नमस्ते योजना | 03 Oct 2024

प्रारंभिक परीक्षा:

नमस्ते योजना, शहरी स्थानीय निकाय, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), AB-PMJAY , स्वच्छता उद्यमी, अस्पृश्यता, स्वच्छ भारत मिशन, स्वयं सहायता समूह (SHG)

मुख्य परीक्षा:

भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग, मैनुअल स्कैवेंजिंग को रोकने के लिये सरकारी पहल, पुनर्वास और रोज़गार

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

3,000 से अधिक शहरी स्थानीय निकायों (ULB) से प्राप्त हालिया सरकारी आँकड़ों से पता चलता है कि नमस्ते योजना के तहत भारत के शहरों में जोखिमपूर्ण सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई में शामिल 38,000 मैनुअल स्कैवेंजरों और श्रमिकों में से 92% अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदायों से संबंधित हैं। 

परिभाषा

  • मैनुअल स्कैवेंजर: मैनुअल स्कैवेंजर वह व्यक्ति होता है जिसे अस्वास्थ्यकर शौचालयों, खुली नालियों, गड्ढों या रेलवे पटरियों से मानव मल को पूर्ण रूप से सड़ने से पहले हाथ से साफ करने, ले जाने या बटोरने के लिये नियुक्त किया जाता है, जैसा कि मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (PEMSR) में उल्लिखित है।
  • जोखिमपूर्ण सफाई: इसका तात्पर्य पर्याप्त सुरक्षात्मक उपकरण के बिना सीवर या सेप्टिक टैंक की मैन्युअल सफाई से है।
  • स्वच्छता कर्मी/सफाई कर्मचारी: स्वच्छता कार्य में नियोजित व्यक्ति, जिनमें कचरा बीनने वाले और सीवर/सेप्टिक टैंक साफ करने वाले लोग शामिल हैं, परंतु घरेलू कामगार इसमें शामिल नहीं हैं।
  • सीवर और सेप्टिक टैंक श्रमिक (SSW): सीवर और सेप्टिक टैंकों की जोखिमपूर्ण सफाई में लगे श्रमिक। 
  • सीवर एंट्री प्रोफेशनल्स (SEP): प्रशिक्षित सफाई कर्मचारी जो अनुमति और उचित सुरक्षा उपकरणों के साथ सीवर/सेप्टिक टैंकों की सफाई करते हैं, उन्हें SEP के रूप में पहचाना जाता है।

नमस्ते योजना क्या है?

  • राष्ट्रीय मशीनीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र (नमस्ते) योजना: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (MOSJE) एवं आवासन और शहरी मामलों के मंत्रालय (MOHUA) की एक संयुक्त पहल, जो मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने और सफाई कर्मचारी सुरक्षा को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
    • 349.70 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ, नमस्ते का लक्ष्य वर्ष 2025-26 तक सभी 4800 से अधिक शहरी स्थानीय निकायों को कवर करना है, जो मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास के लिये पूर्व की स्व-रोज़गार योजना (SRMS) का स्थान लेगी।
    • नवीन संशोधित योजना के अनुसार शहरी स्थानीय निकायों द्वारा नियोजित  सीवर/सेप्टिक टैंक श्रमिकों (SSW) की प्रोफाइलिंग की जाएगी।
    • इन SSW को व्यावसायिक सुरक्षा प्रशिक्षण, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) किट और स्वास्थ्य बीमा आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) प्रदान करने का प्रस्ताव है।
  • नमस्ते का लक्ष्य: इसका लक्ष्य ULB द्वारा नियोजित SSW को प्रोफाइल करना, सुरक्षा प्रशिक्षण और उपकरण प्रदान करना तथा उन्हें "सैनिप्रिन्योर्स" या स्वच्छता उद्यमियों में बदलने के लिये पूंजीगत सब्सिडी प्रदान करना है, जिससे स्वरोज़गार और औपचारिक रोज़गार के अवसरों को बढ़ावा मिले।
    • इसका मुख्य उद्देश्य सफाई कार्य में होने वाली मौतों को रोकना तथा सफाई कर्मचारियों के जीवन स्तर और स्वास्थ्य में सुधार लाना है।
      • संसद में पेश सरकारी आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 और वर्ष 2023 के बीच देश भर में कम-से-कम 377 लोगों की मौत सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई से हुई है।
  • प्रोफाइलिंग की प्रगति: सितंबर 2024 तक 3,326 ULB ने लगभग 38,000 SSW की प्रोफाइलिंग की है। 283 ULB ने ज़ीरो SSW की सूचना दी, जबकि 2,364 ने 10 से न्यून SSW की सूचना दी।
  • राज्य स्तरीय प्रयास: केरल और राजस्थान समेत 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने प्रोफाइलिंग प्रक्रिया पूरी कर ली है।
    • आंध्रप्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे 17 राज्य अभी भी इस प्रक्रिया में क्रियान्वित हैं।
    • तमिलनाडु और ओडिशा जैसे कुछ राज्य अपने अलग कार्यक्रम चला रहे हैं, जिसमें वे केंद्र को रिपोर्ट नहीं कर रहे हैं।
  • आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय का अनुमान है कि शहरी जनसंख्या आँकड़ों और दशकीय वृद्धि दर के आधार पर, वर्तमान में भारत के शहरी क्षेत्रों में लगभग 1,00,000 SSW कार्यरत हैं।

मैनुअल स्कैवेंजिंग क्या है?

  • मैनुअल स्कैवेंजिंग (MS): मैनुअल स्कैवेंजिंग (MS) से तात्पर्य सीवर या सेप्टिक टैंक में से हाथ से मानव मल को साफ करने की प्रथा से है। हालाँकि भारत में PEMSR अधिनियम, 2013 के तहत इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन यह प्रथा अभी भी जारी है। 
    • यह अधिनियम मानव मल की सफाई या प्रबंधन के लिये किसी को भी नियुक्त करने पर प्रतिबंध लगाता है तथा परिभाषा को व्यापक बनाते हुए इसमें सेप्टिक टैंक, गड्ढों या रेलवे पटरियों की सफाई को भी शामिल करता है। 
    • यह इस प्रथा को "अमानवीय" मानता है तथा मैनुअल स्कैवेंजरों द्वारा सामना किये गए ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करने का प्रयास करता है।

MS को कम करने के प्रयास: 

  • संवैधानिक सुरक्षा उपाय:
    • अनुच्छेद-14: सभी नागरिकों के लिये विधि के समान संरक्षण की गारंटी देता है, यह सुनिश्चित करता है कि हाथ से मैला ढोने वालों को जाति या व्यवसाय के आधार पर भेदभावपूर्ण प्रथाओं का सामना न करना पड़े।
    • अनुच्छेद-16: सभी के लिये समान रोज़गार के अवसर सुनिश्चित करता है, सरकारी नौकरियों में जाति-आधारित भेदभाव पर रोक लगाता है, मैनुअल स्कैवेंजरों के आर्थिक उत्थान को बढ़ावा देता है।
    • अनुच्छेद-17: अस्पृश्यता को समाप्त करता है और इसे लागू करने वालों को दंडित करता है। यह हाथ से मैला ढोने वालों को जाति-आधारित बहिष्कार और कलंक से बचाता है।
    • अनुच्छेद-21: सम्मान के साथ जीने के अधिकार को सुनिश्चित करता है तथा मैनुअल स्कैवेंजरों को अमानवीय कार्य से सुरक्षा की मांग करने के लिये कानूनी आधार प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 23: बलात श्रम के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है, यह सुनिश्चित करता है कि मैनुअल स्कैवेंजरों को उचित वेतन या सुरक्षा मानकों के बिना कठोर परिस्थितियों में काम करने के लिये मज़बूर नहीं किया जा सकता।

कानूनी ढाँचा:

  • मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013: यह अधिनियम अस्वास्थ्यकर शौचालयों के निर्माण समेत मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध लगाता है, ऐसे शौचालयों को खत्म करने या स्वच्छ शौचालयों में परिवर्तित करने का आदेश देता है।
    • इसमें कौशल विकास, वित्तीय सहायता और वैकल्पिक रोज़गार के माध्यम से मैनुअल स्कैवेंजरों की पहचान और पुनर्वास का भी प्रावधान है।
  • SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: यह अनुसूचित जातियों के लोगों को हाथ से मैला ढोने के काम में लगाने को अपराध बनाता है।

सरकारी पहल और योजनाएँ:

  • मैनुअल स्कैवेंजरों के पुनर्वास के लिये स्वरोज़गार योजना (SESRM): यह योजना पहचाने गए मैनुअल स्कैवेंजरों को स्वरोज़गार अपनाने में सहायता प्रदान करती है।
  • राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त एवं विकास निगम (NSKFDC): NSKFDC सफाई कर्मचारियों और उनके परिवारों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिये रियायती ऋण और वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
    • राष्ट्रीय गरिमा अभियान: यह मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा को समाप्त करने और मैनुअल स्कैवेंजरों के पुनर्वास के लिये एक राष्ट्रीय अभियान है।
  • स्वच्छ भारत मिशन 2.0: यह शहरी स्थानीय निकायों को सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये प्रोत्साहित करता है, तथा मशीनीकरण और सुरक्षात्मक उपायों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • स्वच्छ भारत मिशन के एक भाग के रूप में शुरू की गई सफाईमित्र सुरक्षा चुनौती (SFC) इस पहल का उद्देश्य शहरों को सीवर सफाई के लिये मशीनीकरण करने तथा मानवीय हस्तक्षेप को कम करके मृत्यु दर को रोकने के लिये प्रोत्साहित करना है।
    • दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (DAY-NULM): इसके दिशानिर्देशों में सुझाया गया है कि गठित स्वयं सहायता समूह (SHG) में कम-से-कम 10%  सदस्य सफाई कर्मियों समेत कमज़ोर व्यवसायों में लगे व्यक्ति होने चाहिये। 
      • इसके बाद इन स्वयं सहायता समूहों को अपना उद्यम चलाने का अधिकार मिल जाएगा।

जाति-आधारित व्यवसाय भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग को किस प्रकार कायम रखता है?

  • जाति पदानुक्रम और सामाजिक भेदभाव: भारतीय वर्ण व्यवस्था में दलित सामाजिक पदानुक्रम में सबसे निचले पायदान पर हैं। उन्हें अक्सर "प्रदूषणकारी" माने जाने वाले कार्यों से जोड़ा जाता है, जैसे कि मानव मल को साफ करना। 
    • यह जाति-आधारित भेदभाव न केवल उन्हें मुख्यधारा के समाज से बहिष्कृत करता है, बल्कि उन्हें शोषणकारी श्रम प्रथाओं के अधीन भी करता है। 
    • उनके काम से जुड़ा कलंक उनकी हाशिये पर स्थिति को और बढ़ा देता है, क्योंकि उन्हें ऊँची जातियों के अलावा कभी-कभी अपने समुदायों के भीतर भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
  • जजमानी प्रणाली और विरासत में मिले व्यवसाय: पारंपरिक जजमानी प्रणाली, जो विरासत में मिली जाति-आधारित भूमिकाओं को मज़बूत करती है, मैनुअल स्कैवेंजिंग को कायम रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 
    • यह विरासत उनके समुदायों में मैनुअल स्कैवेंजिंग को सामान्य बना देती है, जिससे इन व्यवसायों से बचना मुश्किल हो जाता है।
  • विकल्पों की कमी: कई दलितों को मैनुअल स्कैवेंजिंग के लिये काम करना पड़ता है क्योंकि उनके पास कोई व्यावहारिक विकल्प नहीं है। परिवार अल्प खाद्यान्न पर निर्भर हैं, क्योंकि जातिगत भेदभाव के कारण रोज़गार के अवसर सीमित हो जाते हैं, जिससे निर्धनता और बहिष्कार कायम रहता है।
  • संरचनात्मक बाधाएँ और भेदभाव: नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 जैसे विधिक ढाँचों का उद्देश्य जाति-आधारित भेदभाव को रोकना है, लेकिन इसका प्रवर्तन कमज़ोर है। PEMSR अधिनियम, 2013 की शुरुआत के बावजूद, दोषसिद्धि दर बहुत कम है, जिससे समस्या और भी बढ़ गई है।
  • मैनुअल स्कैवेंजरों को अक्सर जल, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी अधिकारों और सेवाओं तक पहुँच नहीं होती है, जिससे इस व्यवसाय की जातिगत प्रकृति मज़बूत होती है और वैकल्पिक आजीविका को आगे बढ़ाने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है।
  • शिक्षा में भेदभाव: मैला ढोने वाले परिवारों के बच्चों को स्कूलों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण उनके स्कूल छोड़ने की दर बहुत अधिक होती है। उन्हें अक्सर बहिष्कृत समझा जाता है, उन्हें धमकाया जाता है और मज़दूरी करने के लिये मज़बूर किया जाता है। 
  • भेदभाव का यह चक्र शिक्षा के अवसरों को सीमित करता है, तथा यह सुनिश्चित करता है कि अगली पीढ़ी जाति-आधारित व्यवसायों में फँसी रहे।

भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग के उन्मूलन और पुनर्वास की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • समझ और जागरूकता की कमी: PEMSR अधिनियम, 2013 में हाथ से मैला उठाने की प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। हालाँकि कई सरकारी अधिकारी भी इस बात से अनजान हैं कि किसको हाथ से मैला उठाने वाला माना जाता है। 
    • प्रायः ये व्यक्ति सफाईकर्मी या सफाई कर्मचारी के पद पर काम करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप आँकड़े अदृश्य और दोषपूर्ण संग्रहीत होते हैं।
  • अस्वास्थ्यकर शौचालयों को खत्म करने में अकुशलता: मैनुअल स्कैवेंजिंग का मूल कारण अस्वास्थ्यकर शौचालय हैं, जो धीमी और अप्रभावी प्रशासनिक कार्रवाइयों के कारण अनदेखा रह जाते हैं।
    • सामाजिक आर्थिक एवं जाति जनगणना (SECC) 2011 के अनुसार, भारत में दस लाख से अधिक अस्वास्थ्यकर शौचालय हैं, जिनमें से कई में अभी भी मल (मानव मल के लिये शब्द, जो सीवर प्रणाली या सेप्टिक टैंक के बिना क्षेत्रों से एकत्र किया गया था) को खुली नालियों में प्रवाहित किया जाता है और उन्हें मैन्युअल रूप से साफ किया जाता है। 
    • इन शौचालयों के अनिवार्य परिवर्तन या खत्म करने को सभी राज्यों में प्रभावी ढंग से क्रियान्वित नहीं किया गया है।
  • अपर्याप्त सीवेज और ड्रेनेज सिस्टम: अन्य क्षेत्रों में प्रगति के बावज़ूद भारत में अपशिष्ट जल प्रबंधन और जल निकासी प्रणाली अविकसित बनी हुई है। आधुनिक सीवेज सिस्टम में खराब योजना और अपर्याप्त निवेश के कारण मैनुअल स्कैवेंजिंग की आवश्यकता बनी रहती है।
  • कानूनी प्रतिबंधों को लागू करने में विफलता: भारत सरकार उन लोगों को दंडित करने में अप्रभावी रही है, जो अवैध रूप से मैनुअल स्कैवेंजरों को नियुक्त करना जारी रखते हैं। 
    • मैनुअल स्कैवेंजर्स रोज़गार और शुष्क शौचालय निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 और PEMSR अधिनियम, 2013 जैसे कानूनों की नियमित रूप से अनदेखी की जाती है, जिससे यह प्रथा जारी रहती है।
  • आपराधिक न्याय प्रणाली तक पहुँचने में बाधाएँ: दलितों और हाशिये के समुदायों को न्याय पाने में महत्त्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ता है, क्योंकि पुलिस अक्सर मैनुअल स्कैवेंजरों के खिलाफ अपराधों की जाँच करने से इनकार कर देती है, खासकर जब अपराधी प्रभावशाली जातियों से संबंधित हों। 
  • यह प्रणालीगत पूर्वाग्रह विधिक सुरक्षा को कमज़ोर करता है और पीड़ितों को निवारण मांगने से हतोत्साहित करता है।
  • नियोक्ताओं और समुदाय से उत्पीड़न: मैनुअल स्कैवेंजर जो अपना पेशा छोड़ना चाहते हैं, उन्हें अक्सर धमकियों, शारीरिक हिंसा और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। 
    • सामुदायिक दबाव और प्रमुख जाति समूहों के प्रतिशोध के कारण लोग शोषणकारी परिस्थितियों में फँसे रहते हैं, जिससे उनके लिये मैला ढोने का काम छोड़ना मुश्किल हो जाता है।
  • वैकल्पिक रोज़गार के अवसरों की कमी: मैनुअल स्कैवेंजर जीवित रहने के लिये दैनिक अनुदान पर निर्भर रहते हैं, जिससे वैकल्पिक आजीविका तक तत्काल पहुँच के बिना इस व्यवसाय को छोड़ना मुश्किल हो जाता है।
    • जाति और लैंगिक भेदभाव समेत सामाजिक और आर्थिक बाधाएँ, नवीन रोज़गार हासिल करने की उनकी क्षमता को सीमित करती हैं। भ्रष्टाचार इन चुनौतियों को और बढ़ा देता है, क्योंकि आरक्षित सरकारी पदों को पाने के लिये अक्सर रिश्वत की आवश्यकता होती है।
  • अपर्याप्त तिथि: मैनुअल स्कैवेंजरों की संख्या की सही पहचान करने और उसका दस्तावेज़ीकरण करने में सरकारी सर्वेक्षण अप्रभावी रहे हैं। 
    • विभिन्न स्रोतों से प्राप्त रिपोर्टों में विसंगतियाँ समस्या के न्यूनतम आकलन को उज़ागर करती हैं। व्यापक और नियमित सर्वेक्षणों के बिना, लक्षित हस्तक्षेप चुनौतीपूर्ण बने हुए हैं।

आगे की राह

  • पुनर्वास को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़ना: पुनर्वास कार्यक्रमों को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) और अन्य सामाजिक सुरक्षा कानूनों से जोड़ें। इससे मैला ढोने वाले समुदायों को रोज़गार तक पहुँच आसान होगी, जिससे इस प्रथा को समाप्त करने में मदद मिलेगी।
  • समन्वय को बढ़ावा देना: मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने के लिये एकीकृत दृष्टिकोण को सुविधाजनक बनाने के लिये प्रमुख मंत्रालयों को शामिल करते हुए एक समन्वय समिति की स्थापना करना। गैर सरकारी संगठनों और सामुदायिक संगठनों की भूमिका को मज़बूत करने से स्थानीय स्तर पर अधिनियम को लागू करने में सहायता मिल सकती है।
  • रेलवे की प्रथाओं पर ध्यान देना: भारतीय रेलवे, जो हाथ से मैला ढोने में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता है, को जैव-शौचालय अपनाना चाहिये तथा जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये संसद को नियमित प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिये।
  • लेखापरीक्षण तंत्र: नमस्ते योजना के कार्यान्वयन की नियमित निगरानी के लिये एक राष्ट्रीय स्तर की निगरानी समिति का गठन करना तथा प्रणालीगत मुद्दों की पहचान करने एवं उनका समाधान करने के लिये व्यापक सामाजिक लेखापरीक्षण करना।
  • विधायी ढाँचे में संशोधन: हाथ से मैला ढोने वालों के लिये सुरक्षा बढ़ाने और एकरूपता सुनिश्चित करने के लिये मौज़ूदा कानूनों में संशोधन करना। निगरानी एजेंसियों के बीच जवाबदेही को प्रोत्साहित करना।
  • प्रौद्योगिकी और संसाधनों में निवेश: उन्नत सफाई प्रौद्योगिकियों की खरीद के लिये स्थानीय प्राधिकारियों को पर्याप्त धनराशि आवंटित करना, जिससे मैनुअल हस्तक्षेप कम हो और सफाई कर्मचारियों के लिये कार्य स्थितियों में सुधार हो।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग को प्रतिबंधित करने वाले कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन में कौन-सी प्रणालीगत बाधाएँ उत्पन्न होती हैं? संभावित समाधानों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक

प्रश्न 1. 'राष्ट्रीय गरिमा अभियान' एक राष्ट्रीय अभियान है, जिसका उद्देश्य है: (2016)

(a) बेघर एवं निराश्रित व्यक्तियों का पुनर्वास और उन्हें आजीविका के उपयुक्त स्रोत प्रदान करना।
(b) यौनकर्मियों को उनके अभ्यास से मुक्त करना और उन्हें आजीविका के वैकल्पिक स्रोत प्रदान करना।
(c) हाथ से मैला ढोने की प्रथा को खत्म करना और हाथ से मैला ढोने वालों का पुनर्वास करना।
(d) बंधुआ मज़दूरों को मुक्त करना और उनका पुनर्वास करना।

उत्तर: (c)