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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

लैब-ग्रोन मीट

  • 27 Jun 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

लैब-ग्रोन मीट, सेल-कल्टीवेटेड चिकन

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा को संबोधित करने में प्रयोगशाला में विकसित मांस की क्षमता, कोशिका-संवर्द्धित मांस के पशु कल्याण निहितार्थ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कैलिफोर्निया स्थित दो कंपनियों द्वारा लैब-ग्रोन मीट, विशेष रूप से कोशिका-संवर्द्धित चिकन (Cell-Cultivated Chicken) को संयुक्त राज्य अमेरिका की मंज़ूरी के साथ टिकाऊ खाद्य उत्पादन की दुनिया में एक महत्त्वपूर्ण विकास के रूप में देखा जा रहा है।

  • कैलिफोर्निया स्थित दो कंपनियों- गुड मीट और अपसाइड फूड्स को 'कोशिका-संवर्द्धित चिकन' का उत्पादन तथा बिक्री करने के लिये अमेरिकी सरकार की मंज़ूरी मिली है।

लैब-ग्रोन मीट:

  • लैब-ग्रोन मीट, जिसे आधिकारिक तौर पर कोशिका-संवर्द्धित मीट के रूप में जाना जाता है, उस मीट को संदर्भित करता है जो जानवरों से प्राप्त पृथक कोशिकाओं का उपयोग करके प्रयोगशाला में विकसित किया जाता है।
  • प्रतिकृति बनाने और खाद्य मांस के रूप में विकसित होने के लिये इन कोशिकाओं को आवश्यक संसाधन, जैसे- पोषक तत्त्व और एक उपयुक्त वातावरण प्रदान किया जाता है। जिन्हें सेलुलर कल्टीवेशन प्रक्रिया में सहयोग करने के लिये डिज़ाइन किया जाता है।
  • सिंगापुर ऐसा पहला देश था जिसने वर्ष 2020 में वैकल्पिक मांस की बिक्री को मंज़ूरी दी थी।

सेल-कल्टीवेटेड चिकन/कोशिका-संवर्द्धित मांस:

  • सेल-कल्टीवेटेड चिकन से तात्पर्य प्रयोगशाला में अलग-अलग कोशिकाओं का उपयोग करके तैयार किये गए चिकन (मांस) से है जिसमें विकास और प्रतिकृति हेतु आवश्यक तत्त्व मौजूद होते हैं।
  • बायोरिएक्टर, एक विशिष्ट जैविक वातावरण प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किये गए विशेष कंटेनर हैं, इनका उपयोग आमतौर पर कृषि प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिये किया जाता है।
  • एक बार जब कोशिकाओं की संख्या पर्याप्त हो जाती है, तो बनावट और दिखने में बेहतर बनाने के लिये उन्हें अक्सर एडिटिव्स के साथ संसाधित किया जाता है, तब जाकर इन्हें उपभोग के लिये तैयार किया जाता है।

मांस उत्पादन के लिये सेल-कल्टीवेशन तकनीक का महत्त्व:

  • जलवायु शमन:
    • पशुधन उत्पादन से जुड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये प्रयोगशालाओं में तैयार किया जाने मांस एक संभावित समाधान व विकल्प प्रदान करता है।
      • खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) के अनुसार, वैश्विक मानवजनित GHG उत्सर्जन (मुख्य रूप से मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में) में पशुधन उत्पादन का योगदान लगभग 14.5% है।
  • भूमि उपयोग दक्षता:
    • पारंपरिक मांस उत्पादन विधियों की तुलना में कोशिका-संवर्द्धित मांस के लिये काफी कम भूमि की आवश्यकता होती है।
      • वर्ष 2021 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि प्रयोगशाला में तैयार किये गए मांस में चिकन के मामले में 63% कम भूमि और सूअर के मांस के मामले में 72% कम भूमि का उपयोग होगा।
  • पशु कल्याण:
    • कोशिका-संवर्द्धित मांस के विकास का उद्देश्य पशु संहार की घटनाओं को कम करना है।
    • संवर्द्धित मांस कोशिकाओं से सीधे मांस तैयार कर जानवरों की पीड़ा को कम करने और पशु कल्याण के मानकों में सुधार करने की संभावना प्रदान करता है।
  • खाद्य सुरक्षा एवं पोषण:
    • लैब-ग्रोन मीट में भविष्य की खाद्य सुरक्षा ज़रूरतों को पूरा करने की क्षमता है।
    • कोशिका-संवर्द्धित मांस को स्वास्थ्यवर्द्धक बनाने और कम वसा जैसी विशेष पोषण संबंधी आवश्यकताओं का पूरा करने के लिये संशोधित किया जा सकता है।

कोशिका-संवर्द्धित मांस की चुनौतियाँ:

  • उपभोक्ता स्वीकृति:
    • पारंपरिक मांस के साथ स्वाद, बनावट, रूप और लागत समानता हासिल करना कोशिका-संवर्द्धित विकल्पों के लिये एक चुनौती बनी हुई है। संवर्द्धित मांस को "कृत्रिम" या "अप्राकृतिक" मानने की धारणा से इन उत्पादों की उपभोक्ता स्वीकृति प्रभावित हो सकती है।
  • लागत:
    • कोशिका-संवर्द्धित मांस का मूल्य अधिक रहने की आशंका है। इसका मुख्य कारण कोशिका संवर्द्धन की जटिल तथा संसाधन-गहन प्रक्रिया है। उपयोगिता और गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रियाएँ इसके मूल्य में और अधिक वृद्धि कर सकती हैं।
  • अनुमापकता:
    • वर्तमान में इसके उत्पादन की मात्रा सीमित है तथा उत्पाद की गुणवत्ता एवं स्थिरता को बनाए रखना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है। कुशल और लागत प्रभावी बायोरिएक्टर प्रणाली विकसित करना तथा उपयुक्त कोशिका संवर्द्धन माध्यम द्वारा अनुमापकता प्राप्त करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
  • संसाधन:
    • शोधकर्त्ताओं को अंतिम उत्पाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये उच्च गुणवत्ता वाली कोशिकाओं, उपयुक्त विकास माध्यमों तथा अन्य संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ:
    • कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि यदि अत्यधिक परिष्कृत विकास माध्यमों की आवश्यकता होती है तो कोशिका-संवर्द्धित मांस के उत्पादन का पर्यावरणीय प्रभाव पारंपरिक मांस के उत्पादन से बहुत अधिक हो सकता है।
  • बौद्धिक संपदा और पेटेंट संबंधी मुद्दे:
    • संवर्द्धित मांस के क्षेत्र में अनेक बौद्धिक संपदा और पेटेंट संबंधी विचार शामिल हैं। कंपनियाँ और शोधकर्त्ता संवर्द्धित मांस के उत्पादन में शामिल विभिन्न तकनीकों एवं प्रौद्योगिकियों के लिये पेटेंट दाखिल कर रहे हैं। बौद्धिक संपदा विवादों को हल करने तथा प्रौद्योगिकी तक उचित पहुँच सुनिश्चित करने से इस उद्योग के विकास एवं वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

आगे की राह

  • प्रयोगशाला में निर्मित मांस/लैब-ग्रोन मीट के लाभों और सुरक्षा के बारे में पारदर्शी संचार के माध्यम से उपभोक्ता जागरूकता और स्वीकृति को बढ़ावा देना।
  • प्रयोगशाला में निर्मित मांस की उत्पादन प्रक्रियाओं, स्वाद, बनावट और लागत दक्षता में सुधार के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना।
  • लागत कम करने और बाज़ार की मांग को पूरा करने के लिये तकनीकी प्रगति पर ध्यान केंद्रित करना और उत्पादन सुविधाओं को अनुकूलित करना।
  • दुनिया भर में प्रयोगशाला में विकसित मांस बाज़ार का विस्तार करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना, नियमों में सामंजस्य स्थापित करना तथा व्यापार को अधिक सुविधाजनक बनाना।
  • संवर्द्धित मांस एक अपेक्षाकृत नया क्षेत्र है,साथ ही इसमें एक स्पष्ट नियामक ढाँचा स्थापित करना आवश्यक है। सुरक्षा, गुणवत्ता और उपभोक्ता विश्वास सुनिश्चित करने के लिये सरकारों और नियामक निकायों को यह निर्धारित करने की आवश्यकता है कि संवर्द्धित मांस उत्पादों को कैसे वर्गीकृत और विनियमित किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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