राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट | 21 Apr 2021
चर्चा में क्यों?
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने एक संयुक्त फ्रेमवर्क का उपयोग करते हुए भारत में अनुकूल नियोजन के लिये राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट जारी की है।
प्रमुख बिंदु:
रिपोर्ट के बारे में :
- इस रिपोर्ट में वर्तमान जलवायु संबंधी जोखिमों और भेद्यता के प्रमुख चालकों (Key Drivers of Vulnerability) के लिहाज से भारत के सबसे संवेदनशील राज्यों और ज़िलों की पहचान की गई है।
- यह अनुकूलन संबंधी निवेश तथा अनुकूलन कार्यक्रमों के विकास एवं कार्यान्वयन को प्राथमिकता देने में सहायता प्रदान करेगी।
- यह आकलन अद्वितीय है क्योंकि यह राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में एक संयुक्त रूपरेखा का उपयोग करता है ताकि उन्हें तुलनीय बनाया जा सके जिससे नीति और प्रशासनिक स्तरों पर निर्णय लेने की क्षमताओं को सशक्त किया जा सके।
- आकलन के कुछ प्रमुख संकेतकों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी का प्रतिशत; प्राकृतिक संसाधनों से आय का हिस्सा; सीमांत और छोटे जमींदारों का अनुपात, कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी; स्वास्थ्यकर्मियों का घनत्व आदि शामिल हैं।
- यह नेशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज (कुल 8 मिशन) के दो मिशनों के तहत क्षमता निर्माण कार्यक्रम का हिस्सा है।
- सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन (NMSHE)।
- जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन (NMSKCC)।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- अत्यधिक संवदेनशील राज्य: राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट ने झारखंड, मिज़ोरम, ओडिशा, छत्तीसगढ़, असम, बिहार, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल की पहचान ऐसे राज्यों के रूप में की है, जो जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील हैं।
- निम्न-मध्य संवदेनशील राज्य: हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, सिक्किम और पंजाब।
- निम्न संवदेनशील राज्य: उत्तराखंड, हरियाणा, तमिलनाडु, केरल, नगालैंड, गोवा और महाराष्ट्र।
- अत्यधिक संवदेनशील ज़िले: रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से संवेदनशील माने जाने वाले राज्यों में से असम, बिहार और झारखंड के 60% से अधिक जिले अति संवेदनशील ज़िलों की श्रेणी में हैं।
- भारत के सभी ज़िलों में भेद्यता स्कोर बहुत कम सीमा में है। यह दर्शाता है कि भारत में वर्तमान जलवायु जोखिम के संबंध में सभी ज़िले और राज्य कुछ हद तक संवेदनशील हैं।
परिणामों का महत्त्व:
- इन आकलनों का उपयोग पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों (NDC) से जुड़ी भारत की रिपोर्टिंग के लिये किया जा सकता है।
- NDC पेरिस समझौते का मुख्य केंद्रबिंदु है। राष्ट्रीय स्तर पर उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों में कमी लाने हेतु प्रत्येक देश द्वारा प्रयास किया जा रहा है। NDC में प्रत्येक देश द्वारा घरेलू परिस्थितियों और क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को प्रदर्शित किया जाता है।
- ये आकलन जलवायु परिवर्तन पर भारत की राष्ट्रीय कार्ययोजना का समर्थन करने में मदद करेंगे।
- ये आकलन अपेक्षाकृत अधिक लक्षित जलवायु परिवर्तन की परियोजनाओं के विकास में योगदान देंगे और साथ ही जलवायु परिवर्तन से संबंधित राज्य की कार्ययोजनाओं के कार्यान्वयन और उसके संभावित संशोधनों में सहयोग करेंगे।
- यह ग्रीन क्लाइमेट फंड, अनुकूल फंड और बहुपक्षीय एवं द्विपक्षीय एजेंसियों से प्राप्त धन द्वारा अनुकूलन परियोजनाओं को विकसित करने में मदद करेगा ।
- यह बेहतर तरीके से डिज़ाइन किये गए जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन से संबंधित परियोजनाओं के विकास के ज़रिये पूरे भारत में जलवायु परिवर्तन के लिहाज से कमज़ोर समुदायों को लाभान्वित करेगा।
जलवायु जोखिम:
- जलवायु संबंधी चरम सीमाओं के प्रभाव जैसे कि गर्मी की लहरें, सूखा, बाढ़, चक्रवात और जंगल की आग आदि कुछ पारिस्थितिकी प्रणालियों और वर्तमान जलवायु परिवर्तनशीलता के लिये कई मानव प्रणालियों के महत्वपूर्ण भेद्यता और जोखिम को उजागर करते हैं
- गैर-जलवायु कारकों और असमान विकास प्रक्रियाओं द्वारा उत्पन्न बहुआयामी असमानताओं से भेद्यता और जोखिम में अंतर उत्पन्न होता है। ये अंतर जलवायु परिवर्तन में जोखिम को आकार देते हैं।
- द जर्मनवॉच ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स -2019 के अनुसार , 181 देशों में भारत का स्थान पाँचवाॅ था, जो अत्यधिक जोखिम और संवेदनशील था।