कृषि उत्पादों पर कृषकों की तुलना में मध्यस्थों को अधिक लाभ: RBI | 11 Oct 2024

प्रारंभिक परीक्षा:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), उच्च मुद्रास्फीति, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI), थोक मूल्य सूचकांक (WPI), राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (E-NAM) मंच, किसान उत्पादक संगठन (FPO), प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-KUSUM) योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY), मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) 

मुख्य परीक्षा:

कृषि से संबंधित प्रमुख पहल, मुद्रास्फीति और खाद्य पदार्थों पर इसका प्रभाव, कृषि क्षेत्र में अवरोधक एवं प्रोत्साहनकर्त्ता के रूप में मध्यस्थों की भूमिका।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी चार कार्यपत्रों के अनुसार, फलों और सब्जियों में उच्च मुद्रास्फीति के दौरान उपभोक्ताओं के द्वारा भुगतान की गई कीमत में मध्यस्थों एवं खुदरा विक्रेताओं को किसानों की तुलना में काफी अधिक हिस्सा प्राप्त होता है।

मुद्रास्फीति 

  • परिभाषा: मुद्रास्फीति का आशय वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों का सामान्य से अधिक होना (जिससे क्रय शक्ति में कमी आती है) है।
  • माप: भारत में मुद्रास्फीति को मुख्य रूप से दो मूल्य सूचकांकों- थोक मूल्य सूचकांक (WPI) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के माध्यम से मापा जाता है।
  • मुद्रास्फीति के प्रकार:
    • मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति: वस्तुओं और सेवाओं की मांग, आपूर्ति से अधिक होने से मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति होती है।
    • लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति: उत्पादन की लागत में वृद्धि के परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं के लिये कीमतों में वृद्धि हो जाती है।
    • संरचनात्मक मुद्रास्फीति: यह मुद्रास्फीति किसी अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक कमजोरियों के कारण होती है और इससे अक्सर विकासशील देश प्रभावित होते हैं।
  • अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: मध्यम मुद्रास्फीति को अर्थव्यवस्था के लिये अच्छा संकेत माना जाता है लेकिन उच्च मुद्रास्फीति से क्रय शक्ति में कमी आने के साथ अनिश्चितता हो सकती है, जिससे बचत और निवेश पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

RBI के दस्तावेजों के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • भारतीय रिज़र्व बैंक के अर्थव्यवस्था एवं नीति अनुसंधान विभाग के चार कार्यपत्रों के अनुसार, डेयरी, पोल्ट्री और दालों की तुलना में फलों (जैसे केला, अंगूर, आम) एवं आवश्यक सब्जियों (जैसे टमाटर, प्याज, आलू) के मामले में किसानों को मुद्रास्फीति का काफी कम लाभ होता है।
  • भारत में पशुधन और मुर्गीपालन मुद्रास्फीति पर प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार:
    • किसानों को दूध के संदर्भ में उपभोक्ताओं से प्राप्त होने वाले रुपए में लगभग 70% तथा अंडों के संदर्भ में 75% भाग मिलता है।
    • पोल्ट्री मांस के संदर्भ में किसानों और एग्रीगेटर्स को संयुक्त रूप से लगभग 56% प्राप्त होता है।
    • दूध के संदर्भ में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के तहत चारे की लागत और उपलब्धता जैसे कारकों से प्रभावित मूल्य में उतार-चढ़ाव को दर्शाया जाता है।
      • दूध की उपलब्धता अधिक होने से कीमतें कम हो जाती हैं।
      • चारे की उच्च लागत के कारण दूध की कीमतें बढ़ जाती हैं।
  • भारत में फलों की मूल्य गतिशीलता और मूल्य श्रृंखला नामक शोधपत्र में अनुमान लगाया गया है कि:
    • किसानों को केले के संदर्भ में उपभोक्ता रुपए का लगभग 31%, अंगूर के संदर्भ में 35% और आम के संदर्भ में 43% प्राप्त होता है।
    • अंगूर की खेती पूंजी और श्रम प्रधान है तथा यह मूल्य में अस्थिरता मौसम, जलवायु परिस्थितियों और इनपुट लागत से प्रभावित होती है।
      • अंगूर का उत्पादन महाराष्ट्र और कर्नाटक में केंद्रित है।
      • अंगूरों का निर्यात मुख्यतः नीदरलैंड और बांग्लादेश को किया जाता है जबकि आयात चीन से किया जाता है।
  • भारत में दालों की मुद्रास्फीति पर शोध पत्र में कहा गया है कि:
    • किसानों को चना के संदर्भ में उपभोक्ता रुपए का 75%, मूँग के संदर्भ में 70% और तुअर के संदर्भ में 65% प्राप्त होता है।
    • मांग और आपूर्ति पक्ष के कारक (जैसे स्टॉक स्तर, ग्रामीण मजदूरी, इनपुट लागत और संरचनात्मक बाधाएँ) दालों की मुद्रास्फीति के निर्धारक हैं।
  • भारत में सब्जियों की मुद्रास्फीति पर शोध पत्र में अनुमान लगाया गया है कि:
    • किसानों को टमाटर के संदर्भ में 33%, प्याज के संदर्भ में 36%, आलू के संदर्भ में 37% मिलता है।
    • सब्जियों की मुद्रास्फीति को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक इनपुट लागत, वर्षा और मजदूरी के साथ-साथ मौसम की स्थिति तथा बाज़ार व्यवहार जैसे आपूर्ति पक्ष के उतार-चढ़ाव शामिल हैं।
    • लघु फसल चक्र, शीघ्र खराब होने की प्रवृत्ति, क्षेत्रीय उत्पादन संकेंद्रण तथा मौसम की स्थिति के कारण सब्जियों की कीमतें अत्यधिक अस्थिर रहती हैं।

RBI का अर्थव्यवस्था एवं नीति अनुसंधान विभाग

  • यह नीति-संबंधी निर्णय लेने में सहायता हेतु व्यापक आर्थिक नीति-उन्मुख अनुसंधान पर आधारित ज्ञान केंद्र के रूप में कार्य करता है।
  • विभाग का अनुसंधान एजेंडा भारत में प्रमुख समष्टि आर्थिक चुनौतियों से निपटता है, जिसमें मौद्रिक नीति, विकास और मुद्रास्फीति की गतिशीलता, वित्तीय बाज़ार, समष्टि आर्थिक पूर्वानुमान, बैंकिंग क्षेत्र, वित्तीय स्थिरता और बाह्य क्षेत्र प्रबंधन जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
  • DEPR, RBI की प्रमुख वैधानिक रिपोर्टों को प्रकाशित करने के लिये ज़िम्मेदार है, जिसमें वार्षिक रिपोर्ट और भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति पर रिपोर्ट शामिल है।
    • यह अन्य महत्त्वपूर्ण संसाधन भी प्रकाशित करता है, जैसे राज्य वित्त (बजट का अध्ययन), तथा भारतीय राज्यों पर सांख्यिकी पुस्तिका आदि।

RBI शोध पत्रों द्वारा सुझाए गए उपाय क्या हैं?

  • फल और सब्जियाँ:
    • निजी बाज़ारों का विस्तार: मध्यस्थों पर निर्भरता कम करना और किसानों के लिये बाज़ार पहुँच को बढ़ावा देना। 
      • ऐसे बाज़ारों का विस्तार करने से प्रतिस्पर्द्धी मूल्य निर्धारण को बढ़ावा मिलेगा तथा पारंपरिक थोक बाज़ारों (मंडियों) की  अकुशलताएँ कम होंगी।
    • सरकारी पहल: बफर स्टॉक, मूल्य स्थिरीकरण कोष (PSF) और ऑपरेशन ग्रीन्स योजना जैसे उपायों का उद्देश्य मूल्य अस्थिरता को कम करना और किसानों के लिये मूल्य प्राप्ति को बढ़ाना है।
    • ई-नाम प्लेटफॉर्म का उपयोग बढ़ाना: पारदर्शिता सुनिश्चित करने और मूल्य विकृतियों को कम करने के लिये राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (ई-नाम) प्लेटफॉर्म के उपयोग को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
    • कृषक समूहों को बढ़ावा देना: लघु और सीमांत कृषकों को सशक्त बनाने के लिये किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को बढ़ावा दिया जा रहा है। 
      • FPO कृषकों को संसाधन जुटाने, सौदेबाजी को बढ़ाने तथा इनपुट, ऋण और बाज़ार तक पहुँच में सुधार करने में सहायक हो सकते हैं। 
    • कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं का निर्माण: उन्मूलन के बाद होने वाले नुकसान को कम करने के लिये, विशेष रूप से शीघ्र खराब होने वाले फलों और सब्जियों के लिये। अपर्याप्त कोल्ड स्टोरेज के कारण भारत में लगभग 30-40% फल और सब्जियाँ नष्ट हो जाती हैं। 
      • कोल्ड स्टोरेज की अवसंरचना में निवेश को बढ़ाने से उपज की शेल्फ लाइफ बढ़ सकती है, कीमतें स्थिर हो सकती हैं तथा किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ होगा।
  • दालें:
    • बुनियादी ढाँचे में सुधार: कृषि बाज़ारों में संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता, जैसे ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में निवेश। 
      • ये उपाय दीर्घकालिक आधार पर मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करने तथा कृषकों की आय में सुधार लाने के लिये आवश्यक हैं।
    • अधिक उपज़ के लिये किस्मों का विकास: उत्पादन बढ़ाने के लिये जलवायु-अनुकूल और न्यून अवधि वाली बीज किस्मों को बढ़ावा देना।
    • उदाहरण के लिये ICAR की पूसा अरहर-16 तुअर की परिपक्वता अवधि को 180 दिनों से घटाकर 120 दिन कर देती है, जिससे उपज में 15% की वृद्धि होती है। 
    • खरीद और बफर रिज़र्व को बढ़ावा देना: बाज़ार में हस्तक्षेप के लिये घरेलू और आयातित दालों की सरकारी खरीद को मज़बूत करना। 
    • भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ के रणनीतिक बफर स्टॉक से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सहायता मिली है।
  • दुग्ध: 
    • व्यापार नीति को युक्तिसंगत बनाना: घरेलू किसानों की सुरक्षा करते हुए कीमतों को स्थिर करने के लिये  स्किम्ड मिल्क पाउडर (SMP) और मक्खन जैसे आयातित उत्पादों पर टैरिफ समायोजित करना।
    • जर्मप्लाज्म आयात को बढ़ावा देना: क्रॉसब्रीडिंग के लिये समशीतोष्ण नस्लों को प्रस्तुत करने के लिये मवेशी/भैंसों के जर्मप्लाज्म के आयात पर प्रतिबंधों को शिथिल करना, जिससे दीर्घ अवधि में दुग्ध उत्पादकता को बढ़ावा मिलेगा।
    • मूल्य शृंखला अवसंरचना को बढ़ावा देना: बल्क मिल्क चिलिंग (BMC) केंद्रों, आधुनिक डेयरी संयंत्रों और छोटी प्रसंस्करण इकाईयों  में निवेश को प्राथमिकता देना।
      • बेहतर प्रसंस्करण और भंडारण बुनियादी ढाँचे से डेयरी उत्पादों की निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ेगी।
    • एकीकृत पशु स्वास्थ्य योजनाएँ: खुरपका-मुँहपका जैसे बार-बार होने वाले रोगों से निपटने के लिये त्वरित चिकित्सा क्रियात्मक इकाईयाँ स्थापित करना।
  • पोल्ट्री क्षेत्र के लिये नीतिगत सुझाव:
    • व्यापार नीतियों की विकृतियों को दूर करना: वृहद मुद्रास्फीति को कम करने और बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने के लिये, विशेष रूप से उच्च मांग की अवधि के दौरान, पोल्ट्री आयात पर शुल्कों को युक्तिसंगत बनाना।
    • बुनियादी ढाँचे का विकास: शीत शृंखला सुविधाओं, प्रसंस्करण बुनियादी ढाँचे और कृषि प्रबंधन में सुधार के लिये FDI और सार्वजनिक-निज़ी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करना।
    • उत्पादन लागत में कमी लाना: उच्च गुणवत्ता वाले मक्का और सोयाबीन की उत्पादकता बढ़ाने के लिये नीतियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, क्योंकि पोल्ट्री फीड की लागत में इनका बड़ा भाग शामिल है। 
    • छोटे उत्पादकों के लिये संस्थागत समर्थन: गुणवत्तापूर्ण आगत और बाज़ार तक पहुँच में सुधार के लिये छोटे पोल्ट्री कृषकों के सामूहिकीकरण को प्रोत्साहित करना।
      • अमूल जैसे सहकारी मॉडल छोटे किसानों को लेन-देन की लागत कम करने और उचित मूल्य प्राप्त करने में सहायक हो सकते हैं।

कृषि से संबंधित प्रमुख पहल क्या हैं? 

निष्कर्ष

अर्थव्यवस्था में कृषकों के योगदान के बावज़ूद, उपभोक्ताओं के रुपए में उनका भाग आनुपातिक रूप से न्यूनतम है, मूलतः फलों और सब्जियों के क्षेत्र में। आय के अधिक न्यायसंगत वितरण को बढ़ावा देने और यह सुनिश्चित करने के लिये कि कृषकों को उनकी उपज के लिये उचित मुआवज़ा मिले, इन असमानताओं को दूर करना आवश्यक है। कृषकों को सशक्त बनाने, सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देने और कृषि क्षेत्र की समग्र दक्षता को बढ़ाने के लिये व्यापक नीतिगत उपाय की आवश्यकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: कृषकों के लिये आय का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिये क्या उपाय लागू किये जा सकते हैं और ये उपाय कृषि क्षेत्र की समग्र स्थिरता और संधारणीयता में कैसे योगदान दे सकते हैं?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत किसानों को निम्नलिखित में से किस उद्देश्य के लिये अल्पकालिक ऋण सुविधा प्रदान की जाती है? (2020)

  1. कृषि संपत्तियों के रखरखाव के लिये कार्यशील पूंजी 
  2. कंबाइन हार्वेस्टर, ट्रैक्टर और मिनी ट्रक की खरीद 
  3. खेतिहर परिवारों की उपभोग आवश्यकताँ 
  4. फसल के बाद का खर्च 
  5. पारिवारिक आवास का निर्माण एवं ग्राम कोल्ड स्टोरेज सुविधा की स्थापना

निम्नलिखित कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिये:

(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)


मुख्य:

Q. देश के कुछ भागों में भूमि सुधारों ने सीमांत और छोटे किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने में किस प्रकार मदद की? (2021)

Q. भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विकास करने की राह में विपणन और पूर्ति शृंखला प्रबंधन में क्या बाधाएँ हैं? क्या इन बाधाओं पर काबू पाने में ई-वाणिज्य सहायक हो सकता है? (2015)