हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा | 12 Sep 2022
प्रिलिम्स के लिये:हिंद-प्रशांत, क्वाड, सीईपीए (व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते) मेन्स के लिये:भारत को शामिल और/या इसके के हितों को प्रभावित करने वाले करने वाले समूह और समझौते, द्विपक्षीय समूह और समझौते, क्वाड, हिंद-प्रशांत और इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने अमेरिका में ‘हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा’ (Indo-Pacific Economic Framework- IPEF) मंत्रिस्तरीय बैठक को संबोधित किया, जहाँ भारत ने निष्पक्ष और लचीले व्यापार स्तंभ से दूर रहने का फैसला किया।
- भारत चार स्तंभों में से तीन पर सहमत हुआ, जो आपूर्ति शृंखला, कर और भ्रष्टाचार विरोधी और स्वच्छ ऊर्जा हैं।
हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा (IPEF):
- यह अमेरिका के नेतृत्व वाली एक पहल है जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में लचीलापन, स्थिरता, समावेशिता, आर्थिक विकास, निष्पक्षता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये भाग लेने वाले देशों के बीच आर्थिक साझेदारी को मज़बूत करना है।
- IPEF को 12 देशों के प्रारंभिक भागीदारों के साथ लॉन्च किया गया था जो सामूहिक रूप से विश्व सकल घरेलू उत्पाद में 40% की हिस्सेदारी रखते हैं।
- IPEF एक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) नहीं है, लेकिन सदस्यों को उन हिस्सों पर बातचीत करने की अनुमति देता है जो वे चाहते हैं। IPEF के चार स्तंभ हैं:
- आपूर्ति- शृंखला प्रत्यास्थता/लचीलापन
- स्वच्छ ऊर्जा, डीकार्बोनाइजेशन और आधारभूत संरचना
- कराधान और भ्रष्टाचार विरोधी पहल
- निष्पक्ष और लचीला व्यापार।
- वर्तमान में भारत और प्रशांत महासागर में स्थित 13 देश इसके सदस्य हैं।
- ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, फिजी, भारत, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूज़ीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका और वियतनाम।
IPEF पर भारत की स्थिति
- जबकि कुछ देशों ने वार्ता में शामिल होने में रुचि व्यक्त की थी, भारत ने कुछ समय के लिये एक निश्चित स्थिति की घोषणा नहीं की क्योंकि इसका मानना है कि सदस्य देशों को क्या लाभ मिलेगा और क्या पर्यावरण जैसे पहलुओं पर कोई शर्त विकासशील देशों के साथ भेदभाव कर सकती है।
- IPEF में प्रस्तावित कुछ क्षेत्र भारत के हित की पूर्ति करते प्रतीत नहीं होते हैं।
- उदाहरण के लिये, IPEF डिजिटल गवर्नेंस का समर्थन करता है लेकिन IPEF सूत्रीकरण में ऐसे मुद्दे शामिल हैं जो सीधे तौर पर भारत की घोषित स्थिति के साथ टकराव उत्पन्न करते हैं।
- भारत विशेष रूप से गोपनीयता और डेटा के संबंध में अपने स्वयं के डिजिटल ढाँचे और कानूनों को मज़बूत करने की प्रक्रिया में है।
- अगस्त 2022 में भारत सरकार ने व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक को संसद से यह कहते हुए वापस ले लिया कि वह समग्र इंटरनेट पारिस्थितिकी तंत्र, साइबर सुरक्षा आदि को विनियमित करने के लिये "व्यापक कानूनी ढाँचे" पर विचार करेगी।
- अमेरिका ने पहले भारतीय पक्ष द्वारा डेटा स्थानीयकरण या भारत में स्थित सर्वरों में भारतीय उपयोगकर्त्ताओं के डेटा के भंडारण और प्रसंस्करण की मांग की संभावना के बारे में, यहाँ तक कि संयुक्त राज्य अमेरिका-आधारित कंपनियों के डेटा के मामले में भी चिंता व्यक्त की है।
- अमेरिकी रिपोर्ट ने संभावना व्यक्त की है कि भारत की यह नीति डिजिटल व्यापार के लिये महत्त्वपूर्ण बाधा के रूप में काम करेगी और विशेष रूप से छोटी फर्मों के लिये बाज़ार पहुँच बाधा के रूप में कार्य करेगी।
अन्य व्यापार सौदों से अलग:
- IPEF वास्तव में एक व्यापार समझौता नहीं है और कई स्तंभों का प्रावधान प्रतिभागियों के लिये यह चुनने का विकल्प प्रदान करता है कि वे किसका हिस्सा बनना चाहते हैं।
- अधिकांश बहुपक्षीय व्यापार सौदों की तरह यह इसमें शामिल होने या छोड़ने की व्यवस्था नहीं है।
- चूँकि IPEF एक नियमित व्यापार समझौता नहीं है इसलिये सदस्य हस्ताक्षरकर्त्ता होने के बावजूद सभी चार स्तंभों के लिये बाध्य नहीं हैं।
- इसलिये व्यवस्था के व्यापार भाग से दूर रहते हुए, भारत बहुपक्षीय व्यवस्था के अन्य तीन स्तंभों - आपूर्ति शृंखला, कर और भ्रष्टाचार विरोधी तथा स्वच्छ ऊर्जा में शामिल हो गया है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर भारत का दृष्टिकोण:
- इस क्षेत्र में भारत का व्यापार तेज़ी से बढ़ रहा है, विदेशी निवेश को पूर्व की ओर निर्देशित किया जा रहा है, उदाहरण के लिये जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर के साथ व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते तथा आसियान (दक्षिणपूर्व एशियाई राष्ट्र संघ) एवं थाईलैंड के साथ मुक्त व्यापार समझौते।
- भारत एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत का सक्रिय समर्थक रहा है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा आसियान के सदस्यों ने इस क्षेत्र में भारत की बड़ी भूमिका को लेकर समान विचार व्यक्त किया है।
- भारत अपने क्वाड भागीदारों के साथ हिंद-प्रशांत में अपने प्रयासों को आगे बढ़ा रहा है।
- भारत का विचार हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अन्य समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर काम करना है ताकि नियम-आधारित बहुध्रुवीय क्षेत्रीय व्यवस्था का सहकारी प्रबंधन किया जा सके तथा किसी एक शक्ति को इस क्षेत्र या इसके जलमार्गों पर हावी होने से रोका जा सके।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):प्रश्न. भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य है। वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की शक्ति और प्रभाव की विवेचना कीजिये। (मेन्स-2021) |