कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क | 21 Dec 2022
प्रिलिम्स के लिये:UNCCD, COP15, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क मेन्स के लिये:कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क, COP15 के परिणाम, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के पक्षकारों के 15वें सम्मेलन (COP15) में "कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क" (Kunming-Montreal Global Biodiversity Framework- GBF) को अपनाया गया है।
- GBF के अंतर्गत वर्ष 2030 तक के लिये 4 लक्ष्य और 23 उद्देश्य निर्धारित किये गए हैं।
- संयुक्त राष्ट्र कनाडा के मॉन्ट्रियल में जैवविविधता सम्मेलन संपन्न हुआ।
- COP15 का पहला भाग कुनमिंग, चीन में हुआ और इसमें जैवविविधता संकट को दूर करने की प्रतिबद्धता पर बल दिया गया तथा कुनमिंग घोषणा को 100 से अधिक देशों द्वारा अपनाया गया।
वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क के प्रमुख उद्देश्य:
- 30x30 समझौता:
- वर्ष 2030 तक विश्व स्तर पर (थल और जल स्तर पर) 30% निम्नीकृत हुए पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्स्थापित करना।
- वर्ष 2030 तक 30% क्षेत्रों (स्थलीय, अंतर्देशीय जल और तटीय एवं समुद्री) का संरक्षण तथा प्रबंधन करना।
- ज्ञात प्रजातियों को विलुप्त होने से रोकना और वर्ष 2050 तक सभी प्रजातियों (अज्ञात सहित) के विलुप्त होने के जोखिम और दर को दस गुना कम करना।
- वर्ष 2030 तक कीटनाशकों के जोखिम को 50% तक कम करना।
- वर्ष 2030 तक पोषक तत्त्वों में होने वाली कमी में सुधार करना।
- वर्ष 2030 तक सभी स्रोतों से होने वाले प्रदूषण के जोखिमों और प्रदूषण के नकारात्मक प्रभावों को उस स्तर तक कम करना ताकि वे जैवविविधता एवं पारिस्थितिक तंत्र कार्यों के लिये हानिकारक न रहें।
- वर्ष 2030 तक खपत के वैश्विक पदचिह्न को कम करना, जिसमें अत्यधिक खपत और अपशिष्ट उत्पादन को कम करना तथा भोजन की बर्बादी को रोकना शामिल है।
- कृषि, जलीय कृषि, मत्स्यपालन और वानिकी के अंतर्गत क्षेत्रों का सतत् प्रबंधन करना तथा कृषि पारिस्थितिकी एवं अन्य जैवविविधता-अनुकूल प्रथाओं में काफी वृद्धि करना।
- प्रकृति आधारित समाधानों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटना।
- वर्ष 2030 तक नई विदेशी प्रजातियों के आगमन और स्थायित्त्व की दर को 50% तक कम करना।
- वर्ष 2030 तक जंगली प्रजातियों के सुरक्षित, कानूनी और टिकाऊ उपयोग एवं व्यापार को सुरक्षित करना।
- शहरी क्षेत्रों को हरा-भरा करना।
COP15 के अन्य प्रमुख परिणाम:
- प्रकृति के लिये धन:
- हस्ताक्षरकर्त्ताओं का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक और निजी स्रोतों से प्रतिवर्ष 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर नई संरक्षण योजनाओं के लिये दिया जाए।
- अमीर देशों को वर्ष 2025 तक हर साल कम-से-कम 20 अरब डॉलर और वर्ष 2030 तक हर साल कम-से-कम 30 अरब डॉलर का योगदान देना चाहिये।
- बड़ी कंपनियों की रिपोर्ट का जैवविविधता पर प्रभाव:
- कंपनियों को विश्लेषण करना चाहिये कि कैसे उनका संचालन उनकी रिपोर्ट व जैवविविधता प्रभावित होती है।
- भारत ने जैवविविधता के नुकसान को रोकने के लिये 2020 के बाद के वैश्विक ढाँचे को सफलतापूर्वक लागू करने में विकासशील देशों की मदद करने के लिये एक नया और समर्पित कोष बनाने की तत्काल आवश्यकता का आह्वान किया।
- हानिकारक सब्सिडी:
- वर्ष 2025 तक जैवविविधता को कम करने वाली सब्सिडी की पहचान करने और फिर उन्हें समाप्त करने, चरणबद्ध करने या सुधार करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
- वे 2030 तक उन प्रोत्साहनों को प्रतिवर्ष कम-से-कम 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक कम करने और संरक्षण के लिये सकारात्मक प्रोत्साहन बढ़ाने पर सहमत हुए।
- निगरानी और रिपोर्टिंग प्रगति:
- सभी सहमत लक्ष्यों की भविष्य में प्रगति की निगरानी करने के लिये प्रक्रियाओं को सशक्त किया जाएगा, इस समझौते को आइची (जापान) समझौते, 2010 की तरह नहीं लिया जाएगा, जो कभी पूरे नही हुए।
- जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने के संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाले प्रयासों के तहत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये उपयोग किये जाने वाले समान प्रारूप के बाद राष्ट्रीय कार्य योजनाओं को निर्धारण एवं उनकी समीक्षा की जाएगी। कुछ पर्यवेक्षकों ने इन योजनाओं को प्रस्तुत करने के लिये देशों की समयसीमा की कमी पर आपत्ति जताई है।
भारत ने सम्मेलन में अपनी मांगों को कैसे प्रस्तुत किया?
- भारत ने जैवविविधता के नुकसान को रोकने व पलटने के लिये 2020 के बाद के वैश्विक ढाँचे को सफलतापूर्वक लागू करने में विकासशील देशों की मदद के लिये एक नया और समर्पित कोष बनाने की तत्काल आवश्यकता का आह्वान किया है।
- अब तक वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility- GEF) जो UNFCCC और संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय सहित कई अभिसमयों को शामिल करती है, जैवविविधता संरक्षण के लिये धन का एकमात्र स्रोत बनी हुई है।
- भारत ने यह भी कहा कि जैवविविधता का संरक्षण भी 'सामान्य लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियों और प्रतिक्रियात्मक क्षमताओं' (CBDR) पर आधारित होना चाहिये क्योंकि जलवायु परिवर्तन भी प्रकृति को प्रभावित करता है।
- भारत के अनुसार, विकासशील देश जैवविविधता के संरक्षण के लिये लक्ष्यों को लागू करने का अधिकांश भार वहन करते हैं और इसलिये पर्याप्त धन एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की आवश्यकता होती है।
जैवविविधता पर कन्वेंशन (CBD):
- CBD जैवविविधता के संरक्षण के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है जो वर्ष 1993 से लागू है और 196 देशों द्वारा इसकी पुष्टि की गई है।
- यह देशों के लिये जैवविविधता की रक्षा, सतत् उपयोग सुनिश्चित करने और उचित एवं न्यायसंगत लाभ साझाकरण को बढ़ावा देने हेतु दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।
- इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन पर वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के समान जैवविविधता के नुकसान को रोकने और प्रतिपूर्ति के लिये एक ऐतिहासिक लक्ष्य हासिल करना है।
- CBD सचिवालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में स्थित है।
- CBD के तहत पक्षकार (देश) नियमित अंतराल पर बैठक करते हैं और इन बैठकों को पक्षकारों का सम्मेलन (COP) कहा जाता है।
- वर्ष 2000 में बायोसेफ्टी पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल के रूप में ज्ञात अभिसमय के लिये एक पूरक समझौता अपनाया गया था। यह 11 सितंबर, 2003 को लागू हुआ।
- प्रोटोकॉल आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी से उत्पन्न संशोधित जीवों द्वारा उत्पन्न संभावित जोखिमों से जैवविविधता की रक्षा करना चाहता है।
- आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग ( Access to Genetic Resources and the Fair and Equitable Sharing of Benefits Arising from their Utilization- ABS) से प्राप्त होने वाले लाभों के उचित और न्यायसंगत साझाकरण पर नागोया प्रोटोकॉल को COP10 में नागोया, जापान में वर्ष 2010 में अपनाया गया था। यह 12 अक्तूबर, 2014 को लागू हुआ।
- यह प्रोटोकॉल न केवल CBD के तहत शामिल आनुवंशिक संसाधनों और उनके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों पर लागू होता है, बल्कि आनुवंशिक संसाधनों से जुड़े उस पारंपरिक ज्ञान (Traditional Knowledge-TK) को भी कवर करता है जो CBDऔर इसके उपयोग से होने वाले लाभों से आच्छादित हैं।
- वर्ष 2010 में नागोया में CBD की कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP)-10 में वर्ष 2011-2020 हेतु ‘जैवविविधता के लिये रणनीतिक योजना’ को अपनाया गया। इसमें पहली बार विषय विशिष्ट 20 जैवविविधता लक्ष्यों- जिन्हें आइची जैवविविधता लक्ष्य के रूप में भी जाना जाता है, को अपनाया गया।
- भारत में CBD के प्रावधानों को प्रभावी बनाने हेतु वर्ष 2002 में जैविक विविधता अधिनियम अधिनियमित किया गया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न: ‘मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” किसके द्वारा शुरू की गई एक पहल है? (2018) (a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। |