शासन व्यवस्था
SC सूची को संशोधित करने में राज्यों की असमर्थता
- 17 Jul 2024
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प्रिलिम्स के लिये:अनुसूचित जाति की स्थिति के लिये मानदंड, संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950, भारत का महारजिस्ट्रार मेन्स के लिये:अनुसूचित जाति की स्थिति के लिये मानदंड और दलित ईसाइयों और मुस्लिम व्यक्तियों को शामिल करने के पक्ष और विपक्ष में तर्क |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) ने फैसला दिया कि राज्यों को संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जाति (Scheduled Caste- SC) सूची में परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है।
- यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब न्यायालय ने वर्ष 2015 की बिहार सरकार की अधिसूचना को रद्द कर दिया है, जिसमें तांती-तंतवा (Tanti-Tantwa) समुदाय को अनुसूचित जाति (SC) के रूप में वर्गीकृत करने की मांग की गई थी तथा इस तरह के वर्गीकरण को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक प्रावधानों का सख्ती से पालन करने के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया था।
नोट:
- तांती-तंतवा एक हिंदू जाति है जो भारत में बुनकर और कपड़ा व्यापारी समुदाय से संबंधित है। इस समुदाय की गुजरात, महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम तथा ओडिशा जैसे राज्यों में महत्त्वपूर्ण उपस्थिति है।
मामले की पृष्ठभूमि और सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय क्या है?
- मामले की पृष्ठभूमि:
- तांती-तंतवा समुदाय को पहले बिहार पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिये) अधिनियम, 1991 के तहत अत्यंत पिछड़ा वर्ग (Extremely Backward Class- EBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
- 1 जुलाई, 2015 को बिहार सरकार ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (State Commission for Backward Classes- SCBC) की सिफारिश के आधार पर तांती-तंतवा समुदाय को SC सूची में विलय करने का प्रस्ताव जारी किया।
- इस निर्णय का उद्देश्य तांती-तंतवा समुदाय को अनुसूचित जाति का लाभ पहुँचाना था और इसे 2017 में पटना उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था, लेकिन बाद में इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- अदालत ने कहा कि राज्य सरकार को संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जाति सूची में बदलाव करने का कोई अधिकार नहीं है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 341(1) भारत के राष्ट्रपति को विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अनुसूचित जाति निर्दिष्ट करने की शक्ति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 341(2) संसद को इस सूची को संशोधित करने का अधिकार देता है। इस प्रकार, SC सूची में किसी भी बदलाव के लिये संविधान में संशोधन की आवश्यकता होती है।
- न्यायालय ने कहा कि बिहार सरकार ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया और भारत के महापंजीयक से परामर्श नहीं किया, जिन्होंने तांती/तंतवा को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने के प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया।
- न्यायालय ने राज्य सरकार की अधिसूचना को "दुर्भावनापूर्ण" और अक्षम्य "शरारत" करार दिया, जिससे वास्तविक अनुसूचित जाति के सदस्यों को उनके उचित लाभों से वंचित किया गया।
- न्यायालय ने प्रस्ताव को रद्द तो कर दिया, लेकिन प्रस्ताव से पहले ही लाभान्वित हो चुके लोगों के मामले में संतुलित रुख अपनाया। न्यायालय ने निर्देश दिया कि ऐसे व्यक्तियों को उनकी मूल ईबीसी श्रेणी में समायोजित किया जाना चाहिये और जिन एससी कोटे के पदों पर वे बैठे थे, उन्हें एससी श्रेणी में वापस कर दिया जाना चाहिये।
- अदालत ने कहा कि राज्य सरकार को संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जाति सूची में बदलाव करने का कोई अधिकार नहीं है।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के निहितार्थ:
- यह निर्णय संवैधानिक योजना की पुष्टि करता है, जिसके अनुसार केवल संसद ही अनुसूचित जाति की सूची में परिवर्तन कर सकती है तथा राज्य सरकारें एकतरफा तरीके से उसमें बदलाव नहीं कर सकती हैं।
- यह निर्णय वास्तविक अनुसूचित जाति सदस्यों के हितों की रक्षा करता है, यह सुनिश्चित करके कि उनके लिये निर्धारित लाभ अन्य समुदायों को न दिये जाएँ।
- यह निर्णय एससी सूची के संबंध में विधानमंडल और कार्यपालिका की शक्तियों को स्पष्ट रूप से चित्रित करके शक्ति के पृथक्करण को बरकरार रखता है।
- यह अन्य राज्यों के लिये एक मिसाल बन सकता है जो एससी/एसटी सूचियों में अनधिकृत परिवर्तन करने का प्रयास कर रहे हैं, जो पूरे देश में एक आम मुद्दा है।
अनुसूचित जाति (SC) सूची में संशोधन/परिवर्तन की प्रक्रिया क्या है?
- अनुसूचित जाति सूची में संशोधन/परिवर्तन की प्रक्रिया:
- पहल और जाँच: राज्य सरकार किसी समुदाय को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने या बाहर करने का प्रस्ताव करती है, जिसकी सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जाँच की जाती है।
- इसके बाद प्रस्ताव का सामाजिक-आर्थिक कारकों और ऐतिहासिक आँकड़ों के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है, जिसमें भारत के महापंजीयक की भी राय ली जाती है।
- विशेषज्ञ परामर्श और मंत्रिमंडल की मंज़ूरी: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) प्रस्ताव पर विशेषज्ञ अनुशंसाएँ प्रदान करता है।
- इसके पश्चात् मंत्रिमंडल NCSC की अनुशंसाओं और अन्य कारकों पर विचार करते हुए प्रस्ताव की समीक्षा करता है तथा प्रस्तावित संशोधनों के लिये मंज़ूरी प्रदान करता है।
- संसदीय प्रक्रिया: संसद में एक संविधानिक संशोधन विधेयक पेश किया जाता है जिसमें अनुसूचित जाति सूची में प्रस्तावित संशोधनों का विवरण दिया जाता है।
- इस विधेयक के पारित होने के लिये विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है यानी दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करने वाले कुल सदस्यों का बहुमत तथा साथ ही प्रत्येक सदन में उपस्थित कुल सदस्यों का बहुमत।
- राष्ट्रपति की स्वीकृति और कार्यान्वयन: दोनों सदनों द्वारा पारित होने के बाद विधेयक को राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिये भेजा जाता है। राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति दिये जाने के उपरांत अनुसूचित जाति सूची में किये गए संशोधन आधिकारिक रूप से क्रियान्वित हो जाते हैं।
- पहल और जाँच: राज्य सरकार किसी समुदाय को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने या बाहर करने का प्रस्ताव करती है, जिसकी सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जाँच की जाती है।
- अनुसूचित जाति सूची में शामिल किये जाने हेतु मानदंड:
- अस्पृश्यता की परंपरागत प्रथा से समुदायों में उत्पन्न अत्यधिक सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन।
भारत का महारजिस्ट्रार
- भारत के महारजिस्ट्रार कार्यालय की स्थापना वर्ष 1961 में गृह मंत्रालय के अधीन भारत सरकार द्वारा की गई थी।
- यह भारत की जनगणना और भारतीय भाषाई सर्वेक्षण सहित भारत के जनसांख्यिकीय सर्वेक्षणों के परिणामों की व्यवस्था, संचालन तथा विश्लेषण करता है।
- रजिस्ट्रार का पद प्रायः संयुक्त सचिव के पद पर कार्यरत सिविल सेवक द्वारा धारण किया जाता है।
अनुसूचित जाति के उत्थान से संबंधित संविधानिक प्रावधान क्या हैं?
- अनुच्छेद 15(4) अनुसूचित जातियों की उत्थान के लिये विशेष प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 16(4A) राज्य सेवाओं में पदों पर पदोन्नति में उन अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण की अनुमति देता है जिनका प्रतिनिधित्व कम है।
- अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है।
- अनुच्छेद 46 राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक तथा आर्थिक हितों को बढ़ावा देने तथा उन्हें सामाजिक अन्याय एवं शोषण से संरक्षित करने का निर्देश देता है।
- अनुच्छेद 330 और अनुच्छेद 332 में क्रमशः लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
- अनुच्छेद 335 यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी सेवाओं में नियुक्तियाँ करते समय प्रशासन कार्य पटुता बनाए रखने की संगति के अनुसार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावों पर विचार किया जाए।
- भाग IX (पंचायतें) और भाग IXA (नगर पालिकाएँ) स्थानीय शासन निकायों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण का प्रावधान करते हैं।
- अनुच्छेद 243D(4): यह प्रावधान पंचायतों (स्थानीय स्वशासन संस्थाओं) में अनुसूचित जातियों के लिये क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों के आरक्षण को अनिवार्य बनाता है।
- अनुच्छेद 243T(4): यह प्रावधान नगर पालिकाओं (शहरी स्थानीय निकायों) में अनुसूचित जातियों के लिये उस क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण सुनिश्चित करता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिये उपलब्ध संवैधानिक सुरक्षा उपाय और योजनाएँ क्या हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. यदि किसी विशिष्ट क्षेत्र को भारत के संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अधीन लाया जाए, तो निम्नलिखित कथनों में कौन-सा एक इसके परिणाम को सर्वोत्तम रूप से दर्शाता है? (2022) (a) इससे जनजातीय लोगों की ज़मीनें गैर-जनजातीय लोगों को अंतरित करने पर रोक लगेगी। उत्तर: (a) प्रश्न. भारत के संविधान की किस अनुसूची के तहत खनन के लिये निजी पार्टियों को आदिवासी भूमि के हस्तांतरण को शून्य और शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019) (A) तीसरी अनुसूची उत्तर: (B) मेन्स:प्रश्न. वर्ष 2001 में आर.जी.आई. ने कहा कि दलित जो इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं, वे एक भी जातीय समूह नहीं हैं क्योंकि वे विभिन्न जाति समूहों से संबंधित हैं। इसलिये उन्हें अनुच्छेद 341 के खंड (2) के अनुसार अनुसूचित जाति (SC) की सूची में शामिल नहीं किया जा सकता है, जिसमें शामिल करने हेतु एकल जातीय समूह की आवश्यकता होती है। (2014) प्रश्न. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018) |