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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मॉस्किटोफिश

  • 31 Jan 2024
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मॉस्किटोफिश, गंबूसिया एफिनिस, गंबूसिया होलब्रूकी, मच्छर जनित रोग, आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ, आनुवंशिक रूप से संशोधित OX5034 मच्छर, राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम।

मेन्स के लिये:

मॉस्किटोफिश के नकारात्मक प्रभाव, मच्छर और संबंधित रोग नियंत्रण से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों में मच्छरों के बढ़ते खतरे से निपटने के उपाय के रूप में स्थानीय जल निकायों में मॉस्किटोफिश (गंबूसिया) छोड़ी गई है।

  • हालाँकि एक हालिया अध्ययन इस दृष्टिकोण के साथ अप्रत्याशित मुद्दों पर प्रकाश डालता है, जो जैविक नियंत्रण पद्धति में संभावित कमियों की ओर ध्यान दिलाता है।

मॉस्किटोफिश दृष्टिकोण और इसके संबंधित परिणाम क्या हैं? 

  • पृष्ठभूमि- मच्छर जनित रोगों का उदय:
    • पिछली सदी में वैश्विक जलवायु और निवास स्थान में बदलाव के कारण मच्छर जनित बीमारियों का प्रसार बढ़ गया है, जिससे 150 से अधिक देशों में 500 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं।
    • भारत में लगभग 40 मिलियन व्यक्ति प्रतिवर्ष इन बीमारियों से पीड़ित होते हैं, जो दशकों से लगातार सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनी हुई है।
  • मॉस्किटोफिश दृष्टिकोण:
    • दक्षिणपूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका के ताज़े पानी की मूल निवासी मॉस्किटोफिश, मच्छरों के लार्वा हेतु अपनी भूख के लिये जानी जाती है।
      • वे प्रतिदिन 250 लार्वा तक खा सकते हैं, जिससे वे मच्छरों की आबादी के खिलाफ एक संभावित हथियार बन जाते हैं।
    • मॉस्किटोफिश की दो प्रजातियाँ, गंबूसिया एफिनिस और गंबूसिया होलब्रूकी, को पर्यावरण के अनुकूल तथा टिकाऊ माना जाता था।
      • फिर भी अनपेक्षित परिणाम यह हुआ कि अमेरिका से इन मछलियों का दुनिया भर में प्रसार हुआ, जिससे पारिस्थितिक बाधा उत्पन्न हुई।
  • भारत में मॉस्किटोफिश:
    • गंबूसिया (Gambusia) को भारत में पहली बार वर्ष वर्ष 1928 में ब्रिटिश शासन के दौरान तेज़ी से फैलने वाले मच्छरों की रोकथाम करने हेतु पेश किया गया था।
    • इसके बाद भारत में सरकारी निकाय तथा निजी संगठनों ने सामूहिक रूप से गंबूसिया के माध्यम से मलेरिया से निपटने के प्रयास किया।
      • प्रारंभ में गंबूसिया मछलियों के उपयोग का उद्देश्य मच्छरों के लार्वा को नियंत्रित करना था किंतु अंततः वे आक्रामक विदेशी प्रजातियों (Invasive Alien Species) में बदल गईं।
  • मॉस्किटोफिश के नकारात्मक प्रभाव:
    • आक्रामक प्रकृति: पर्यावरणीय परिस्थितियों के परिवर्तनों के प्रति उनकी अनुकूलनशीलता तथा प्रबल सहनशीलता उनके व्यापक फैलाव में योगदान करती है जिससे वे अत्यधिक आक्रामक हो जाते हैं।
    • देशी मछली समुदायों का विघटन: उनकी प्रकृति आक्रामक होती है जिसके परिणामस्वरूप ये न केवल मच्छरों के लार्वा अपितु देशी मछली प्रजातियों के अंडों का भी भक्षण करते हैं।
      • इससे स्थानीय प्रजातियाँ, विशेषकर छोटी, सुभेद्य मछलियाँ विलुप्त हो सकती हैं।
    • विशेष प्रजातियों की हानि: उनके उपयोग से स्थानिक तथा पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण मछली प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा हो सकता है जिससे संभावित रूप से जैवविविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र के लचीलेपन को क्षति पहुँच सकती है।
      • रिपोर्टों के अनुसार भारत में गंबूसिया के प्रयोग के शुरुआत के बाद माइक्रोहिला (Microhyla) टैडपोल (राइस फ्रॉग अथवा संकीर्ण मुखी मेंढक) की संख्या प्रभावित हुई है।
  • संबंधित महत्त्वपूर्ण कदम:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने वर्ष 1982 में मच्छर नियंत्रण हेतु गंबूसिया के प्रयोग की सिफारिश करना बंद कर दिया।
    • वर्ष 2018 में भारत सरकार के राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority) ने जी.एफिनिस (G. Affinis) तथा जी.होलब्रुकी (G. Holbrooki) को आक्रामक विदेशी प्रजातियों के रूप में नामित किया।

मच्छरों के नियंत्रण के लिये जेनेटिक इंजीनियरिंग विधियाँ

  • वर्ष 2003 में ऑस्टिन बर्ट द्वारा प्रारंभ की गई जीन ड्राइव टेक्नोलॉजी का उद्देश्य विशिष्ट जीन की विरासत को बदलकर मच्छरों की आबादी को नियंत्रित करना है।
    • यह विधि प्रोटीन के साथ मच्छरों के DNA में परिवर्तन करके मच्छरों को मलेरिया जैसी बीमारियों को फैलने से रोकती है।
  • अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने वर्ष 2020 में फ्लोरिडा और टेक्सास में आनुवंशिक रूप से संशोधित OX5034 मच्छरों को पर्यावरण में छोड़ने का फैसला किया। यह मच्छर एक एंटीबायोटिक, टेट्रासाइक्लि के प्रति संवेदनशील जीन के साथ विकसित हुआ है। 
    • इसमें एक स्व-सीमित जीन होता है जो मादा संततियों को जीवित रहने से रोकता है, जिससे मच्छरों की संख्या में कमी आती है।

मच्छरों एवं उनसे संबंधित रोग नियंत्रण के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • मच्छरों के नियंत्रण में चुनौतियाँ:
    • जटिल वातावरण: भारत भर में विविध जलवायु, भूगोल और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ मच्छरों के विभिन्न प्रजनन प्रतिरूप को जन्म देती हैं।
    • कीटनाशक प्रतिरोध: मच्छरों ने आमतौर पर उपयोग किये जाने वाले कीटनाशकों और रिपेलेंट्स के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लिया है, जिसके लिये लगातार रोटेशन तथा नए विकल्पों के विकास की आवश्यकता होती है।
    • अस्वच्छता: भारत में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में खुली नालियाँ, इकट्ठा किया गया कचरा तथा रुके हुए जल स्रोत प्रचुर मात्रा में प्रजनन स्थल प्रदान करते हैं।
  • रोग नियंत्रण में चुनौतियाँ:
    • रिपोर्टिंग के अंतर्गत: सटीक आँकड़े और केंद्रित हस्तक्षेप मच्छर जनित रोग के मामलों की बड़ी संख्या के कारण बाधित होते हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जो दर्ज नहीं किये जाते हैं या गलत निदान किये जाते हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
      • इसके अलावा, दूरदराज़ के इलाकों में उचित स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुँच से इलाज में देरी होती है और जटिलताएँ बढ़ जाती हैं।
    • टीके की सीमाएँ: वर्तमान में सभी मच्छर जनित बीमारियों के लिये कोई प्रभावी टीका मौजूद नहीं है, जिससे रोकथाम मुख्य रूप से वेक्टर नियंत्रण और व्यक्तिगत सुरक्षा उपायों पर निर्भर हो गई है।

आगे की राह 

  • बेहतर स्वच्छता और बुनियादी ढाँचा: कुशल अपशिष्ट संग्रहण और निपटान शहरी क्षेत्रों में प्रजनन स्थलों को ख़त्म कर सकता है।
    •   उचित जल निकासी प्रणालियाँ स्थिर जल संचय जो मच्छरों के प्रजनन का एक प्रमुख स्रोत होता है, को रोक सकती हैं।
    • समुदायों को स्वच्छ जल भंडारण समाधान प्रदान करने से खुले कंटेनरों जो मच्छरों को आकर्षित करते हैं, पर निर्भरता कम हो सकती है।
  • एकीकृत वेक्टर प्रबंधन (Integrated Vector Management- IVM): वेक्टर जनित रोग नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम के कार्यान्वयन को त्वरित कर मच्छर से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण लागू करने की आवश्यकता है जो जैविक नियंत्रण, कीटनाशक उपयोग और पर्यावरण प्रबंधन जैसी विभिन्न रणनीतियों का समावेश है।
  • सामुदायिक जुड़ाव और शिक्षा: शैक्षिक अभियानों के माध्यम से मच्छर नियंत्रण में सार्वजनिक जागरूकता और भागीदारी को बढ़ावा देना, निवारक उपायों पर बल देना तथा सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में, ज़ीका वायरस रोग उसी मच्छर द्वारा संचरित होता है जिससे डेंगू संचरित होता है।
  2. ज़ीका वायरस रोग का लैंगिक संचरण होना संभव है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (c)


Q. 'वोलबैचिया पद्धति' का कभी-कभी निम्नलिखित में से किस एक के संदर्भ में उल्लेख होता है? (2023)

(a) मच्छरों से होने वाले विषाणु प्रसार को नियंत्रित करना
(b) शेष शस्य (क्रॉप रेज़िड्यु) से संवेष्टन सामग्री (पैकिंग मटीरियल) बनाना
(c) जैव निम्नीकरणीय प्लास्टिकों का उत्पादन करना 
(d) जैव मात्रा के उष्मा-रासायनिक रूपांतरण से बायोचार का उत्पादन करना 

उत्तर: (a)


मेन्स:

Q. उन सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों को पहचानिये जो स्वास्थ्य से संबंधित हैं। इन्हें पूरा करने के लिये सरकार द्वारा की गई कार्रवाई की सफलता की विवेचना कीजिये। (2013)

Q. नैनोटेक्नोलॉजी से आप क्या समझते हैं और यह स्वास्थ्य क्षेत्र में कैसे मदद कर रही है? (2020)

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