सऊदी अरब का शुद्ध शून्य लक्ष्य | 26 Oct 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादकों में से एक सऊदी अरब ने घोषणा की है कि वह वर्ष 2060 तक "शुद्ध शून्य" ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का स्तर प्राप्त कर लेगा।
- यह घोषणा राज्य के पहले सऊदी ग्रीन इनिशिएटिव (एसजीआई) फोरम में हुई। SGI का उद्देश्य वनस्पति आवरण को बढ़ाना, कार्बन उत्सर्जन को कम करना, प्रदूषण और भूमि क्षरण का मुकाबला करना तथा समुद्री जीवन को संरक्षित करना है।
प्रमुख बिंदु
- सऊदी अरब का लक्ष्य:
- वैश्विक तेल बाज़ारों की सुरक्षा और स्थिरता को मज़बूत करने में अग्रणी भूमिका को बनाए रखते हुए उसका लक्ष्य अपने सर्कुलर कार्बन अर्थव्यवस्था कार्यक्रम के तहत वर्ष 2060 तक शून्य-शुद्ध उत्सर्जन तक पहुँचना है।
- यह दृष्टिकोण वास्तव में जीवाश्म ईंधन पर वैश्विक निर्भरता को कम करने हेतु कार्बन कैप्चर और भंडारण प्रौद्योगिकियों पर केंद्रित है।
- यह वर्ष 2030 तक 2020 के स्तर से मीथेन के उत्सर्जन को 30% तक कम करने की वैश्विक पहल में शामिल होगा, जिसे संयुक्त राज्य और यूरोपीय संघ (ईयू) ग्लोबल मीथेन प्लेज घोषणा के माध्यम से संचालित कर रहे हैं।
- वैश्विक तेल बाज़ारों की सुरक्षा और स्थिरता को मज़बूत करने में अग्रणी भूमिका को बनाए रखते हुए उसका लक्ष्य अपने सर्कुलर कार्बन अर्थव्यवस्था कार्यक्रम के तहत वर्ष 2060 तक शून्य-शुद्ध उत्सर्जन तक पहुँचना है।
- शुद्ध शून्य लक्ष्य:
- परिचय:
- शुद्ध शून्य का अर्थ कार्बन तटस्थता भी है, इसका तात्पर्य किसी देश के उत्सर्जन की भरपाई वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों के अवशोषण और उन्हें हटाने से होती है।
- इसका मतलब यह नहीं है कि कोई देश अपने उत्सर्जन को शून्य पर लाएगा। ऐसे परिदृश्य को सकल-शून्य कहा जाएगा, जिसका अर्थ एक ऐसी स्थिति से है जहाँ उत्सर्जन पूर्णतः शून्य हो। आमतौर इस तरह की स्थिति प्राप्त करना मुश्किल होता है।
- चिंताएँ:
- ऑक्सफैम इंटरनेशनल की एक हालिया रिपोर्ट (टाइटनिंग द नेट) के अनुसार, शुद्ध-शून्य कार्बन लक्ष्य की घोषणा कार्बन उत्सर्जन में कटौती की प्राथमिकता के कारण एक खतरनाक भटकाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- 100 से अधिक देशों ने शुद्ध-शून्य उत्सर्जन या तटस्थता लक्ष्य निर्धारित किया है या उस पर विचार कर रहे हैं।
- परिचय:
- भारतीय परिदृश्य:
- भारत अब चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाद चौथा सबसे बड़ा उत्सर्जक है तथा आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट के अनुसार, यह सबसे गंभीर रूप से प्रभावित देशों में से है।
- भारत ने वर्ष 2016 के पेरिस समझौते के तहत वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करने और 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विकसित करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- भारत बहुप्रतीक्षित शुद्ध-शून्य योजना का पालन करने की बजाय हरित ऊर्जा की ओर संक्रमण के लिये तात्कालिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- भारत समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्व के सिद्धांत में विश्वास करता है, जिसके अनुसार विकसित देशों को अपने उत्सर्जन में भारी कमी लाने के लिये पहला कदम उठाना चाहिये। इसके अलावा उन्हें अपने पिछले उत्सर्जन के कारण हुए पर्यावरणीय क्षति का भुगतान करके गरीब देशों को मुआवज़ा देना चाहिये।
- हाल ही में थिंक टैंक काउंसिल फॉर एनर्जी एन्वायरनमेंट एंड वाटर प्रोजेक्ट्स द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत को वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य हासिल करने के लिये, विशेष रूप से बिजली उत्पादन हेतु कोयले के उपयोग को वर्ष 2040 तक चरम स्तर तक पहुँचाना होगा और इसके बाद कोयले के उपयोग में वर्ष 2040 से 2060 के बीच 99% की गिरावट लानी होगी।
- सर्कुलर कार्बन अर्थव्यवस्था:
- सर्कुलर कार्बन अर्थव्यवस्था उत्सर्जन के प्रबंधन और उसे कम करने के लिये एक ढाँचा है। यह एक क्लोज़्ड लूप सिस्टम है जिसमें 4R शामिल हैं: रिड्यूस, रियूज़, रिसाइकल और रिमूव।
रिड्यूस |
ऊर्जा दक्षता और जलवायु परिवर्तन के न्यूनीकरण की दिशा में कार्य करना, नवीकरणीय ऊर्जा, जलविद्युत, परमाणु और बायोएनर्जी जैसे कम कार्बन ऊर्जा स्रोतों के प्रतिस्थापन के माध्यम से जीवाश्म ईंधन में कमी करना। |
रियूज़ |
CO2 कैप्चर के लिये नवीन तकनीकों का उपयोग करने का अर्थ है कि ईंधन, बायोएनर्जी, रसायन, निर्माण सामग्री, खाद्य और पेय जैसे उपयोगी उत्पादों के रूप में पुन: उपयोग करना। |
रिसाइकल |
इसके अंतर्गत CO2 रासायनिक रूप से नए उत्पादों में परिवर्तित हो जाता है जैसे कि पुनर्चक्रित उर्वरक या सीमेंट, या ऊर्जा के अन्य रूप जैसे सिंथेटिक ईंधन। |
रिमूव |
कार्बन डाइऑक्साइड कैप्चर के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग बड़े पैमाने पर उत्सर्जन में कमी लाने का एक महत्त्वपूर्ण तरीका है, जबकि वनस्पतियों को लगाकर प्रकाश संश्लेषण को बढ़ाना भी कमी में योगदान देता है। |