भारतीय राजव्यवस्था
दया याचिका
- 22 Jun 2024
- 15 min read
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रपति, दया याचिका, अनुच्छेद 72, अनुच्छेद 161, न्यायिक समीक्षा, उच्चतम न्यायालय (SC), क्षमादान शक्ति, मृत्युदंड, विधि आयोग, मौलिक अधिकार, अनुच्छेद 21, प्रतिलंबन,विराम/परिहार,दंडादेश का निलंबन,लघुकरण , भारतीय न्यायपालिका मेन्स के लिये: |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने एक पाकिस्तानी नागरिक की दया याचिका को अस्वीकार कर दी जिसे वर्ष 2000 में लाल किले पर हुए आतंकी हमले के लिये मृत्युदंड दिया गया था।
दया याचिका क्या है?
- परिचय:
- दया याचिका एक औपचारिक अनुरोध है, यह अनुरोध किसी ऐसे व्यक्ति जिसे मृत्युदंड या कारावास की सज़ा दी गई हो, द्वारा राष्ट्रपति या राज्यपाल से दया की मांग करते हुए किया जाता है, जैसा भी मामला हो।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और भारत जैसे कई देशों में दया याचिका के विचार का पालन किया जाता है।
- सभी को जीवन का अधिकार प्राप्त है। इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में भी वर्णित किया गया है।
- निहित धारणा: भारत में क्षमादान शक्तियों के पीछे धारणा इस मान्यता में निहित है कि कोई भी न्यायिक प्रणाली अचूक नहीं है और संभावित न्यायिक त्रुटियों को सुधार हेतु एक तंत्र की आवश्यकता है।
- न्यायिक त्रुटियों का सुधार: यह सुरक्षा उपाय न्याय की संभावित त्रुटियों के विरुद्ध सुधारात्मक उपाय के रूप में कार्य करता है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2012 में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के 14 न्यायाधीशों ने भारत के राष्ट्रपति को अलग-अलग पत्रों में वर्ष 1990 के दशक के उन मामलों पर प्रकाश डाला, जिनमें न्यायालयों ने 15 व्यक्तियों को अनुचित तरीके से मृत्युदंड दिया था, हालाँकि उनमें से दो व्यक्तियों को बाद में मृत्युदंड दिया गया था।
- सार्वजनिक विश्वास बनाए रखना: क्षमादान शक्ति का मुख्य उद्देश्य आपराधिक न्याय व्यवस्था में सामान्य जन के विश्वास को बनाए रखना है।
- न्यायिक त्रुटियों का सुधार: यह सुरक्षा उपाय न्याय की संभावित त्रुटियों के विरुद्ध सुधारात्मक उपाय के रूप में कार्य करता है।
- संवैधानिक ढाँचा:
- भारत में संवैधानिक ढाँचे के अनुसार, दया याचिका के लिये राष्ट्रपति से अनुरोध करना अंतिम संवैधानिक उपाय है। जब एक दोषी को विधिक न्यायालय द्वारा सज़ा सुनाई जाती है तो दोषी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत भारत के राष्ट्रपति को दया याचिका प्रस्तुत कर सकता है।
- इसी प्रकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यों के राज्यपालों को क्षमादान शक्ति प्रदान की गई है।
अनुच्छेद 72 |
अनुच्छेद 161 |
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- दया याचिका दायर करने की प्रक्रिया:
- दया याचिकाओं से निपटने के लिये कोई वैधानिक लिखित प्रक्रिया नहीं है, लेकिन व्यवहार में न्यायालय में सभी राहतों को समाप्त करने के बाद दोषी व्यक्ति या उसकी ओर से उसका संबंधी राष्ट्रपति को लिखित याचिका प्रस्तुत कर सकता है।
- राष्ट्रपति की ओर से राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा याचिकाएँ प्राप्त की जाती हैं, जिन्हें बाद में गृह मंत्रालय को उनकी टिप्पणियों और सिफारिशों के लिये भेज दिया जाता है।
- दया याचिका दायर करने का आधार:
- दया या क्षमादान दोषी सिद्ध व्यक्ति के स्वास्थ्य, शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य, उसकी पारिवारिक वित्तीय स्थितियों (क्या वह रोजी रोटी का एकमात्र अर्जक है या नहीं) के आधार पर दी जाती है ।
- शत्रुघ्न चौहान बनाम भारत संघ (2014) जैसे मामलों में उच्चतम न्यायालय ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 72 अथवा अनुच्छेद 161 के तहत दया मांगने का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है और यह कार्यपालिका के विवेक या इच्छा पर निर्भर नहीं है।
- दया या क्षमादान दोषी सिद्ध व्यक्ति के स्वास्थ्य, शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य, उसकी पारिवारिक वित्तीय स्थितियों (क्या वह रोजी रोटी का एकमात्र अर्जक है या नहीं) के आधार पर दी जाती है ।
- न्यायिक समीक्षा:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों जैसे कि मरूराम बनाम भारत संघ, एपुरू सुधाकर बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और केहर सिंह बनाम भारत संघ में कहा है कि क्षमादान शक्ति के प्रयोग की न्यायिक समीक्षा संभव है, लेकिन सीमित आधार पर।
- न्यायालय ने क्षमादान शक्ति की न्यायिक समीक्षा के लिये निम्नलिखित प्रावधान बताए हैं:
- शक्तियों का प्रयोग बिना सोचे-समझे किया गया हो,
- दुर्भावनापूर्ण आशय से किया गया हो, या
- प्रासंगिक सामग्री को विचार से पृथक रखा गया हो।
दया याचिका से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय क्या हैं?
- बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य: वर्ष 1980 में, उच्चतम न्यायालय ने मृत्युदंड की संवैधानिकता को बरकरार रखा, लेकिन महत्त्वपूर्ण सुरक्षा उपाय भी स्थापित किये। न्यायालय ने कहा, "न्यायाधीशों को कभी भी खूनी (Bloodthirsty) नहीं होना चाहिये" और मृत्युदंड "दुर्लभतम मामलों को छोड़कर" नहीं दिया जाना चाहिये, जब वैकल्पिक उपाय निर्विवाद रूप से बंद हो गया हो, और सभी संभावित कम करने वाली परिस्थितियों पर विचार किया गया हो।
- तब से लेकर अब तक न्यायालय ने कई फैसलों में "मृत्युदंड की सज़ा मात्र अन्यान्यतम (The Rarest of The Rare)" मानक की पुष्टि की है।
- मारू राम बनाम भारत संघ (1981): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 72 के तहत क्षमा देने की शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर किया जाना चाहिये।
- केहर सिंह बनाम भारत संघ (1989): सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति के दायरे की विस्तार पूर्वक जाँच की थी।
- केहर सिंह मामले में, न्यायालय ने कहा कि दोषी को दया याचिका पर मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है।
- शत्रुघन चौहान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2014): इस फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दया याचिकाओं पर निर्णय लेने में अत्यधिक विलंब के कारण न्यायालय मौत की सज़ा को कम कर सकते हैं।
- विधि आयोग की रिपोर्ट: वर्ष 2015 में प्रकाशित 262वें विधि आयोग की रिपोर्ट में “आतंकवाद से संबंधित अपराधों और युद्ध छेड़ने के अलावा अन्य सभी अपराधों के लिये” मौत की सज़ा को “पूर्ण रूप से समाप्त” करने की सिफारिश की गई थी।
क्षमादान शक्ति के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
क्षमादान शक्ति के प्रकार |
विवरण |
उदाहरण |
क्षमा |
यह कानून अपराधी को अपराध से पूरी तरह मुक्त कर देता है, तथा उसकी दोषसिद्धि और उससे संबंधित सभी दण्डों को समाप्त कर देता है। |
राष्ट्रपति देशद्रोह के अनुचित आरोप में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को क्षमा प्रदान करता है। |
प्रतिलंबन |
कठोर दण्ड के स्थान पर सामान्य दण्ड दिया जाता है। |
राष्ट्रपति मृत्युदण्ड को आजीवन कारावास में परिवर्तित करता है। |
विराम/परिहार |
सज़ा की प्रकृति में परिवर्तन किये बगैर उसकी अवधि कम कर दी जाती है। |
राज्यपाल दो वर्ष के कठोर कारावास की सज़ा में से एक वर्ष की छूट प्रदान करता है। |
दंडादेश का निलंबन |
किसी सज़ा के निष्पादन को अस्थायी रूप से स्थगित कर देता है, सामान्यतः थोड़े समय के लिये। |
राष्ट्रपति किसी सज़ायाफ्ता कैदी को दया याचिका दायर करने के लिये समय देने हेतु छूट प्रदान करते हैं। |
लघुकरण |
यह वह राहत है, जो अधिक लम्बी अवधि के लिये होती है और प्रायः चिकित्सीय कारणों से होती है। |
राज्यपाल एक असाध्य रूप से बीमार कैदी को राहत प्रदान करता है ताकि वह अपने अंतिम दिन घर पर बिता सके। |
अन्य देशों के कानून क्या प्रावधान करते हैं?
- अमेरिका: अमेरिका का संविधान राष्ट्रपति को महाभियोग के मामलों के अतिरिक्त संघीय कानून के तहत अपराधों के लिये छूट या क्षमा प्रदान करने की समान शक्तियाँ प्रदान करता है। हालाँकि राज्य के कानून के उल्लंघन के मामलों में, यह शक्ति राज्य के संबंधित राज्यपाल को दी गई है।
- UK: UK में, संवैधानिक प्रमुख, मंत्रिस्तरीय सलाह पर अपराधों के लिये क्षमा या राहत दे सकता है।
- कनाडा: आपराधिक रिकॉर्ड अधिनियम के तहत राष्ट्रीय पैरोल बोर्ड को ऐसी राहत देने का अधिकार है।
निष्कर्ष
- आगे बढ़ने का मार्ग संतुलन बनाने में निहित है। पारदर्शिता को बढ़ावा देने वाले उपाय, जैसे याचिकाओं पर विचार करने हेतु स्पष्ट दिशा-निर्देश और निर्णय के लिये एक निश्चित समय-सीमा, जनता का विश्वास बढ़ा सकते हैं। इसके अतिरिक्त दया याचिका आवेदकों के लिये कानूनी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने से प्रक्रिया मज़बूत होगी।
- अंततः दया याचिका प्रणाली भारतीय न्याय प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य पूरा करती है। इसकी विशेषताओं को स्वीकार करके तथा इसकी कमियों को दूर करके, भारत इस असाधारण शक्ति का अधिक मानवीय और प्रभावी उपयोग सुनिश्चित कर सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. मृत्युदंड के संदर्भ में भारत के राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका के प्रयोग से संबंधित महत्त्व और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिये। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनः प्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिये। (2022) |