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प्रबंधित देखभाल संगठन

  • 26 Jun 2024
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आयुष्मान भारत मिशन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017, प्रबंधित देखभाल संगठन (MCO), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) 

मेन्स के लिये:

भारत में MCO के लिये चुनौतियाँ, भारत में MCO विकसित करने हेतु कदम, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC)

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दक्षिण भारत में एक प्रमुख स्वास्थ्य सेवा शृंखला ने व्यापक स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्र में अपने उद्यम की घोषणा की, जिसमें एक ही छत के नीचे बीमा और स्वास्थ्य सेवा प्रावधान कार्यों को एकीकृत किया गया, जो एक प्रबंधित देखभाल संगठन (Managed Care Organisations- MCO) की तरह है।

  • संबंधित घटनाक्रम में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) के एक दस्तावज़ से यह भी पता चला है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिये सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्राप्त करने हेतु प्रति वर्ष अतिरिक्त 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी।

नोट:

  • अमेरिका में MCO: अमेरिका में MCO मुख्य रूप से शहरी, उच्च आय वाली आबादी को सेवा प्रदान करते हैं।
    • सफल MCO के लिये महत्त्वपूर्ण वित्तीय ताकत, प्रबंधकीय विशेषज्ञता और एक सुपरिभाषित लाभार्थी आधार की आवश्यकता होती है।

प्रबंधित देखभाल संगठनों (MCO) की पृष्ठभूमि क्या है?

  • परिचय:
    • MCO एक स्वास्थ्य सेवा प्रदाता है जिसका लक्ष्य उचित, लागत प्रभावी चिकित्सा उपचार प्रदान करना है।
    • अमेरिका में MCO का विकास 20वीं सदी के प्रारम्भिक प्रीपेड स्वास्थ्य सेवा प्रथाओं से हुआ।
    • 1970 के दशक में मुख्यधारा में आना: लागत प्रबंधन के लिये बीमा और सेवा कार्यों का संयोजन शुरू हुआ, जिसमें रोकथाम, शीघ्र प्रबंधन और निश्चित प्रीमियम के साथ लागत नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • विकास: MCOs ने स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में विविधता लाकर गहरी पैठ बना ली है, हालाँकि स्वास्थ्य परिणामों और निवारक देखभाल पर उनके प्रभाव के पुख्ता सबूत सीमित हैं। हालाँकि उन्होंने महंगे अस्पताल में भर्ती होने और उससे जुड़े खर्चों को कम करने में मदद की है।
  • भारत में विकास: 1980 के दशक से भारत का स्वास्थ्य बीमा क्षतिपूर्ति बीमा और अस्पताल में भर्ती होने की लागत को कवर करने पर केंद्रित रहा है, बावजूद इसके कि बाह्य रोगी परामर्श के लिये बाज़ार बड़ा है।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिये वित्तपोषण अंतराल को पाटना

  • वैश्विक एवं क्षेत्रीय वित्तपोषण आवश्यकताएँ:
    • वित्तपोषण अंतराल: निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सभी के लिये सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये उनके मौजूदा वित्त में प्रतिवर्ष अतिरिक्त 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है, जिसमें आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल कुल आवश्यक वित्त का 60.1% है। 
    • क्षेत्रीय असमानताएँ: संबद्ध विषय में अफ्रीका में वित्तपोषण अंतराल सबसे अधिक है और उसके बाद अरब राज्य, लैटिन अमेरिका और एशिया का स्थान है।
  • राजकोषीय क्षमता बढ़ाने के उपाय:
    • घरेलू संसाधन संग्रहण: प्रगतिशील कराधान, सामाजिक सुरक्षा अंशदान, तथा रोज़गार और उद्यमों को औपचारिक बनाना महत्त्वपूर्ण है।
    • ईंधन सब्सिडी: विहित और अंतर्निहित ईंधन सब्सिडी समाप्त करने से महत्त्वपूर्ण वित्त उत्पन्न किया जा सकता है।
    • ऋण प्रबंधन: कम ब्याज़ दरों पर सरकार द्वारा ऋण ग्रहण के लिये पुनः मोल-तोल करने से सामाजिक सुरक्षा के लिये वित्त की बचत की जा सकती है।
    • आधिकारिक विकास सहायता (ODA): ODA में वृद्धि करना महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर निम्न आय वाले देशों के लिये जहाँ वित्तपोषण अंतराल काफी अधिक है।

भारत में MCO के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • सीमित पहुँच: भारत में MCO मुख्य रूप से समृद्ध, शहरी आबादी को लक्षित करते हैं क्योंकि स्वास्थ्य बीमा बाज़ार शहरी क्षेत्रों पर केंद्रित है। इससे ग्रामीण परिवेश के व्यापक जनसांख्यिकी की उपेक्षा होती है और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) की दिशा में किये गए प्रयास बाधित होते हैं।
  • अनौपचारिक बाह्य रोगी देखभाल: भारत में स्वास्थ्य सेवा का एक बड़ा हिस्सा अनौपचारिक बाह्य रोगी केंद्रों पर प्रदान किया जाता है। मानकीकरण और विनियमन की यह कमी MCO के लिये देखभाल को प्रभावी ढंग से एकीकृत और प्रबंधित करना मुश्किल बनाती है।
  • मानक प्रोटोकॉल का अभाव: स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं में व्यापक रूप से स्वीकृत नैदानिक ​​प्रोटोकॉल के  व्यापक अभाव के कारण असंगत अभ्यासों को बढ़ावा मिलता है और गुणवत्ता नियंत्रण में कमी आती है, जिस पर MCO निर्भर होते हैं।।
  • आर्थिक अस्थिरता: उच्च परिचालन लागत और परिणामस्वरूप MCO योजनाओं के लिये वहनीय न होने वाले प्रीमियम के कारण वित्तीय बाधा उत्पन्न होती है। इससे अभिकर्त्ता की भागीदारी हतोत्साहित होती है और दीर्घकालिक व्यवहार्यता में बाधा उत्पन्न होती है।
  • लागत को नियंत्रित करने हेतु प्रोत्साहन का अभाव: भारत में वर्तमान स्वास्थ्य बीमा मॉडल उपभोक्ता-संचालित लागत नियंत्रण की संस्कृति को बढ़ावा नहीं देता, जो MCO का एक मुख्य सिद्धांत है।

भारत में MCO विकसित करने के लिये आवश्यक कदम क्या हैं?

  • ग्रामीण पहुँच पर ध्यान केंद्रित करना: पहुँच का विस्तार करने तथा मौजूदा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढाँचे का लाभ उठाने के लिये आयुष्मान भारत जैसी सरकारी पहल के साथ भागीदार बनना। यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के UHC के लिये किये गए प्रयासों के अनुरूप है।
  • मानकीकरण एवं विनियमन: आउट पेशेंट सेटिंग्स में मानकीकृत नैदानिक प्रोटोकॉल के विकास एवं कार्यान्वयन के लिये वकालत करना। मान्यता एवं गुणवत्ता नियंत्रण तंत्र के लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) के साथ सहयोग करना।
  • प्रौद्योगिकी एवं नवप्रवर्तन: प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने, प्रशासनिक लागत कम करने तथा ग्रामीण-शहरी अंतर को समाप्त करने हेतु टेलीमेडिसिन सेवाएँ प्रदान करने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना। यह सभी के लिये किफायती स्वास्थ्य सेवा समिति की सिफारिशों के अनुरूप है।
  • मूल्य-आधारित मूल्य निर्धारण: मूल्य-आधारित मूल्य-निर्धारण मॉडल लागू करना जो गुणवत्ता देखभाल के साथ कुशल सेवा वितरण को पुरस्कृत करते हैं। यह लागत नियंत्रण को प्रोत्साहित करता है और साथ ही नीति आयोग के सुझावों के अनुरूप है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: व्यापक पहुँच और बेहतर बुनियादी ढाँचे के लिये सरकारी संसाधनों के साथ-साथ निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देना।
  • डेटा-संचालित निर्णय-प्रक्रिया: स्वास्थ्य सेवाओं पर नज़र रखने, लागत-प्रभावी उपचार विकल्पों की पहचान करने और MCO नेटवर्क में सेवा वितरण में सुधार करने के लिये डेटा संग्रह और विश्लेषण को प्रोत्साहित करना। यह राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM) के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

MCO कार्यान्वयन में सार्वजनिक नीति की भूमिका

  • नीति आयोग की रिपोर्ट:
    • वर्ष 2021 में, नीति आयोग ने बेहतर देखभाल के माध्यम से बचत सृजित करने के लिये सदस्यता मॉडल पर आधारित एक आउट पेशेंट देखभाल बीमा योजना की सिफारिश की थी।
    • प्रबंधित देखभाल प्रणालियाँ प्रबंधन प्रोटोकॉल को सुव्यवस्थित कर सकती हैं, और साथ ही बिखरी हुई प्रथाओं को समेकित करने के साथ-साथ निवारक देखभाल पर ज़ोर दे सकती हैं, जिससे आउट पेशेंट देखभाल कवरेज के लिये एक स्थायी समाधान प्रदान किया जा सकता है।
  • आयुष्मान भारत मिशन:
    • मिशन ने PMJAY लाभार्थियों को प्राथमिकता देते हुए वंचित क्षेत्रों में अस्पताल खोलने के लिये प्रोत्साहन की घोषणा की।
    • PMJAY रोगियों और निजी ग्राहकों की सेवा हेतु MCO के लिये इसी तरह के प्रोत्साहन निर्मित किये जा सकते हैं, जिससे समय के साथ MCO के लिये जागरूकता के साथ मांग में विस्तार होगा।

निष्कर्ष

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज एक जटिल चुनौती है जिसके लिये बहुआयामी समाधानों की आवश्यकता है। प्रबंधित देखभाल संगठन (MCOs) भारत के स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देने और MCO को धीरे-धीरे लागू करने के साथ-साथ व्यापक वित्तीय रणनीतियों को अपनाने से भारत सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने की दिशा में पर्याप्त प्रगति कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. चर्चा कीजिये कि प्रबंधित देखभाल संगठन (MCO) भारत में स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने में किस प्रकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये : (2011)

  1. शिक्षा का अधिकार
  2. समानता के साथ सार्वजनिक सेवा प्राप्त करने का अधिकार
  3. भोजन का अधिकार

"मानव अधिकारों की व्यापक उद्घोषणा" के अंतर्गत उपर्युक्त में से कौन-सा/कौन-से अधिकार मानव अधिकार/अधिकारों में आता है/आते हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1,2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. भारत सरकार की एक पहल 'SWAYAM' का लक्ष्य क्या है?(2016)

(a) ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं-सहायता समूहों को प्रोत्साहित करना
(b) युवा नव-प्रयासी (स्टार्ट-अप) उद्यमियों को वित्तीय एवं तकनीकी सहयोग उपलब्ध कराना
(c) किशोरियों की शिक्षा एवं उनके स्वास्थ्य का संवर्द्धन करना
(d) नागरिकों को वहन करने योग्य एवं गुणवत्ता वाली शिक्षा निःशुल्क उपलब्ध कराना

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में 'सभी के लिये स्वास्थ्य' को प्राप्त करने के लिये समुचित स्थानीय समुदाय-स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल का मध्यक्षेप एक पूर्वापेक्षा है। व्याख्या कीजिये। (2018)

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