लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

आपदा प्रबंधन

औद्योगिक दुर्घटनाएँ

  • 30 May 2024
  • 22 min read

प्रिलिम्स के लिये:

व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020, श्रम ब्यूरो, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, ILO कन्वेंशन।

मेन्स के लिये:

भारत में व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य- विश्लेषण, चुनौतियाँ और उठाए जा सकने वाले कदम, भारत में श्रमिकों के संबंध में रूपरेखा, वर्तमान श्रम सुधारों से संबंधित अस्पष्ट क्षेत्र

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महाराष्ट्र के ठाणे में एक रासायनिक इकाई में विस्फोट होने से 11 लोगों की मौत हो गई। भारत और विश्व के अन्य हिस्सों में ऐसी औद्योगिक दुर्घटनाएँ औद्योगिक प्रतिष्ठानों के लिये एक बड़ी समस्या बन गई हैं।

औद्योगिक एवं रासायनिक आपदा:

  • औद्योगिक आपदा: औद्योगिक आपदा किसी औद्योगिक स्थल पर होने वाली एक महत्त्वपूर्ण दुर्घटना है जिसके परिणामस्वरूप व्यापक क्षति, चोट या मृत्य होती हैं।
    • ऐसी आपदाएँ विभिन्न कारणों से उत्पन्न हो सकती हैं, जिनमें रासायनिक, यांत्रिक, नागरिक या विद्युत प्रक्रियाएँ, साथ ही दुर्घटनाएँ, लापरवाही या अक्षमता शामिल हैं।
  • प्रकार: रासायनिक आपदाएँ, विस्फोट, खनन आपदाएँ, गिरती हुई वस्तुएँ, रेडियोलॉजिकल घटनाएँ।
  • रासायनिक आपदा: इसे एक विषैले रसायन के रिसाव (द्रव/गैस अवस्था में) के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप समाज के कामकाज़ में अचानक और गंभीर व्यवधान उत्पन्न होता है, जिससे व्यापक मानवीय, भौतिक या पर्यावरणीय क्षति होती है, जो प्रभावित समाज की अपने स्वयं के संसाधनों का उपयोग करके सामना करने की क्षमता से परे होती है।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) के अनुसार, पिछले दशक में देश में 130 से अधिक बड़ी रासायनिक दुर्घटनाएँ हुई हैं, जिनमें कुल 250 से अधिक लोगों की जान गई है।

भारत में औद्योगिक दुर्घटनाओं में योगदान देने वाले प्रमुख कारक क्या हैं?

  • अपर्याप्त विनियमन और निगरानी: 15 अधिनियमों और 19 नियमों सहित अनावश्यक विनियमनों में रासायनिक उद्योग के लिये एकीकृत दृष्टिकोण का अभाव है। इस विखंडन के कारण अधिकार क्षेत्र में अतिव्यापन और खामियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे सुरक्षा उपायों की निगरानी एवं प्रवर्तन कमज़ोर होता है।
  • व्यापक रासायनिक जोखिम डेटाबेस का अभाव: औद्योगिक रसायनों और उनके जोखिमों पर एक केंद्रीय डेटाबेस की कमी ज्ञान का अभाव उत्पन्न करती है, जो खतरे के मूल्यांकन और सुरक्षा प्रोटोकॉल विकास में बाधा डालती है।
  • अपर्याप्त श्रमिक प्रशिक्षण और जागरूकता: बॉयलर का संचालन अक्सर अप्रशिक्षित, संविदा श्रमिकों के ज़िम्मे होता है, जिनके पास उचित सुरक्षा और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रशिक्षण का अभाव होता है, जैसा कि IIT कानपुर द्वारा बताया गया है।
    • इससे दुर्घटनाओं के दौरान भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है और जोखिम का खतरा बढ़ जाता है, विशेषकर खतरनाक रसायनों के मामले में।
  • श्रमिक सुरक्षा में अपर्याप्त निवेश: कुछ उद्योगों द्वारा लागत में कटौती करते समय अक्सर सुरक्षा उपकरणों और बुनियादी ढाँचे, जैसे उचित वेंटिलेशन एवं अग्नि सुरक्षा उपायों की उपेक्षा की जाती है। 
    • IIT कानपुर द्वारा, वर्ष 2023 में किया गया अध्ययन औद्योगिक दुर्घटनाओं को कम करने के लिये श्रमिक सुरक्षा में अधिक निवेश की आवश्यकता पर बल देता है।
  • रखरखाव का अभाव: बेंज़िमिडाज़ोल से जुड़ा विशाखापत्तनम गैस रिसाव रखरखाव और संचालन के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करता है। 
    • नेवेली की घटना में एक बॉयलर को संचालित करने के दौरान अप्रत्याशित रूप से विस्फोट हो गया, जबकि वह चालू नहीं था तथा उसमें मुख्य रूप से भट्ठी और भाप उत्पादन (Furnace and Steam Production) शामिल था।

Chemical_incidents_and_fatalities

भारत में अतीत में घटित प्रमुख औद्योगिक आपदाएँ:

भारत में औद्योगिक दुर्घटनाओं का एक लंबा इतिहास रहा है, हाल ही में 130 से अधिक गंभीर रासायनिक दुर्घटनाएँ घटित हुई हैं। 

  • भोपाल गैस त्रासदी (1984): यह अब तक की सबसे भीषण औद्योगिक आपदा है, जिसमें एक कीटनाशक संयंत्र से गैस रिसाव के कारण 3,700 से अधिक लोग मारे गए और अनेकों लोग घायल हो गए।
  • चासनाला खनन आपदा (वर्ष 1975): एक कोयला खदान में मीथेन गैस के कारण हुए विस्फोट और उसके बाद खदान ढहने से लगभग 700 लोगों की मृत्यु हो गई।
  • जयपुर तेल डिपो आग (वर्ष 2009): एक तेल भंडारण केंद्र में आग लगने से 12 लोगों की मृत्यु हो गई और पाँच लाख से ज़्यादा लोगों को बचाया गया। इस दौरान उचित आपदा प्रबंधन योजना का अभाव एक बड़ा मुद्दा था।
  • कोरबा चिमनी कांड (वर्ष 2009): कमज़ोर निर्माण प्रवृतियों के कारण निर्माणाधीन चिमनी ढह गई, जिसमें 45 श्रमिकों की मृत्यु हो गई।
  • मायापुरी रेडियोलॉजिकल घटना (वर्ष 2010): श्रमिकों ने अनजाने में स्क्रैपयार्ड में एक रेडियोधर्मी अनुसंधान विकिरणक को नष्ट कर दिया, जिससे वे और अन्य लोग विकिरण के संपर्क में आ गए।
  • बॉम्बे डॉक्स विस्फोट (वर्ष 1944): विस्फोटकों से लदे एक मालवाहक जहाज़ में विस्फोट हो गया, जब वह मुंबई बंदरगाह पर मौज़ूद था, जिसमें लगभग 800 लोग मारे गए और व्यापक आर्थिक क्षति हुई।

ऐसी औद्योगिक एवं रासायनिक दुर्घटनाओं के परिणाम क्या हैं?

  • जीवन की हानि एवं घायल होना: औद्योगिक दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप कई लोगों की मृत्यु होती है और कई को काफी गंभीर चोटें आती हैं। उदाहरण: ठाणे में एक रासायनिक कारखाने में विस्फोट में 11 लोगों की जान चली गई।
  • पर्यावरणीय क्षति: रासायनिक रिसाव, विस्फोट और अनुचित अपशिष्ट निपटान से गंभीर पर्यावरणीय क्षति (वायु, जल व मृदा प्रदूषण) हो सकती है।
    • उदाहरण: वर्ष 1984 की भोपाल गैस त्रासदी एक भयावह घटना है, जिसमें यूनियन कार्बाइड संयंत्र से मिथाइल आइसोसाइनेट (Isocyanate) गैस के रिसाव के परिणामस्वरूप हज़ारों लोगों की मृत्यु हो गई और अनगिनत लोगों को दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ हुईं।
  • आर्थिक व्यवधान: सुविधाओं को हुई हानि की क्षतिपूर्ति, पीड़ितों के परिवारों को मुआवज़ा देने और घायल श्रमिकों के उपचार की लागत काफी अधिक हो सकती है।
    • अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (Environmental Protection Agency- EPA) के एक अध्ययन में पाया गया कि रासायनिक दुर्घटनाओं से आसपास के क्षेत्रों में संपत्ति के मूल्य में 5-7% की कमी आ सकती है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था पर और अधिक प्रभाव पड़ सकता है।
  • मनोवैज्ञानिक आघात: औद्योगिक दुर्घटनाओं से संबंधित आघात का जीवित बचे लोगों, गवाहों और पीड़ितों के परिवारों पर दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकता है।
    • चिंता, अवसाद और अभिघातजन्य तनाव विकार (Post-traumatic Stress Disorder- PTSD) इसके सामान्य परिणाम हैं।
  • जनता के विश्वास को क्षति: बार-बार होने वाली औद्योगिक दुर्घटनाएँ नियामक निकायों एवं उद्योगों में जनता के विश्वास को समाप्त कर सकती हैं। इससे जनता में भय की स्थिति उत्पन्न हो सकती है और नई औद्योगिक परियोजनाओं का विरोध हो सकता है।

औद्योगिक आपदा रोकथाम पर ILO की अनुशंसाएँ: 

  • जोखिमपूर्ण पदार्थों की पहचान:
    • अंतर्निहित जोखिमों के आधार पर जोखिमपूर्ण रसायनों और ज्वलनशील गैसों की सूची बनाना तथा उनकी मात्र की एक विशिष्ट सीमा निर्धारित करना।
    • निर्धारित मात्रा से अधिक जोखिमपूर्ण सामग्री का संचालन करने वाली किसी भी सुविधा को "प्रमुख जोखिमपूर्ण कार्यस्थल" के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।
  • प्रमुख जोखिमपूर्ण कार्यस्थलों की सूची:
    • प्रत्येक राज्य को अपने अधिकार क्षेत्र में प्रमुख जोखिमपूर्ण कार्यस्थलों की एक व्यापक सूची बनानी चाहिये, जिसमें सुविधा का प्रकार, प्रयुक्त रसायन और भंडारित मात्रा जैसे विवरण शामिल हों।
  • केंद्रीकृत डेटा प्रबंधन: 
    • जोखिमपूर्ण सामग्रियों की सूची और प्रमुख जोखिमपूर्ण कार्यस्थलों की सूची को एक केंद्रीकृत कंप्यूटरीकृत डाटाबेस में संगृहीत किया जाना चाहिये।
    • यह नियामक निकायों, आपातकालीन उत्तरदाताओं और जनता द्वारा महत्त्वपूर्ण जानकारी तक सुविधापूर्ण पहुँच की अनुमति देगा।

रासायनिक/औद्योगिक आपदाओं के विरुद्ध कानूनी सुरक्षा उपाय क्या हैं?

  • अंतर्राष्ट्रीय:
    • आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंदाई फ्रेमवर्क 2015-2030
    • औद्योगिक दुर्घटना के सीमापारीय प्रभावों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1992):
      • यह औद्योगिक दुर्घटनाओं की रोकथाम और उनसे निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग हेतु कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
      • पार्टियाँ जानकारी साझा करती हैं, आपात स्थितियों की योजना बनाती हैं और आपदाओं के दौरान एक-दूसरे की सहायता करती हैं। इससे व्यापक दुर्घटनाओं का जोखिम कम हो जाता है।
    • UNEP का दुर्घटना निवारण और तैयारी के लिये लचीला ढाँचा (CAPP) (2006): यह देशों, विशेष रूप से विकासशील देशों, को रासायनिक दुर्घटनाओं को रोकने और उनके प्रबंधन के लिये कार्यक्रम बनाने में सहायता करने के लिये एक लचीला दृष्टिकोण अपनाता है।
      • यह देश की विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इन कार्यक्रमों को बनाने के संबंध में मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।
    • रासायनिक दुर्घटनाओं पर OECD कार्यक्रम (वर्ष 1990): यह रासायनिक सुरक्षा में सूचना साझाकरण और सर्वोत्तम प्रथाओं के माध्यम से दुर्घटनाओं को रोकने पर केंद्रित है।
  • भारत:
    • भोपाल गैस रिसाव (दावों का प्रसंस्करण) अधिनियम, 1985
    • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
    • सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम, 1991 (Public Liability Insurance Act- PLIA):
      • यह अधिनियम जोखिमपूर्ण पदार्थों का प्रयोग करने वाले उद्योगों के लिये बीमा अनिवार्य करता है। यह बीमा इन पदार्थों से संबंधित दुर्घटनाओं से प्रभावित लोगों को वित्तीय राहत प्रदान करता है।
    • राष्ट्रीय पर्यावरण अपील प्राधिकरण अधिनियम, 1997:
      • इस अधिनियम ने राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण (National Environment Appellate Authority- NEAA) की स्थापना की, जो पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (Environment Protection Act- EPA) के तहत कुछ औद्योगिक गतिविधियों पर लगाए गए प्रतिबंधों के संबंध में अपीलों की सुनवाई करता है तथा एक निष्पक्ष एवं पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित करता है।
    • खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन, हैंडलिंग और ट्रांसबाउंड्री मूवमेंट) नियम, 1989:
      • इसमें उद्योगों से महत्त्वपूर्ण दुर्घटना जोखिमों की पहचान करने, निवारक उपायों को लागू करने और किसी भी संभावित खतरे की सूचना उपयुक्त प्राधिकारियों को देने की अपेक्षा की जाती है।
    • अतिरिक्त उपाय:
      • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) ने रासायनिक आपदा प्रबंधन पर विशेष दिशा-निर्देश जारी किये हैं। ये अधिदेश विभिन्न प्राधिकरणों को विस्तृत आपदा प्रबंधन योजनाएँ तैयार करने के लिये दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं।
      • कई अन्य कानून और विनियम, जैसे कारखाना अधिनियम, 1948 तथा कीटनाशक अधिनियम, 1968 भी औद्योगिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में भूमिका निभाते हैं।

आगे की राह

  • एक मज़बूत विनियामक ढाँचा: ILO सुरक्षा विनियमों को लागू करने के लिये विभिन्न सरकारी एजेंसियों की स्पष्ट भूमिकाओं के साथ एक व्यापक राष्ट्रीय ढाँचे की सिफारिश करता है।
  • विश्व बैंक (2018) ने रासायनिक दुर्घटनाओं को कम करने के लिये कड़े रासायनिक सुरक्षा नियम लागू करना आवश्यक है।
  • निगरानी और प्रवर्तन को मज़बूत करना: IIM अहमदाबाद (2020) के अनुसार, भारत में औद्योगिक दुर्घटनाओं को कम करने के लिये कड़ी निगरानी और प्रवर्तन की आवश्यकता है, साथ ही कड़े दंड निर्धारित करने चाहिये तथा योग्य कर्मियों द्वारा इसकी निरंतर निगरानी भी की जानी चाहिये।
  • रासायनिक जोखिम डेटाबेस का निर्माण: 1984 की भोपाल गैस त्रासदी ने भारत में औद्योगिक रसायनों से जुड़े जोखिमों का दस्तावेज़ीकरण करने के लिये एक केंद्रीकृत डेटाबेस की आवश्यकता पर बल दिया है। 
    • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Co-operation and Development -OECD) रसायनों के वर्गीकरण तथा लेबलिंग की वैश्विक सामंजस्यपूर्ण प्रणाली (Global Harmonized System- GHS) को बढ़ावा देता है, जो इन रसायनों को वर्गीकृत करने के लिये एक मानकीकृत तरीका प्रदान करता है, जिससे जोखिम का बेहतर तरीके से आकलन करने में सहायता मिलती है।
  • श्रमिक प्रशिक्षण में निवेश: भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (National Safety Council of India- NSCI) द्वारा 2017 में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि सुरक्षा प्रोटोकॉल के बारे में श्रमिकों की अनभिज्ञता औद्योगिक दुर्घटनाओं से बचाव न कर पाने  का प्रमुख कारण है।
    • NSCI सभी स्टाफ स्तरों के लिये अभ्यास सहित व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों की सिफारिश करता है।
  • सर्वोत्तम प्रथाओं और प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Assembly- UNEP) उद्योगों को पर्यावरण की दृष्टि से स्वस्थ प्रौद्योगिकियों (Environmentally Sound Technologies- EST) को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करता है।
    • EST से हानिकारक सामग्रियों के उपयोग को न्यूनतम किया जा सकता है, अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार किया जा सकता है तथा दुर्घटनाओं के संभावित जोखिम को कम किया जा सकता है।
  • सुरक्षा उपायों के उन्नयन हेतु प्रोत्साहन और सहायता: सुरक्षा सुधारों को प्रोत्साहित करने के लिये बुनियादी ढाँचे के उन्नयन और नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने हेतु कर छूट या सब्सिडी जैसी वित्तीय सहायता की पेशकश की जा सकती है।

व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020:

  • नियोक्ता और कर्मचारी कर्त्तव्य: यह सुरक्षा के संबंध में नियोक्ता और कर्मचारी दोनों के लिये ज़िम्मेदारियों को परिभाषित करती है।
  • क्षेत्र-विशिष्ट सुरक्षा मानक: विभिन्न उद्योगों के लिये सुरक्षा मानक स्थापित करती है।
  • कर्मचारी कल्याण: यह कर्मचारियों के स्वास्थ्य, कार्य स्थितियों, कार्य घंटों, छुट्टियों आदि पर ध्यान केंद्रित करती है।
  • संविदा श्रमिक अधिकार: संविदा श्रमिकों के अधिकारों को मान्यता प्रदान करती है तथा उनकी रक्षा करती है।
  • लैंगिक समानता: यह संहिता सभी प्रकार के कार्यों के लिये सभी प्रतिष्ठानों में महिलाओं को नियोजित करने की अनुमति देकर लैंगिक समानता को बढ़ावा देती है।

निष्कर्ष:

भारत में औद्योगिक दुर्घटनाएँ देश के औद्योगिक परिदृश्य में विनियामक और ज्ञान संबंधी अंतराल को दूर करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। भारत, सरकार तथा उद्योग हितधारकों दोनों को शामिल करते हुए एक समग्र एवं सक्रिय दृष्टिकोण अपनाकर, एक सुरक्षित व अधिक टिकाऊ औद्योगिक विकास की दिशा में कार्य कर सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. बार-बार होने वाली औद्योगिक दुर्घटनाएँ गंभीर विनियामक कमियों और अपर्याप्त सुरक्षा उपायों को उजागर करती हैं। भारत ज्ञान की कमी को कैसे कम कर सकता है और भविष्य में होने वाली त्रासदियों को कैसे नियंत्रित कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर "आई.ए.ई.ए सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)

(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का।
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का।
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा।
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले।

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई जरूरतों के परिपेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? बढ़ती ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2