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आंतरिक सुरक्षा

महाराष्ट्र विशेष लोक सुरक्षा विधेयक, 2024

  • 29 Jul 2024
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण, साइबर आतंकवाद, न्यायिक समीक्षा

मेन्स के लिये:

ज़मानत प्रावधानों से संबंधित प्रमुख न्यायिक घोषणाएँ, UAPA से संबंधित चिंताएँ, महाराष्ट्र विशेष लोक सुरक्षा विधेयक, 2024

स्रोत: डेक्कन हेराल्ड 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने शहरी क्षेत्रों में नक्सलवाद की बढ़ती उपस्थिति को संबोधित करने के उद्देश्य से एक व्यापक नया कानून, महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा (Maharashtra Special Public Security- MSPS) विधेयक, 2024 प्रस्तावित किया है।

  • यह विधेयक अपने व्यापक एवं सख्त प्रावधानों के कारण चर्चा का विषय बना हुआ है।

नोट

  • भारत में नक्सलवाद की स्थिति: वर्ष 2018 से 2023 की अवधि के दौरान वामपंथी उग्रवाद से संबंधित 3,544 घटनाएँ घटित हुईं जिनमें 949 लोगों की मृत्यु हुई
  • शहरी नक्सलवाद: 'शहरी नक्सल' या ‘अर्बन नक्सल’ शब्द माओवादी रणनीति पर आधारित है, जिसके तहत वे नेतृत्व, जनता को संगठित करने और कार्मिक तथा बुनियादी ढाँचा उपलब्ध कराने जैसे सैन्य कार्यों के लिये शहरी क्षेत्रों की ओर अग्रसर होते हैं। 
    • यह रणनीति CPI (माओवादी) के "शहरी परिप्रेक्ष्य" नामक डॉक्यूमेंट पर आधारित है, जिसमें बताया गया है कि इस रणनीति का ध्यान मज़दूर वर्ग को संगठित करने पर होना चाहिये, जो "हमारी क्रांति का नेतृत्व" है।
  • यद्यपि, शहरी नक्सल या अर्बन नक्सल शब्द की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है।

महाराष्ट्र विशेष लोक सुरक्षा विधेयक, 2024 के प्रावधान क्या हैं?

  • पृष्ठभूमि: 
    • सरकार का कहना है कि नक्सलवाद, जो परंपरागत रूप से दूर-दराज़ के क्षेत्रों तक ही सीमित रहा है, अब उन अग्रणी संगठनों के माध्यम से शहरी क्षेत्रों में घुसपैठ कर रहा है जो सशस्त्र नक्सली कैडरों के लिये रसद (लॉजिस्टिक्स) और सुरक्षित आश्रय प्रदान करते हैं।
    • विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA-मकोका) सहित मौजूदा कानून इस उभरते खतरे से निपटने के लिये अपर्याप्त प्रतीत होते हैं। 
    • MSPS विधेयक छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों के समान कानूनों के आधार पर तैयार किया गया है, जिन्होंने नक्सली गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिये लोक सुरक्षा अधिनियम लागू किये हैं।
  • विधेयक के प्रमुख प्रावधान:
    • सरकार किसी भी संगठन को उसकी गतिविधियों के आधार पर विधिविरुद्ध (unlawful) घोषित कर सकती है।
    • विधेयक में विधिविरुद्ध संगठनों से संबंधित चार मुख्य अपराधों की रूपरेखा दी गई है: सदस्य बनना, धन जुटाना, प्रबंधन करना और विधिविरुद्ध गतिविधियों में सहायता करना। 
      • दंड के रूप में 2-7 वर्ष के लिये कारावास तथा 2-5 लाख रुपए के बीच ज़ुर्माने का प्रावधान किया गया है।
    • विधेयक के अंतर्गत अपराध संज्ञेय (cognisable)- जिनमें बिना वारंट के गिरफ्तारी की अनुमति होती है तथा गैर-ज़मानती (non-bailable) होते हैं।
    • विधेयक ज़िला मजिस्ट्रेटों या पुलिस आयुक्तों को आवश्यक अनुमोदन प्रदान करने की अनुमति देकर, उच्च प्राधिकारियों से अनुमोदन की आवश्यकता को नज़रअंदाज़ करते हुए, त्वरित अभियोजन को सक्षम बनाता है।
  • UAPA से तुलना:
    • जहाँ UAPA विधिविरुद्ध क्रियाकलापों को भी लक्षित करता है वहीं MSPS विधेयक "विधिविरुद्ध क्रियाकलाप" की परिभाषा का विस्तार करता है ताकि उन कृत्यों को शामिल किया जा सके जो लोक व्यवस्था एवं कानून के प्रशासन में हस्तक्षेप करते हैं तथा जनता के बीच भय पैदा करते हैं। 
    • UAPA की परिभाषाओं को वर्षों से न्यायिक व्याख्या द्वारा परिष्कृत किया गया है, जबकि MSPS विधेयक की परिभाषाएँ स्पष्ट रूप से व्यापक हैं। 
    • इसके अलावा, MSPS विधेयक अभियोजन प्रक्रिया को सरल बनाता है, जिसके बारे में सरकार का तर्क है कि इससे देरी कम होगी और प्रवर्तन में सुधार होगा।

विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम

  • विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 को व्यक्तियों और संगठनों के कुछ विधिविरुद्ध क्रिया-कलापों के अधिक प्रभावी रोकथाम, आतंकवादी गतिविधियों तथा उनसे संबंधित मामलों से निपटने के लिये अधिनियमित किया गया था।
    • विधिविरुद्ध क्रियाकलापों को भारत के किसी भी हिस्से के हस्तांतरण या अलगाव का समर्थन करने अथवा उसे उकसाने वाली कार्रवाइयों या इसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर प्रश्न-चिह्न लगाने या उसका अनादर करने वाली कार्रवाइयों के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) को UAPA द्वारा देश भर में मामलों का अन्वेषण करने तथा मुकदमा चलाने का अधिकार दिया गया है।
  • इसमें कई संशोधन किये गए (वर्ष 2004, 2008, 2012 और 2019 में) जिसमें आतंकवादी वित्तपोषण, साइबर आतंकवाद, किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने तथा संपत्ति की ज़ब्ती से संबंधित प्रावधानों का विस्तार किया गया।
  • प्रमुख प्रावधान:
    • वर्ष 2004 तक, "विधिविरुद्ध" क्रिया-कलापों का तात्पर्य अलगाव और क्षेत्र के अधिग्रहण से संबंधित कार्यों से था। वर्ष 2004 के संशोधन के बाद, "आतंकवादी कृत्य" को भी अपराधों की सूची में जोड़ दिया गया।
      • वर्ष 2019 का संशोधन सरकार को व्यक्तियों को आतंकवादी घोषित करने का अधिकार देता है।
    • यह अधिनियम केंद्र सरकार को किसी भी क्रिया-कलाप को विधिविरुद्ध घोषित करने का पूर्ण अधिकार प्रदान करता है। यदि सरकार किसी गतिविधि/क्रिया-कलाप को विधिविरुद्ध या गैरकानूनी मानती है, तो वह आधिकारिक राज-पत्र (Official Gazette) में एक नोटिस प्रकाशित करके इसे आधिकारिक तौर पर विधिविरुद्ध घोषित कर सकती है।
    • UAPA के तहत, अन्वेषण अभिकरण गिरफ्तारी के बाद अधिकतम 180 दिनों में आरोप-पत्र दायर कर सकता है तथा न्यायालय को सूचित करने के बाद इस अवधि को आगे बढ़ाया जा सकता है।
    • भारतीय और विदेशी दोनों नागरिकों पर आरोप लगाया जा सकता है। यह अपराधियों पर एक ही तरह से लागू होगा, भले ही अपराध भारत से बाहर किसी विदेशी भूमि पर किया गया हो।
    • इसमें उच्चतम सज़ा के रूप में मृत्युदंड और आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है।
  • संबंधित निर्णय:
    • अरूप भुयान बनाम असम राज्य, 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता मात्र से किसी व्यक्ति को अपराधी नहीं माना जाएगा। ऐसा तब किया जा सकता है जब कोई व्यक्ति हिंसा का सहारा लेता है या लोगों को हिंसा के लिये उकसाता है या अव्यवस्था उत्पन्न करने के इरादे से कोई कार्य करता है।
      • हालाँकि वर्ष 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ऐसे संगठनों में केवल सदस्यता को ही अपराध माना जा सकता है, भले ही प्रत्यक्ष हिंसा न हुई हो।
    • पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम भारत संघ, 2004 में न्यायालय ने फैसला सुनाया कि यदि आतंकवाद का मुकाबला करने में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जाता है, तो यह आत्म-पराजय होगी। 
      • न्यायालय ने माना कि एक पूर्व पुलिस अधिकारी को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के सदस्य के रूप में नियुक्त किया जाना अच्छा विकल्प नहीं है क्योंकि उनका अनुभव मानवाधिकारों की रक्षा और संवर्द्धन के बजाय अपराधों की जाँच से अधिक संबंधित है। 
    • मज़दूर किसान शक्ति संगठन बनाम भारत संघ, 2018 में न्यायालय ने कहा कि सरकारी और संसदीय कार्यों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन वैध हैं, हालाँकि ऐसे विरोध प्रदर्शन तथा सभाएँ शांतिपूर्ण एवं अहिंसक होनी चाहिये।

नक्सलवाद के खिलाफ सरकार की पहल

  • वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिये राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना 2015
  • समाधान
  • आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम
  • सुरक्षा संबंधी व्यय (SRE) योजना: सुरक्षा संबंधी व्यय के लिये 10 वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों में योजना लागू की गई।
    • यह सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण और परिचालन संबंधी ज़रूरतों, वामपंथी उग्रवाद हिंसा में मारे गए/घायल हुए नागरिकों/सुरक्षा बलों के परिवारों को अनुग्रह राशि भुगतान, आत्मसमर्पण करने वाले वामपंथी उग्रवादियों के पुनर्वास, सामुदायिक पुलिसिंग, ग्राम रक्षा समितियों और प्रचार सामग्री से संबंधित है।
  • अधिकांश वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों के लिये विशेष केंद्रीय सहायता (SCA): इसका उद्देश्य सार्वजनिक अवसंरचना और सेवाओं में महत्त्वपूर्ण अंतराल को भरना है, जो आकस्मिक प्रकृति के हैं।
  • किलेबंद पुलिस स्टेशनों की योजना: इस योजना के तहत, वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में 604 किलेबंद पुलिस स्टेशनों का निर्माण किया गया है।
  • वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों के लिये सड़क संपर्क परियोजना (RCPLWE): इसका उद्देश्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों में सड़क संपर्क में सुधार करना है।

विधेयक की आलोचनाएँ और निहितार्थ क्या हैं?

  • आलोचना:
    • अस्पष्टता और अतिशयता: आलोचकों का तर्क है कि विधेयक की परिभाषाएँ बहुत अस्पष्ट तथा व्यापक हैं, जिससे दुरुपयोग हो सकता है। "सार्वजनिक व्यवस्था के लिये खतरा" और "अवज्ञा को प्रोत्साहित करना" जैसे शब्दों को व्यक्तिपरक तथा स्पष्टीकरण के लिये खुला माना जाता है।
    • नागरिक स्वतंत्रता को खतरा: ऐसी चिंताएँ हैं कि इस विधेयक का इस्तेमाल असहमति को दबाने तथा नक्सलवाद से लड़ने की आड़ में कार्यकर्त्ताओं, पत्रकारों और राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिये किया जा सकता है।
    • न्यायिक निगरानी: UAPA के विपरीत, जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के नेतृत्व वाले न्यायाधिकरण द्वारा गैरकानूनी संगठन घोषणाओं की पुष्टि की आवश्यकता होती है, MSPS विधेयक पूर्व न्यायाधीशों या पात्र व्यक्तियों के एक सलाहकार बोर्ड को यह कार्य करने की अनुमति देता है, जिससे पर्याप्त न्यायिक निगरानी के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • दुरुपयोग की संभावना: उचित नोटिस या सुनवाई के बिना संपत्ति ज़ब्त करने और बेदखल करने की अनुमति देने वाले प्रावधानों का दुरुपयोग होने की संभावना है। गैर-कानूनी संगठनों की सहायता करने के लिये गैर-सदस्यों को दंडित करने की विधेयक की शक्ति भी अतिक्रमण के बारे में चिंता उत्पन्न करती है।
  • कानूनी और सामाजिक निहितार्थ:
    • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रभाव: गैर-कानूनी गतिविधियों की व्यापक परिभाषा वैध विरोध प्रदर्शन, सरकार की आलोचना और खोजी पत्रकारिता को आपराधिक बना सकती है।
    • न्यायिक पूर्ववृत्त: न्यायालयों ने कठोर कानूनों को संकीर्ण रूप से परिभाषित करने और उनकी सख्ती से स्पष्टीकरण करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। MSPS विधेयक की व्यापक परिभाषाएँ स्थापित न्यायिक सिद्धांतों के साथ टकराव उत्पन्न कर सकती हैं।
    • नागरिक समाज की भूमिका: इस विधेयक में नागरिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की क्षमता है, जिससे मानवाधिकार संगठनों की सक्रियता तथा विरोध बढ़ सकता है, जिससे लोकतांत्रिक समाजों में सुरक्षा और स्वतंत्रता के बीच नाज़ुक संतुलन पर प्रकाश डाला जा सकता है।

निष्कर्ष

महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक, 2024, नक्सलवाद से निपटने के लिये राज्य के दृष्टिकोण में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। जबकि सरकार शहरी नक्सलवाद के उभरते खतरे से निपटने हेतु विधेयक को एक आवश्यक उपकरण के रूप में उचित ठहराती है, व्यापक और सख्त प्रावधान नागरिक स्वतंत्रता तथा संभावित दुरुपयोग के बारे में गंभीर चिंताएँ उत्पन्न करती हैं। सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने एवं लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की रक्षा के बीच संतुलन विधेयक के भावी व महाराष्ट्र के कानूनी और सामाजिक ताने-बाने पर इसके प्रभाव को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण होगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में नक्सली विद्रोह से निपटने में सरकारी नीतियों और उपायों की प्रभावशीलता पर चर्चा कीजिये। इन उपायों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स: 

प्रश्न. पिछड़े क्षेत्रों में बड़े उद्योगों के विकास करने के सरकार के लगातार अभियानों का परिणाम जनजातीय जनता और किसानों, जिनकों अनेक विस्थापनों का सामना करना पड़ता है, का विलगन (अलग करना) है। मल्कानगिरी और नक्सलबाड़ी पर ध्यान केंद्रित करते हुए, वामपंथी उग्रवादी विचारधारा से प्रभावित नागरिकों को सामाजिक तथा आर्थिक संवृद्धि की मुख्यधारा में फिर से लाने की सुधारक रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न. भारतीय संविधान की धारा 244, अनुसूचित व आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है। उनकी पाँचवीं सूची के कार्यान्वित न करने से वामपंथी पक्ष के चरम पंथ पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। (2013)

प्रश्न. भारत के पूर्वी भाग में वामपंथी उग्रवाद के निर्धारक क्या हैं? प्रभावित क्षेत्रों में खतरों के प्रतिकरार्थ भारत सरकार, नागरिक प्रशासन एवं सुरक्षा बलों को किस सामरिकी को अपनाना चाहिये? (2020)

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