लौह युग और नगरीकरण | 28 Jan 2025

प्रिलिम्स के लिये:

लौह युग, सिंधु घाटी सभ्यता, कांस्य युग, अर्थशास्त्र, NBPW संस्कृति, विंध्य, मेगालिथिक संस्कृति, शहरीकरण, गंगा घाटी

मेन्स के लिये:

भारत में लौह युग, राज्य निर्माण और नगरीकरण में लौह प्रौद्योगिकी की भूमिका

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

'एंटिक्विटी ऑफ आयरन: रीसेंट रेडियोमेट्रिक डेट्स फ्रॉम तमिलनाडू ("Antiquity of Iron: Recent Radiometric Dates from Tamil Nadu") शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तमिलनाडु में लोहे का उपयोग चौथी शताब्दी ईसा पूर्व की पहली तिमाही से शुरू हो गया था।

  • ऐसा माना जाता है कि भारत में लौह युग का उदय 1500 और 2000 ईसा पूर्व के मध्य हुआ, जो सिंधु घाटी सभ्यता (कांस्य युग) के ठीक बाद का समय है।

लौह युग क्या है?

  • लौह युग: कांस्य युग के बाद का लौह युग एक प्रागैतिहासिक काल है, जिसकी विशेषता औज़ारों, हथियारों और अन्य उपकरणों के लिये लोहे के व्यापक उपयोग थी।
    • लौह धातुकर्म में अयस्क प्राप्ति और उपकरण निर्माण सहित कई चरण शामिल हैं।
  • भारत में लोहे की प्राचीनता:
    • ऋग्वैदिक काल: इस काल में लोहे का ज्ञान नहीं था।
    • प्रारंभिक ऐतिहासिक काल: लौह शिल्पकला का उल्लेख प्रारंभिक बौद्ध साहित्य और कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है।
  • महत्त्वपूर्ण उत्खनन स्थल: 
    • राजा नल का टीला (उत्तर-मध्य भारत): पूर्व-NBP (उत्तरी काली पॉलिश) उत्खनन (1400-800 ईसा पूर्व) में पाए गए लौह उपकरण और धातु के तलछट।
    • मल्हार (चंदौली, उत्तर प्रदेश): लौह औज़ारों, भट्टियों और धातु के तलछट के साक्ष्य से पता चलता है कि यह एक महत्त्वपूर्ण लौह धातुकर्म केंद्र था।
  • सांस्कृतिक संघ:
    • काले और लाल मृदभांड (BRW): इस प्रकार के मृदभांडों की विशेषता यह है कि इनके अन्दरूनी भाग काले तथा बाहरी भाग लाल होते हैं, जो इनवर्टिंग फायरिंग तकनीक से पकाए जाने के कारण होते हैं।
      • यह हड़प्पा संस्कृति (गुजरात), प्री-PGW संस्कृति (उत्तरी भारत) और मेगालिथिक संस्कृति (दक्षिणी भारत) में पाए जाते है।
    • चित्रित धूसर मृदभांड (PGW) संस्कृति: काले ज्यामितीय पैटर्न के साथ धूसर (ग्रे) मृदभांड इनकी विशेषता है।
      • गंगा घाटी और दक्षिण भारतीय मेगालिथ (प्रथम सहस्राब्दी ईसा पूर्व) के कई स्थलों पर लोहे की उपस्थिति के साक्ष्य प्राप्त हुए।
    • उत्तरी कलि पॉलिश वाले मृदभांड (NBPW) संस्कृति: पहिये से बने मृदभांड जो बारीक, काले और अत्यधिक पॉलिश वाले होते हैं, जो उत्तर भारत में महत्त्वपूर्ण मृदभांड हैं।
      • 700 ईसा पूर्व-100 ईसा पूर्व ( NBPW संस्कृति) के दौरान, गंगा घाटी में राज्यों का गठन तथा नगरीकरण का उदय हुआ।
      • NBPW संस्कृति गंगा घाटी में द्वितीय नगरीकरण (6ठी शताब्दी ईसा पूर्व) से संबंधित थी, जिसके दौरान बौद्ध धर्म का विस्तार हुआ।
    • अहार ताम्रपाषाण संस्कृति:
      • मध्य चरण (2500-2000 ईसा पूर्व): लौह कलाकृतियों के साक्ष्य।
      • अंतिम चरण (2000-1700 ई.पू.): अधिक मात्र में लोहे का उपयोग।
    • मेगालिथिक संस्कृति: लोहे से जुड़े मेगालिथ ( प्रागैतिहासिक संरचना के निर्माण के लिये बड़े पत्थर का उपयोग), विंध्य (दक्षिणी उत्तर प्रदेश), विदिशा क्षेत्र तथा दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों में पाए जाते हैं। 

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मेगालिथिक संस्कृति का लोहे से संबंध

  • मेगालिथिक संस्कृति: यह एक प्रागैतिहासिक चरण है, जो दफनाने, पवित्र स्थानों और अनुष्ठानों के लिये उपयोग किये जाने वाले बड़े पत्थर की संरचनाओं द्वारा चिह्नित है।
    • दक्षिण भारत में मेगालिथिक संस्कृति का लोहे के उपयोग की शुरुआत से गहरा संबंध है।
  • लोहे का उपयोग: मेगालिथिक काल की कब्रों से लगभग 33 प्रकार के लोहे के औजारों की पहचान की गई है। इनका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिये किया जाता था:
    • कृषि : कुदालें, दरांती और कुल्हाड़ी।
    • घरेलू उपयोग: बर्तन/मृद भाड़ और तिपाई स्टैंड।
    • कारीगरी गतिविधियाँ : छेनी और कीलें।
    • युद्ध और शिकार: तलवारें, खंजर, भाले और तीर।
  • लोहे के उपयोग के उल्लेखनीय साक्ष्य:
    • नाइकुंड (विदर्भ): लोहा गलाने वाली भट्टी की खोज।
    • माहुरझारी (नागपुर): तांबे की चादरों और लोहे की घुंडियों से बने घोड़े के सिर के आभूषणों को माहुरझरी (नागपुर) के नाम से जाना जाता है।
    • पैयमपल्ली (तमिलनाडु): भारी मात्रा में लौह धातुमल, जो स्थानीय लौह प्रगलन के साक्ष्य को दर्शता है।
  • लौह प्रौद्योगिकी में उन्नति: लोगों द्वारा आग पर नियंत्रण तथा अयस्क से लोहा निकालने जैसी प्रमुख तकनीकी का प्रयोग। 

गंगा घाटी में नगरीकरण में लौह प्रौद्योगिकी ने कैसे मदद की?

  • नगरीकरण : इतिहासकार और पुरातत्वविद् गॉर्डन वी. चाइल्ड के अनुसार, शहरीकरण अधिशेष उत्पादन पर निर्भर करता है, जिसके परिणामस्वरूप शासक वर्ग, सामाजिक स्तरीकरण और स्मारकीय वास्तुकला का विकास होता है।
    • इसका तात्पर्य कृषि -आधारित अर्थव्यवस्थाओं से उद्योगों, सेवाओं और व्यापार को आय के प्राथमिक स्रोत के रूप में अपनाने से है।
  • लौह प्रौद्योगिकी की भूमिका: गंगा घाटी में द्वितीय शहरीकरण (6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व) बस्तियों के प्रसार द्वारा चिह्नित था तथा लौह प्रौद्योगिकी ने इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई:
    • वनों की कटाई: लोहे के औज़ारों के कारण वनों की कटाई संभव हुई, जिससे कृषि योग्य भूमि का निर्माण हुआ।
    • कृषि उत्पादकता में वृद्धि: लौह के हल से दक्षता और उत्पादकता में वृद्धि हुई।
    • कृषि अधिशेष: उत्पादकता में वृद्धि ने बड़ी आबादी और समाजों को सहारा प्रदान किया।
    • भारत में पहला नगरीकरण (2500 और 1900 ईसा पूर्व) सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान हुआ था।
  • नगरीकरण पर प्रभाव: इसके कारण भारतीय उपमहाद्वीप में 16 महाजनपदों का विकास हुआ।
  • जनसंख्या वृद्धि: कृषि अधिशेष ने जनसंख्या वृद्धि को बढ़ावा दिया, जो शहरी केंद्रों के विकास के लिये आवश्यक था।
  • बस्तियों का विकास: बस्तियों की संख्या और जटिलता में वृद्धि हुई, जिससे एक स्पष्ट पदानुक्रम देखने को मिला।
  • सामाजिक स्तरीकरण और राज्य गठन: अधिशेष उत्पादन ने शासक वर्गों, सामाजिक पदानुक्रम (जैसे, वर्ण व्यवस्था) और केंद्रीकृत शक्ति संरचनाओं के उद्भव को सक्षम किया।
  • व्यापार और शिल्प विशेषज्ञता: अधिशेष ने लोगों को व्यापार और शिल्प जैसी गैर-कृषि गतिविधियों में संलग्न होने की अनुमति दी, जिससे आर्थिक विविधीकरण तथा  शहरी विकास को बढ़ावा मिला।

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निष्कर्ष:

प्राचीन भारत में शहरी केंद्रों के विकास में लौह प्रौद्योगिकी ने,  खासकर गंगा घाटी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया, जनसंख्या वृद्धि का समर्थन किया, और सामाजिक पदानुक्रम तथा राज्य गठन को बढ़ावा दिया, जो दूसरे नगरीकरण चरण के दौरान शहरीकरण की ओर एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: गंगा घाटी के नगरीयकरण में लौह प्रौद्योगिकी की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

  पीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रीलिम्स:

प्रश्न: ऋग्वैदिक आर्यों और सिंधु घाटी के लोगों की संस्कृति के बीच अंतर के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (2017) 

  1. ऋग्वैदिक आर्य युद्ध में हेलमेट और कोट का इस्तेमाल करते थे जबकि सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों द्वारा इनके इस्तेमाल का कोई सबूत नहीं मिलता है।
  2.  ऋग्वैदिक आर्य सोना, चाँदी और तांबा से परिचित थे, जबकि सिंधु घाटी के लोग केवल तांबा और लोहे से।
  3.  ऋग्वैदिक आर्यों ने घोड़े को पालतू बनाया था, जबकि सिंधु घाटी के लोगों द्वारा इस जानवर के उपयोग के बारे में कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं होता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और  3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2और 3 

उत्तर: C 


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य बुद्ध के जीवन से जुड़ा था? (2014)

  1. अवंती
  2. गांधार
  3. कोशल
  4. मगध 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) 1, 2 और 3 
(b) 2 और 4 
(c) केवल 3 और 4 
(d) 1, 3 और 4

उत्तर: (C)


मेन्स

Q. ‘‘भारत की प्राचीन सभ्यता मिस्र, मेसोपोटामिया और ग्रीस की सभ्यताओं से इस बात में भिन्न है कि भारतीय उपमहाद्वीप की परंपराएँ आज तक भंग हुए बिना परिरक्षित की गई है।’’ टिप्पणी कीजिये। (2015)