बहुराज्य सहकारी समितियाँ | 22 Dec 2021
प्रिलिम्स के लिये:बहुराज्यीय सहकारिता, संविधान (97वें संशोधन) अधिनियम, 2011, सहकारिता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान। मेन्स के लिये:बहु राज्य सहकारी समितियाँ (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 में खामियाँ। |
चर्चा में क्यों?
केंद्र ने "अधिनियम में खामियों को दूर करने" के लिये बहु राज्य सहकारी समितियाँ (MSCS) अधिनियम, 2002 में संशोधन करने का निर्णय लिया है।
- इससे पहले एक नए सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया था।
प्रमुख बिंदु:
- बहु राज्य सहकारी समितियाँ (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 के बारे में:
- बहु राज्य सहकारी समितियाँ: हालाँकि सहकारी समितियाँ एक राज्य का विषय है, लेकिन कई समितियाँ जैसे कि चीनी और दूध बैंक, दूध संघ आदि हैं जिनके सदस्य व संचालन के क्षेत्र एक से अधिक राज्यों में फैले हुए हैं।
- उदाहरण के लिये कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा पर अधिकांश चीनी मिलें दोनों राज्यों से गन्ना खरीदती हैं।
- महाराष्ट्र में ऐसी सहकारी समितियों की संख्या सबसे अधिक 567 है, इसके बाद उत्तर प्रदेश (147) और नई दिल्ली (133) में हैं।
- ऐसी सहकारी समितियों को संचालित करने के लिये MSCS अधिनियम पारित किया गया था।
- कानूनी क्षेत्राधिकार: उनके निदेशक मंडल में उन सभी राज्यों का प्रतिनिधित्त्व होता है जिनमें वे काम करते हैं।
- इन समितियों का प्रशासनिक और वित्तीय नियंत्रण केंद्रीय रजिस्ट्रार के पास होता है और कानून यह स्पष्ट करता है कि राज्य सरकार का कोई भी अधिकारी उन पर कोई नियंत्रण नहीं रख सकता है।
- केंद्रीय रजिस्ट्रार का विशेष नियंत्रण राज्य के अधिकारियों के हस्तक्षेप के बिना इन समितियों के सुचारु संचालन की अनुमति देने के लिये होता था।
- बहु राज्य सहकारी समितियाँ: हालाँकि सहकारी समितियाँ एक राज्य का विषय है, लेकिन कई समितियाँ जैसे कि चीनी और दूध बैंक, दूध संघ आदि हैं जिनके सदस्य व संचालन के क्षेत्र एक से अधिक राज्यों में फैले हुए हैं।
- संबद्ध चिंताएँ:
- नियंत्रण और संतुलन की कमी: राज्य-पंजीकृत समाजों की प्रणाली में प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु कई स्तरों पर जाँच और संतुलन शामिल है, जबकि यह बहु-राज्य समाजों के मामले में मौज़ूद नहीं हैं।
- केंद्रीय रजिस्ट्रार केवल विशेष परिस्थितियों में ही सोसायटियों के निरीक्षण की अनुमति दे सकता है।
- आगे की जाँच समितियों को पूर्व सूचना देने के बाद ही की जा सकती है।
- केंद्रीय रजिस्ट्रार का कमज़ोर संस्थागत ढाँचा: केंद्रीय रजिस्ट्रार का ज़मीनी बुनियादी ढाँचा कमज़ोर होने के साथ-साथ राज्य स्तर पर कोई अधिकारी या कार्यालय भी नहीं है तथा ज़्यादातर काम या तो ऑनलाइन या पत्राचार के माध्यम से किया जाता है।
- इसके कारण शिकायत निवारण तंत्र बहुत खराब हो गया है।
- इससे कई उदाहरण सामने आए हैं जब क्रेडिट समितियों ने इन खामियों का फायदा उठाते हुए पोंजी योजनाएँ शुरू की हैं।
- नियंत्रण और संतुलन की कमी: राज्य-पंजीकृत समाजों की प्रणाली में प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु कई स्तरों पर जाँच और संतुलन शामिल है, जबकि यह बहु-राज्य समाजों के मामले में मौज़ूद नहीं हैं।
- संभावित सुधार/संशोधन:
- संस्थागत बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना: केंद्र सरकार को विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श के बाद समाजों के बेहतर शासन को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक संस्थागत बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना चाहिये। उदाहरण के लिये:
- जनशक्ति में वृद्धि।
- पारदर्शिता लाने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
- शामिल राज्य: ऐसी समितियों का प्रशासनिक नियंत्रण राज्य आयुक्तों में निहित होना चाहिये।
- संस्थागत बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना: केंद्र सरकार को विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श के बाद समाजों के बेहतर शासन को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक संस्थागत बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना चाहिये। उदाहरण के लिये:
भारत में सहकारिता
- परिभाषा
- अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता गठबंधन (International Cooperative Alliance- ICA), सहकारिता (Cooperative) को "संयुक्त स्वामित्व वाले और लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उद्यम के माध्यम से अपनी आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक सामान्य ज़रूरतों एवं आकांक्षाओं को पूरा करने हेतु स्वेच्छा से एकजुट व्यक्तियों के स्वायत्त संघ" के रूप में परिभाषित करता है।
- भारत में सफल सहकारी समितियों के उदाहरण:
- अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता गठबंधन (International Cooperative Alliance- ICA), सहकारिता (Cooperative) को "संयुक्त स्वामित्व वाले और लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उद्यम के माध्यम से अपनी आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक सामान्य ज़रूरतों एवं आकांक्षाओं को पूरा करने हेतु स्वेच्छा से एकजुट व्यक्तियों के स्वायत्त संघ" के रूप में परिभाषित करता है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान (97वाँ संशोधन) अधिनियम, 2011 द्वारा भारत में काम कर रही सहकारी समितियों के संबंध में नया भाग- IXB जोड़ा गया।
- संविधान के भाग III के अंतर्गत अनुच्छेद 19(1)(c) में "संघ और संगठन" के बाद "सहकारिता" शब्द जोड़ा गया था।
- यह सहकारी समितियाँ बनाने के अधिकार को मौलिक अधिकार (Fundamental Right) का दर्जा प्रदान करता है।
- राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (DPSP- भाग IV) में "सहकारी समितियों के प्रचार" के संबंध में एक नया अनुच्छेद 43B जोड़ा गया था।
- संविधान के भाग III के अंतर्गत अनुच्छेद 19(1)(c) में "संघ और संगठन" के बाद "सहकारिता" शब्द जोड़ा गया था।
- संविधान (97वाँ संशोधन) अधिनियम, 2011 द्वारा भारत में काम कर रही सहकारी समितियों के संबंध में नया भाग- IXB जोड़ा गया।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय
- जुलाई 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने 97वें संशोधन अधिनियम, 2011 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, भाग IX B (अनुच्छेद 243ZH से 243ZT) ने अपने सहकारी क्षेत्र पर राज्य विधानसभाओं की ’अनन्य विधायी शक्ति’ को ‘महत्त्वपूर्ण और पर्याप्त रूप से प्रभावित’ किया है।
- साथ ही 97वें संविधान संशोधन के प्रावधानों को राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित किये बिना संसद द्वारा पारित किया गया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि राज्यों के पास विशेष रूप से उनके लिये आरक्षित विषयों पर कानून बनाने की विशेष शक्ति है (सहकारिता राज्य सूची का एक हिस्सा है)।
- 97वें संविधान संशोधन के लिये अनुच्छेद 368(2) के तहत कम-से-कम आधे राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता है।
- चूँकि 97वें संविधान संशोधन के मामले में अनुसमर्थन नहीं किया गया था, इसलिये इसे रद्द कर दिया गया।
- इसने भाग IX B के प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखा, जो ‘बहु-राज्य सहकारी समितियों’ (MSCS) से संबंधित हैं।
- इसने कहा कि ‘बहु-राज्य सहकारी समितियों’ का विषय केवल एक राज्य तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसमें विधायी शक्ति भारत संघ की होगी।
- जुलाई 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने 97वें संशोधन अधिनियम, 2011 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था।