वानिकी रिपोर्ट में जैवविविधता: FAO | 11 Oct 2022
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य और कृषि संगठन, भारत राज्य वन रिपोर्ट, 2021, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, जैवविविधता अधिनियम 2002 मेन्स के लिये:वन संरक्षण और उसका महत्त्व, वन संसाधन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में खाद्य और कृषि संगठन द्वारा जारी "वानिकी रिपोर्ट में जैवविविधता को प्रमुखता” (Mainstreaming Biodiversity in Forestry Report) के अनुसार, 'उत्पादक वनों' में जैवविविधता को एकीकृत करना सर्वोपरि है।
- जैवविविधता को मुख्यधारा में लाना प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सतत् उपयोग को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख सार्वजनिक एवं निजी अभिकर्त्ताओं की नीतियों, रणनीतियों तथा विधियों में जैवविविधता के विचारों को लागू करने की प्रक्रिया है।
जैवविविधता को मुख्यधारा में लाने हेतु चुनौतियाँ:
- वनों की कटाई: वनों की कटाई प्रतिवर्ष 10 मिलियन हेक्टेयर (मुख्य रूप से कृषि विस्तार के लिये खासकर कम आय वाले उष्णकटिबंधीय देशों में) की खतरनाक दर से जारी है।
- अवैध वन गतिविधियाँ: अवैध लकड़ी की कटाई का अनुमान वैश्विक लकड़ी उत्पादन का 15-30% है।
- निम्न संरक्षण प्रोफाइल: संरक्षित क्षेत्रों के बाहर संरक्षण की निम्न प्रोफ़ाइल।
- अपर्याप्त क्षमता: विकासशील देश वन और जैवविविधता नियमों को लागू करने के लिये संघर्ष करते हैं।
- सहभागिता की कमी: स्वदेशी लोगों और स्थानीय सामुदायिक भागीदारी की कमी।
- कमज़ोर शासन: कमज़ोर शासन और कानून प्रवर्तन संरक्षित क्षेत्रों में जैवविविधता संरक्षण की सबसे बड़ी बाधा हैं।
वन संरक्षण का महत्त्व:
- आर्थिक लाभ के लिये प्रबंधित वन जैवविविधता संरक्षण हेतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
- वन पूरी भूमि सतह के 31% पर फैले हुए हैं, ये अनुमातः 296 गीगाटन कार्बन को संग्रहीत करते हैं और दुनिया के अधिकांश स्थलीय जीवों को आवास प्रदान करते हैं।
- दुनिया के जंगल लगभग 80% उभयचर प्रजातियों, 75% पक्षी प्रजातियों और 68% स्तनपायी प्रजातियों के लिये आवास प्रदान करते हैं। इसके अलावा सभी संवहनी पौधों का लगभग 60% उष्णकटिबंधीय जंगलों में पाया जाता है।
- जैवविविधता को बनाए रखने में वनों की भूमिका स्पष्ट रूप से वनों के लिये संयुक्त राष्ट्र रणनीतिक योजना 2017-2030 द्वारा मान्यता प्राप्त है।
- वर्ष 2019 में FAO ने कृषि क्षेत्रों में जैवविविधता को मुख्यधारा में लाने की रणनीति अपनाई।
भारत में वन और जैवविविधता संरक्षण की स्थिति:
- वन और वृक्ष आवरण:
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2021 के अनुसार, कुल वन और वृक्ष आवरण 7,13,789 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है, यह वर्ष 2019 के 21.67% से अधिक है।
- उच्चतम वन क्षेत्र/आच्छादन वाले राज्य: मध्य प्रदेश > अरुणाचल प्रदेश > छत्तीसगढ़ > ओडिशा > महाराष्ट्र।
- संवैधानिक प्रावधान:
- 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से शिक्षा, बाट और माप तथा न्याय प्रशासन के साथ वन एवं जंगली जानवरों व पक्षियों के संरक्षण को राज्य से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया था।
- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के तहत अनुच्छेद 48 A में कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार एवं देश के वनों व वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
- संविधान के अनुच्छेद 51 A (g) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्त्तव्य होगा।
भारत के वन और जैवविविधता को नियंत्रित करने वाली नीतियाँ:
- भारतीय वन अधिनियम, 1952
- वन संरक्षण अधिनियम, 1980
- राष्ट्रीय वन नीति, 1988
- राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
- जैव विविधता अधिनियम, 2002
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006
- वन (संरक्षण) नियम, 2022
रिपोर्ट की सिफारिशें:
- प्राकृतिक वनों को एक विशिष्ट वन वृक्षारोपण में बदलने से रोकना।
- लाभों के समान बँटवारे को बढ़ाने पर बल देने के साथ स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के वन अधिकार को मान्यता देना।
- पौधों और वन्यजीवों के ओवरहार्वेस्टिंग को नियंत्रित करने के लिये हार्वेस्टिंग प्रजातियों के स्थायी प्रबंधन को सुनिश्चित करना।
- अन्य भूमि उपयोग क्षेत्रों में जैवविविधता को मुख्यधारा में लाते हुए एक बहुक्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य को अपनाना।
- जैवविविधता लाभों को बढ़ावा देने और ज्ञान एवं क्षमता विकास में निवेश करने के लिये कम उत्पादन हेतु मुआवज़े जैसे आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करना।
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व प्रतिबद्धताओं का लाभ उठाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी में संलग्न होने जैसे बाज़ार-आधारित उपकरणों को सुविधाजनक बनाना।
- जैवविविधता संरक्षण को बढ़ाने के लिये बहाली (Restoration) पर वैश्विक गति का लाभ उठाना।
आगे की राह
- वन क्षेत्र में जैवविविधता को मुख्यधारा में लाने के लिये एकीकृत बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो क्षेत्रीय सीमाओं को पार करते हैं।
- वानिकी में जैवविविधता को मुख्यधारा में लाने में वन नीतियों, योजनाओं, कार्यक्रमों, परियोजनाओं और निवेशों को प्राथमिकता देना शामिल है जिनका पारिस्थितिकी तंत्र, प्रजातियों व आनुवंशिक स्तरों पर जैवविविधता का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।