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भारत में चिकित्सा नैतिकता और उपभोक्ता अधिकार

  • 09 Oct 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चिकित्सा नैतिकता के सिद्धांत, NCDRC, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA)

मेन्स के लिये:

चिकित्सा लापरवाही के नैतिक निहितार्थ, मानवीय क्रियाकलापों में नैतिकता के निर्धारक और परिणाम

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में NCDRC ने जॉनसन एंड जॉनसन लिमिटेड पर 35 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना एक उपभोक्ता से संबंधित मामले में लगाया गया है, जिसमें कंपनी द्वारा निर्मित दोषपूर्ण हिप रिप्लेसमेंट डिवाइस से रोगी को चिकित्सा संबंधी जटिलताएँ हुई थीं।

  • इससे चिकित्सा नैतिकता और प्रोटोकॉल के सख्त पालन की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।

नोट:

हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी (हिप आर्थ्रोप्लास्टी) का उद्देश्य दर्द से राहत देना, कूल्हे के जोड़ की कार्यक्षमता में सुधार करना तथा रोगियों को बेहतर ढंग से चलने में मदद करना है। 

  • हिप प्रत्यारोपण का उपयोग गठिया या एवैस्कुलर नेक्रोसिस जैसी स्थितियों के कारण कूल्हे में होने वाले दर्द और अकड़न को कम करने के लिये किया जाता है। 
    • ये प्रत्यारोपण उपकरण विभिन्न सामग्रियों से बनाए जाते हैं जिनमें धातु, सिरेमिक और प्लास्टिक शामिल हैं, बॉल अक्सर कोबाल्ट-क्रोमियम मिश्र धातु या सिरेमिक से बनी होती है और स्टेम आमतौर पर टाइटेनियम या कोबाल्ट-क्रोमियम मिश्र धातु से बना होता है।

चिकित्सा पद्धतियों में नैतिकता से किस प्रकार निर्देशन मिलता है?

  • चिकित्सा नैतिकता: चिकित्सा नैतिकता का आशय मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में सही आचरण करना है तथा इससे किसी संस्कृति में किसी निश्चित समय पर क्या सही या गलत माना जाता है, के बीच अंतर करने में सहायता मिलती है। 
    • यह डॉक्टरों, अस्पतालों, अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों और मरीजों के प्रति दायित्वों से संबंधित है।
    • चिकित्सा पद्धति में नैतिक सिद्धांत मौलिक होते हैं तथा स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के कार्यों का मार्गदर्शन करने में अक्सर विधिक दायित्वों से अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं।
  • चिकित्सा नैतिकता के सिद्धांत: 
    • स्वायत्तता का सम्मान: उचित सूचित सहमति प्राप्त करके अपने उपचार के संबंध में सूचित विकल्प के संबंध में रोगी के अधिकार को स्वीकार करना।
    • परोपकार: इसमें संपूर्ण शल्य प्रक्रिया के दौरान रोगी के स्वास्थ्य और कल्याण को प्राथमिकता देना तथा उनके सर्वोत्तम हित में कार्य करना शामिल है।
    • अहितकर व्यवहार: एक चिकित्सा व्यवसायी/चिकित्सा उपकरण आपूर्ति करने वाली कंपनी को मरीजों को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उन्हें आवश्यक चिकित्सा देखभाल मिले। इसके साथ ही इन्हें ऐसे किसी भी लापरवाहीपूर्ण कार्य से बचना चाहिये जिससे रोगी आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल से वंचित हो सकते हैं।
    • न्याय: इसमें सभी रोगियों के साथ निष्पक्ष और समान व्यवहार करना शामिल है चाहे उनका धर्म, राष्ट्रीयता, जाति या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।
  • हिप्पोक्रेटिक ओथ/शपथ: हिप्पोक्रेटिक ओथ नव स्नातक चिकित्सा पेशेवरों के लिये एक मौलिक सिद्धांत है। आचार संहिता का पालन करने के संबंध में इसको दीक्षांत समारोहों के दौरान लिया जाता है। 
    • इसमें भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम 2002 के तहत निर्धारित सिद्धांत शामिल हैं जो मानवता की सेवा करने, चिकित्सा कानूनों का पालन करने, जीवन का सम्मान करने, रोगी कल्याण को प्राथमिकता देने, गोपनीयता बनाए रखने तथा शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने पर केंद्रित हैं। 
    • यह शपथ एक नैतिक दिशानिर्देश के रूप में कार्य करती है तथा चिकित्सकों को चिकित्सा पेशे की प्रतिष्ठित परंपराओं और नैतिक मानकों को बनाए रखने में मार्गदर्शन करती है।

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) क्या है?

परिचय:

  • राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जिसे वर्ष 1988 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA), 1986 के तहत स्थापित किया गया था।
  • NCDRC का उद्देश्य उपभोक्ता विवादों का सस्ता, शीघ्र और सुलभ समाधान सुनिश्चित करना है।
  • NCDRC का नेतृत्व भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के वर्तमान या सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश द्वारा किया जाता है।

CPA, 1986 के प्रावधान:

  • अधिकार क्षेत्र: CPA, 1986 की धारा 21 के तहत NCDRC को 2 करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की शिकायतों पर विचार करने का अधिकार मिलता है। 
    • इसके अतिरिक्त इसे राज्य आयोगों और ज़िला फोरमों द्वारा जारी आदेशों पर अपीलीय एवं पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार भी प्राप्त है।
  • अपीलीय प्राधिकारी: यदि कोई उपभोक्ता ज़िला फोरम द्वारा लिये गए निर्णय से असंतुष्ट है तो वह राज्य आयोग में अपील कर सकता है। 
    • इसके बाद भी यदि उपभोक्ता राज्य आयोग के निर्णय से असंतुष्ट है तो वह संबंधित मामले को NCDRC के समक्ष उठा सकता है।
    • इस अधिनियम की धारा 23 के अनुसार NCDRC के निर्णय से असंतुष्ट कोई भी व्यक्ति 30 दिनों के अंदर भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।
  • कवरेज का दायरा: इस अधिनियम के प्रावधानों में 'वस्तुएँ' और 'सेवाएँ' दोनों शामिल हैं।
  • उपभोक्ता मंच:
    • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA), 2019 में प्रावधान है कि दावे के मूल्य के आधार पर ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर शिकायतें दर्ज की जा सकती हैं।
      • ज़िला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (DCDRC): 50 लाख रुपए तक के दावों के लिये।
      • राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (SCDRC): 50 लाख रुपए से 2 करोड़ रुपए तक के दावों के लिये
      • राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC): 2 करोड़ रुपए से अधिक के दावों के लिये।

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA):

  • CCPA उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA), 2019 की धारा 10 के तहत स्थापित नियामक निकाय है, यह उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन और अनुचित व्यापार प्रथाओं से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है।
  • यह उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
  • CCPA की शक्तियाँ:
    • उपभोक्ता अधिकार: एक समूह के रूप में उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा और उन्हें लागू करना।
    • अनुचित व्यापार व्यवहार: व्यक्तियों को अनुचित व्यापार व्यवहार में संलग्न होने से रोकता है।
    • विज्ञापन विनियमन: CPA, 2019 की धारा 21 CCPA को झूठे या भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध निर्देश और दंड जारी करने की शक्ति प्रदान करती है।

भारत में चिकित्सा नैतिकता के मुद्दे क्या हैं?

  • सूचित सहमति: प्रायः रोगियों से अपर्याप्त या कोई सूचित सहमति प्राप्त नहीं होती है, विशेष रूप से कमज़ोर आबादी वाले नैदानिक परीक्षणों में।
    • उदाहरण: विश्व के विभिन्न हिस्सों में किये गए कोविड-19 वैक्सीन परीक्षणों को लेकर विवाद।
  • रोगी की गोपनीयता: रोगी के डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिये उपायों का अभाव है।
    • उदाहरण: वर्ष 2023 में ESIC डेटाबेस के एक महत्त्वपूर्ण डेटा उल्लंघन ने लाखों रोगियों की व्यक्तिगत स्वास्थ्य जानकारी को उज़ागर कर दिया, जिसमें आधार संख्या, चिकित्सा इतिहास और संपर्क विवरण जैसे संवेदनशील डेटा शामिल थे।
  • हितों का टकराव: ऐसे मामले सामने आते हैं, जहाँ चिकित्सा पेशेवरों की उनके द्वारा अनुशंसित उपचारों या प्रक्रियाओं में वित्तीय भागीदारी होती है।
    • वर्ष 2023 में दिल्ली के एक प्रमुख हृदय रोग विशेषज्ञ का एक स्टेंट निर्माण कंपनी के साथ वित्तीय संबंध पाया गया, जिसे परामर्श और इक्विटी हिस्सेदारी रखने पर पर्याप्त भुगतान प्राप्त हुआ था। 
  • डॉक्टर-रोगी विश्वास: स्वास्थ्य सेवा के व्यावसायीकरण और पारदर्शिता की कमी के कारण डॉक्टरों और मरीज़ों के बीच विश्वास में कमी आई है।
    • उदाहरण: सरकारी अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टर निज़ी तौर पर प्रैक्टिस करते हैं, जो मरीज़ों से मनमानी फीस वसूलते हैं।
  • नियामक निरीक्षण: नैतिक दिशा-निर्देशों के सुभेद्य प्रवर्तन और अनुपालन के परिणामस्वरूप नैदानिक परीक्षणों और रोगी की देखभाल में दुरुपयोग होता है।

आगे की राह

  • स्वास्थ्य देखभाल में नैतिक जागरूकता उत्पन्न करना: नैतिक सिद्धांतों और उनके व्यावहारिक अनुप्रयोगों पर स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को शिक्षित करने के लिये व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम और कार्यशालाएँ लागू करना। 
  • नैतिक दुविधाओं पर चर्चा को सुविधाजनक बनाने और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिये स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों के भीतर खुले संवाद और पारदर्शिता की संस्कृति को प्रोत्साहित करना।
  • संरचित संचार प्रोटोकॉल: SBAR (परिस्थिति-पृष्ठभूमि-मूल्यांकन-सिफारिश) तकनीक जैसे संरचित संचार प्रोटोकॉल को लागू करने से स्पष्टता में सुधार होने के साथ त्रुटियों में कमी आ सकती है।
    • सूचित सहमति सुनिश्चित करने में प्रक्रिया, जोखिम, लाभ और विकल्पों के संबंध में विस्तृत व्याख्या के साथ-साथ समझ का सत्यापन भी शामिल है।
  • निवारण तंत्र को मज़बूत करना: सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के माध्यम से वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) और ऑनलाइन विवाद समाधान (ODR) की मौज़ूदा अवसंरचना का उपयोग करके उपभोक्ता शिकायत समाधान को बढ़ा सकती है।
  • राष्ट्रीय उपभोक्ता लोक न्यायालय हेल्पलाइन का निर्माण: एक तकनीक-सक्षम राष्ट्रीय उपभोक्ता लोक न्यायालय हेल्पलाइन शिकायतकर्त्ताओं, कंपनियों और कानूनी अधिकारियों के बीच संचार की सुविधा प्रदान कर सकती है, जिससे त्वरित समाधान सुनिश्चित हो सके।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

Q. चिकित्सा नैतिकता क्या है? विशेष रूप से भारत में रोगी-चिकित्सक संबंधों के बिगड़ते स्वरूप में इसके महत्त्व पर चर्चा कीजिये

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक परीक्षा

प्रश्न 1. भारत में कानून के प्रावधानों के तहत 'उपभोक्ताओं' के अधिकारों/विशेषाधिकारों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2012)

  1. उपभोक्ताओं को खाद्य परीक्षण के लिये नमूने लेने का अधिकार है। 
  2. जब कोई उपभोक्ता किसी उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराता है तो कोई शुल्क नहीं देना होता है। 
  3. उपभोक्ता की मृत्यु के मामले में उसका कानूनी उत्तराधिकारी उसकी ओर से उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: c

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