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जैव विविधता और पर्यावरण

समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्वों का सिद्धांत

  • 30 Nov 2019
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

COP-25

मेन्स के लिये:

समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्वों का सिद्धांत

चर्चा में क्यों?

2-13 दिसंबर, 2019 तक स्पेन की राजधानी मैड्रिड (Madrid) में आयोजित होने वाले ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) के 25वें जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP-25) में भारत समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्वों के सिद्धांत पर ज़ोर देगा।

समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्व तथा संबंधित क्षमताएँ

(Common But Differentiated Responsibilities and Respective Capabilities- CBDR-RC):

  • इसका अर्थ यह है कि विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध कार्रवाई में विकासशील और अल्पविकसित देशों की तुलना में अधिक ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये क्योंकि विकसित होने की प्रक्रिया में इन देशों ने सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन किया है और ये देश जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे अधिक ज़िम्मेदार हैं।
  • पेरिस जलवायु समझौते के अंतर्गत विभिन्न राष्ट्रों की भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए विभेदित उत्तरदायित्त्वों और संबंधित क्षमताओं के सिद्धांत का पालन किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • वर्ष 2019 के सम्मेलन के आयोजन की ज़िम्मेदारी चिली की थी लेकिन चिली ने आंतरिक कारणों से देश में बढ़ते विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए COP-25 के आयोजन में असमर्थता जताई थी।
  • COP-25 के लिये भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावडेकर द्वारा किया जाएगा।

क्या रहेगा भारत का रुख?

  • भारत सरकार की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, COP-25 में भारत का दृष्टिकोण UNFCCC और पेरिस समझौते के सिद्धांतों पर आधारित होगा तथा विशेष रूप से CBDR-RC के सिद्धांत पर आधारित होगा।
  • इस विज्ञप्ति के अनुसार, विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन विरोधी महत्त्वाकांक्षी कार्यों को करने तथा इस क्षेत्र में अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये वर्ष 2020 तक 100 बिलियन डॉलर जुटाने की वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का प्रयास करना चाहिये।
  • भारत के अनुसार, विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन को रोकने से संबंधित प्रयासों के लिये अपना वित्तीय समर्थन बढ़ाना चाहिये ताकि विकासशील देश अपनी कार्य योजनाओं को सुनिश्चित कर सकें।
  • भारत विकसित देशों द्वारा वर्ष 2020 तक तय की गई प्रतिबद्धताओं को पूरा करने पर ज़ोर देगा ताकि वर्ष 2020 से पहले विकसित देशों द्वारा पूरी न की जा सकी प्रतिबद्धताएँ वर्ष 2020 के बाद विकासशील देशों पर अतिरिक्त बोझ न बन पाएँ।
  • वर्ष 2015 में संपन्न पेरिस जलवायु समझौता वर्ष 2020 के बाद विश्व के सभी राष्ट्रों के लिये जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध कार्य करने की योजना प्रस्तुत करता है।
  • इसके अनुसार, सभी देशों को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (Nationally Determined Contributions- NDCs) करना होगा।
  • ‘क्योटो प्रोटोकॉल’ के तहत विकसित देशों द्वारा वर्ष 2020 से पहले जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध प्रतिबद्धताएँ सुनिश्चित की गई थीं।
  • इस विज्ञप्ति में भारत की दो जलवायु कार्रवाई पहलों की चर्चा की गई है-

आपदा प्रतिरोधी संरचना के लिये गठबंधन

(The Coalition for Disaster Resilient Infrastructure):

  • इस पहल के माध्यम से विभिन्न देशों को जलवायु और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे पर जानकारी के आदान-प्रदान करने के लिये एक मंच उपलब्ध होगा।

उद्योग संक्रमण के लिये नेतृत्त्व समूह

(Leadership Group for Industry Transition):

  • इस पहल को भारत और स्वीडन द्वारा संयुक्त रूप से प्रारंभ किया गया है। इस पहल के माध्यम से विभिन्न देशों में सरकारी और निजी क्षेत्र के लिये एक मंच उपलब्ध कराया जाएगा ताकि प्रौद्योगिकी नवाचार के क्षेत्र में सहयोग तथा कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने पर कार्य किया जा सके।

स्रोत- द हिंदू बिzनेस लाइन

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