भाषाई विविधता और शिक्षा | 04 Mar 2025
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की 25वीं वर्षगांठ पर संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) द्वारा जारी “लैंग्वेजेज़ मैटर: ग्लोबल गाइडेंस ऑन मल्टीलिंगुअल एजुकेशन” विषयक रिपोर्ट में वैश्विक शिक्षा परिणामों पर भाषा अवरोधों के प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है।
भाषा पर UNESCO की रिपोर्ट से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?
- शिक्षा में भाषा संबंधी बाधा: वैश्विक जनसंख्या के 40% व्यक्तियों को उस भाषा में शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा नहीं है जिसे वे बोलते या समझते हैं। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह प्रतिशत बढ़कर 90% हो जाता है, जिससे लगभग 250 मिलियन से अधिक शिक्षार्थी प्रभावित होते हैं।
- प्रवासन के कारण भाषाई विविधता बढ़ रही है, तथा 31 मिलियन से अधिक विस्थापित युवाओं को शिक्षा में भाषा संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
- उपनिवेशवाद की विरासत: अनेक उत्तर-औपनिवेशिक राष्ट्रों ने शिक्षा के माध्यम के रूप में गैर-देशी भाषाओं का उपयोग करना जारी रखा है। औपचारिक शिक्षा में स्थानीय भाषाओं को कम महत्त्व दिया जाता है, जिससे देशीय भाषा भाषी व्यक्तियों को नुकसान होता है।
- आप्रवासन और शिक्षा: आप्रवासन के कारण, विशेष रूप से उच्च आय वाले देशों में भाषाई रूप से विविधतापूर्ण कक्षाएँ विकसित हुई हैं। ये देश भाषा अर्जन सहायता, समावेशी पाठ्यक्रम और निष्पक्ष मूल्यांकन के मामले में संघर्ष करते हैं।
- नीतिगत प्रतिक्रियाएँ अलग-अलग हैं जिसमें कुछ देश द्विभाषी शिक्षा को बढ़ावा देते हैं, जबकि अन्य प्रमुख भाषा में त्वरित संलयन को प्राथमिकता देते हैं।
- कार्यान्वयन में चुनौतियाँ: बढ़ती जागरूकता के बावजूद, सीमित शिक्षक क्षमता, सामग्री के अभाव और सामुदायिक विरोध जैसी चुनौतियों से बहुभाषी शिक्षा के अंगीकरण में बाधा उत्पन्न होती है।
- नीतिगत अनुशंसाएँ: रिपोर्ट में संदर्भ-विशिष्ट भाषा नीतियों और पाठ्यक्रम समायोजन का सुझाव दिया गया है।
- शिक्षक प्रशिक्षण, बहुभाषी सामग्री और समावेशी शिक्षण परिवेश के लिये समर्थन।
- स्कूल नेतृत्व और सामुदायिक सहयोग के माध्यम से समावेशन को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया जाना।
नोट: अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस बांग्लादेश द्वारा प्रस्तावित किया गया था, जिसे वर्ष 1999 में आयोजित UNESCO महासम्मेलन के दौरान अनुमोदित किया गया था, और वर्ष 2000 से 21 फरवरी को विश्व स्तर पर मनाया जाता है।
- यह दिन बांग्लादेश द्वारा अपनी मातृभाषा बांग्ला की रक्षा के लिये किये गए संघर्ष का भी प्रतीक है।
- UNESCO संधारणीयता, सहिष्णुता, सम्मान और शांति को बढ़ावा देने के लिये सांस्कृतिक और भाषाई विविधता पर बल देता है।
भारत के भाषाई परिदृश्य का विकासक्रम किस प्रकार रहा है?
- प्रागैतिहासिक काल: यद्यपि भारत में मानव वास संस्कृत से पहले का है, परंतु प्रागैतिहासिक काल के कोई लिखित अभिलेख मौजूद नहीं है, जिससे प्रारंभिक भाषाओं का पुनर्निर्माण किया जाना कठिन हो गया है।
- सिंधु घाटी सभ्यता: सिंधु लिपि (2600-1900 ईसा पूर्व) अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है, जिससे यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि यह द्रविड़, इंडो-आर्यन या किसी अन्य भाषा परिवार के प्रारंभिक रूप का प्रतिनिधित्व करती है।
- संस्कृत, प्राकृत और तमिल का उदय: भारत में लेखन 24 शताब्दी पूर्व मुख्यतः शिलालेखों और पांडुलिपियों के माध्यम से प्रचलित हुआ था।
- संस्कृत और प्राकृत: संस्कृत एक प्रमुख साहित्यिक और विद्वत्तापूर्ण भाषा के रूप में उभरी, जबकि प्राकृत (स्थानीय शास्त्रीय मध्य भारतीय-आर्य भाषाओं का एक समूह) इसके साथ सह-अस्तित्व में रही।
- तमिल: तमिल एक स्वतंत्र शास्त्रीय भाषा के रूप में विकसित हुई, तथा संगम साहित्य (तीसरी शताब्दी ई.पू. - तीसरी शताब्दी ई.) इसकी समृद्ध साहित्यिक परंपरा का प्रतीक है।
- विदेशी और क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव:
- विदेशी भाषाएँ: इस्लामी शासन के प्रसार के साथ, फारसी और अरबी ने भारतीय भाषाओं को प्रभावित किया, जिससे उर्दू जैसे भाषाई मिश्रण का जन्म हुआ।
- पिछले 5,000 वर्षों में भारत ने अवेस्तान, ऑस्ट्रो-एशियाटिक, तिब्बती-बर्मी और इंडो-आर्यन जैसी भाषाओं को आत्मसात किया, जिससे एक समृद्ध भाषाई विरासत का निर्माण हुआ।
- द्रविड़ियन और तिब्बती-बर्मन विकास: पूर्वोत्तर की द्रविड़ भाषाएँ ( तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम) और तिब्बती-बर्मी भाषाएँ क्षेत्रीय साहित्य और प्रशासनिक उपयोग के साथ समृद्ध हुईं।
- विदेशी भाषाएँ: इस्लामी शासन के प्रसार के साथ, फारसी और अरबी ने भारतीय भाषाओं को प्रभावित किया, जिससे उर्दू जैसे भाषाई मिश्रण का जन्म हुआ।
- मुद्रण क्रांति: कागज़ के उपयोग और बाद में मुद्रण ने साक्षरता में परिवर्तन किया, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं में पुस्तकों का बड़े पैमाने पर उत्पादन हुआ।
- औपनिवेशिक काल के बाद भाषा परिवर्तन:
- औपनिवेशिक प्रभाव: ब्रिटिश शासन के तहत अंग्रेज़ी प्रशासन, शिक्षा और आर्थिक अवसर की भाषा बन गई।
- फारसी और संस्कृत का ह्रास: जैसे-जैसे अंग्रेज़ी को प्रमुखता मिली, प्रशासन में फारसी का ह्रास हुआ और संस्कृत केवल धार्मिक और विद्वानों के प्रयोग तक ही सीमित रह गयी।
- आधुनिक भारतीय भाषाओं का उद्भव: हिंदी, तमिल, बंगाली, कन्नड़, मराठी और तेलुगु जैसी क्षेत्रीय भाषाओं को साहित्यिक और राजनीतिक मान्यता प्राप्त हुई।
- भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं के बोलने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है, जबकि इसमें शामिल न की गई भाषाओं की संख्या में गिरावट आई है।
- आदिवासी समुदायों, विशेषकर ऑस्ट्रो-एशियाई और तिब्बती-बर्मन परिवारों द्वारा बोली जाने वाली कई भाषाएँ, जनसांख्यिकीय बदलाव के कारण विलुप्तता का सामना कर रही हैं।
- प्रिंट पूंजीवाद और डिजिटल प्रौद्योगिकी के उदय के बावजूद, अंग्रेज़ी का विकास भारतीय भाषाओं, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, के लिये एक चुनौती है।
- भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं के बोलने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है, जबकि इसमें शामिल न की गई भाषाओं की संख्या में गिरावट आई है।
नोट: शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 दोनों शिक्षा में मातृभाषा के महत्त्व पर ज़ोर देते हैं।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने और बहुभाषी शिक्षा के माध्यम से प्रभावी, समावेशी शिक्षा सुनिश्चित करने के लिये ग्रेड 5 तक, बेहतर होगा कि ग्रेड 8 तक, शिक्षण के माध्यम के रूप में घरेलू भाषा/मातृभाषा का उपयोग करने की सिफारिश की गई है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत के भाषाई परिदृश्य को आकार देने में प्रवासन तथा विस्थापित लोगों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। शिक्षा प्रणालियों का इस बढ़ती विविधता के साथ किस प्रकार समन्वय हो सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (B) सही उत्तर है। प्रश्न: भारत के संदर्भ में 'हाइबी, हो और कुई' शब्द निम्नलिखित से संबंधित हैं: (2021) (a) उत्तर-पश्चिम भारत के नृत्य रूप उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। |