्यीय सी-वीड पार्क
सी-वीड के उपयोग और लाभ क्या हैं?
- पोषण के लिये: सी-वीड कैल्शियम, फास्फोरस, सोडियम और पोटेशियम के साथ-साथ विटामिन A, B1, B12, C, D, E, नियासिन, फोलिक एसिड, पैंटोथेनिक एसिड एवं राइबोफ्लेविन का एक स्रोत है। इनमें चयापचय और समग्र स्वास्थ्य के लिये आवश्यक अमीनो एसिड भी होते हैं।
- औषधीय उद्देश्य: सी-वीड में औषधीय प्रभाव वाले सूजनरोधी और रोगाणुरोधी कारक होते हैं। कुछ सी-वीड में कैंसर से लड़ने वाले गुण होते हैं, जो घातक ट्यूमर एवं ल्यूकेमिया के खिलाफ संभावित रूप से प्रभावी होते हैं।
- निर्माण उपयोग: इनका उपयोग टूथपेस्ट और फलों की जेली जैसे उत्पादों में बाइंडिंग एजेंट (पायसीकारक) के रूप में और ऑर्गेनिक कॉस्मेटिक्स तथा स्किनकेयर उत्पादों में सॉफ्टनर (इमोलिएंट) के रूप में किया जाता है।
- वाणिज्यिक मूल्य: वाणिज्यिक रूप से, सी-वीड बायोएक्टिव मेटाबोलाइट्स, खाद, चारा और सेल वॉल पॉलीसेकेराइड जैसे कि अगर, एल्गिन एवं कैरेजीनन के लिये मूल्यवान हैं।
- इनका उपयोग खाद्य, दवा, कॉस्मेटिक और खनन उद्योगों में एवं समुद्री रसायनों को निकालने के लिये कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
- कृषि लाभ: यह कृषि उत्पादकता और पशु चारा योजक को बढ़ाने के लिये फसल बायोस्टिमुलेंट के रूप में भी कार्य करता है।
- सी-वीड की कृषि समुद्री उत्पादन को बढ़ाती है, मत्स्यन कृषकों की आय को बढ़ाती है और तटीय आजीविका में विविधता लाती है। इष्टतम परिस्थितियों में, एक हेक्टेयर (400 बाँस की राफ्ट) प्रतिवर्ष 13,28,000 रुपए तक कमा सकती है, जिसमें दो व्यक्तियों का परिवार 45 राफ्ट का प्रबंधन करता है, जिससे मूल्यवान आय के अवसर उत्पन्न होते हैं।
- जैव संकेतक: सी-वीड कृषि, औद्योगिक, जलीय कृषि और घरेलू अपशिष्ट से अतिरिक्त पोषक तत्त्वों को अवशोषित करते हैं, शैवाल के पनपने को रोकते हैं तथा समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करते हैं।
- पर्यावरणीय लाभ: सी-वीड कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में सहायता करते हैं। समुद्री कृषि सी-वीड की अनुमानित कार्बन अवशोषण दर प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर 57.64 मीट्रिक टन CO2 है, जबकि तालाब में उगाए गए सी-वीड प्रति हेक्टेयर 12.38 मीट्रिक टन CO2 अवशोषित करते हैं।
भारत में सी-वीड उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये नीति आयोग की सिफारिशें क्या हैं?
- कार्य आवंटन नियम, 1961 में संशोधन: वर्तमान में, सी-वीड को भारतीय समुद्री क्षेत्र अधिनियम, 1981 के तहत "मत्स्य" के रूप में वर्गीकृत किया गया है और इसके वैश्विक उत्पादन को कार्य आवंटन नियम, 1961 द्वारा ट्रैक किया जाता है। बेहतर प्रबंधन के लिये सी-वीड मूल्य शृंखला विकास का कार्य मत्स्य विभाग को सौंपें।
- सी-वीड और उसके उत्पादों का निर्यात एवं प्रमाणन: सी-वीड के निर्यात एवं प्रमाणन की निगरानी वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत MPEDA को हस्तांतरित की जाएगी तथा राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) FPO और SHG के माध्यम से बिक्री का कार्य संभालेगा।
- MPEDA द्वारा प्रोटोकॉल स्थापित करने तथा प्रमाणन का प्रबंधन करने वाली एक स्वतंत्र संस्था के साथ अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणन सामंजस्य को लागू करना।
- प्राथमिकता क्षेत्र ऋण: RBI को जलवायु परिवर्तन से निपटने में इसकी भूमिका को देखते हुए बैंकों के लिये प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) की सूची में सी-वीड से संबंधित ऋण को जोड़ने पर विचार करना चाहिये।
- बीमे के माध्यम से व्यापक जोखिम कवर: सी-वीड के उत्पादन में मौसम की घटनाओं से होने वाले जोखिमों से निपटने के लिये एक व्यापक बीमा योजना विकसित की जानी चाहिये। इस कार्यक्रम में फसल बीमा, किसान जीवन बीमा और पूंजीगत बुनियादी अवसरंचना को शामिल किया जाना चाहिये।
- वित्तीय सहायता: प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-किसान) एवं प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) योजनाओं का विस्तार सी-वीड किसानों को शामिल करने के लिये किया जाना चाहिये तथा कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (MoA&FW) को वित्तीय व कृषि आदान सहायता हेतु आवश्यक दिशा-निर्देश तैयार करने चाहिये।
- इसके अतिरिक्त उन्हें किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना में शामिल किया जाना चाहिये तथा समूह वित्तपोषण की सुविधा के लिये संयुक्त देयता समूहों (JLG) को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- निवेश एवं ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस:
- सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के निवेश को प्रोत्साहित करके तटीय सी-वीड क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना, स्टैंड-अप इंडिया एवं स्टार्टअप इंडिया जैसे सुधारों व पहलों का लाभ उठाना।
- क्लस्टर/सामूहिक विकास और विभिन्न हितधारकों के लिये पहुँच का समर्थन करने हेतु सी-वीड के उत्पादन हेतु जियो-टैग किये गए स्थलों के साथ एक गतिशील डेटा पोर्टल विकसित करना।
- e-NAM और राज्य कृषि मंडियों में सी-वीड एवं उसके उत्पादों को शामिल करना तथा बिक्री हस्तक्षेप हेतु PPP की खोज करना।
- डेटा-आधारित निर्णय लेने के लिये सी-वीड किसान सेवा मंच (SFSP) का विस्तार करना।
- मानसून के बाद गुणवत्तापूर्ण बीज सामग्री की तत्काल उपलब्धता के लिये समुद्री राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में बीज बैंक स्थापित करना।
- प्राथमिक प्रसंस्करण के लिये क्लस्टर स्तर पर रसद और प्रसंस्करण केंद्र बनाना, जिसमें गोदाम, परिवहन तथा पैकेजिंग सुविधाएँ शामिल हों।
- कौशल विकास: कृषि एवं मात्स्यिकी से संबंधित विश्वविद्यालयों, MPEDA-RGCA तथा ICAR संस्थानों के माध्यम से सी-वीड के उत्पादन, पैदावार एवं इसके पश्चात् किये जाने वाले प्रबंधन से जुड़े प्रमाण-पत्र व डिप्लोमा पाठ्यक्रम उपलब्ध किये जाने चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: सी-वीड क्या हैं और इसके क्या उपयोग हैं? भारत में इसके उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये सरकार की क्या पहल हैं? |