प्रवासी मुद्दे और सुरक्षा उपाय | 10 Mar 2023
प्रिलिम्स के लिये:मानव प्रवास, भारत के प्रवासी श्रमिक, श्रम संहिता। मेन्स के लिये:प्रवासी कल्याण के लिये कानूनी ढाँचा, श्रम संहिता के मुद्दे, प्रवास-केंद्रित नीति की आवश्यकता। |
चर्चा में क्यों?
तमिलनाडु के औद्योगिक और विनिर्माण क्षेत्र हिंदी भाषी श्रमिकों पर कथित हमलों के बाद इनके पलायन की संभावना से चिंतित हैं।
- राज्य के इस उद्योग में अनुमानित दस लाख प्रवासी श्रमिक कार्यरत हैं।
प्रवासी श्रमिकों के समक्ष मुद्दे:
- सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू:
- कई बार प्रवासियों को मेज़बान क्षेत्र द्वारा आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता है और उनके साथ दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप व्यवहार किया जाता है।
- कोई भी व्यक्ति जो एक नई संस्कृति की ओर पलायन कर रहा है, सांस्कृतिक अनुकूलन और भाषा की बाधाओं से लेकर होमसिकनेस एवं अकेलेपन जैसी कई चुनौतियों का सामना करता है।
- राजनीतिक अधिकारों और सामाजिक लाभों से बहिष्करण:
- प्रवासी श्रमिकों को मतदान के अधिकार जैसे राजनीतिक अधिकारों के अवसरों से वंचित रखा जाता है।
- इसके अलावा जीवनयापन के लिये आवश्यक और कल्याणकारी योजनाओं तथा नीतियों तक पहुँच की सुविधा पते का प्रमाण, मतदाता पहचान पत्र एवं आधार कार्ड की स्थानीय स्तर पर अनुपलब्धता उनको कई प्रकार की सुविधाओं से वंचित करती है।
- सीमांत वर्गों के सम्मुख मुद्दे:
- हालाँकि गरीब और हाशिये के समूहों के सदस्यों से घुलना-मिलना आसान नहीं होता।
प्रवासी श्रमिक कल्याण के लिये कानूनी संरचना:
- भारत में प्रवासी श्रमिक कल्याण के लिये कानूनी ढाँचा, अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम, 1979 द्वारा प्रदान किया गया है।
- इस अधिनियम के तहत ठेकेदारों को गृह और मेज़बान दोनों राज्यों से लाइसेंस प्राप्त करने की आवश्यकता होती है, यह उन व्यवसायों के पंजीकरण को अनिवार्य करता है जो प्रवासी श्रमिकों को काम पर रखते हैं। हालाँकि अधिनियम को दैनिक जीवन में पूरी तरह से उपयोग में नहीं लाया गया है।
- अधिनियम को चार व्यापक श्रम संहिताओं में समाहित किया गया है, जो हैं:
- इनके कार्यान्वयन प्रक्रिया में शिथिलता देखी जा रही है क्योंकि कई राज्यों ने अभी तक इन संहिताओं के तहत अपने नियमों/कानूनों को अंतिम रूप नहीं दिया है।
प्रवासी श्रमिकों हेतु कानूनी ढाँचे संबंधी मुद्दे:
- अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम, 1979 को राज्यों में पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है।
- छोटे स्टार्टअप और अनौपचारिक क्षेत्र सामाजिक सुरक्षा कवरेज से बाहर रह गए। छोटे स्टार्टअप, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों या 300 से कम श्रमिकों वाले छोटे प्रतिष्ठानों में श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के लिये कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवासी श्रमिकों, स्व-नियोजित श्रमिकों, गृह-आधारित श्रमिकों एवं अन्य कमज़ोर समूहों को सामाजिक सुरक्षा लाभों के तहत शामिल नहीं किया गया है।
- इससे कंपनियाँ अपने कर्मचारियों हेतु मनमानी सेवा शर्तें आरोपित कर सकती हैं।
प्रवासी कल्याण हेतु सरकार की पहल:
- केंद्र सरकार के कदम:
- केंद्र सरकार ने "प्रवासियों और प्रत्यावर्तकों की राहत और पुनर्वास" योजना के तहत 7 मौजूदा उप-योजनाओं को जारी रखने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है।
- वर्ष 2021 में नीति आयोग ने अधिकारियों और नागरिक समाज के सदस्यों के कार्यकारी उप-समूह के साथ मिलकर राष्ट्रीय प्रवासी श्रम नीति का मसौदा तैयार किया है।
- वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC) परियोजना का विस्तार और किफायती किराये के आवास परिसरों (Affordable Rental Housing Complexes- ARHC), पीएम गरीब कल्याण योजना योजना और ई-श्रम पोर्टल की शुरूआत ने प्रवासियों हेतु महत्त्वपूर्ण सुविधाएँ प्रदान की हैं।
- राज्य सरकारों के कदम:
- वर्ष 2012 में, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की मदद से, ओडिशा और आंध्र प्रदेश के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए थे, जो ओडिशा के 11ज़िलों से पलायन करने वाले मज़दूरों को तत्कालीन संयुक्त आंध्र प्रदेश में ईंट भट्टों में काम करने के लिये ट्रैक करता था।
- केरल ने प्रवासी श्रमिकों के लिये केरल में आने वाले प्रवासी श्रमिकों के बारे में डेटा बनाए रखने के साथ-साथ प्रवासी श्रमिकों को किसी भी समस्या का सामना करने में मदद करने के लिये सुविधा केंद्र स्थापित किये हैं।
- झारखंड ने वर्ष 2021 में सुरक्षित और उत्तरदायी प्रवासन पहल (SRMI) शुरू की है, जिसका उद्देश्य स्रोत के साथ-साथ गंतव्य ज़िलों में निगरानी और विश्लेषण के लिये प्रवासी श्रमिकों के व्यवस्थित पंजीकरण को सक्षम करना है।
- इसके अतिरिक्त झारखंड सरकार के हेल्प डेस्क विभिन्न राज्यों में 'श्रम वाणिज्य दूतावास' के रूप में जाने जाएंगे।
आगे की राह
- केवल एक रजिस्ट्री में श्रमिकों का नामांकन तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि उनके पास सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुँच न हो। इसलिये केंद्र सरकार के लिये राज्यों के साथ सहयोग करना और श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा में उनके कार्यों का समन्वय करना महत्त्वपूर्ण है।
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