भारतीय इतिहास
सिंधु घाटी की भाषायी संस्कृति
- 23 Aug 2021
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प्रिलिम्स के लिये:सिंधु घाटी सभ्यता, बाल्कन प्रायद्वीप, अक्कादियन, यूनेस्को मेन्स के लिये:सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएँ एवं पतन के कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही के एक नए शोध पत्र ने सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization- IVC) की भाषायी संस्कृति पर कुछ नई अंतर्दृष्टि प्रदान की है।
- इससे पहले एक अध्ययन में पाया गया था कि आईवीसी के लोगों के आहार में मांस का प्रभुत्व था, जिसमें बीफ का व्यापक तौर पर सेवन भी शामिल था।
- जुलाई 2021 में यूनेस्को (UNESCO) ने गुजरात के धोलावीरा शहर को भारत की 40वीं विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया।
प्रमुख बिंदु
आईवीसी और द्रविड़ भाषा:
- आईवीसी की भाषा की जड़ें प्रोटो-द्रविड़ियन (Proto-Dravidian) में हैं, जो सभी आधुनिक द्रविड़ भाषाओं की पैतृक भाषा है।
- आईवीसी की एक विशेष आबादी की बुनियादी शब्दावली प्रोटो-द्रविड़ियन रही होगी या सिंधु घाटी क्षेत्र में पैतृक द्रविड़ भाषाएँ बोली जाती रही होंगी।
- पैतृक द्रविड़ भाषाओं के बोलने वालों की सिंधु घाटी क्षेत्र सहित उत्तरी भारत में अधिक ऐतिहासिक उपस्थिति थी, जहाँ से ये प्रवास करते थे।
- प्रोटो-द्रविड़ियन सिंधु घाटी क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषाओं में से एक थी।
- इस नए शोध का दावा है कि आईवीसी के दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषाओं के एक या एक से अधिक समूह थे।
आईवीसी और अन्य सभ्यताएँ:
- अक्कादियन (Akkadian- प्राचीन मेसोपोटामिया में बोली जाने वाली भाषा) के कुछ शब्दों की जड़ें सिंधु घाटी में थीं।
- अध्ययन ने आईवीसी और फारस की खाड़ी के साथ-साथ मेसोपोटामिया के बीच संपन्न व्यापार संबंधों को ध्यान में रखा।
- मेसोपोटामिया की सभ्यताएँ जो वर्तमान इराक और कुवैत की टाइग्रिस तथा यूफ्रेट्स नदियों के तट पर बसी थीं।
- हाथी दाँत विलासिता के सामानों में से एक था और पुरातात्विक तथा प्राणीशास्त्रीय साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि सिंधु घाटी मध्य-तीसरी से दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में हाथी दाँत का एकमात्र आपूर्तिकर्त्ता था।
- आमतौर पर भूमध्य सागर के पूर्वी तटों के आसपास की भूमि, जिसमें उत्तर-पूर्वी अफ्रीका, दक्षिण-पश्चिमी एशिया और कुछ बाल्कन प्रायद्वीप (Balkan Peninsula) शामिल हैं।
- चूँकि प्राचीन फारस के लोग मेसोपोटामिया और IVC व्यापारियों के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करते थे, आईवीसी के हाथी दाँत का निर्यात करते समय इन्होंने यकीनन मेसोपोटामिया में भी भारतीय शब्दों का प्रसार किया था।
सिंधु घाटी सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता के विषय में:
- सिंधु सभ्यता जिसे सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे पुरानी ज्ञात शहरी संस्कृति है।
- हड़प्पा नामक स्थान पर पहली बार यह संस्कृति खोजी गई थी, इसलिये इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।
- विश्व की तीन सबसे शुरुआती सभ्यताओं यथा- मेसोपोटामिया और मिस्र से सिंधु सभ्यता व्यापक थी।
समय-सीमा:
- इसकी स्थापना लगभग 3300 ईसा पूर्व में हुई थी। यह 2600 ईसा पूर्व और 1900 ईसा पूर्व के बीच अपनी परिपक्व अवस्था में प्रवेश कर चुकी थी। 1900 ईसा पूर्व के आसपास इसका पतन होना शुरू हो गया तथा 1400 ईसा पूर्व के आसपास यह सभ्यता समाप्त हो गई।
भौगोलिक विस्तार:
- भौगोलिक रूप से यह सभ्यता पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, राजस्थान, गुजरात और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैली थी।
- इनमें सुत्काग्गोर (बलूचिस्तान में) से पूर्व में आलमगीरपुर (पश्चिमी यूपी) तक तथा उत्तर में मांडू (जम्मू) से दक्षिण में दायमाबाद (अहमदनगर, महाराष्ट्र) तक के क्षेत्र शामिल थे। कुछ सिंधु घाटी स्थल अफगानिस्तान में भी पाए गए हैं।
महत्त्वपूर्ण साइट:
- कालीबंगा (राजस्थान), लोथल, धोलावीरा, रंगपुर, सुरकोटडा (गुजरात), बनवाली (हरियाणा), रोपड़ (पंजाब)।
- पाकिस्तान में: हड़प्पा (रावी नदी के तट पर), मोहनजोदड़ो (सिंध में सिंधु नदी के तट पर), चन्हुदड़ो (सिंध में)।
कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ:
- सिंधु घाटी के शहर इतने परिष्कृत और उन्नति का स्तर प्रदर्शित करते हैं जो अन्य समकालीन सभ्यताओं में नहीं देखा गया।
- अधिकांश शहर समान पैटर्न पर बने थे।
- इनके दो भाग थे: गढ़ और निचला शहर जो कि समाज में पदानुक्रम की उपस्थिति को दर्शाता है।
- अधिकांश शहरों में एक बड़ा स्नानागार था।
- अन्न भंडार, पकी हुई ईंटों से बने दो मंजिला घर, बंद जल निकासी लाइनें और अपशिष्ट जल प्रबंधन की बेहतर प्रणाली के साथ ही यहाँ खिलौने, बर्तन आदि भी मिले।
- यहाँ बड़ी संख्या में मुहरें पाई गई है।
कृषि:
- कपास की खेती करने वाली पहली सभ्यता।
- पशुपालन के तहत भेड़, बकरी और सूअर को भी पाला जाता था।
- फसलें गेहूँ, जौ, कपास, रागी, खजूर और मटर थीं।
- सुमेरियों (मेसोपोटामिया) के साथ व्यापार किया जाता था।
धातु उत्पाद:
- जिनका उत्पादन किया जाता था उनमें तांबा, कांस्य, टिन और सीसा शामिल थे। सोना-चाँदी भी ज्ञात थे।
- लोहे का ज्ञान उन्हें नहीं था।
धार्मिक विश्वास:
- मंदिर या महल जैसी कोई संरचना नहीं मिली है।
- लोग नर और मादा देवताओं की पूजा करते थे।
- खुदाई में एक ऐसी मुहर प्राप्त हुई जिसे 'पशुपति सील (Pashupati Seal) नाम दिया गया था और यह तीन आँखों वाली आकृति की छवि जैसी दिखती है।
मिट्टी के बर्तन:
- खुदाई में काले रंग में डिज़ाइन किये गए लाल मिट्टी के उत्कृष्ट बर्तनों के टुकड़े पाए गए हैं।
- फेएन्स (Faience) का उपयोग मोतियों, चूड़ियों, झुमके और बर्तन बनाने के लिये किया जाता था।
आर्ट फार्म:
- मोहनजोदड़ो से 'डांसिंग गर्ल (Dancing Girl) की एक मूर्ति मिली है और माना जाता है कि यह 4000 वर्ष पुरानी है।
- मोहनजोदड़ो से एक दाढ़ी वाले पुजारी-राजा की आकृति भी मिली है।
अन्य तथ्य:
- लोथल एक पोतगाह (Dockyard- जहाज़ बनाने का स्थान) था।
- मृत लोगों को लकड़ी के ताबूतों में दफन किया जाता था।
- सिंधु घाटी की लिपि का अभी तक स्पष्टीकरण नहीं हो पाया है।
प्रोटो-द्रविड़ भाषा
- यह द्रविड़ भाषाओं की जननी मानी जाती है। प्रोटो-द्रविड़ियन ने 21 द्रविड़ भाषाओं को जन्म दिया।
द्रविड़ भाषाएँ
- द्रविड़ भाषाएँ लगभग 70 भाषाओं का एक परिवार है जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया में बोली जाती हैं। ये भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका में 215 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं।
- सबसे अधिक बोली जाने वाली द्रविड़ भाषाएँ (बोलने वालों की संख्या के अवरोही क्रम में) तेलुगू, तमिल, कन्नड़ और मलयालम हैं, जिनमें से सभी की लंबी साहित्यिक परंपराएँ हैं। छोटी साहित्यिक भाषाएँ तुलु और कोडवा हैं।
- कई द्रविड़-भाषी अनुसूचित जनजातियाँ भी हैं जैसे-पूर्वी भारत में कुरुख और मध्य भारत में गोंडी।
- अरब सागर के तटों के साथ द्रविड़ में स्थानों के नाम और द्रविड़ व्याकरणिक प्रभाव जैसे कि इंडो-आर्यन भाषाओं की विशिष्टता, अर्थात् मराठी, गुजराती, मारवाड़ी और सिंधी से पता चलता है कि द्रविड़ भाषाएँ भारतीय उपमहाद्वीप में अधिक व्यापक रूप से बोली जाती थीं।